उस व्यक्ति ने दुनिया की सबसे सस्ती गाड़ी बनाने का सपना देखा था और उसे पूरा भी किया।वह बचपन में अपने स्कूल राल्स रॉयस में जाया करता था और बड़े-बड़े सपनों को आकार देने की कोशिश करता रहता...
हम कंपनी अपने तरीके से चलाएंगे
रतन नवल टाटा की पढ़ाई कैथेड्रल स्कूल में हुई और बाद में वे भवन निर्माण कला सीखने के लिए कार्नेल विश्वविद्यालय गए।अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद वे बड़े आराम से लॉस एंजेलिस में आर्किटेक्चर के काम में संलग्न थे और अमेरिका में अपने भविष्य के सपने देख रहे थे। इधर भारत में एक व्यक्ति से उन्हें बेहद प्रेम था- वह थीं उनकी दादी मां। जब उनकी दादी ने उन्हें भारत वापस आने के लिए कहा, तो उन्होंने दादी के आदेश का पालन किया। उन्होंने टाटा में नौकरी शुरू कर दी और जमशेदपुर में एक उड़ान स्कूल स्थापित करने का प्रस्ताव उन्हें जे.आर.डी. टाटा के करीब ले आया।
मुंबई वापस आने पर उन्हें नैल्को नाम की कंपनी चलाने के लिएकहा गया, जो कि उस समय घाटे में चल रही थी।एक दिन दोपहर के भोजन के वक्त कंपनी के दूसरे निदेशक कंपनी की निंदा कर रहे थे।कुछ देर तक तो जे.आर.डी. चुप रहे, फिर बीच में ही बोल उठे। रतन के अनुसार- उन्होंने वाद-विवाद को पलट दिया था।जब लड़ते-लड़ते बात हार की ओर बढऩे लगती है, तो बीच में जे.आर.डी. टाटा आकर अपने पक्ष में पासा पलट देते हैं।एक बार १९७१ में रतन ने जे.आर.डी. टाटा से पूछा कि अन्य कंपनियों के मुकाबले टाटा ग्रुप का विस्तार कम क्यों है? उन्होंने उत्तर दिया- मैंने कई बार इसके बारे में सोचा है। अगर हमने वे रास्ते अपनाए होते, जो दूसरी कंपनियों ने अपनाए हैं, तो हम भी आज की तुलना में दोगुने बड़े हो गए होते, लेकिन हम कंपनी को अपने तरीके से ही चलाएंगे।सन् १९९१ मेंजे.आर.डी. ने अपने उत्तराधिकारी के लिए रतन के नाम का प्रस्ताव रखा।जे.आर.डी. ने कहा कि यह मेरी तरह ही साबित होगा।टाटा संस के अध्यक्ष के तौर पर रतन के लिए शुरुआती पांच साल काफी मुश्किल भरे रहे।फिर एक के बाद एक टाटा साम्राज्य के क्षत्रप सही फिट होने लगे और रतन टाटा ने ग्रुप को अपने सोचे हुए रास्ते पर ले जाने का हक हासिल कर लिया।यह जमशेदजी टाटा और जे.आर.डी. टाटा का ऐतिहासिक रास्ता था। कई बार लोग यह भूल जाते हैं कि अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए कीमत भी चुकानी पड़ती है।रतन टाटा के लिए कीमत थी आरामदायक जिंदगी का त्याग।एक बार एक समाचार-पत्र में उन तीन महिलाओं के बारे में खबर छपी, जिनके बारे में रतन टाटा कभी अलग-अलग समय पर शादी करने की सोच रहे थे।इनमें से दो महिलाएं अमेरिका की थीं और एक पारसी।शादी न करने के सवाल पर उन्होंने कहा कि एक मुझसे पूछेगी तुम बेंगलुरु क्यों जा रहे हो? दूसरी कहेगी कि तुम्हारा न्यूयॉर्क जाना जरूरी है क्या? मैं इस तरह काम नहीं कर सकता।
मुंबई वापस आने पर उन्हें नैल्को नाम की कंपनी चलाने के लिएकहा गया, जो कि उस समय घाटे में चल रही थी।एक दिन दोपहर के भोजन के वक्त कंपनी के दूसरे निदेशक कंपनी की निंदा कर रहे थे।कुछ देर तक तो जे.आर.डी. चुप रहे, फिर बीच में ही बोल उठे। रतन के अनुसार- उन्होंने वाद-विवाद को पलट दिया था।जब लड़ते-लड़ते बात हार की ओर बढऩे लगती है, तो बीच में जे.आर.डी. टाटा आकर अपने पक्ष में पासा पलट देते हैं।एक बार १९७१ में रतन ने जे.आर.डी. टाटा से पूछा कि अन्य कंपनियों के मुकाबले टाटा ग्रुप का विस्तार कम क्यों है? उन्होंने उत्तर दिया- मैंने कई बार इसके बारे में सोचा है। अगर हमने वे रास्ते अपनाए होते, जो दूसरी कंपनियों ने अपनाए हैं, तो हम भी आज की तुलना में दोगुने बड़े हो गए होते, लेकिन हम कंपनी को अपने तरीके से ही चलाएंगे।सन् १९९१ मेंजे.आर.डी. ने अपने उत्तराधिकारी के लिए रतन के नाम का प्रस्ताव रखा।जे.आर.डी. ने कहा कि यह मेरी तरह ही साबित होगा।टाटा संस के अध्यक्ष के तौर पर रतन के लिए शुरुआती पांच साल काफी मुश्किल भरे रहे।फिर एक के बाद एक टाटा साम्राज्य के क्षत्रप सही फिट होने लगे और रतन टाटा ने ग्रुप को अपने सोचे हुए रास्ते पर ले जाने का हक हासिल कर लिया।यह जमशेदजी टाटा और जे.आर.डी. टाटा का ऐतिहासिक रास्ता था। कई बार लोग यह भूल जाते हैं कि अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए कीमत भी चुकानी पड़ती है।रतन टाटा के लिए कीमत थी आरामदायक जिंदगी का त्याग।एक बार एक समाचार-पत्र में उन तीन महिलाओं के बारे में खबर छपी, जिनके बारे में रतन टाटा कभी अलग-अलग समय पर शादी करने की सोच रहे थे।इनमें से दो महिलाएं अमेरिका की थीं और एक पारसी।शादी न करने के सवाल पर उन्होंने कहा कि एक मुझसे पूछेगी तुम बेंगलुरु क्यों जा रहे हो? दूसरी कहेगी कि तुम्हारा न्यूयॉर्क जाना जरूरी है क्या? मैं इस तरह काम नहीं कर सकता।
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