गुरुवार, 10 नवंबर 2011

धार्मिक स्थलों में भगदड़ के पीछे है भक्तों की आतुरता


डॉ. महेश परिमल
हिंदू मंदिरों में होने वाली भगदड़ के लिए यदि कोई जवाबदार है, तो वह है भक्तों की आतुरता। कहा गया है कि भीड़ के पास ताकत होती है, पर विवेक नहीं होता। भीड़ कभी भी हिंसक हो सकती है। भीड़ कभी दूसरों का विचार नहीं करती। यही कारण है कि जब भी कहीं भीड़ होती है, उसे काबू करना बहुत मुश्किल होता है। भीड़ में जान गँवाने वाले भी कम नहीं होते। देश में हर साल ऐसा कोई न कोई हादसा होता ही है, जिसमें भीड़ के कारण लोग मौत के आगोश में समा जाते हैं। कुंभ मेले में भगदड़ के बाद प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने कहा था कि धार्मिक आयोजनों में किसी वीआईपी को नहीं जाना चाहिए। इससे वहाँ की व्यवस्था गड़बड़ा जाती है।
गायत्री परिवार के स्थापक पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य एक उच्च कोटि के विद्वान और समाज सुधारक थे। हरिद्वार में गायत्री परिवार ने जिस आध्यात्मिक चेतना केंद्र की स्थापना की है, उसका संचालन उत्तम रूप से किया जाता है। वैदिक धर्म के सिद्धांतों और उसके पीछे विज्ञान के संबंध में इस केंद्र द्वारा लगातार शोध किए जा रहे हैं। विश्व में फैले हुए गायत्री परिवार के केंद्र इस सात्विक विचारों का प्रचार निष्ठापूर्वक कर रहे हैं। ऐसे महापुरुष की जन्म शताब्दि के आयोजन में लोग जमा हों और उसमें धक्कामुक्की हो, जिसमें बीस लोगों की मौत हो जाए, यह दुर्भाग्यपूर्ण है। हरिद्वार में हुई इस दुर्घटना की प्रारंभिक जाँच रिपोर्ट में पता चला है कि यह दुर्घटना आयोजकों की लापरवाही के बजाए भक्तों की आतुरता ही अधिक जवाबदार है।
हमारे देश में कहीं भी धार्मिक महात्सव हो, तो हजारों नहीं लाखों की संख्या में भक्त उमड़ पड़ते हैं। यदि आयोजक सचेत न हों, तो भगदड़ की पूरी संभावना होती है। इसमें भीड़ का मनोविज्ञान काम करता है। इसमें लोग अपना विवेक खो बैठते हैं। दूसरों का खयाल ही नहीं रखते। इस वर्ष जनवरी माह में दक्षिण भारत के शबरीमाला मंदिर में भी भगदड़ हुई थी। इसमें सौ से अधिक लोग मारे गए थे। इतने ही घायल हुए थे। इस दुर्घटना में मारे गए लोग कर्नाटक, तमिलनाड़ु, केरल और आंध्रप्रदेश के थे। केरल सरकार ने मृतकों के लिए 5 लाख रुपए देने की घोषणा भी की थी। इसकी जाँच भी हुई थी, पर उसका क्या हुआ, किसी को नहीं पता। वैसे भी जाँच रिपोर्ट पर किसी प्रकार के अमल की परंपरा हमारे देश में है ही नहीं।
हिमाचल प्रदेश में स्थित नैना देवी की शक्तिपीठ में सन 2008 के श्रावण महीने में हुई भगदड़ में 162 लोगों की मौत हो गई थी। एक टेकरी पर स्थित शक्तिपीठ के दर्शन के लिए करीब 50 हजार भक्त जमा हुए थे। उस समय तेज बारिश हो रहीे थी। बारिश की रक्षा के लिए तैयार किया गया एक शेड अचानक टूट गया। लोगों ने यह समझ लिया कि शिलाप्रपात हुआ है। इससे लोगों में घबराहट फैल गई। लोग इधर-उधर भागने लगे। इस भगदड़ में 162 लोग मारे गए। भगदड़ के उस माहौल में पुलिस द्वारा तैयार की गई रेलिंग से बाहर जाने की कोशिशें होने लगी। पुलिस ने भक्तों को रोकने की काफी कोशिशें की, पर जिन्होंने रेलिंग तोड़ी, वे सभी गहरी खाई में गिरने लगे। इसी मंदिर में 1978 में भी भगदड़ मची थी। जिसमें 64 लोग मारे गए थे। इस घटना से मंदिर प्रशासन ने कोई सबक नहीं लिया था। जहाँ भीड़ जमा होती है, वहाँ अव्यवस्था तो होती ही है। पर जो अफवाह फैलती है, उसे रोक पाना मुश्किल होता है। 2008 के सितम्बर माह में जोधपुर में चामुंडा देवी मंदिर में मची भगदड़ में 249 लोग मारे गए थे और 400 लोग घायल हुए थे। नवरात्रि के पहले दिन जोधपुर केप्रसिद्ध मेहरामगढ़ किले में 24 हजार भक्तों की भीड़ उमड़ी थी। इस मंदिर में जाने की जगह बहुत ही सँकरी है, भीड़ को नियंत्रित करने के लिए बेरीकेड्स भी नहीं लगाए गए थे। इतने में एक धमाका हुआ, लोगों ने समझा, यह बम विस्फोट की आवाज है। लोगों में डर बैठ गया, वे भागने लगे। इससे सैकड़ों लोग कुचले गए। इस मंदिर प्रशासन का दोष अधिक नजर आता है। मंदिर से भक्तों के निकलने के सारे दरवाजे सील कर दिए गए थे। लोगों के जान बचाकर भागने की जगह नहीं मिली, इसलिए कुचले गए। महाराष्ट्र के सतारा जिले में स्थित मांढर देवी के मंदिर में 2004 में भगदड़ मची थी। इसमें करीब 300 भक्तों की मौत हो गई थी। यह मंदिर एक टेकरी पर स्थित है। यहाँ पहुँचने के लिए सीढ़ी काफी सँकरी है। इस मंदिर में काली माता के दर्शन के लिए 25 जनवरी को करीब तीन लाख भक्त जमा हुए थे। भक्त जिस रास्ते से जा रहे थे, वहाँ नारियल के पानी के कारण फिसलन हो गई थी। इतने में करीब की एक दुकान में आग लग गई और गैस सिलेंडर फट गया। इस आवाज के कारण लोगों में घबराहट फैली और अनेक लोगोंे की मौत खाई में गिरने से हो गई।
सन 2010 में उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में कृपालु महाराज के आश्रम में भगदड़ मचने से 63 भक्तों की मौत हो गई थी। करीब सौ लोग घायल हो गए थे। कृपालु महाराज की पत्नी की पहली पुण्यतिथि को आश्रम द्वारा वस्त्र और बरतन दान किए जाने थे। इस दान को पाने के लिए करीब दस हजार लोग जमा हुए थे। वहाँ ऐसी अफवाह फैली कि आश्रम में एक बिजली के तार से करंट लगने से किसी भक्त की मौत हो गई है। घबराए लोगों ने दरवाजे की तरफ दौड़ लगाई, इस दरवाजे का निर्माण कार्य पूरा भी नहीं हुआ था। लोगों के हुजूम के कारण दरवाजा टूट गया। अनेक लोग उसके नीचे कुचल गए। इसमें जो 63 लोग मारे गए थे, उसमें से 37 तो बच्चे और 25 महिलाएँ थीं। ये सभी मुफ्त में मिलने वाली चीजों के लालच में आए थे।
हरिद्वार में इसके पहले कई भगदड़ मची है। 1995 में आयोजित कुंभ मेले में धक्का-मुक्की  से 39 लोगों की मौत हुई थी। 1954 में इलाहाबाद में आयोजित कुंभ मेले में जो भगदड़ मची, उसमें 800 लोग मारे गए थे। 200 लोग लापता हो गए। ये सभी गंगा नदी में डूब गए, ऐसी संभावना व्यक्त की गई। आजादी के बाद यह पहला कुंभ मेला था। इसमें करीब 40 लाख लोग जमा हुए थे। उस समय गंगा नदी का बहाव बदला गया था। इसलिए मेले की जगह में कमी आ गई थी। इस दौरान जब नागा बाबा शाही स्नान के लिए जा रहे थे, तब उनके दर्शनार्थ लोगों की भीड़ उमड़ी। इस मेले में कई नेता भी शामिल हुए थे। पुलिस उनकी सुरक्षा व्यवस्था में लग गई, इसलिए मेले की व्यवस्था में खामी रह गई। दुर्घटना के बाद पंडित नेहरु ने यह टिप्पणी की थी कि नेताओं को कुंभ मेले में जाने का मोह त्यागना होगा। जब दुर्घटना की जाँच द्वारा तैयार की गई समिति द्वारा की गई। इसकी जाँच रिपोर्ट से मेले की व्यवस्था में सुधार किया गया।
इन भगदड़ों में यही बात नजर आई कि जब कहीं हजारों-लाखों लोग जमा होते हैं, तो वहाँ पर मोब साइकोलॉजी काम करती है। विवेक काम नहीं करता। अनुशासन किसी काम का नहीं रह जाता। इंसान अपने होश-हवाश खो बैठता है। दूसरों की चिंता बिलकुल ही नहीं करता। भीड़ निर्भय हो जाती है। प्रतापगढ़ में कृपालु महाराज के आश्रम में गरीब जिस तरह से भगदड़ के शिकार हुए, उसके पीछे का भाव लालच और भय था। हरिद्वार में जो कुछ हुआ, उसके पीछे स्वार्थ और आतुरता थी। दुनिया के धार्मिक स्थल परोपकार करने का आदेश देते हैं और दूसरों की ¨चंता करना सिखाते हैं। किंतु इंसान भीड़ का हिस्सा बनते ही सब कुछ भूल जाता है। धार्मिक स्थलों पर आकर यदि लोग अपने साथ-साथ दूसरों की भी चिंता करने लगे, तो ऐसी दुर्घटनाओं पर कुछ हद तक अंकुश लगाया जा सकता है। भीड़ को काबू करना मुश्किल है। पर कोई एक आवाज तो ऐसी होनी चाहिए, जिसे सुनकर लोग होश में आ जाएँ। भीड़ को नियंत्रित नहीं किया जा सकता, पर उसे बेकाबू करने के लिए एक छोटी सी अफवाह ही काफी

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