सोमवार, 15 जुलाई 2024

'आंखी झन देखा, तंय मोर का कर लेबे ' ?

सुनो भाई उधो

परमानंद वर्मा

अरे गरमी, तू अपनी इतनी गरमी, अहंकार, आतंक और अभिमान मत दिखा। पारा चालीस, पैंतालिस और पचास तक बढ़ा लेने की धमकी देकर धरती  वासियों को न डरा-धमका! तू जानता नहीं, एक पल में तुझे दबोच न लूं, पानी  न पिला दूं तो मेरा भी नाम बदली नहीं? एक आदेश पर मेरे सारे गण और सैनिक हवा, आंधी, तूफान, बिजली और बादल,पानी एक साथ टूट पड़ेंगे, 'बम बर्डिंग ' कर देंगे जैसे अभी-अभी रूस ने यूक्रेन, इजराइल ने हमास और ईरान पर किया है। क्या हाल हुआ है इनका। इतिहास और पुराणों के पन्ने पलटकर देख लीजिए- अहंकारी सदैव धूल धूसरित हुए हैं। इसलिए ये गरमी अपनी सीमा में रहना सीख, आतंक छोड़ दे। इसी संदर्भ में प्रस्तुत है यह छत्तीसगढ़ी आलेख...

देखत हौ एकर चाल ल, गरमी ल आतंक ल चालीस, चवालिस ले ऊपर भागत हे एकर पारा ह, कोन जनी पचास तक ले जाके भु'ज डरही, लेस डरही चिंगरी मछरी कस, ककरो परान नइ बाचही तइसे लागत हे? मउका मिलगे हे, मिल जथे तब कोनो ल छानही मं चढ़के होरा नइ भुंजना चाही। फेर अप्पत मन ल कोन समझावया। पद, पइसा, सत्ता, सुंदरी कस रूप कहूं एक घौं पा लेथे तहां ले अंधरा होय बरोबर कोनो ला कांही नइ समझंय तइसे लागथे। बस एक झन महीच हौं कहिथे। 

उधो के मइन्ता आज बड़े बिहनिया ले कोन जनी कइसे हे ते गड़बड़ागे हे। न कोनो एक पाव ओ का कहिथे नहीं सलफी, धन महुआ के उतारे दारू मारे हे, के भांग, अफीम, गांजा अउ हेरोइन दबाय हे। तब फेर अइसे का कारन हे के बिना नशा पानी के घला माते बरोबर ओकर हाथ-गोड़ डोलत हे, गोठियावत बतावत हे। अइसे तो नहीं के कोनो टेडग़ी या फेर घोड़ा करायत के अभेड़ा मं परगे होही? बात के जहर घला जबर होथे, सहे नइ जाय अउ का ले का नइ कर डरय? कोनो फांसी लगा लेथे, तब कोनो रेल मं मर-कट जाथे, जहर खाके अपन जीवन ला होम देथे। 

भाठा खार ले आमा टोर के आवत राहय माधो तेकर नजर गसतिहा खार मं गुमसुम थोथना उतारे सांप सूघे असन कलेचुप लरघियाय बइठे  उधो ऊपर परगे। ओला कहिथे- अरे भाई उधो, ये दे आम ले जा घर अउ बहू ला कहिबे बने नूनचरा चटनी बना डरही अउ गुराम घला बना लेही। बने खाहौ सुरपुट-सुरपुट। 

भाड़ मं जाय तोर नूनचरा आम के चटनी अउ गुराम, तुंही मन खाव चटनी अउ गुराम, बड़काहा मनखे मन के बहुत चोचला, नाज नखरा होथे? मोला नइ चाही तोर आमा। उधो के खखुवाय कस बोली ल सुनके माधो हड़बड़ागे अउ सोचथे- अइसे का होगे एला, एहर तो कभू अइसन बानी के बोलइया नोहय?

माधो सोचथे- जा, जरूर 'घर मं दूनो परानी के बीच मं कुछु बात ल लेके कहा-सुनी होगे होही, तेकर रंज ल मोर ऊपर उतारत हे ?

कोंवर लेवना कस बोली मं सुलहारत माधो कहिथे- उधो भइया, का बात हे संगवारी मोर, गोइसन बिच्छी के डंक मारे सही कुछू बोल दीस का अउ ओतके ओकरे बात ल धर के बगिया गेस। आज तोला पहिली बार देखथौं कइसे तोर चेहरा तमतमाय असन दीखत हे, आगी बरे सही। 

उधो मुंह खोलिस अउ किहिस- बात ल सही पकड़े भाई बइद हस ना। नाड़ी ल टमड़ के जइसे बइद मन शरीर के रोग ल जान जथे तइसे तहूं मोर बात ल, चेहरा के हाव-भाव ल देख के रोग ल जान डरे। 

माधो पूछथे- त हां, का बात हे तउन ल बता। कोनो मोर संगवारी अउ अइसन सुंदर सखा के मन मं  पथरा फेंके हे के समुंदर के लहरा असन चारो मुंड़ा बियाकुल नागिन बरोबर भटकत हे?

तोला का बतावौं माधो- यहा का अतियाचार हे, सुरुज नरायन के, ओला मउका मिले हे ते आगी बरसावत हे। पारा चालीस, पैंतालिस ल छुअत पचास ले छुए ले धर ले हे। अइसने तपही कोनो? जेन ल देखबे तउन पद, परतिष्ठा, धन, सत्ता, रूप अउ विद्या  ल पाके कोनो जीव ल तपही? अइसन अहंकार, घमंड नइ करना चाही। अरे इहां अतेक बड़े-बड़े परतापी राजा, महाराजा, सेना, सुंदरी, विद्वान, धनपति होय हे, सबके गरब माटी मं मिलगे हे। 

उधो बतावत कहिथे- मैं तोर अतका पढ़े-लिखे अउ कढ़े नइहौं माधो भइया फेर जतका संत समागम करे हौं, गुरु गुसाई अउ ददा-दाई, बबा के मुंह ले जइसन सुने हौं ओला बतावत हौं। कहां गय हिरण्यकश्यप के अहंकार जउन भगवान ले बढ़के समझत रिहिसे अउ जब नरसिंह अवतार रूप धरे भगवान के अभेड़ा मं परिस तब कइसे दांत ल निपोर दीस। कांही ले झन मरौं के वरदान पाके शेर बरोबर गरजत रिहिसे। कंस जउन अपन बाप उग्रेसन ला बंदी बनाके  कारागार मं धांध दे रिहिसे, बहिनी देवकी, दमाद वसुदेव के घला लिहाज नइ रखिस। ओकर लइका मन ल मार डरिस। फेर एक झन भांचा बाचगे कृष्ण तउन हे मतुर के राज दरबार मं कचार दीस, ओकर परान पखेरू उडग़े। रावन के का हाल-बेहाल होइस, ये कथा ल सब जानत हौ। 

तैं कहना का चाहत हस उधो, तेला साफ-साफ बता, तब ओहर 'अहंकार पुराण' के कथा ला लमियावत बताथे- अब तोला जादा बताय-सुनाय के का मतलब हे। माधो, देश दुनिया के चरित्तर ल तो तैं जानत हस, का होवत हे, का होवइया हे। पूरा छल-कपट बेइमानी, झूठ, धोखाधड़ी, मुंह मं राम-बगल मं छुरी कस हाल हे? जेती देखबे तेती पाखंड अउ पापाचार के खेती लहलहावत हे। जउन कभू मंदिर, मसजिद, गिरिजाघर, गुरुद्वारा के डेहरी मं नइ चढ़े होही, पांव नइ धरे होही तेकर मन के वेशभूषा बदलगे हे, संझा-बिहिनियां धुनी रमाय रामनाम के गटरमाला जपत हे पोथी पुरान पढ़थे। अइसे लगथे- कलजुग नहीं सतजुग मं हम सब जीयत हन। फेर अतेक अनीति, दुख के पहाड़ काबर बरसत हे, सब कोती हाहाकार काबर हे?

सुरुज नरायन घला राम नाम के माला जपे ले धर ले हे माधो, एकर भक्ति तो अउ नइ देखे जात हे। कहां तीस-पैंतीस के पारा मं एहर भजन-गीत गावय, तेकर तमूरा के ताल चालीस-पैंतालिस ले ऊपर चलत हे। 

एकर भक्ति के गरमी ल तो देख माधो, एक घौं मं बादर एला घपट के दबोच लेथे ते एकर हक्का-बक्का बंद हो जथे। चारो मुड़ा अंधियार छा जाथे। अतेक अहंकारी सुरुज नरायन तेकर चाल बादल के आघू मं घुसड़ जथे। मोला न कोनो टेडग़ी डसे हे, न घोड़ा करायत। ये अहंकारी मन के चाल ल देखथौं तब मगज छरिया जथे।

परमानंद वर्मा

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