गूगल के उस लून प्रोजेक्ट की 7 खास बातें, जो सुदूर इलाकों का कायापलट कर सकता है
आसमान में उड़ते गुब्बारों के जरिये इंटरनेट सर्विस प्रदान करने वाले लून प्रोजेक्ट की सात महत्वपूर्ण बातें:
1- गूगल के ‘प्रोजेक्ट लून’ में सबसे महत्वपूर्ण
भूमिका पोलीथिलीन से बने बड़े-बड़े गुब्बारों की है. इन गुब्बारों में हीलियम
गैस भरी होती है तथा इनका आकार 15 मीटर व्यास में फैला होता है.
2- ये गुब्बारे पृथ्वी की सतह से लगभग 20 किलोमीटर ऊपर
स्ट्रैटोस्फियर में चक्कर लगाते हैं. इनके जरिये इन्टरनेट सेवा देने का
सफल प्रयोग गूगल द्वारा 2013 में न्यूजीलैंड और 2014 में कैलिफोर्निया और
ब्राजील में किया जा चुका है.
3- इन गुब्बारों में लगे इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम को
लगातार ऊर्जा देने के लिए सोलर पैनल के साथ-साथ हवा से ऊर्जा प्राप्त करने
वाले यंत्र भी लगाए हैं. गूगल इन गुब्बारों की दूरी और स्थिति को अपने
जमीनी केंद्र से नियंत्रित कर सकता है.
4- गूगल द्वारा भारत में इस प्रोजेक्ट का प्रयोग
बीएसएनएल के साथ मिलकर 2.6 गेगा हर्ट्ज़ बैंड के ब्रॉड बैंड स्पेक्ट्रम के
इस्तेमाल से किया जाना है.
5- गूगल के अनुसार इस प्रोजेक्ट में प्रत्येक गुब्बारा
वायरलेस तकनीक एलटीई या 4जी के जरिये 40 किलोमीटर के व्यास में इंटरनेट की
सुविधा देगा. वह दूरसंचार कंपनियां के स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल कर हर उस
सिस्टम या मोबाइल को तेज इंटरनेट उपलब्ध कराएगा जिसमें 4जी या एलटीई तकनीक
की सुविधा है.
6- भारत में प्रोजेक्ट लून के दो सबसे बड़े फायदे हो
सकते हैं. एक, इससे भारत के उन गांवों में भी तेज इंटरनेट उपलब्ध होगा जहां
अभी ठीक से 3जी की सुविधा भी उपलब्ध नहीं है. दूसरा, इस प्रोजेक्ट से
दूरसंचार कंपनियां कम पैसों में इंटरनेट उपलब्ध करा सकेंगी क्योंकि उन्हें
टावर लगाने और उन्हें मैनेज करने के खर्च से मुक्ति मिल जायेगी.
7- जहां भारत में अभी इस प्रोजेक्ट को सिर्फ टेस्ट की
ही अनुमति मिली है वहीँ पड़ोसी देश श्रीलंका गूगल से इस प्रोजेक्ट के लिए कई
महीने पहले करार भी कर चुका है. 1989 में दक्षिण एशिया में सबसे पहले
मोबाइल की शुरुआत करने वाला और साल 2013 में सबसे पहले 4-जी सर्विस की
शुरुआत करने वाला देश श्रीलंका ही था. (सत्याग्रह)
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