प्रदूषण
डॉ. राम प्रताप गुप्ता
तमिलनाड़ु की पालानी पहाड़ियों पर 2133 मीटर की ऊंचाई पर दक्षिण भारत का प्रसिद्ध हिल स्टेशन कोडईकानल स्थित है। यहीं पर स्थित इसी नाम की झील, यूकेलिप्टस, बबूल, कीकर, डेहलिया आदि के विशाल वृक्ष इस हिल स्टेशन के आकर्षण को और बढ़ा देते हैं। इसकी स्वास्थ्यप्रद जलवायु के कारण पर्यटक यहां आते ही रहते थे। लेकिन यह हिल स्टेशन स्वास्थ्य समस्याओं से मुक्ति के माध्यम की जगह अब अनेक स्वास्थ्य समस्याओं का जनक बन गया है। हिन्दुस्तान यूनीलीवर कंपनी ने अमेरिका के यार्क प्रांत के वाटर टाउन स्थित अपने थर्मामीटर कारखाने को यहां स्थानांतरित कर दिया था। अमेरिका के वाटर टाउन में स्थित और प्रदूषण फैलाने वाले थर्मामीटर के कारखाने का कोडईकनाल में स्थानांतरण विकसित राष्ट्रों की प्रदूषण फैलाने वाली औद्योगिक इकाइयों को तीसरी दुनिया के राष्ट्रों में स्थानांतरण की नीति का ही अंग था। ऐसे स्थानांतरण को वे पिछड़े राष्ट्रों के विकास में योगदान कहते हैं। कोडईकानल के 400 परिवारों के लिए पर्यटन मौसम की समाप्ति के पश्चात रोज़गार के स्थायी रुाोत उपलब्ध ही नहीं थे और वे छुटपुट कार्य कर अपना जीवन बिताते थे। जब उन्हें ज्ञात हुआ कि हिन्दुस्तान यूनीलीवर अपना थर्मामीटर बनाने का कारखाना वहां स्थानांतरित कर रहा है जिसमें 400 लोगों को स्थायी और बेहतर आय वाले रोज़गार प्राप्त होंगे, तो वे बहुत खुश हुए। उन्हें लगा कि उनमें से कुछ लोगों को अच्छा रोज़गार प्राप्त हो सकेगा। जब यूनीलीवर का थर्मामीटर बनाने का कारखाना अमेरिका के वाटर टाउन से यहां स्थानांतरित कर दिया गया तो कारखाने में रोज़गार प्राप्ति के कुछ ही दिनों के बाद इसमें कार्यरत श्रमिक अच्छी आय के स्थान पर गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं के शिकार होने लगे, उनकी रोज़गार प्राप्ति की सारी खुशी समाप्त हो गई। सन 1986 में कोडईकानल में स्थानांतरित थर्मामीटर के कारखाने में उस समय तक थर्मामीटर बनाए जाते रहे जब तक कि सन 2001 में इसे सरकार द्वारा बंद नहीं कर दिया गया। इस अवधि में इसमें 1100 श्रमिक कार्यरत थे। श्रमिकों का कथन है कि उस समय प्रबंधकों ने न तो पारे के संपर्क से होने वाली नाना प्रकार की गंभीर बीमारियों के बारे में कोई चेतावनी दी और न ही दस्ताने और मुंह पर लगाने के लिएकोई नकाब दिए गए ताकि वे पारे के संपर्क तथा पारे की वाष्प से बच सकें। कारखाने के स्वामियों ने कार्य की समाप्ति पर संपर्क में आए पारे को धोने की कोई व्यवस्था भी नहीं की। उन्हें पहनने के लिए जो कपड़े दिए जाते थे वे भी तीन- चार रोज़ में एक बार ही धुलवाए जाते थे, जबकि उन्हें रोज़ धुलाया जाना चाहिए। यूनीलीवर कोडईकानल में निर्मित थर्मामीटरों को अमेरिका स्थित फैचने मेडिकल कंपनी को भेज देता था जो उन्हें यू.के., कनाड़ा, ऑस्ट्रेलिया, जर्मन और स्पेन को निर्यात करती थी। कारखाने में लगने वाला पारा और कांच भी अमेरिका से आयात किए जाते थे। इस तरह भारत की न तो कच्चे माल के रुाोत के रूप में और न ही तैयार माल के बाज़ार के रूप में कोई भूमिका थी। शीघ्र ही 18 पूर्व श्रमिक पारे के संपर्क से उत्पन्न बीमारियों के कारण मर गए। अन्य कई आज भी बीमारियों के शिकार हैं। पारे को प्रयुक्त करने वाले कारखाने में बरती जाने वाली सावधानियों की उपेक्षाओं का परिणाम यह हुआ कि मज़दूर तीन-चार वर्ष के पश्चात गंभीर बीमारियों का शिकार होने लगे। उदाहरण के लिए एक महिला हेलन मारगरेट ने सन 1996 से 1999 तक कारखाने में कार्य किया। शीघ्र ही वह अनेक गंभीर रोगों का शिकार हो गई। सन 2000 में जन्मा उनका दूसरा पुत्र मानसिक दृष्टि से अत्यंत कमज़ोर था। वह मानसिक दृष्टि से कमज़ोर बच्चों के लिए चर्च द्वारा स्थापित विद्यालय में पढ़ता था और मारगरेट को दिन में 3-4 बार जाकर बच्चे को संभालना पड़ता था। यह सब थर्मामीटर फैक्टरी में कार्य करने के दौरान पारे के संपर्क का परिणाम था, इस बात का उस समय तो उसे पता ही नहीं था। एक अन्य महिला संगीता बताती है कि उसके पिता गोविन्दम फैक्ट्री में संविदा चौकीदार थे। कार्य के दौरान उन्हें फैक्ट्री के चारों और 3-4 बार चक्कर लगाने पड़ते थे और वे फेंके गए पारे और कांच के संपर्क में आते थे। परिणामस्वरूप उनके शरीर में हीमोग्लोबीन की अत्यंत कमी हो गई और सन 2000 में उनकी मृत्यु हो गई। ऐसे अनेक उदाहरण हैं। पारे के कारखाने में कार्य के दौरान श्रमिकों के पारे से संपर्क के कारण उत्पन्न गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं के लिए हिन्दुस्तान यूनीलीवर को कोई क्षतिपूर्ति और जुर्माना न देना पड़े, इस हेतु उसने अपने स्तर पर कई अध्ययन कराए और बताने की कोशिश की कि कोडईकानल के कारखाने के श्रमिकों और वहां के निवासियों की स्वास्थ्य की समस्याओं का थर्मामीटर के कारखाने से कोई सम्बंध नहीं है। सन 2006 में अपने द्वारा कराए गए अध्ययन के निष्कर्षों को इंडियन जर्नल ऑफ ऑक्यूपेशनल एण्ड एनवायरमेंटल हेल्थ में प्रकाशित कराया, जिसमें बताया गया था कि पूर्व के नियमित और संविदा 255 श्रमिक स्वास्थ्य सम्बंधित अनेक समस्याओं के शिकार तो थे, परन्तु इन समस्याओं का थर्मामीटर कारखाने में कार्य से कोई सम्बंध नहीं है। परन्तु जिन 255 श्रमिकों के स्वास्थ्य की जांच का दावा किया गया, उनका कथन है कि उनसे किसी ने इस बारे में कभी कोई बात ही नहीं की थी। हिन्दुस्तान यूनीलीवर कंपनी ने दिल्ली स्थित ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ऑक्यूपेशनल हेल्थ और इंडस्ट्रियल टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च सेंटर से भी प्रमाण- पत्र प्राप्त कर लिए कि कोडईकानल के श्रमिकों और अन्य की स्वास्थ्य सम्बंधी समस्याओं का थर्मामीटर के कारखाने से कोई स्पष्ट सम्बंध नहीं है। इन प्रमाण पत्रों के बावजूद पारे के प्रदूषण के शिकार कोडईकानल के निवासियों को सन 2001 में यह पता चला कि थर्मामीटर का बंद कारखाना कचरे को वहां के एक गड्ढे में फेंक रहा है। यह कचरा बोरों में पैक कर फेंका गया था जिनसे पारा रिस रिस कर वहां की भूमि पर फैल रहा था। कुछ कचरा कंपनी के आधिपत्य वाले शोला के वन में फेंका गया था। इसके बाद कारखाने के 400 श्रमिकों ने फैक्ट्री के दरवाज़े पर क्षतिपूर्ति हेतु आंदोलन किया। यह आंदोलन आज भी किसी न किसी रूप में जारी है। थर्मामीटर के कारखाने से से पारे और पारे की वाष्प के कारण कोडईकानलऔर आसपास के क्षेत्र में फैले प्रदूषण के बारे में परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा किए गए अध्ययन से पता चलता है कि 25 एकड़ में फैली कोडईकानल झील का पानी प्रदूषित हो गया है। उसके पानी में 7.9 माइक्रोग्राम से लेकर 8.3 माइक्रोग्राम प्रति किलो पारा पाया गया है जो सुरक्षित मात्रा से कई गुना अधिक था। कोडाईकनाल झील की मछलियों में 120 से लेकर 210 माइक्रोग्राम पारा पाया गया। जिसके कारण लोगों के लिए इनके खाने लायक नहीं रह जाने के कारण मछुआरों का व्यवसाय भी समाप्त हो गया। थर्मामीटर बनाने के कारखाने के आसपास की भूमि में पारे की मात्रा सुरक्षित मात्रा से 250 गुना अधिक पाई गई। आसपास की भूमि में पारे की मात्रा 1.32 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर थी जबकि सुरक्षित मात्रा 0.5-1 नैनोग्राम प्रति घन मीटर होती है। यह मात्रा सुरक्षित से 132 गुना से लेकर 264 गुना अधिक थी। कंपनी ने लोगों के बढ़ते दबाव के कारण कारखाने के आसपास पारे को हटाने के लिए कुछ कदम तो उठाए थे, परन्तु व्यापक पर्यावरणीय प्रभावों को दूर करने के लिए कुछ नहीं किया। थर्मामीटर कारखाने के अंकेक्षण से पता चलता है कि उसने 1.2 टन पारा पैराम्बूर के शोला वन के क्षेत्र में छोड़ा था। पर्यावरण के लिए संघर्षरत नित्यानंद जयरमण, जिन्होंने फैक्ट्री में कार्य किया था, का कथन है कि यह कारखाना पर्यावरण उपनिवेशवाद का सशक्त उदाहरण है। थर्मामीटर के कारखाने से फैला प्रदूषण कोडईकानल तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि सैकड़ों कि.मी. दूर तक के स्थान भी उसके शिकार हो गए। कोडईकानल की पहाड़ियों से बहने वाला वर्षा का पानी अपने साथ पारे को दूरस्थ अंचलों तक ले गया और 130 कि.मी. दूर स्थित मदुराई का पानी भी पारे से प्रदूषित पाया गया। कोडाईकनाल की पारे से प्रदूषित पहाड़ियों से बहने वाले वर्षा के पानी के साथ प्रदूषित पारा बहकर जाना ही था और नीचे स्थित ग्रामों, शहरों, कस्बों के निवासियों को कोडईकानल् प्रभावित होना ही था। परन्तु यूनीलीवर अपने द्वारा फैलाए गए पारे के प्रदूषण का दायित्व स्वीकार करने को आज भी तैयार नहीं है। सन 2015 में पारे के कारखाने के पूर्व मज़दूरों और कर्मियों ने प्रदर्शन कर कंपनी द्वारा फैलाए गए पारा- जनित बीमारियों और स्वास्थ्य को पहुंची क्षति के बदले क्षतिपूर्ति की मांग की। उनकी यह भी मांग थी कि यूनीलीवर अपने कारखाने के फैले कचरे को साफ करे और उसकी समुचित देखरेख की व्यवस्था भी करे। सन 2007 में मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त एक विशेषज्ञ समिति के द्वारा श्रमिकों के स्वास्थ्य पर पारे के प्रदूषण के पर्याप्त सबूत नहीं पाए गए, इससे यूनीलीवर जैसे बहुराष्ट्रीय कंपनियों के तीसरी दुनिया के राष्ट्रों की सरकारों और व्यवस्था पर प्रभाव का अंदाज़ा लग सकता है। यूनीलीवर द्वारा कोडईकानल में फैलाए गए प्रदूषण के पर्याप्त सबूतों और पूर्व श्रमिकों और उनकी संतानों के स्वास्थ्य पर पड़े प्रतिकूल प्रभावों के तमाम प्रमाणों की अनदेखी कर यूनीलीवर का कथन है कि अब तक उसका इतिहास सस्टेनेबल विकास का रहा है और भविष्य में भी रहेगा। यूनीलीवर द्वारा कोडईकानल में थर्मामीटर के कारखाने का स्थानांतरण विकसित राष्ट्रों की उस साजिश का परिणाम है जिसके अंतर्गत पर्यावरण और स्थानीय आबादी के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले उद्योगों को तीसरी दुनिया के राष्ट्रों में स्थानांतरित कर दिया जाता है। जब हमारी वर्तमान सरकार अमेरिका और युरोप के पूंजीपतियों को भारत में निवेश करने, अधिक मुनाफा कमाने देने की बात करती है तो उसे इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि कहीं विदेशी कंपनियों द्वारा यहां स्थापित कारखाने यहां के पर्यावरण के विनाश के माध्यम न बन जाएं। यूनीलीवर जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों की भ्रम फैलाने वाली घोषणाओं के पीछे की वास्तविकताओं के प्रति हमें सावधान रहना ही होगा। (रुाोत फीचर्स)
डॉ. राम प्रताप गुप्ता
तमिलनाड़ु की पालानी पहाड़ियों पर 2133 मीटर की ऊंचाई पर दक्षिण भारत का प्रसिद्ध हिल स्टेशन कोडईकानल स्थित है। यहीं पर स्थित इसी नाम की झील, यूकेलिप्टस, बबूल, कीकर, डेहलिया आदि के विशाल वृक्ष इस हिल स्टेशन के आकर्षण को और बढ़ा देते हैं। इसकी स्वास्थ्यप्रद जलवायु के कारण पर्यटक यहां आते ही रहते थे। लेकिन यह हिल स्टेशन स्वास्थ्य समस्याओं से मुक्ति के माध्यम की जगह अब अनेक स्वास्थ्य समस्याओं का जनक बन गया है। हिन्दुस्तान यूनीलीवर कंपनी ने अमेरिका के यार्क प्रांत के वाटर टाउन स्थित अपने थर्मामीटर कारखाने को यहां स्थानांतरित कर दिया था। अमेरिका के वाटर टाउन में स्थित और प्रदूषण फैलाने वाले थर्मामीटर के कारखाने का कोडईकनाल में स्थानांतरण विकसित राष्ट्रों की प्रदूषण फैलाने वाली औद्योगिक इकाइयों को तीसरी दुनिया के राष्ट्रों में स्थानांतरण की नीति का ही अंग था। ऐसे स्थानांतरण को वे पिछड़े राष्ट्रों के विकास में योगदान कहते हैं। कोडईकानल के 400 परिवारों के लिए पर्यटन मौसम की समाप्ति के पश्चात रोज़गार के स्थायी रुाोत उपलब्ध ही नहीं थे और वे छुटपुट कार्य कर अपना जीवन बिताते थे। जब उन्हें ज्ञात हुआ कि हिन्दुस्तान यूनीलीवर अपना थर्मामीटर बनाने का कारखाना वहां स्थानांतरित कर रहा है जिसमें 400 लोगों को स्थायी और बेहतर आय वाले रोज़गार प्राप्त होंगे, तो वे बहुत खुश हुए। उन्हें लगा कि उनमें से कुछ लोगों को अच्छा रोज़गार प्राप्त हो सकेगा। जब यूनीलीवर का थर्मामीटर बनाने का कारखाना अमेरिका के वाटर टाउन से यहां स्थानांतरित कर दिया गया तो कारखाने में रोज़गार प्राप्ति के कुछ ही दिनों के बाद इसमें कार्यरत श्रमिक अच्छी आय के स्थान पर गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं के शिकार होने लगे, उनकी रोज़गार प्राप्ति की सारी खुशी समाप्त हो गई। सन 1986 में कोडईकानल में स्थानांतरित थर्मामीटर के कारखाने में उस समय तक थर्मामीटर बनाए जाते रहे जब तक कि सन 2001 में इसे सरकार द्वारा बंद नहीं कर दिया गया। इस अवधि में इसमें 1100 श्रमिक कार्यरत थे। श्रमिकों का कथन है कि उस समय प्रबंधकों ने न तो पारे के संपर्क से होने वाली नाना प्रकार की गंभीर बीमारियों के बारे में कोई चेतावनी दी और न ही दस्ताने और मुंह पर लगाने के लिएकोई नकाब दिए गए ताकि वे पारे के संपर्क तथा पारे की वाष्प से बच सकें। कारखाने के स्वामियों ने कार्य की समाप्ति पर संपर्क में आए पारे को धोने की कोई व्यवस्था भी नहीं की। उन्हें पहनने के लिए जो कपड़े दिए जाते थे वे भी तीन- चार रोज़ में एक बार ही धुलवाए जाते थे, जबकि उन्हें रोज़ धुलाया जाना चाहिए। यूनीलीवर कोडईकानल में निर्मित थर्मामीटरों को अमेरिका स्थित फैचने मेडिकल कंपनी को भेज देता था जो उन्हें यू.के., कनाड़ा, ऑस्ट्रेलिया, जर्मन और स्पेन को निर्यात करती थी। कारखाने में लगने वाला पारा और कांच भी अमेरिका से आयात किए जाते थे। इस तरह भारत की न तो कच्चे माल के रुाोत के रूप में और न ही तैयार माल के बाज़ार के रूप में कोई भूमिका थी। शीघ्र ही 18 पूर्व श्रमिक पारे के संपर्क से उत्पन्न बीमारियों के कारण मर गए। अन्य कई आज भी बीमारियों के शिकार हैं। पारे को प्रयुक्त करने वाले कारखाने में बरती जाने वाली सावधानियों की उपेक्षाओं का परिणाम यह हुआ कि मज़दूर तीन-चार वर्ष के पश्चात गंभीर बीमारियों का शिकार होने लगे। उदाहरण के लिए एक महिला हेलन मारगरेट ने सन 1996 से 1999 तक कारखाने में कार्य किया। शीघ्र ही वह अनेक गंभीर रोगों का शिकार हो गई। सन 2000 में जन्मा उनका दूसरा पुत्र मानसिक दृष्टि से अत्यंत कमज़ोर था। वह मानसिक दृष्टि से कमज़ोर बच्चों के लिए चर्च द्वारा स्थापित विद्यालय में पढ़ता था और मारगरेट को दिन में 3-4 बार जाकर बच्चे को संभालना पड़ता था। यह सब थर्मामीटर फैक्टरी में कार्य करने के दौरान पारे के संपर्क का परिणाम था, इस बात का उस समय तो उसे पता ही नहीं था। एक अन्य महिला संगीता बताती है कि उसके पिता गोविन्दम फैक्ट्री में संविदा चौकीदार थे। कार्य के दौरान उन्हें फैक्ट्री के चारों और 3-4 बार चक्कर लगाने पड़ते थे और वे फेंके गए पारे और कांच के संपर्क में आते थे। परिणामस्वरूप उनके शरीर में हीमोग्लोबीन की अत्यंत कमी हो गई और सन 2000 में उनकी मृत्यु हो गई। ऐसे अनेक उदाहरण हैं। पारे के कारखाने में कार्य के दौरान श्रमिकों के पारे से संपर्क के कारण उत्पन्न गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं के लिए हिन्दुस्तान यूनीलीवर को कोई क्षतिपूर्ति और जुर्माना न देना पड़े, इस हेतु उसने अपने स्तर पर कई अध्ययन कराए और बताने की कोशिश की कि कोडईकानल के कारखाने के श्रमिकों और वहां के निवासियों की स्वास्थ्य की समस्याओं का थर्मामीटर के कारखाने से कोई सम्बंध नहीं है। सन 2006 में अपने द्वारा कराए गए अध्ययन के निष्कर्षों को इंडियन जर्नल ऑफ ऑक्यूपेशनल एण्ड एनवायरमेंटल हेल्थ में प्रकाशित कराया, जिसमें बताया गया था कि पूर्व के नियमित और संविदा 255 श्रमिक स्वास्थ्य सम्बंधित अनेक समस्याओं के शिकार तो थे, परन्तु इन समस्याओं का थर्मामीटर कारखाने में कार्य से कोई सम्बंध नहीं है। परन्तु जिन 255 श्रमिकों के स्वास्थ्य की जांच का दावा किया गया, उनका कथन है कि उनसे किसी ने इस बारे में कभी कोई बात ही नहीं की थी। हिन्दुस्तान यूनीलीवर कंपनी ने दिल्ली स्थित ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ऑक्यूपेशनल हेल्थ और इंडस्ट्रियल टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च सेंटर से भी प्रमाण- पत्र प्राप्त कर लिए कि कोडईकानल के श्रमिकों और अन्य की स्वास्थ्य सम्बंधी समस्याओं का थर्मामीटर के कारखाने से कोई स्पष्ट सम्बंध नहीं है। इन प्रमाण पत्रों के बावजूद पारे के प्रदूषण के शिकार कोडईकानल के निवासियों को सन 2001 में यह पता चला कि थर्मामीटर का बंद कारखाना कचरे को वहां के एक गड्ढे में फेंक रहा है। यह कचरा बोरों में पैक कर फेंका गया था जिनसे पारा रिस रिस कर वहां की भूमि पर फैल रहा था। कुछ कचरा कंपनी के आधिपत्य वाले शोला के वन में फेंका गया था। इसके बाद कारखाने के 400 श्रमिकों ने फैक्ट्री के दरवाज़े पर क्षतिपूर्ति हेतु आंदोलन किया। यह आंदोलन आज भी किसी न किसी रूप में जारी है। थर्मामीटर के कारखाने से से पारे और पारे की वाष्प के कारण कोडईकानलऔर आसपास के क्षेत्र में फैले प्रदूषण के बारे में परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा किए गए अध्ययन से पता चलता है कि 25 एकड़ में फैली कोडईकानल झील का पानी प्रदूषित हो गया है। उसके पानी में 7.9 माइक्रोग्राम से लेकर 8.3 माइक्रोग्राम प्रति किलो पारा पाया गया है जो सुरक्षित मात्रा से कई गुना अधिक था। कोडाईकनाल झील की मछलियों में 120 से लेकर 210 माइक्रोग्राम पारा पाया गया। जिसके कारण लोगों के लिए इनके खाने लायक नहीं रह जाने के कारण मछुआरों का व्यवसाय भी समाप्त हो गया। थर्मामीटर बनाने के कारखाने के आसपास की भूमि में पारे की मात्रा सुरक्षित मात्रा से 250 गुना अधिक पाई गई। आसपास की भूमि में पारे की मात्रा 1.32 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर थी जबकि सुरक्षित मात्रा 0.5-1 नैनोग्राम प्रति घन मीटर होती है। यह मात्रा सुरक्षित से 132 गुना से लेकर 264 गुना अधिक थी। कंपनी ने लोगों के बढ़ते दबाव के कारण कारखाने के आसपास पारे को हटाने के लिए कुछ कदम तो उठाए थे, परन्तु व्यापक पर्यावरणीय प्रभावों को दूर करने के लिए कुछ नहीं किया। थर्मामीटर कारखाने के अंकेक्षण से पता चलता है कि उसने 1.2 टन पारा पैराम्बूर के शोला वन के क्षेत्र में छोड़ा था। पर्यावरण के लिए संघर्षरत नित्यानंद जयरमण, जिन्होंने फैक्ट्री में कार्य किया था, का कथन है कि यह कारखाना पर्यावरण उपनिवेशवाद का सशक्त उदाहरण है। थर्मामीटर के कारखाने से फैला प्रदूषण कोडईकानल तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि सैकड़ों कि.मी. दूर तक के स्थान भी उसके शिकार हो गए। कोडईकानल की पहाड़ियों से बहने वाला वर्षा का पानी अपने साथ पारे को दूरस्थ अंचलों तक ले गया और 130 कि.मी. दूर स्थित मदुराई का पानी भी पारे से प्रदूषित पाया गया। कोडाईकनाल की पारे से प्रदूषित पहाड़ियों से बहने वाले वर्षा के पानी के साथ प्रदूषित पारा बहकर जाना ही था और नीचे स्थित ग्रामों, शहरों, कस्बों के निवासियों को कोडईकानल् प्रभावित होना ही था। परन्तु यूनीलीवर अपने द्वारा फैलाए गए पारे के प्रदूषण का दायित्व स्वीकार करने को आज भी तैयार नहीं है। सन 2015 में पारे के कारखाने के पूर्व मज़दूरों और कर्मियों ने प्रदर्शन कर कंपनी द्वारा फैलाए गए पारा- जनित बीमारियों और स्वास्थ्य को पहुंची क्षति के बदले क्षतिपूर्ति की मांग की। उनकी यह भी मांग थी कि यूनीलीवर अपने कारखाने के फैले कचरे को साफ करे और उसकी समुचित देखरेख की व्यवस्था भी करे। सन 2007 में मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त एक विशेषज्ञ समिति के द्वारा श्रमिकों के स्वास्थ्य पर पारे के प्रदूषण के पर्याप्त सबूत नहीं पाए गए, इससे यूनीलीवर जैसे बहुराष्ट्रीय कंपनियों के तीसरी दुनिया के राष्ट्रों की सरकारों और व्यवस्था पर प्रभाव का अंदाज़ा लग सकता है। यूनीलीवर द्वारा कोडईकानल में फैलाए गए प्रदूषण के पर्याप्त सबूतों और पूर्व श्रमिकों और उनकी संतानों के स्वास्थ्य पर पड़े प्रतिकूल प्रभावों के तमाम प्रमाणों की अनदेखी कर यूनीलीवर का कथन है कि अब तक उसका इतिहास सस्टेनेबल विकास का रहा है और भविष्य में भी रहेगा। यूनीलीवर द्वारा कोडईकानल में थर्मामीटर के कारखाने का स्थानांतरण विकसित राष्ट्रों की उस साजिश का परिणाम है जिसके अंतर्गत पर्यावरण और स्थानीय आबादी के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले उद्योगों को तीसरी दुनिया के राष्ट्रों में स्थानांतरित कर दिया जाता है। जब हमारी वर्तमान सरकार अमेरिका और युरोप के पूंजीपतियों को भारत में निवेश करने, अधिक मुनाफा कमाने देने की बात करती है तो उसे इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि कहीं विदेशी कंपनियों द्वारा यहां स्थापित कारखाने यहां के पर्यावरण के विनाश के माध्यम न बन जाएं। यूनीलीवर जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों की भ्रम फैलाने वाली घोषणाओं के पीछे की वास्तविकताओं के प्रति हमें सावधान रहना ही होगा। (रुाोत फीचर्स)
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