डॉ. महेश परिमल
सुप्रीमकोर्ट के फैसले के बाद यह तय है कि अब मोबाइल सेवा और महँगी हो जाएगी। उपभोक्ता इसके लिए तैयार रहें। इस आशय के सभी 122 लायसेंस रद्द कर दिए गए हैं। अब लायसेंसों की नीलामी फिर से होगी। अब तक जो आरोप केवल ए.राजा आदि पर लग रहे थे, अब वही सारे आरोप सरकार के उन नेताओं पर भी लग गए हैं, जिन्होंने 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले की बहती गंगा में अपने हाथ धोए हैं। इनकी इस करतूतों का खामियाजा उपभोक्ताओं को उठाना होगा। निश्चित रूप से तमाम टेलिकॉम कंपनियाँ घाटा उठाकर तो व्यापार नहीं करेंगी, अलबत्ता मोबाइल उपभोक्ताओं को परेशानियों का सामना कर पड़ेगा।
तिहाड़ जेल में कैद भूतपूर्व टेलिकॉम मंत्री ए. राजा सुप्रीमकोर्ट के इस फैसले को पढ़कर यह सोचते होंगे कि अब तक तो मेरे अलावा कुछ ही लोगों को 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले के लिए दोषी माना जा रहा था, लेकिन 122 लायसेंस रद्द करने के आदेश के बाद पूरी यूपीए सरकार के गाल पर तमाचा मारा गया है। यदि यूपीए सरकार यह मानती है कि ए. राजा द्वारा 2 जी स्पेक्ट्रम के लायसेंस का आवंटन अनुचित है, तो उसे यह आवंटन रद्द कर देना था। सरकार ने इस आवंटन को जारी रखकर राजा द्वारा किए गए पाप में अपनी भागीदारी जारी रखी थी। कोर्ट के फैसले से यह साफ हो गया है कि स्पेट्रम घोटाले में केवल ए. राजा ही नहीं, बल्कि और भी कई चेहरे शामिल हैं, जो अब तक सामने नहीं आ पाए हैं।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की चपेट में रिलायंस, टाटा, आइडिया, भारती, वीडियाकॉन, एयरसेल, लूप और वोडाफोन आदि बड़ी टेलिकॉम कंपनियाँ आ गईं हैं। इन सभी कंपनियों ने 2 ली की नीलामी में मलाई खाई है। स्वान और यूनिटेक जैसी कंपनियों ने तो 2 जी लायसेंस मिलने के बाद अपनी कंपनी के शेयर विदेशी कंपनियों के खाते में डालकर हलकी हो गई थीं। अब इन विदेशी कंपनियों की हालत साँप-छछूंदर जैसी हो गई है। 2 जी स्पेक्ट्रम का लायसेंस पुरानी कीमत पर देने का निर्णय भले ही ए. राजा और चिदम्बरम ने मिलकर लिया हो, पर इसे लगातार अनदेखा कर पूरी मनमोहन सरकार पर यह आरोप लगाया जा सकता है कि पूरे मंत्रिमंडल ने मिलकर यह फैसला लिया। कोर्ट के फैसले के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का रथ जो अब तक जमीन के अंदर चल रहा था, वह ऊपर आ गया है। सुप्रीमकोर्ट फैसले के बाद स्वान टेलिकॉम और यूनिटेक कंपनियों की प्रतिष्ठा बुरी तरह से प्रभावित हो गई है, यह तय है कि अब ये कंपनियाँ इस धंधे से हमेशा-हमेशा के लिए बाहर हो सकती हैं। दूसरी तरफ जिन कंपनियों के लायसेंस रद्द किए गए हैं, यदि वे कंपनियाँ अदालत का दरवाजा खटखटाती हैं, तो कानूनी लड़ाई लम्बी चल सकती है।
यह तय है कि अब सरकार को फिर से लायसेंसों की नीलामी करनी होगी। तब सहज रूप से टेलिकॉम कंपनियों को ऊँची कीमत चुकानी होगी। इस कारण कई प्रमुख कंपनियाँ नीलाम में भाग ही नहीं ले पाएँगी। इस स्थिति में उनके लायसेंस अन्य कंपनियों को आवंटित कर दिए जाएँगे। तब फिर पुरानी कंपनियाँ ही मैदान में रह जाएँगी। तब एक सत्ता होने के कारण कंपनियाँ अपनी मनमानी करंेगी और मोबाइल सेवा महँगी हो जाएँगी। पहले जिन कंपनियों को लाभ हुआ था, उसका पूरा फायदा उपभोक्ताओं को भी मिला, लेकिन अब जो उन्हें घाटा होगा, वह भी उपभोक्ताओं को ही उठाना होगा। भारत सरकार के कंट्रोलर एंड एडीटर जनरल (केग) के अनुसार 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में सरकारी तिजोरी से 1.75 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। इस दावे की हँसी उड़ाते हुए दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल ने जीरो नुकसान की थ्योरी सामने रखी। अब इस थ्योरी का झूठ सामने आ गया है। एक झूठ पहले ही सामने आ चुका है जिसमें प्रधानमंत्री ने इसे दूरदर्शन में स्वीकारते हुए कहा था कि गठबंधन के कारण वे इस नीलामी पर चाहते हुए भी कुछ नहीं कर पाए। अपने फैसले में सुप्रीमकोर्ट ने प्रधानमंत्री मनमोहन ¨सह की कमजोरी को रेखांकित किया है। अभी जो 122 लायसेंस रद्द करने के आदेश दिए गए हैं, वे 2008 में जारी किए गए थे। इसके पहले और बाद में जो लायसेंस जारी किए गए हैं, उस पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर नहीं होगा। 2008 के शोर के बाद ही 2011 में जो लायसेंस जारी किए गए, वे पूरी तरह से अनुशासित रूप से किए गए थे। इससे सरकार को अच्छी आवक भी हुई थी। इन लायसेंसों को सरकार ने रद्द नहीं किया है। अभी मोबाइल फोन के जितने उपभोक्ता हैं, उसमें से दस प्रतिशत उपभोक्ता ही 2008 में जारी किए गए लायसेंसों के तहत हैं, यदि इनकी कंपनियों को नए सिरे से लायसेंस प्राप्त करने में विफल साबित होती हैं, तो उनकी सेवाएँ बंद हो जाएँगी। पर मोबाइल नम्बर पोर्टेबिलिटी के कारण उपभोक्ता अपने पुराने नम्बर जारी रख सकते हैं। केवल उनका बेलेंस ही बेकार जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद टेलिकॉम कंपनियों में उथल-पुथल होने की पूरी संभावना है। पहले जिन कंपनियों के पास इस क्षेत्र का अनुभव न होने के बाद भी वे मैदान में आ गई थीं, लेकिन अब बदले हुए हालात में वे सभी कंपनियाँ छटपटाएँगी। वे हाशिए पर भी जा सकती हैं। इस क्षेत्र में फिर पुरानी कंपनियों को आने का अवसर मिल जाएगा। फैसला आते ही भारती और एयरसेल के शेयरों के भाव में बहार आ गई, इसका कारण यही है। पर अब टेलिकॉम सेवाएँ भी महँगी होंगी, यह तय है। महँगी होने के साथ ही इस सेवा में सुधार आएगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है। फैसले से सबसे अधिक नुकसान यूनिटेक कंपनी को हुआ है। उन्हें 5 करोड़ का जुर्माना भी हुआ है। साख पर असर पड़ा है, वह अलग बात है। वोडाफोन, आइडिया और भारती एयरसेल को इससे लाभ होने की पूरी संभावना है। सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका के साथ ही सर्वोच्च अदालत ने ये जो फैसला दिया है, उसके कारण प्रजा का एक बार फिर न्याय के प्रति विश्वास जागा है। 2008 में जिस तरह से जनता की आँखों में धूल झोंकी गई थी और देश को चूना लगाने वालों को खुली छूट दे दी गई थी, उसे अदालत ने नजर से चूकने नहीं दिया। नागरिकों का स्पेक्ट्रम उन्हें सौंपते हुए अदालत ने यह संकेत भी दे दिया है कि अब भ्रष्टाचार से प्राप्त लायसेंस तो रद़द हो ही जाएँगे, स्पेक्ट्रम भी वापस हो जाएँगे, पर सबसे बड़ी चिंता इस बात की है कि सरकारी तिजोरी से जो धन मंत्रियों के हाथों होते हुए विदेशी खातों में पहुँच गया है, क्या वह रकम वापस आ सकती है? यह राशि तो अब ग्राहकों के जेब से ही वसूल की जाएगी।
डॉ. महेश परिमल
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