एक राजा के महल में एक संन्यासी आया। वह कुछ दिन रुक कर जाने लगा। राजा बोला- महाराज! जाते-जाते आप कोई आशीर्वाद दीजिए। संन्यासी ने आशीर्वाद दिया- ‘एक बात का अभ्यास करना, क्रोध आए, उस समय कोई काम मत करना। यह मेरा आशीर्वाद है।’ संन्यासी चला गया। राजा ने उस बात को पकड़ लिया। समय बीत गया। राजा बड़ा जागरूक था उस आशीवार्द के प्रति। राजा का कोई पुत्र नहीं था। समस्या थी राजगद्दी किसे सौंपे? आखिर चिंतन करते-करते निर्णय लिया- कन्या को राजगद्दी सौंप दूंगा? जब उसका विवाह होगा, तब उसका पति ही राजा बन जाएगा। निर्णय ले लिया- कन्या को राजगद्दी पर बैठाना है। कन्या ने पुरुष वेष में रहना शुरू कर दिया। प्राचीन काल में
रानियां भी पुरुष वेष में रहती थीं, राज कार्य भी चलाती थीं। एक दिन राजा कहीं बाहर गया हुआ था, लेकिन वह अकस्मात महल में वापस आया। उसने देखा- महारानी किसी पुरुष के साथ लेटी हुई है। देखते ही राजा तिलमिला उठा। तत्काल तलवार हाथ में निकाल ली। उसी समय मुनि का आशीर्वाद याद आया- क्रोध में कोई काम मत करना। तलवार म्यान में चली गई। राजा आगे बढ़ा, पुरुष के निकट आया। राजा यह देख अवाक रह गया- पुरुष वेशधारी बेटी और मां निद्रा में लीन हैं। राजा का व्यवहार बदल गया। उसका क्रोध शांत हो गया। यदि वह क्रोध में कुछ गलत कर देता तो अनर्थ हो जाता। जो आदमी जागरूक हो जाता है, उसका व्यवहार बदलता है, चाहे कितनी ही बड़ी घटना सामने आए। ऐसा लगे- कोई पहाड़ टूट रहा
है, अन्याय हो रहा है तो भी तत्काल वह कोई कार्य नहीं करेगा। वह बड़े धर्य के साथ कार्य करेगा। यदि इस प्रकार का व्यवहार हो जाए तो परिवार में होने वाले सारे झगड़े समाह्रश्वत हो जाएं। व्यक्ति ने कुछ देखा, पूरा समझा नहीं और कोई कदम उठा लिया। ऐसा करने के बाद उसे यह भी कहना पड़ता है- मैंने जल्दबाजी में अमुक काम कर लिया। न जाने कितने लोग ऐसे हैं, जो कहते हैं- ‘भई! भूल हो गई, जल्दबाजी में ऐसा हो गया।’ जागरूक व्यक्ति ऐसा कभी नहीं करता। उसका व्यवहार बिल्कुल बदल जाता है। ।
बात पते की
जल्दबाजी में किया काम कई बार पछतावे का कारण बन जाता है। इसलिए हमेशा धर्य रखें और संयम से काम ले ।
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