गुरुवार, 10 नवंबर 2011

धार्मिक स्थलों में भगदड़ के पीछे है भक्तों की आतुरता


डॉ. महेश परिमल
हिंदू मंदिरों में होने वाली भगदड़ के लिए यदि कोई जवाबदार है, तो वह है भक्तों की आतुरता। कहा गया है कि भीड़ के पास ताकत होती है, पर विवेक नहीं होता। भीड़ कभी भी हिंसक हो सकती है। भीड़ कभी दूसरों का विचार नहीं करती। यही कारण है कि जब भी कहीं भीड़ होती है, उसे काबू करना बहुत मुश्किल होता है। भीड़ में जान गँवाने वाले भी कम नहीं होते। देश में हर साल ऐसा कोई न कोई हादसा होता ही है, जिसमें भीड़ के कारण लोग मौत के आगोश में समा जाते हैं। कुंभ मेले में भगदड़ के बाद प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने कहा था कि धार्मिक आयोजनों में किसी वीआईपी को नहीं जाना चाहिए। इससे वहाँ की व्यवस्था गड़बड़ा जाती है।
गायत्री परिवार के स्थापक पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य एक उच्च कोटि के विद्वान और समाज सुधारक थे। हरिद्वार में गायत्री परिवार ने जिस आध्यात्मिक चेतना केंद्र की स्थापना की है, उसका संचालन उत्तम रूप से किया जाता है। वैदिक धर्म के सिद्धांतों और उसके पीछे विज्ञान के संबंध में इस केंद्र द्वारा लगातार शोध किए जा रहे हैं। विश्व में फैले हुए गायत्री परिवार के केंद्र इस सात्विक विचारों का प्रचार निष्ठापूर्वक कर रहे हैं। ऐसे महापुरुष की जन्म शताब्दि के आयोजन में लोग जमा हों और उसमें धक्कामुक्की हो, जिसमें बीस लोगों की मौत हो जाए, यह दुर्भाग्यपूर्ण है। हरिद्वार में हुई इस दुर्घटना की प्रारंभिक जाँच रिपोर्ट में पता चला है कि यह दुर्घटना आयोजकों की लापरवाही के बजाए भक्तों की आतुरता ही अधिक जवाबदार है।
हमारे देश में कहीं भी धार्मिक महात्सव हो, तो हजारों नहीं लाखों की संख्या में भक्त उमड़ पड़ते हैं। यदि आयोजक सचेत न हों, तो भगदड़ की पूरी संभावना होती है। इसमें भीड़ का मनोविज्ञान काम करता है। इसमें लोग अपना विवेक खो बैठते हैं। दूसरों का खयाल ही नहीं रखते। इस वर्ष जनवरी माह में दक्षिण भारत के शबरीमाला मंदिर में भी भगदड़ हुई थी। इसमें सौ से अधिक लोग मारे गए थे। इतने ही घायल हुए थे। इस दुर्घटना में मारे गए लोग कर्नाटक, तमिलनाड़ु, केरल और आंध्रप्रदेश के थे। केरल सरकार ने मृतकों के लिए 5 लाख रुपए देने की घोषणा भी की थी। इसकी जाँच भी हुई थी, पर उसका क्या हुआ, किसी को नहीं पता। वैसे भी जाँच रिपोर्ट पर किसी प्रकार के अमल की परंपरा हमारे देश में है ही नहीं।
हिमाचल प्रदेश में स्थित नैना देवी की शक्तिपीठ में सन 2008 के श्रावण महीने में हुई भगदड़ में 162 लोगों की मौत हो गई थी। एक टेकरी पर स्थित शक्तिपीठ के दर्शन के लिए करीब 50 हजार भक्त जमा हुए थे। उस समय तेज बारिश हो रहीे थी। बारिश की रक्षा के लिए तैयार किया गया एक शेड अचानक टूट गया। लोगों ने यह समझ लिया कि शिलाप्रपात हुआ है। इससे लोगों में घबराहट फैल गई। लोग इधर-उधर भागने लगे। इस भगदड़ में 162 लोग मारे गए। भगदड़ के उस माहौल में पुलिस द्वारा तैयार की गई रेलिंग से बाहर जाने की कोशिशें होने लगी। पुलिस ने भक्तों को रोकने की काफी कोशिशें की, पर जिन्होंने रेलिंग तोड़ी, वे सभी गहरी खाई में गिरने लगे। इसी मंदिर में 1978 में भी भगदड़ मची थी। जिसमें 64 लोग मारे गए थे। इस घटना से मंदिर प्रशासन ने कोई सबक नहीं लिया था। जहाँ भीड़ जमा होती है, वहाँ अव्यवस्था तो होती ही है। पर जो अफवाह फैलती है, उसे रोक पाना मुश्किल होता है। 2008 के सितम्बर माह में जोधपुर में चामुंडा देवी मंदिर में मची भगदड़ में 249 लोग मारे गए थे और 400 लोग घायल हुए थे। नवरात्रि के पहले दिन जोधपुर केप्रसिद्ध मेहरामगढ़ किले में 24 हजार भक्तों की भीड़ उमड़ी थी। इस मंदिर में जाने की जगह बहुत ही सँकरी है, भीड़ को नियंत्रित करने के लिए बेरीकेड्स भी नहीं लगाए गए थे। इतने में एक धमाका हुआ, लोगों ने समझा, यह बम विस्फोट की आवाज है। लोगों में डर बैठ गया, वे भागने लगे। इससे सैकड़ों लोग कुचले गए। इस मंदिर प्रशासन का दोष अधिक नजर आता है। मंदिर से भक्तों के निकलने के सारे दरवाजे सील कर दिए गए थे। लोगों के जान बचाकर भागने की जगह नहीं मिली, इसलिए कुचले गए। महाराष्ट्र के सतारा जिले में स्थित मांढर देवी के मंदिर में 2004 में भगदड़ मची थी। इसमें करीब 300 भक्तों की मौत हो गई थी। यह मंदिर एक टेकरी पर स्थित है। यहाँ पहुँचने के लिए सीढ़ी काफी सँकरी है। इस मंदिर में काली माता के दर्शन के लिए 25 जनवरी को करीब तीन लाख भक्त जमा हुए थे। भक्त जिस रास्ते से जा रहे थे, वहाँ नारियल के पानी के कारण फिसलन हो गई थी। इतने में करीब की एक दुकान में आग लग गई और गैस सिलेंडर फट गया। इस आवाज के कारण लोगों में घबराहट फैली और अनेक लोगोंे की मौत खाई में गिरने से हो गई।
सन 2010 में उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में कृपालु महाराज के आश्रम में भगदड़ मचने से 63 भक्तों की मौत हो गई थी। करीब सौ लोग घायल हो गए थे। कृपालु महाराज की पत्नी की पहली पुण्यतिथि को आश्रम द्वारा वस्त्र और बरतन दान किए जाने थे। इस दान को पाने के लिए करीब दस हजार लोग जमा हुए थे। वहाँ ऐसी अफवाह फैली कि आश्रम में एक बिजली के तार से करंट लगने से किसी भक्त की मौत हो गई है। घबराए लोगों ने दरवाजे की तरफ दौड़ लगाई, इस दरवाजे का निर्माण कार्य पूरा भी नहीं हुआ था। लोगों के हुजूम के कारण दरवाजा टूट गया। अनेक लोग उसके नीचे कुचल गए। इसमें जो 63 लोग मारे गए थे, उसमें से 37 तो बच्चे और 25 महिलाएँ थीं। ये सभी मुफ्त में मिलने वाली चीजों के लालच में आए थे।
हरिद्वार में इसके पहले कई भगदड़ मची है। 1995 में आयोजित कुंभ मेले में धक्का-मुक्की  से 39 लोगों की मौत हुई थी। 1954 में इलाहाबाद में आयोजित कुंभ मेले में जो भगदड़ मची, उसमें 800 लोग मारे गए थे। 200 लोग लापता हो गए। ये सभी गंगा नदी में डूब गए, ऐसी संभावना व्यक्त की गई। आजादी के बाद यह पहला कुंभ मेला था। इसमें करीब 40 लाख लोग जमा हुए थे। उस समय गंगा नदी का बहाव बदला गया था। इसलिए मेले की जगह में कमी आ गई थी। इस दौरान जब नागा बाबा शाही स्नान के लिए जा रहे थे, तब उनके दर्शनार्थ लोगों की भीड़ उमड़ी। इस मेले में कई नेता भी शामिल हुए थे। पुलिस उनकी सुरक्षा व्यवस्था में लग गई, इसलिए मेले की व्यवस्था में खामी रह गई। दुर्घटना के बाद पंडित नेहरु ने यह टिप्पणी की थी कि नेताओं को कुंभ मेले में जाने का मोह त्यागना होगा। जब दुर्घटना की जाँच द्वारा तैयार की गई समिति द्वारा की गई। इसकी जाँच रिपोर्ट से मेले की व्यवस्था में सुधार किया गया।
इन भगदड़ों में यही बात नजर आई कि जब कहीं हजारों-लाखों लोग जमा होते हैं, तो वहाँ पर मोब साइकोलॉजी काम करती है। विवेक काम नहीं करता। अनुशासन किसी काम का नहीं रह जाता। इंसान अपने होश-हवाश खो बैठता है। दूसरों की चिंता बिलकुल ही नहीं करता। भीड़ निर्भय हो जाती है। प्रतापगढ़ में कृपालु महाराज के आश्रम में गरीब जिस तरह से भगदड़ के शिकार हुए, उसके पीछे का भाव लालच और भय था। हरिद्वार में जो कुछ हुआ, उसके पीछे स्वार्थ और आतुरता थी। दुनिया के धार्मिक स्थल परोपकार करने का आदेश देते हैं और दूसरों की ¨चंता करना सिखाते हैं। किंतु इंसान भीड़ का हिस्सा बनते ही सब कुछ भूल जाता है। धार्मिक स्थलों पर आकर यदि लोग अपने साथ-साथ दूसरों की भी चिंता करने लगे, तो ऐसी दुर्घटनाओं पर कुछ हद तक अंकुश लगाया जा सकता है। भीड़ को काबू करना मुश्किल है। पर कोई एक आवाज तो ऐसी होनी चाहिए, जिसे सुनकर लोग होश में आ जाएँ। भीड़ को नियंत्रित नहीं किया जा सकता, पर उसे बेकाबू करने के लिए एक छोटी सी अफवाह ही काफी

रविवार, 6 नवंबर 2011

यूँ ही चला जाना भूपेन दा का..


डॉ. महेश परिमल
लगता है ईश्वर अचानक संवेदनशील हो उठा है। पहले तो जगजीत सिंह की सुरमई आवाज को अपने पास बुला लिया, फिर वह हमारे बीच माटी की सोंधी महक की पहचान बने चिरंजीवी आवाज के धनी भूपेन हजारिका को भी अपने पास बुला लिया। अब तक हम उनके गीतों से भाव-विभोर हुआ करते थे, अब ईश्वर अकेला ही उनके गीतों का रसास्वादन करेगा! यहाँ आकर लगता है, सचमुच ईश्वर भी अब स्वार्थी हो गया है।
भूपेन दा, ये वही भूपेन दा थे, जिन्होंने पहली बार चुनाव में ऐसा प्रयोग किया, जैसा आज तक कभी नहीं हुआ। ‘गन’ का मुकाबला ‘गान’ से करने वाले भूपेन दा हमारे बीच अब नहीं हैं, पर दिल जब भी हूम हूम करता है, तो वे अनायास ही याद आ जाते हैं। भूपेन दा को सुनते हुए ऐसा लगता है मानों चिरंजीवी आवाज का धनी यह व्यक्ति की आवाज हृदय की गहराइयों को किस तरह से अनजाने  में ही कैसे बाँध लेती है? गीत चाहे असमी हों, बंगला हों या फिर हिंदी, सभी गीत भावुक हृदय को बाँधकर रख देते हैं। उन्हें सुनना यानी असम के सुदूर गाँवों का भ्रमण करना। जहाँ संगीत का धारा दिल से बहती है। आवाज में इतनी मिठास कि लोग सुनते ही रह जाएँ। हिंदी में उनका परिचय हमें गुलजार साहब के माध्यम से मिलता है। उनके असमी गीत का हिंदी अनुवाद उन्होंने इतनी खूबसूरती से किया है लगता ही नहीं, ये मूल असमी से अनूदित हैं। ओ गंगा बहती हो क्यों, आमी एक जाजाबोर, एक कली दो पत्तियाँ, डोला हो डोला, आलसी सावन बदली चुराए आदि ऐसे गीत हैं, जिनका भाव न समझने के बाद भी ऐसा लगता है मानों यह हमारा ही गीत हमारे ही हृदय से निकल रहा है। गुलजार साहब के गीतों को जिस तरह से जगजीत ¨सह ने अपनी आवाज से अमर कर दिया, ठीक उसी तरह से भूपेन दा के गीतों को गुलजार साहब ने हिंदी के शब्द देकर अमर कर दिया। इन दोनों ने मिलकर हिंदी सिनेमा ही नहीं, बल्कि हिंदी जगत को ऐसे अमर गीत दिए हैं, जो देश ही नहीं, सात समुंदर पार भी बजते रहेंगे।
जिन्हें संगीत की थोड़ी सी भी समझ न हो, भूपेन दा ने ऐसे लोगों के लिए गीत रचे हैं, गाए हैं। उनके गीत संगीतमय कहानी बुनते हैं। कहीं डर से कँपा देने वाले, तो कहीं खुशी में झूमते हुए, कहीं देश-विदेश की यात्राएँ करवाने वाले, कहीं प्रेमी हृदय की तड़प बताते हुए, तो कहीं सिहरन पैदा करने वाले हैं। उन्हें सुनते हुए हम अपनी सारी पीड़ाएँ भूलकर एक ऐसे लोक में विचरण करने लगते हैं, जहाँ पीड़ा का सागर लहराता हो, अपनत्व की डोर में बँधे प्रेमी युगल हो, गंगा माता पर कटाक्ष करते हुए बोल हो। इन सभी को मिलाकर भूपेन दा का जो खाका तैयार होता है, वह उनकी मधुर आवाज में गुम हो जाता है, रह जाते हैं तो केवल गीत के बोल और हृदय को स्पंदित करता संगीत। अपने गीतों को बुनकर उन्होंने हमें जो संवेदनाएँ दी हैं, उसके लिए हमारे पास शब्द नहीं हैं। शब्द तो आज गुलजार साहब के पास भी नहीं होंगे। हमेशा उनकी भावनाओं को शब्द देते-देते वे आज शब्दविहीन हो गए हैं। भूपेन दा शब्द रचते रहे, शब्द बुनते रहे, शब्द गाते रहे, हृदय को मथते रहे। विश्वास है उनकी अंतिम साँसें भी संगीतमय ही रहीं होंगी।
छियासी साल के हजारिका को 1992 में सिनेमा जगत के सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहब फाल्के अवॉर्ड से नवाजा गया. इसके अलावा उन्हें नेशनल अवॉर्ड एज दि बेस्ट रीजनल फिल्म (1975), पद्म भूषण (2011), असोम रत्न (2009) और संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड (2009) जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। यही नहीं, ‘गांधी टू हिटलर’ फिल्म में महात्मा गांधी के प्रसिद्ध भजन ‘वैष्णव जन’ को उन्होंने ही अपनी आवाज दी। बहुमुखी प्रतिभा के धनी भूपने हजारिका ने केवल 13 साल 9 महीने की उम्र में मैट्रिक की परीक्षा तेजपुर से की और आगे की पढ़ाई के लिए गुवाहाटी के कॉटन कॉलेज में दाखिला लिया. यहां उन्होंने अपने मामा के घर में रह कर पढ़ाई की. इसके बाद 1942 में गुवाहाटी के कॉटन कॉलेज से इंटरमीडिएट किया और फिर बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया. वहां से उन्होंने 1946 में राजनीति विज्ञान में एम ए किया. इसके बाद उन्होंने न्यूयॉर्क स्थित कोलंबिया यूनिवर्सिटी से कम्युनिकेशन पर पीएचडी की डिग्री प्राप्त की. 1993 में असोम साहित्य सभा के अध्यक्ष भी रहे. उन्हें कई उपाधियों से नवाजा गया, जिनमें से प्रमुख हैं:- सुधाकण्ठ,  पद्मश्री, संगीत सूर्य, सुर के जादूगर, कलारत्न, धरती के गन्धर्व, असम गन्धर्व, गंधर्व कुंवर, कला-काण्डारी, शिल्पी शिरोमणि, बीसवीं सदी के संस्कृतिदूत, यायावर शिल्पी,  विश्वबंधु और  विश्वकण्ठ ।
जीवन चलता रहता है, भूपेन दा भी हमेशा अपने सुमधुर गीतों के साथ हमारे साथ चलते रहेंगे। गीतों में जब भी माटी के सोंधेपन की बात होगी, भूपेन दा का नाम सबसे आगे होगा। जगजीत अपनी सुरमई आवाज के साथ चले गए, तो भूपेन हजारिका अपनी चिरंजीवी आवाज को लेकर चले गए। संगीत की दुनिया में ये दोनों ही एक बेजोड़ गायक रहे, जिनका स्थान कभी कोई नहीं ले सकता। भूपेन दा को भावभीनी श्रद्धांजलि।

गुरुवार, 3 नवंबर 2011

मारन बंधुओं पर लटकती तलवार




डॉ. महेश परिमल
देश के लिए शर्मनाक 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला न जाने कितनों की बलि लेगा। जैसे-जैसे इसकी परतें खुलती जा रही हैं, वैसे-वैसे नए-नए घोटालेबाज चेहरे सामने आते जा रहे हैं। अब एक नया तथ्य सामने आया है कि इस घोटाले की शुरुआत ए. राजा ने नहीं, बल्कि दयानिधि मारन ने की थी। केंद्र में दयानिधि मारन का कद आज की तारीख में इतना है कि इस घोटाले में सहभागिता के कारण उन्हें अपने पद से इस्तीफा देने के चार महीने बाद उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई। अभी तक उनकी धरपकड़ नहीं हुई है। जब इस मामले में सुप्रीमकोर्ट ने लाल आँखें दिखाई, तब सीबीआई सक्रिय हुई और उनके खिलाफ सबूत इकट्ठे करने लगी। अभी भी लगता यही है कि सीबीआई मारन बंधुओं की गिरफ्तारी का मुहूर्त ही देख रही है। हाल में मारन बंधुओं के कार्यालय में मारे गए छापे में कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ मिली हैं। वास्तव में यूपीए शासन के दौरान टेलीकॉम घोटाले की शुरुआत ए. राजा से पहले दयानिधि मारन ने की थी। 14 दिसम्बर 2005 में दयानिधि टेलीकॉम मिनिस्टर थे, तब उन्होंने ट्राई की मंजूरी के बिना नए लायसेंस देने के लिए गाइड लाइन तैयार की। अपने कार्यकाल में दयानिधि नीलाम किए बिना ही 27 लायसेंस जारी किए। दयानिधि ने टाटा समूह के आवेदन को भी नामंजूर कर उन्हें नाराज कर दिया। टाटा से उन्होंने तब हाथ मिलाया, जब सी. शिवशंकर ने एयर सेल कंपनी बेच दी। दयानिधि के बाद ए. राजा ने जब अपना कार्यभार संभाला,तब उन्होंने टाटा समूह को भी लाभ दिलाया। दयानिधि मारन फोब्र्स की महत्वपूर्ण हस्तियों की सूची में शामिल हैं। इतनी बेशुमार दौलत मारन बंधुओं ने गलत तरीके से कमाई है, ऐसा सीबीआई का मानना है। देश के 15 वें नम्बर के इस धनाढच्य व्यक्ति ने मलेशिया की कंपनी मेक्सीस से 700 करोड़ रुपए का लाभ लिया था। यदि मारन बंधु गिरफ्तार हो जाते हैं, तो ऐसा पहली बार होगा कि फोब्र्स की सूची में शामिल होने वाली हस्तियों को जेल जाना पड़े। गलत कार्यो से जो लगातार कमाई कर रहे हैं, उन्हें मारन बंधुओं की हालत से सबक लेना चाहिए।
2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में ए राजा और कनिमोझी के बाद अब तिहाड़ जेल के मेहमान बनने वाले हैं दो भाई, दयानिधि मारन और कलानिधि मारन। दयानिधि की उम्र केवल 38 वर्ष की थी, तब वे यूपीए वन के कार्यकाल में मंत्री पद प्राप्त कर लिया था। दयानिधि और कलानिधि पर भ्रष्टाचार के आरोप में सीबीआई ने उनके कार्यालयों में छापा मारा। वहाँ मिले दस्तावेज के आधार पर उनसे अब पूछताछ की जाएगी। उसके बाद उनकी गिरफ्तारी तय है। मारन बंधुओं का शुमार देश के अमीर लोगों में होता है। इनके सन टीवी समूह में 20 टीवी चैनल और 45 एफ.एम. चैनल हैं। तमिलनाड़ु के अलावा विश्व में दस करोड़ परिवार उनके चैनलों के मजे लेते हैं। उनके हाथ में तमिलनाड़ु के दो महत्वपूर्ण अखबार और चार पत्रिकाएँ हैं। उनकी एक फिल्म प्रोडक्शन और डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी के अलावा एयरलाइंस भी है। फोब्र्स मैगजीन द्वारा 2011 में सबसे अमीर भारतीयों की जो सूची प्रकाशित की, उसमें दयानिधि मारन 3.5 अरब डॉलर की सम्पत्ति के साथ 16 वें नम्बर पर रखा है। 2005 में उन्होनें एसएसबीसी बैंक से 42 करोड़ रुपए में जमीन का एक टुकड़ा खरीदा था, दूसरे वर्ष उन्होंने चेन्नई के पॉश इलाके में 80 करोड़ का एक प्लाट खरीदा। चेन्नई के इतिहास में अब तक का यह सबसे बड़ा जमीन का सौदा था।
दयानिधि और कलानिधि के पिता का नाम त्यागराज सुंदरम था। वे तांजोर जिले के एक छोटे से गाँव में रहते थे। चेन्नई के पचैअप्पा कॉलेज में पढ़कर उन्होंने एम.ए. कर पत्रकार बने। उस समय उनके चाचा करुणानिधि तमिलनाड़ु की राजनीति में सक्रिय हो रहे थे। करुणानिधि के ब्राrाण विरोधी राजनीति में स्थापित होन के लिए उन्होंने अपने नाम से त्यागराज जैसा उपनाम हटाकर मारन रख लिया। जब करुणानिधि ने अपने दैनिक अखबार ‘मुरासोली’ का संपादक बनाया, तब से त्यागराज सुंदरम मुरासोली मारन के नाम से पहचाने जाने लगे। इसके बाद वे अपने चाचा की ऊँगली थामकर राजनीति का ककहरा समझने लगे।सन 1967  द्रमुक के स्थापक अन्नादुराई तमिलनाड़ु के गैरकांग्रेसी मुख्यमंत्री बने, तब उन्होंने दक्षिण मद्रास की लोकसभा सीट खाली की थी। करुणानिधि के कहने से यह सीट मुरासोली मारन को दी गई। वे सांसद बन गए। मुरासोली मारन 36 साल तक दिल्ली की राजनीति में रहे। इस दौरान उत्तर भारत के नेताओं से उन्होंने प्रगाढ़ संबंध बनाए। उसके बाद तो हालत यह हो गई कि केंद्र में किसी की भी सरकार हो, मुरासोली उसमें अवश्य होते। 1988 में वीपी सिंह सरकार में वे मंत्री रहे, 1995 में यूनाइटेड फंट्र की सरकार में भी उनकी उपस्थिति रही, उसके बाद 1999 में भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए में भी वे मंत्री बने। 2003 में मुरासोली मारन का देहांत हो गया। इससे करुणानिधि को बहुत सदमा लगा। तब उन्होंने मारन के छोटे पुत्र कलानिधि को केंद्रीय मंत्री पद का ऑफर दिया। कलानिधि को राजनीति से अधिक अपने काम-धंधे में अधिक दिलचस्पी थी। इसलिए करुणानिधि ने 38 वर्षीय दयानिधि को दिल्ली की राजनीति से जोड़ दिया। 2004 के लोकसभा चुनाव में दयानिधि को द्रमुक की टिकिट मिली और वे सांसद बनकर युपीए एक की सरकार में दूरसंचार मंत्री बने। कलानिधि मारन ने अमेरिका यूनिवर्सिटी से एमबीए किया था। तमिलनाड़ु में उन्होंने पहले निजी टीवी चैनल सन टीवी नेटवर्क की स्थापना की। उसका तेजी से विकास किया। सन 1991 में जब जयललिता पहली बार तमिलनाड़ु की मुख्यमंत्री बनी, तब सन टीवी उनके पीछे हाथ धोकर पड़ गया था।
इधर दिल्ली और तमिलनाड़ु में मारन बंधुओं का कद लगातार बढ़ता गया। इसके साथ-साथ उनका काम-काज भी बढ़ने लगा। सन टीवी के माध्यम से उन्होंने अपना राजनैतिक दबदबा बढ़ाया। 2007 में  उनके अखबार दिनकरण में एक सर्वेक्षण प्रकाशित हुआ, जिसमें बताया गया कि तमिलनाड़ु की 70 प्रतिशत जनता करुणानिधि के वारिस के रूप में उनके छोटे पुत्र स्टालिन को चाहती है। जबकि उनके बड़े बेटे अजागिरी को मात्र दो प्रतिशत लोग ही चाहते हैं। इस खबर के प्रकाशन के बाद अजागिरी के समर्थक क्रोधित हुए और दिनकरण के मदुराई स्थित कार्यालय को आग लगा दी, जिसमें तीन कर्मचारी मारे गए। इस घटना की प्रतिक्रिया में दिल्ली में दयानिधि को मंत्री पद छोड़ना पड़ा था। उनके स्थान पर ए. राजा को भेजा गया। 2009 में यूपीए 2 की सरकार में दयानिधि को कपड़ा मंत्री बनाया गया। 2004 और 2007 के दौरान 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में सहभागिता होने के कारण उन्हें यह पद भी छोड़ना पड़ा था।
जब 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला सामने आया, तब न तो दयानिधि और न ही कलानिधि का नाम इसमें जोड़ा गया। एयरसेल कंपनी के भूतपूर्व मालिक सी. शिवशंकर ने जब यह आक्षेप किया कि दयानिधि मारन ने उन्हें लायसेंस के लिए काफी परेशान किया। न चाहते हुए भी मुझे अपनी मलेशिया स्थित कंपनी को मेक्सीस कम्युनिकेशन को बेचनी पड़ी। इसके बाद तो दयानिधि की कृपा से उन्हें 2 जी का लायसेंस मिल गया। इस लाभ के बदले में मेक्सीस की साथी कंपनी ‘एस्ट्रो’ ने कलानिधि मारन की कंपनी सन डायरेक्ट के शेयर 550 करोड़ रुपए में खरीद लिए। सीबीआई की एफआईआर के अनुसार यह रकम मारन बंधुओं को रिश्वत के बतौर दी गई थी। एयरसेल कंपनी ने 2 जी स्पेक्ट्रम के लिए दिसम्बर 2004 में आवेदन किया, तब दयानिधि मारन दूरसंचार मंत्री थे। दयानिधि ने ही इस फाइल पर टिप्पणी लिखी कि इस आवेदन के समाधान में बेवजह उतावलापन दिखाया जा रहा है। इस दौरान मलेशिया की मेक्सीस कंपनी ने एयरसेल को खरीदने का ऑफर दिया। अक्टूबर 2005 में एयरसेल के मालिक सी. शिवशंकरन और मेक्सीस के एक्जिक्यूटिव राल्फ मार्शल के बीच मंत्रणा हुई। मार्शल ने स्पष्ट कहा कि यदि वे एयरसेल कंपनी बेच देंगे, तो उन्हें तुरंत ही 2 जी का लायसेंस मिल जाएगा। मीटिंग के तुरंत बाद शिवशंकरन के पास दयानिधि का फोन आया। दयानिधि ने साफ तौर पर कहा कि उसे एयरसेल कंपनी को बेच देना चाहिए। उनकी बात मान ली गई। 2005 में जब एयरसेल कंपनी मेक्सीस को बेच दी गई, उसके तुरंत बाद उन्हें 2 जी का लायसेंस मिल गया। इसके एवज में मारन बंधुओं को 700 करोड़ रुपए का लाभ हुआ।
  डॉ. महेश परिमल