मंगलवार, 21 जून 2011

दूसरों की खुशियां अपनाएं


सभी लोग अपने जीवन में न जाने क्या-क्या ढूंढ़ते हैं और पाने की आशा रखते हैं।मन में हमेशा एक खयाल रहता है कि अगर फलां चीज हासिल हो गई, तो जीवन-भर सुखी रहेंगे।लेकिन इस चक्कर में छोटी-छोटी खुशियां मुट्ठी से रेत की तरह फिसल जाती हंै। अगर आप अपनी सोच को बदल लें और यहां बताए जा रहे सुझावों को अपनाएं, तो हमेशा प्रसन्न रह सकते हैं...


१- अपने आपसे प्रेम करें और स्वयं को महत्वपूर्ण समझें। आईने में अपने को देखकर मुस्कुराएं और खुद को पसंद करें।
२- दूसरों से कोई अपेक्षा न करें कि कोई आपके काम की तारीफ करे। ज्यादा अपेक्षाएं रखने से आपको दुख के सिवाय कुछ हासिल नहीं होगा।
३- खुद को सराहें।अपने काम की मन ही मन सराहना करें। इससे आत्मविश्वास बढ़ेगा।
४- विनम्र बनें।सदैव सौम्य और शांत हो वार्ता करें। उच्च स्वर या कटु शब्दों का प्रयोग न करें।
५- जरूरी है निजी खुशी। जब भी समय मिले, तो दिन-भर में एक बार वह काम जरूर करें जो आपको सबसे अच्छा लगता है।
६- अपने साथियों और बॉस की कमियां न निकालें, बल्कि अपनी कमियों की तलाश कर उन्हें दूर करने की कोशिश करें।
७- क्रोध को नियंत्रित करना सीखें। जब ज्यादा गुस्सा आए, तो तुरंत उस माहौल से दूर होकर किसी अन्य काम में लग जाएं।
८- सकारात्मक सोच के महत्व को समझें।जो कुछ सोचें, उसे सकारात्मक रूप में लें।कोई काम अगर पूरा नहीं होता या बात नहीं बनती, तो उदास न हों।
९- अपनी पसंद को महत्वपूर्ण मानें। दूसरों को यह बताने का मौका न दें कि आप पर क्या अच्छा लगता है।
१०- दूसरों के साथ वही व्यवहार करें, जो आप अपने लिए चाहते हैं।
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दौडऩे वाले घोड़ों का पालन
कई उद्योगपति तो इतने कार्यनिष्ठहोते हैं कि छुट्टी वगैरह उनके लिए एक बेहूदगी होती है।अमेरिकन स्टैंडर्ड इंकॉर्पोरेटेड के अध्यक्ष विलियम माक्र्वाड लंबी छुिट्टयों की बजाय लंबे वीक एंड्स को पसंद करते हैं।वे कहते हैं- चौथा दिन बीतते-बीतते मुझे अकुलाहट होने लगती है।अटलांटा के फूक्वा इंडस्ट्रीज के संस्थापक जॉन लुक्स फूक्वा एक बार दो सप्ताह की छुट्टी मनाने स्विट्जरलैंड गए, मगर तीन दिन बाद ही दफ्तर लौट आए।वे बोले- महल सारे-एक से होते हैं।एक देखा तो समझो, सभी देख लिए।विलक्षण कार्य के लिए असाधारण ऊर्जा की जरूरत होती है।बहुत से होनहार, युवा उद्यमी केवल इसलिए सफल नहीं हुए कि उनके कस-बल जुदा किस्म के थे।जेरॉक्स के पीटर मैककोलो कहते हैं- जल्दी पता चल जाता है कि कौन दौड़ में पिछड़ जाएगा। यही बात लिटन इंडस्ट्रीज के टैक्स थर्मन ने कही है- दौडऩे वाले घोड़ों का पालन-पोषण दौड़ के लिए किया जाता है।

सफल होते ही भूल जाते हैं

वैज्ञानिक अपने अध्ययन से कहते हैं कि हर सफल व्यक्ति जब सफलता का स्वाद चख लेता है, तो उसकी पहली प्रतिक्रिया खुद को भूल जाने की होती है।इसका कारण यह है कि उसे ध्यान रहता है कि वह कभी एक साधारण असफल व्यक्ति था और आगे भी वैसा ही बना रह सकता है। इसके पीछे इसकी सोच और सोच के पीछे रसायनों का भी हाथहोता है, जो उसके शरीर से स्रावित होते हैं।अमेरिका की जॉर्ज वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के मस्तिष्क विज्ञानी डॉ. रिचर्ड रेस्तेक का विश्लेषण है कि हर सफल और असफल व्यक्ति के शरीर में उत्तेजना का अलग-अलग ढंग होता है।यह उत्तेजना हार्मोंस और तंत्रिका-तंत्र के कारण होती है।डॉ. रिचर्ड कहते हैं कि मस्तिष्क में स्थित हाइपोथैलेमस और किडनी के ऊपरी भाग में उपस्थित एड्रीनलिन ग्रंथि शरीर की सभी गतिविधियों के साथ-साथ सोच-विचारों को भी नियंत्रित करती है। और एक सफल तथा असफल व्यक्ति उसकी सोच से संचालित होता है।

शुक्रवार, 10 जून 2011

कभी सुना है आपने एकांत का मद्धम संगीत. . .!


डॉ. महेश परिमल
सुबह हुई और सूरज की सिंदूरी आभा के साथ पूरब दिशा मुस्करा उठी। अल्लसुबह जो चिड़िया उनींदी होकर अपने पंखों को समेटते हुए घोसले में दुबक गई थी, उसने पहली किरण के साथ ही अपनी आँखें खोली और पंखों को फैलाकर उसमें रश्मियों का पुंज भर दिया। हवा के गुलाबी झौंके से पेड़ों की डालियों ने दोस्ती की और शांत वातावरण में पत्तों का संगीत गुनगुनाने लगा। धीरे-धीरे सूरज का साम्राज्य चारोंे दिशाओं में फैलता गया और धरती का रूप उसकी किरणों के श्रंगार से सँवर उठा।
प्रकृति का यह अद्भुत और मोहक दृश्य देखकर मन ने कहा- आज इस सुखद सुबह की शुरुआत भी सुखद कार्य से होनी चाहिए। सुखद कार्य ? मगर कौन सा कार्य सुखद कहा जा सकता है ? आज तो इंसानों की भीड़ में खुद को खोजना ही मुश्किल है! यदि घड़ी भर के लिए खुद से ही मुलाकात हो भी गई, तो जब तक यकीन करें कि ये हम खुद ही हैं, तब तक इंसानी भीड़ का एक रेला आता है और खुद को ही धकेलकर दूर ले जाता है। ऐसे में क्षण भर पहले हुई खुद से मुलाकात ही एक युग का सफर बन कर रह जाती है। आप सोचेंगे, शब्दों का कैसा जाल फैलाया जा रहा है, जिसमें केवल उलझन ही उलझन है! लेकिन यह उलझन नहीं, हमारी जि़ंदगी की हकीकत है।

आज इंसान के पास सभी के लिए समय है, लेकिन केवल खुद के लिए ही समय नहीं है। जब-जब खुद से बातें करने के लिए मोबाइल पर अपना ही नंबर लगाया जाए, तो वह व्यस्त ही मिलता है। व्यस्तताओं की पैनी धार पर बैठा आदमी धीरे-धीरे समय के साथ कटता चला जा रहा है। ऐसा कोई क्षण, कोई लम्हा नहीं, जब उसे एकांत मिला हो, और इस एकांत में उसने अपने आप से बातें की हों। खुद को अपना दोस्त बनाने की बात, खुद को अपना सुख-दुख कहने की साध तो सबके मन में होती है। पर कहाँ कर पाते हैं हम ऐसा। हम सबके बारे में जानने का दावा भले ही कर लें, पर अपने आप को जानने का दावा कभी नहीं कर सकते।
आजकल डॉक्टर मरीज को दवाओं के रूप में एक सलाह देने लगे हैं। अखबार, टीवी, मोबाइल से दूर होकर एक सप्ताह के लिए अपनों से इतनी दूर चले जाओ, जहाँ बिजली तक न हो। यानी सुदूर गाँव में। वहाँ जाकर सुनो एकांत का संगीत। अकेलेपन में भीतर से आवाज आएगी। इस आवाज को पहचानो, यह अपनी ही आवाज होगी, जो हमें पुकारती है। कई बार कोशिश करोगे, तो इस आवाज को साफ सुनने लगोगे। फिर शुरू कर देना, अपने आप से बातचीत। बात करते रहना, करते रहना। एक समय ऐसा भी आएगा, जब आप खुद को अजनबी लगने लगेंगे। अरे! ये तो मैं ही हूं, ये तो मेरे बचपन की आवाज है, अब तक कहाँ थी यह आवाज? इसी आवाज को सुनने के लिए मैं तरस गया था। आखिर कहाँ थी यह आवाज? मेरे ही भीतर थी, तो सुनाई क्यों नहीं दी मुझे?
अक्सर ऐसा ही होता है,जब हम एकांत का संगीत सुनते हैं, तब हम अपने बेहद करीब होते हैं। यही क्षण होता है, जब हम अपनी आवाज सुनें। हम क्या कहते हैं, क्या सोचते हैं, हमें क्या करना है, कहाँ जाना है, हमारी मंजिल क्या है आदि। इन सबका उत्तर मिल जाएगा, जब हम वास्तव में अपनी दुनिया में लौट आएँगे। जहाँ हमारे अपने हमारा इंतजार कर रहे होते हैं। बहुत ही कम होती है, इन अपनों की संख्या। पर हौसला बढ़ाने मे इनका कोई सानी नहीं। शायद इसीलिए कहा जाता है कि एकांत का संगीत सुनो..
डॉ. महेश परिमल