धार्मिक उपदेशों में सलाह तो यही दी जाती है व्यक्ति को अन्य लोगों से सहानुभूति रखनी चाहिए और सबकी भलाई को अपने स्वार्थ से ऊपर रखना चाहिए। मगर कई देशों के 1170 बच्चों पर किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि उदारता की बात आती है, तो गैर-धार्मिक बच्चे दूसरों को अपनी चीज़ें देने में ज़्यादा दिलदार साबित होते हैं। इस अध्ययन के मुखिया, शिकैगो वि·ाविद्यालय के तंत्रिका वैज्ञानिक ज़्यां डेसेटी का कहना है कि उनका यह अध्ययन दर्शाता है कि नैतिकता सम्बंधी विमर्श को धर्म निरपेक्ष बनाने से मानवीय करुणा में कमी नहीं, वृद्धि होती है। डेसेटी व उनके साथियों ने यह अध्ययन कनाडा, चीन, जॉर्डन, टर्की, दक्षिण अफ्रीका और यूएसए में किया था। इसमें 510 मुस्लिम, 280 ईसाई, और 323 गैर-धार्मिक बच्चे शामिल थे। अध्ययन में यह देखने की कोशिश की गई थी कि बच्चे अन्य बच्चों को अपनी चीज़ें देने में कितने उदार हैं। सबसे पहले 5-12 वर्ष उम्र के बच्चों की मुलाकात कुछ वयस्कों से होती है जो उन्हें अपने मनपसंद 10 स्टिकर चुनने को कहते हैं। ये वयस्क बच्चों को बताते हैं कि वास्तव में स्टिकर तो अन्य बच्चों को भी बांटने हैं मगर उनके पास समय नहीं है। इसलिए बच्चों से कहा गया कि वे चाहें तो अपने 10 स्टिकर्स में से कुछ स्टिकर्स अन्य बच्चों के लिए एक लिफाफे में छोड़ दें। जब बच्चे चले गए तो प्रत्येक लिफाफे में रखे स्टिकर्स को गिना गया। शोधकर्ताओं ने माना कि बच्चों ने जितने स्टिकर्स छोड़े हैं वह उनकी उदारता का द्योतक है। गिनती करने पर पता चला कि गैरधार्मिक बच्चों ने औसतन 4.1 स्टिकर्स अन्य बच्चों के लिए छोड़े थे, जबकि ईसाई बच्चों ने 3.3 और मुस्लिम बच्चों ने 3.2 स्टिकर्स ही अन्य बच्चों के लिए छोड़े थे। अध्ययन के दौरान अभिभावकों का सर्वेक्षण भी किया गया। इससे जोड़कर देखने पर पता चला कि परिवार जितना अधिक धार्मिक होता है, बच्चा उतना ही कम उदार होता है। वैसे बच्चे की सामाजिक-आर्थिक स्थिति, मूल देश, उम्र वगैरह से फर्क पड़ता है मगर धार्मिक अंतर सबसे ज़्यादा असर डालते हैं। इसी अध्ययन में बच्चों को एक वीडियो दिखाया गया था जिसमें कोई बच्चा किसी अन्य बच्चे के साथ गलत व्यवहार (जैसे धक्का देना) करता दिखाया जाता है। इसके बाद बच्चों से कहा गया कि वे यह फैसला करें कि वह व्यवहार कितना गलत था और ऐसा व्यवहार करने वाले को क्या सज़ा मिलनी चाहिए। इस अध्ययन के परिणाम दर्शाते हैं कि आम तौर पर धार्मिक बच्चे ऐसे व्यवहार को बहुत गलत मानते हैं और सख्त से सख्त सज़ा दिलवाना चाहते हैं जबकि गैर-धार्मिक पृष्ठभूमि के बच्चों ने उसी व्यवहार को कम खतरनाक माना। उपरोक्त दोनों परिणामों की व्याख्या आसान नहीं है। मगर इरुााइल के हाइफा वि·ाविद्यालय के मनोवैज्ञानिक बेंजामिन बैट-हल्लाहमी को लगता है कि धार्मिक लोग आम तौर पर मानते हैं कि कोई बाह्र शक्ति है जो दंड देती है। दूसरी ओर, धर्म निरपेक्ष परिवारों के बच्चे नैतिक नियमों का पालन इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें सिखाया गया है कि ऐसा करना सही है। इसलिए जब बाह्र शक्ति की निगरानी न हो तो अमूमन धर्म निरपेक्ष लोगों का नैतिक व्यवहार कहीं बेहतर होता है। (रुाोत फीचर्स)
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