मुकुल व्यास
14 फरवरी को सूरज ने अपना रौद्र रूप दिखलाया और उसका असर पृथ्वी पर भी हुआ। सूरज पर हुए विस्फोट ने चीन में रेडियो संचार में बाधा डाली और पूरी दुनिया की नींद उड़ा दी। करीब चार साल में यह सबसे शक्तिशाली विस्फोट था। विशेषज्ञों का कहना है कि 14 फरवरी की रात को सूरज पर उमड़ने वाला ज्वालाओं का तूफान ताकतवर होने के बावजूद पिछले अनेक विस्फोटों की तुलना में महज एक बच्चा था, लेकिन इसने पृथ्वीवासियों को यह अहसास जरूर करा दिया कि सूरज का गुस्सा कितना तीव्र हो सकता है। सूरज पर उठने वाला प्रचंड तूफान पूरी दुनिया में तबाही मचा सकता है। इससे संचार प्रणालियां अस्त-व्यस्त हो सकती हैं, उपग्रहों और अंतरिक्षयात्रियों के लिए खतरा उत्पन्न हो सकता है। इस वक्त सूरज पर गतिविधि का चक्र तीव्र हो रहा है। अगले कुछ वर्षो में वहां और बड़े विस्फोट हो सकते हैं। सूरज अपने 11-वर्षीय मौसमी चक्र में शांत समय बिताने के बाद पिछले साल ही सक्रिय हुआ था। पिछले कुछ महीनों के दौरान उसकी गतिविधि अचानक तेज हो गई है। विशेषज्ञों के मुताबिक सूरज पर तुरंत किसी बड़े तूफान की संभावना नहीं है, लेकिन यह बात गारंटी के साथ नहीं कही जा सकती। कभी भी कुछ हो सकता है। चूंकि हमारा आधुनिक समाज अपने अस्तित्व के लिए हाई-टेक उपकरणों पर निर्भर होता जा रहा है, ऐसे में सौर तूफान हमारे लिए ज्यादा परेशानी पैदा कर सकते हैं। ये तूफान आधुनिक उपकरणों की कार्य प्रणालियों को प्रभावित कर सकते हैं। आखिर ये सौर तूफान अथवा सौर लपटें क्या हैं? दरअसल सूरज पर उठने वाला तूफान तीव्र रेडिएशन-विस्फोट हैं, जिसमें फोटोन की तरंगें निकलती हैं। ये तरंगें पृथ्वी की ओर बढ़ती हैं। सौर-ज्वालाओं की ताकत का अंदाजा लगाने के लिए उन्हें तीन श्रेणियों में बांटा जाता है। ये हैं क्लास सी, क्लास एम और क्लास एक्स। क्लास एक्स की लपटों को सबसे ताकतवर माना जाता है। 14 फरवरी को निकली सौर ज्वाला को इस पैमाने पर क्लास एक्स 2.2 के रूप में अंकित किया गया। दूसरे सौर तूफानों को कोरोनल मास इजेक्शंस (सीएमई) कहा जाता है। ये सूरज की सतह से निकने वाले प्लाज्मा और मेग्नेटिक फील्ड के बादल होते हैं, जो बड़ी मात्रा में कणों को बाहर फेंकते हैं। सौर लपटों और सीएमई तूफान के पीछे बुनियादी कारण एक ही है और वह है सूरज के बाहरी वायुमंडल में चुंबकीय क्षेत्र में अवरोध। ये दोनों घटनाएं पृथ्वी पर जीवन को प्रभावित कर सकती हैं। मसलन, बड़ी-बड़ी ज्वालाएं उपग्रहों की कार्यप्रणाली में हस्तक्षेप कर सकती हैं, जीपीएस और हाई-फ्रीक्वेंसी रेडियो संचार में रुकावट उत्पन्न कर सकती हैं। यह स्थिति कुछ मिनटों से लेकर कुछ घंटों तक बनी रह सकती है। ये प्रभाव तुरंत महसूस किए जाते हैं क्योंकि प्रकाश को सूरज से पृथ्वी पर पहुंचने में सिर्फ आठ मिनट लगते हैं। सबसे ज्यादा नुकसान सीएमई से होता है। इसे पृथ्वी पर पहुंचने में तीन दिन लगते हैं। लेकिन एक बार यहां पहुंचने के बाद यह पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र से टकरा कर भू-चुंबकीय तूफान उत्पन्न करता है। ऐसा तूफान पूरी दुनिया के विद्युत और दूरसंचार तंत्र पर दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकता है। पिछले साल नासा ने अंतरिक्ष की गंभीर मौसमी घटनाओं पर पूर्व चेतावनी देने के उद्देश्य से सोलर शील्ड प्रोजेक्ट लांच किया था। अमेरिका की नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार भयंकर सौर तूफान से धरती के दूरसंचार संपर्क के पंगु होने और दूसरी गड़बडि़यों से उत्पन्न होने वाला प्रारंभिक नुकसान करीब 2 खरब डालर का होगा। इस नुकसान की क्षतिपूर्ति में दस साल लग जाएंगे। सूरज की गतिविधि का चक्र 11 साल चलता है। इस समय यह गतिविधि ताकतवर हो रही है। सूरज पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों को 2013 या 2014 में सौर गतिविधि के चरम पर पहुंचने की उम्मीद है। अत: भविष्य में और अधिक सौर लपटें और सीएमई तूफान पृथ्वी की ओर अग्रसर हो सकते हैं।
मुकुल व्यास
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)