शर्मिला पाल
क्या समुद्र मछलियों से भरा है? क्या केकड़ों की आबादी मछलियों पर भारी पड़ती है? क्या समुद्र में रहस्यमयी जल परियां भी रहती हैं ? न जाने ऐसे कितने सवाल हैं जो अब तक समुद्री जीव जगत को लेकर हमारे ज़ेहन में उठते रहे हैं। जल्द ही इन तमाम सवालों का अंत होने वाला है क्योंकि जैव प्रजातियों की गणना करने वाले वैज्ञानिकों ने समुद्री जीवों की गिनती और उनका वर्गीकरण लगभग पूरा कर लिया है। कोई बड़ी अड़चन न हुई तो 2020 के पहले ही वैज्ञानिक यह बताने की स्थिति में होंगे कि समुद्र में कुल कितने जीव और कुल कितनी प्रजातियां हैं। लगभग 95 प्रतिशत प्रजातियों की गणना का काम पूरा हो चुका है और बहुत से चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। मसलन समुद्री जीवों में मछलियों की संख्या तो बहुत कम है, जबकि दो सदी पहले तक समझा जाता था कि समुद्र मछलियों से ही भरा है। वास्तव में समुद्र में सबसे ज़्यादा प्रजातियां तो केकड़ों, झींगों, क्रे फिश यानी चिंगट और श्रिंप की पाई जाती हैं जो कुल समुद्री जीव-प्रजातियों का 19 फीसदी हैं। मछलियां तो महज 12 फीसदी ही हैं। वैज्ञानिकों ने यह दावा दस साल से ज़्यादा वक्त लगाकर दुनिया के 25 प्रमुख सागरों में रहने वाले जीवों को गिनने के बाद किया है। समुद्री जीव प्रजातियों को गिनने का यह भगीरथ प्रयास लगभग उतनी ही बड़ी परियोजना के ज़रिए संपन्न हुआ है जितनी बड़ी परियोजना के ज़रिए गॉड पार्टिकल को ढूंढा गया था। इस कार्यक्रम में अस्सी देश शामिल हुए। इन देशों के 2700 से ज़्यादा वैज्ञानिक दिन रात जुटे और इस कार्यक्रम पर अब तक करीब 70 करोड़ अमरीकी डॉलर खर्च हो चुके हैं। इस विशाल प्रोजेक्ट के ज़रिए समुद्री जीवन के बारे में ऐसी-ऐसी दिलचस्प जानकारियां सामने आई हैं जिनकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते थे। इस परियोजना के बाद ही यह सच सामने आया कि दुनिया समुद्री जीव जगत के बारे में कितना कम जानती है। इस अभियान के बाद ही पता चला कि वे समुद्री जीव, जिन्हें हम बहुत पसंद करते हैं या जानते हैं या कहें कि जिनकी चर्चा सर्वाधिक होती है (मसलन व्हेल, सी लायन, सील, सी बर्ड, कछुए और दरियाई घोड़ा आदि) की तादाद समुद्र में ज़्यादा नहीं है। ये तो कुल समुद्री जीवों का महज़ एक फीसदी हैं। इस गणना से एक और हैरत की बात पता चली है कि सभी समुद्री जीव यायावर नहीं होते। स्थलीय जीवों की तरह ही तमाम समुद्री जीव भी अपने एक इलाके में सीमित रहते हैं। यह तो नहीं कह सकते कि वे घर या घोंसला बनाकर रहते हैं, लेकिन इन्हें भी अपने इलाके, उसके पर्यावरण से मोह होता है। समुद्री जीवन की गणना की इस परियोजना के प्रमुख न्यूज़ीलैंड के मार्क कॉस्टेलो के मुताबिक ये प्रजातियां बहुत घरेलू किस्म की हैं। ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, अंटार्कटिका और दक्षिण अफ्रीका के वे इलाके, जो अलग-थलग पड़े हैं इन घरेलू प्रजातियों के सबसे पसंदीदा इलाके हैं। एक और दिलचस्प जानकारी यह सामने आई है कि आम तौर पर जितने बड़े प्राणी होते हैं उनकी विविधता उतनी ही कम होती है। इस मामले में मछलियां तुलनात्मक रूप से बड़े आकार की प्राणी हैं इसलिए उनकी प्रजातियों की संख्या छोटे-छोटे जीवों की तुलना में बहुत कम है। मसलन क्रम्पटन या क्रस्ट मोलस्क पर्यावरण समुद्र की गहराइयों में जीवन की पड़ताल शर्मिला पाल 2 दिसंबर से पूर्व प्रकाशित न करें समुद्री जीव जगत - 1 रुाोत विविधता के मामले में मछलियों से हीं आगे हैं। न्यूज़ीलैंड और अंटार्कटिका में मिलने वाली प्रजातियों में आधी ऐसी हैं जो दुनिया में और कहीं नहीं मिलतीं। समुद्री जीवों में सबसे सामाजिक प्राणी शायद वाइपरफिश है जो दुनिया के एक चौथाई समुद्रों में पाई जाती है और समुद्री जीवों के लिहाज़ से दुनिया के सबसे बढ़िया सागर ऑस्ट्रेलिया, जापान और चीन के हैं। यहां सबसे ज़्यादा जैव विविधता पाई जाती है। यह भी इसी अध्ययन गणना परियोजना से पता चला है। इन तीनों समुद्री क्षेत्रों में बीस हज़ार से ज़्यादा प्रजातियां हैं। जब यह गणना अंतिम रूप से पूरी हो जाएगी (इसी साल के अंत तक) तब अनुमान है कि हमें दो लाख तीस हज़ार समुद्री जीवों के बारे में विस्तार से पता होगा। डॉ. कॉस्टेलो के मुताबिक वैसे प्रजातियों की संख्या तो दस लाख से ज़्यादा है। इस परियोजना से जुड़े वैज्ञानिकों के मुताबिक दस साल मेहनत करने के बाद हम आज समुद्री जीवन के बारे में पहले से दस गुना ज़्यादा जानते हैं। यह सेंसस हमें समुद्री जीवन की बेहतर समझ देता है कि कौन- कौन-सी प्रजातिवास्तव में कहां रह रही है। इसके आधार पर समुद्री जीवन का प्रबंधन और संरक्षण बेहतर तरीके से किया जा सकता है।( स्रोत फीचर्स)
क्या समुद्र मछलियों से भरा है? क्या केकड़ों की आबादी मछलियों पर भारी पड़ती है? क्या समुद्र में रहस्यमयी जल परियां भी रहती हैं ? न जाने ऐसे कितने सवाल हैं जो अब तक समुद्री जीव जगत को लेकर हमारे ज़ेहन में उठते रहे हैं। जल्द ही इन तमाम सवालों का अंत होने वाला है क्योंकि जैव प्रजातियों की गणना करने वाले वैज्ञानिकों ने समुद्री जीवों की गिनती और उनका वर्गीकरण लगभग पूरा कर लिया है। कोई बड़ी अड़चन न हुई तो 2020 के पहले ही वैज्ञानिक यह बताने की स्थिति में होंगे कि समुद्र में कुल कितने जीव और कुल कितनी प्रजातियां हैं। लगभग 95 प्रतिशत प्रजातियों की गणना का काम पूरा हो चुका है और बहुत से चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। मसलन समुद्री जीवों में मछलियों की संख्या तो बहुत कम है, जबकि दो सदी पहले तक समझा जाता था कि समुद्र मछलियों से ही भरा है। वास्तव में समुद्र में सबसे ज़्यादा प्रजातियां तो केकड़ों, झींगों, क्रे फिश यानी चिंगट और श्रिंप की पाई जाती हैं जो कुल समुद्री जीव-प्रजातियों का 19 फीसदी हैं। मछलियां तो महज 12 फीसदी ही हैं। वैज्ञानिकों ने यह दावा दस साल से ज़्यादा वक्त लगाकर दुनिया के 25 प्रमुख सागरों में रहने वाले जीवों को गिनने के बाद किया है। समुद्री जीव प्रजातियों को गिनने का यह भगीरथ प्रयास लगभग उतनी ही बड़ी परियोजना के ज़रिए संपन्न हुआ है जितनी बड़ी परियोजना के ज़रिए गॉड पार्टिकल को ढूंढा गया था। इस कार्यक्रम में अस्सी देश शामिल हुए। इन देशों के 2700 से ज़्यादा वैज्ञानिक दिन रात जुटे और इस कार्यक्रम पर अब तक करीब 70 करोड़ अमरीकी डॉलर खर्च हो चुके हैं। इस विशाल प्रोजेक्ट के ज़रिए समुद्री जीवन के बारे में ऐसी-ऐसी दिलचस्प जानकारियां सामने आई हैं जिनकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते थे। इस परियोजना के बाद ही यह सच सामने आया कि दुनिया समुद्री जीव जगत के बारे में कितना कम जानती है। इस अभियान के बाद ही पता चला कि वे समुद्री जीव, जिन्हें हम बहुत पसंद करते हैं या जानते हैं या कहें कि जिनकी चर्चा सर्वाधिक होती है (मसलन व्हेल, सी लायन, सील, सी बर्ड, कछुए और दरियाई घोड़ा आदि) की तादाद समुद्र में ज़्यादा नहीं है। ये तो कुल समुद्री जीवों का महज़ एक फीसदी हैं। इस गणना से एक और हैरत की बात पता चली है कि सभी समुद्री जीव यायावर नहीं होते। स्थलीय जीवों की तरह ही तमाम समुद्री जीव भी अपने एक इलाके में सीमित रहते हैं। यह तो नहीं कह सकते कि वे घर या घोंसला बनाकर रहते हैं, लेकिन इन्हें भी अपने इलाके, उसके पर्यावरण से मोह होता है। समुद्री जीवन की गणना की इस परियोजना के प्रमुख न्यूज़ीलैंड के मार्क कॉस्टेलो के मुताबिक ये प्रजातियां बहुत घरेलू किस्म की हैं। ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, अंटार्कटिका और दक्षिण अफ्रीका के वे इलाके, जो अलग-थलग पड़े हैं इन घरेलू प्रजातियों के सबसे पसंदीदा इलाके हैं। एक और दिलचस्प जानकारी यह सामने आई है कि आम तौर पर जितने बड़े प्राणी होते हैं उनकी विविधता उतनी ही कम होती है। इस मामले में मछलियां तुलनात्मक रूप से बड़े आकार की प्राणी हैं इसलिए उनकी प्रजातियों की संख्या छोटे-छोटे जीवों की तुलना में बहुत कम है। मसलन क्रम्पटन या क्रस्ट मोलस्क पर्यावरण समुद्र की गहराइयों में जीवन की पड़ताल शर्मिला पाल 2 दिसंबर से पूर्व प्रकाशित न करें समुद्री जीव जगत - 1 रुाोत विविधता के मामले में मछलियों से हीं आगे हैं। न्यूज़ीलैंड और अंटार्कटिका में मिलने वाली प्रजातियों में आधी ऐसी हैं जो दुनिया में और कहीं नहीं मिलतीं। समुद्री जीवों में सबसे सामाजिक प्राणी शायद वाइपरफिश है जो दुनिया के एक चौथाई समुद्रों में पाई जाती है और समुद्री जीवों के लिहाज़ से दुनिया के सबसे बढ़िया सागर ऑस्ट्रेलिया, जापान और चीन के हैं। यहां सबसे ज़्यादा जैव विविधता पाई जाती है। यह भी इसी अध्ययन गणना परियोजना से पता चला है। इन तीनों समुद्री क्षेत्रों में बीस हज़ार से ज़्यादा प्रजातियां हैं। जब यह गणना अंतिम रूप से पूरी हो जाएगी (इसी साल के अंत तक) तब अनुमान है कि हमें दो लाख तीस हज़ार समुद्री जीवों के बारे में विस्तार से पता होगा। डॉ. कॉस्टेलो के मुताबिक वैसे प्रजातियों की संख्या तो दस लाख से ज़्यादा है। इस परियोजना से जुड़े वैज्ञानिकों के मुताबिक दस साल मेहनत करने के बाद हम आज समुद्री जीवन के बारे में पहले से दस गुना ज़्यादा जानते हैं। यह सेंसस हमें समुद्री जीवन की बेहतर समझ देता है कि कौन- कौन-सी प्रजातिवास्तव में कहां रह रही है। इसके आधार पर समुद्री जीवन का प्रबंधन और संरक्षण बेहतर तरीके से किया जा सकता है।( स्रोत फीचर्स)
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