रविवार, 15 जुलाई 2018

प्रगति के द्वार बंद कर देता है अभिमान

क प्रसिद्ध मूर्तिकार अपने पुत्र को मूर्ति बनाने की कला में दक्ष करना चाहता था। उसका पुत्र भी लगन और मेहनत से कुछ समय बाद बेहद खूबसूरत मूर्तियाँ बनाने लगा। उसकी आकर्षक मूर्तियों से लोग भी प्रभावित होने लगे। लेकिन उसका पिता उसकी बनाई मूर्तियों में कोई न कोई कमी बता देता था। उसने और कठिन अभ्यास से मूर्तियाँ बनानी जारी रखीं। ताकि अपने पिता की प्रशंसा पा सके। शीघ्र ही उसकी कला में और निखार आया। फिर भी उसके पिता ने किसी भी मूर्ति के बारे में प्रशंसा नहीं की।
निराश युवक ने एक दिन अपनी बनाई एक आकर्षक मूर्ति अपने एक कलाकार मित्र के द्वारा अपने पिता के पास भिजवाई और अपने पिता की प्रतिक्रिया जानने के लिये स्वयं ओट में छिप गया।
पिता ने उस मूर्ति को देखकर कला की भूरि-भूरि प्रशंसा की और बनानेवाले मूर्तिकार को महान कलाकार भी घोषित किया।
पिता के मुँह से प्रशंसा सुन छिपा पुत्र बाहर आया और गर्व से बोला- “पिताजी वह मूर्तिकार मैं ही हूँ। यह मूर्ति मेरी ही बनाई हुई है। इसमें आपने कोई कमी नहीं निकाली। आखिर आज आपको मानना ही पड़ा कि मैं एक महान कलाकार हूँ।”
पुत्र की बात पर पिता बोला, “बेटा एक बात हमेशा याद रखना कि अभिमान व्यक्ति की प्रगति के सारे दरवाजे बंद कर देता है। आज तक मैंने तुम्हारी प्रशंसा नहीं की। इसी से तुम अपनी कला में निखार लाते रहे अगर आज यह नाटक तुमने अपनी प्रशंसा के लिये ही रचा है तो इससे तुम्हारी ही प्रगति में बाधा आएगी। और अभिमान के कारण तुम आगे नहीं पढ़ पाओगे।”
पिता की बातें सुन पुत्र को गलती का एहसास हुआ। और पिता से क्षमा माँगकर अपनी कला को और अधिक निखारने का संकल्प लिया।

शनिवार, 14 जुलाई 2018

वह सितार बजाता रहा, लोग मंत्रमुग्ध होकर सुनते रहे

1958 में साउथ कैलिफोर्निया (लॉस एंजेल्स) में एक भारतीय संगीत वाद्य यंत्रों (म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स) की एक बहुत फेमस दुकान हुआ करती थी.. वो एकमात्र दुकान थी जो पूरे अमेरिका में प्रामाणिक भारतीय वाद्य यंत्रों को बेचती थी.. डेविड बर्नाड इसके मालिक हुआ करते थे..

एक दिन एक 36 वर्षीय भारतीय नौजवान इस दुकान में आया और वाद्य यंत्रों को बड़े ध्यान से देखने लगा..... साधारण वेशभूषा वाला ये आदमी वहां के सेल्स के लोगों को कुछ ख़ास आकर्षित नहीं कर सका, मगर फिर भी एक सेल्स गर्ल क्रिस्टिना उसके पास आ कर बनावटी मुस्कान से बोली कि "मैं आपकी क्या मदद कर सकती हूँ ?"

उस नौजवान ने सितार देखने की मांग की और क्रिस्टिना ने उसको सितारों के संग्रह दिखाए.. मगर उस व्यक्ति को सारे सितार छोड़ कर एक ख़ास सितार पसंद आई और उसे देखने की ज़िद की.. क्योंकि वो बहुत ऊपर रखी थी और शो केस में थी इसलिए उसको उतारना मुश्किल था.. तब तक डेविड, जो की दूकान के मालिक थे, वो भी अपने केबिन से निकलकर आ गए थे, क्योंकि आज तक किसी ने उस सितार को देखने की ज़िद नहीं की थी.. बहरहाल सितार उतारा गया, तो क्रिस्टिना शेखी घबराते हुवे बोली "इसे "बॉस" सितार कहा जाता है और आम सितार वादक इसे नहीं बजा सकता है। ये बहुत बड़े बड़े शो में इस्तेमाल होती है।" वो भारतीय बोला "आप इसे "बॉस" सितार कहते हैं मगर हम इसे "सुरबहार" सितार के नाम से जानते हैं.. क्या मैं इसे बजा कर देख सकता हूँ"?

अब तक तो सारी दुकान के लोग वहां इकठ्ठा हो चुके थे..खैर.. डेविड ने इजाज़त दी बजाने की और फिर उस भारतीय ने थोड़ी देर तार कसे और फिर सुर मिल जाने पर वो उसे अपने घुटनों पर ले कर बैठ गया.. और फिर उसने राग "खमाज" बजाया .... उसका वो राग बजाना था कि सारे लोग वहां जैसे किसी दूसरी दुनिया में चले गए.. किसी को समय और स्थान का कोई होश न रहा.. जैसे सब कुछ थम गया वहां.. जब राग खत्म हुआ तो वहां ऐसा सन्नाटा छा चुका था जैसे तूफ़ान के जाने के बाद होता है.. लोगों को समझ नहीं आ रहा था कि वो ताली बजाएं कि मौन रहें..

डेविड इतने अधिक भावुक हो गए कि उस भारतीय से बोले कि "आखिर कौन हो तुम.. मैंने रवि शंकर को सुना है और उन जैसा सितार कोई नहीं बजाता; मगर तुम उन से कहीं से कम नहीं हो.. मैं आज धन्य हो गया कि आप मेरी दुकान पर आये.. बताइए मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ" उस व्यक्ति ने वो सितार खरीदने के लिए कहा मगर डेविड ने कहा इसको मेरी तरफ से उपहार के तौर पर लीजिये.. क्यों इस सितार का कोई मोल नहीं है, ये अनमोल है, इसे मैं बेच नहीं सकता..

क्रिस्टिना जो अब तक रो रही थी, उन्होंने उस भारतीय को चूमा और एक डॉलर का नोट देते हुए कहा कि "मैं भारतीयों को कम आंकती थी और अपने लोगों पर ही गर्व करती थी.. आप दुकान पर आए तो भी मैंने बुझे मन से आपको सितार दिखाया था.. मगर आपने मुझे अचंभित कर दिया.. फिर पता नहीं आपसे कभी मुलाक़ात हो या न हो, इसलिए मेरे लिए इस पर कुछ लिखिए".  उस व्यक्ति ने क्रिस्टिना की तारीफ करते हुए अंत में नोट पर अपना नाम लिखा
"सलिल चौधरी"

उसी वर्ष सलिल चौधरी ने अपनी एक फ़िल्म के लिए उसी सुरबहार सितार का उपयोग करके एक बहुत प्रसिद्ध बंगाली गाना बनाया जो राग खमाज पर आधारित था.. बाद में यही गाना हिंदी में बना जिसको लता जी ने गाया.. गाने के बोल थे

ओ सजना.. बरखा बहार आई..
रस की फुहार लायी..
अखियों में प्यार लायी

फिल्म परख (1959-60)

बुधवार, 11 जुलाई 2018

50 पार करने वालों के लिए एक सुझाव


50 पार.... अब आपका तन,आपके मन का आज्ञाकारी नहीं रह पाता...!! 

मैंने  अपने चिकित्सकीय अनुभव मे जाना कि मन चाहे कितना ही जोशीला हो, साठापाठा होते ही, तन उतना फ़ुर्तीला नहीं रह जाता ? शरीर ढलान पर होता है और ‘रिफ्लेक्सेज़’ कमज़ोर ! कभी कभी मन भ्रम बनाए रखता है कि ‘ये काम तो चुटकी मे कर लूँगा’ पर बहुत जल्दी सच्चाई सामने होती है, मगर एक नुक़सान के साथ ?

सीनियर सिटिज़न होने पर जिन बातों का ख़याल रखा जाना चाहिये , ऐसी कुछ टिप्स देना चाहूँगा ? धोखा तभी होता है जब मन सोचता है ‘कर लूंगा’ और शरीर करने से ‘चूक’ जाय ? परिणाम एक एक्सीडेंट और शारीरिक क्षति ? ये क्षति, हड्डी के फ़्रैक्चर से लेकर ‘हेड इंज्यूरी’ तक हो सकती है ? याने जान लेवा भी , कभी कभी ?

इसलिये जिन्हें भी आदत हो हमेशा हड़बड़ी मे रहने और काम करने की , बेहतर होगा कि वे अपनी आदतें बदल डालें ? भरम न पालें , सावधानी बरतें क्योंकि आप अब पहले की तरह फ़ुर्तीले नहीं रह गये ? छोटी चूक कभी बड़े नुक़सान का सबब बन जाती है ?

सुबह नींद खुलते ही तुरंत बिस्तर छोड़ खड़े न हों ! पहले बिस्तर पर कुछ मिनट बैठे रहें और पूरी तरह चैतन्य हो लें ? कोशिश करें कि बैठे बैठे ही स्लीपर / चप्पलें पैर मे डाल लें या खड़े होने पर मेज़ या किसी सहारे को पकड़ कर ही चप्पलें पहने ! अकसर यही समय होता है डगमगा कर गिर जाने का ?

सबसे ज़्यादा घटनाएँ गिरने की बॉथरूम/वॉशरूम या टॉयलेट मे ही होतीं हैं ? आप चाहे नितांत अकेले , पति पत्नी साथ या संयुक्त परिवार मे रहते हों, बॉथरूम मे अकेले ही होते हैं ?

घर मे अकेले रहते हों तो अतिरिक्त सावधानी बरतें क्योंकि गिरने पर यदि उठ न सके तो दरवाज़ा तोड़कर ही आप तक सहायता पहुँच सकेगी ? वह भी तब, जब आप पड़ोसी तक सूचना पहुँचाने मे समय से कामयाब हो सके ? याद रखें बाथरूम मे भी मोबाइल साथ हो ताकि वक़्त ज़रूरत काम आ सके ? बाकी भूल चूक लेनी देनी नही, देनी ही देनी होती है ?

हमेशा कमोड का ही इस्तेमाल करें ! यदि न हो, तो समय रहते बदलवा लें, ज़रूरत पड़नी ही है, चाहे कुछ समय बाद ? कमोड के पास संभव हो तो एक हैंडिल लगवा लें ! कमज़ोरी की स्थिति मे ये ज़रूरी हो जाता है ? ( प्लास्टिक के वेक्यूम हैंडिल भी मिलते हैं, जो टॉइल्स जैसी चिकनी सतह पर चिपक जाते हैं, पर इन्हें हर बार इस्तेमाल से पहले खींचकर ज़रूर परख लें )

हमेशा आवश्यक ऊँचे स्टूल पर बैठकर ही नहॉंएं ! बॉथरूम के फ़र्श पर रबर की मैट ज़रूर बिछा रखें आवश्यकतानुसार फिसलन से बचने ? गीले हाथों से टाइल्स  लगी दीवार का सहारा कभी न लें, हाथ फिसलते ही आप ‘डिसबैलेंस’ होकर गिर सकते हैं ?

बॉथरूम के ठीक बाहर सूती मैट भी रखें जो गीले तलवों से पानी सोख ले ! कुछ सेकेण्ड उस पर खड़े होकर फिर फ़र्श पर पैर रखें वो भी सावधानी से !

अंडरगारमेंट हों या कपड़े, अपने चेंजरूम या बेडरूम मे ही पहने ! अंडरवियर,पजामा या पैंट खडे़ खडे़ कभी नही पहने ! हमेशा बैठ कर ही उनके पायचों मे पैर डालें, फिर खड़े होकर पहिने वर्ना दुर्घटना घट सकती है ? कभी स्मार्टनेस की बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ जाती है ?

अपनी दैनिक ज़रूरत की चीज़ों को नियत जगह पर ही रखने की आदत डाल लें , जिससे उन्हें आसानी से उठाया या तलाशा जा सके ? भूलने की ज़्यादा आदत हो आवश्यक चीज़ों की लिस्ट मेज़ पर या दीवार पर लगा लें , घर से निकलते समय एक निगाह उस पर डाल लें, आसानी रहेगी ! 

जो दवाएँ रोज़ाना लेनी हों तो प्लास्टिक के प्लॉनर मे रखें जिसमें जुड़ी हुई डिब्बियों मे हफ़्ते भर की दवाएँ दिनवार रखी जाती है ! अकसर भ्रम हो जाता है कि दवाएँ ले ली हैं या भूल गये ?  प्लॉनर मे से दवा खाने मे चूक नही होगी ?

सीढ़ियों से चढ़ते उतरते समय, सक्षम होने पर भी, हमेशा रेलिंग का सहारा लें ? ख़ासकर मॉल्स के एक्सलेटर पर ? ध्यान रहे आपका शरीर आपके मन का अब पहले जैसा ‘ओबीडियेंट सर्वेंट’ नही रहा...

 From the wall of Dr.Ramesh chndra  Parashar.


मुफ़्तख़ोरी की पराकाष्ठा!

मुफ़्त दवा,
मुफ़्त जाँच,
लगभग मुफ़्त राशन,
मुफ़्त शिक्षा,
बच्चा पैदा करने पर पैसे ,
बच्चा पैदा नहीं (नसबंदी)करने पर पैसे,
स्कूल में खाना मुफ़्त ,

मुफ़्त बाँटने की लगता है जैसे होड़ मची है,

पिछले दस सालों से लेकर आगे बीस सालों में एक एसी पूरी पीढ़ी तैयार हो रही है या हमारे नेता बना रहे हैं जो पूर्णतया मुफ़्त खोर होगी!

अगर आप उनको काम करने को कहेंगे तो वो गाली देकर कहेंगे कि सरकार क्या कर रही है!

ये मुफ़्त खोरी की ख़ैरात कोई भी पार्टी अपने फ़ंड से नही देती टैक्स दाताओं का पैसा इस्तेमाल करती है!

वास्तव में हम नागरिक नहीं परजीवी तैयार कर रहे हैं!

देश का अल्प संख्यक टैक्स दाता बहुसंख्यक मुफ़्त खोर समाज को कब तक पालेगा ?

जब ये आर्थिक समीकरण फ़ेल होगा तब ये मुफ़्त खोर पीढ़ी बीस तीस साल की हो चुकी होगी, जिसने जीवन में कभी मेहनत की रोटी नही खाई होगी, हमेशा मुफ़्त की खाई होगी !

मुफ्त नहीं मिलने पर, ये पीढ़ी नक्सली बन जाएगी , उग्रवादी बन जाएगी पर काम नही कर पाएगी !

सोचने की बात है कि सरकारें कैसे समाज का निर्माण करना चाहती है??

है किसी के पास कोई स्पष्ट सोच ?

हद होती है मुनाफाखोरी की...
मुनाफ़ाख़ोर साम्राज्यवादियों के लिए मानवता के स्वास्थ्य के ऊपर वरीयता इनके मुनाफ़े की अंधी हवस रखती है । तभी तो हाल ही में WHO द्वारा जीनेवा में आयोजित विश्व स्वास्थ्य सम्मेलन में शिशु के लिए स्तनपान को वरीयता और प्रोत्साहन देने हेतु प्रस्ताव जब पटल पर रखा गया तब अमेरिका ने उसे पारित होने से रोकने के लिए नीचता की सारी हदें पार कर दी। विज्ञान में यह एक निर्विवाद रूप से स्थापित सत्य है कि नवजात शिशु के विकास के लिए पहले छह महीने तक माँ का दूध ही सर्वोत्तम होता है, व इसके विकल्प के रूप में प्रचारित बाज़ार में उपलब्ध कृत्रिम baby-feeds बेचने वाले बहुराष्ट्रीय brands अपने विज्ञापनों में झूठे दावे करके शिशुओं के स्वास्थ्य और पोषण से खिलवाड़ करते हैं। लातिन अमेरिकी देश , इकुएडोर के प्रतिनिधि मंडल ने जब स्तनपान को प्रोत्साहित करने हेतु इन झूठे दावे करके कृत्रिम baby feed बेचने वाले brands पर नकेल कसने का प्रस्ताव रखा तो अमेरिका को अपने देश के उन मुनाफ़ाख़ोर brands का हित याद आ गया जिनके मुनाफ़े पर इस जन-स्वास्थ्य हित में लाए गए प्रस्ताव के पारित होने के कारण मार पड़ती। अमेरिका के प्रतिनिधि मंडल ने अपने देश की मुनाफ़ाख़ोर कंपनियों के हित को शिशुओं के पोषण और स्वास्थ्य के ऊपर चुना और इक्वाडोर पर व्यापारिक प्रतिबंध लगाने और सैन्य सहायताएँ बंद करने की धमकी देते हुए इस प्रस्ताव को वापस लेने का दबाव बनाया, जिसके फलस्वरूप इक्वाडोर को यह प्रस्ताव वापस लेना पड़ा। अमेरिकी प्रतिनिधि मंडल ने साफ़ साफ़ कह दिया कि वह अपनी कंपनियों के मुनाफ़े पर पड़ने वाली मार को किसी सूरत में बर्दाश्त नहीं करेगा। यह प्रस्ताव ख़ासकर विकासशील देशों में शिशु कुपोषण से लड़ने हेतु एक ज़रूरी पहल साबित होता लेकिन साम्राज्यवादी मुनाफ़े की हवस ने इसमें भी अडंगा लगा दिया।

2016 में The Lancet में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार विश्वव्यापी स्तनपान रेजॉल्यूशन पारित होने से हर साल 8 लाख शिशुओं की मौतों को रोका जा सकता है। सिर्फ़ यही नहीं , ऐसे कई महत्वाकांक्षी प्राजेक्ट्स हैं जो वैश्विक स्तर पर जनहित में लागू किए जाएँ तो पूरी दुनिया से कुपोषण और भुखमरी जड़ से मिटाई जा सकती हैं। लेकिन जबतक स्वास्थ्य सेवाएँ मुनाफ़े की पूँजीवादी बेड़ियों में जकड़ी रहेंगी, तबतक धनपशुओं का हित मानवहित के आड़े इसी तरह आता रहेगा।

गुरुवार, 5 जुलाई 2018

हम ही पाल रहे हैं समाज की विसंगतियों को

इन दिनों पूरे देश में मासूम दरिंदगी की शिकार हो रही हैं। लोग बलात्कारियों के खिलाफ सड़कों पर उतर रहे हैं। वे इसे देश की बहुत बड़ी समस्या मानते हुए इसके खिलाफ अभियान ही चला रहे हैं। पर यह समस्या आई कहाँ से, इसे जानने की किसी ने जहमत नहीं उठाई। आओ, देखेें, समस्या आखिर कहाँ है? कुछ समझने की कोशिश करें कि आखिर देश में बलात्कार की घटनाओं में अचानक वृद्धि कैसे हो गई। कुछ उदाहरणों से समझने की कोशिश करते हैं। लोग कहते हैं कि रेप क्यों होता है ? आओ, यह जानने की कोशिश करते हैं।

(1) 8 साल का लडका सिनेमाघर मे राजा हरिशचन्द्र फिल्म देखने गया और फिल्म से प्रेरित होकर उसने सत्य का मार्ग चुना और वो बडा होकर महान व्यक्तित्व से जाना गया। परन्तु आज 8 साल का लडका टीवी पर क्या देखता है ? सिर्फ नंगापन और अश्लील वीडियो और फोटो, मैग्जीन में अर्धनग्न फोटो,  पडोस मे रहने वाली भाभी के छोटे कपडे !!
लोग कहते हैं कि रेप का कारण बच्चों की मानसिकता है। पर वो मानसिकता आई कहाँ से ? उसके जिम्मेदार कहीं न कहीं हम खुद हैं।  क्योंकि हम joint family में नहीं रहते। हम अकेले रहना पसंद करते हैं। और अपना परिवार चलाने के लिए माता पिता को बच्चों को अकेला छोड़कर काम पर जाना है और बच्चे अपना अकेलापन दूर करने के लिये टीवी और इन्टरनेट का सहारा लेते हैं। और उनको देखने के लिए क्या मिलता है, सिर्फ वही अश्लील वीडियो और फोटो। तो वो क्या सीखेंगे यही सब कुछ ना ? अगर वही बच्चा अकेला न रहकर अपने दादा दादी के साथ रहे तो कुछ अच्छे संस्कार सीखेगा।
कुछ हद तक ये भी जिम्मेदार है।
(2) पूरा देश रेप पर उबल रहा है, छोटी छोटी बच्चियो से जो दरिंदगी हो रही है, उस पर सबके मन मे गुस्सा है। कोई सरकार को कोस रहा,  कोई समाज को तो कई feminist सारे लड़को को बलात्कारी घोषित कर चुकी है ! लेकिन आप सुबह से रात तक कई बार sunny leon के कंडोम के add देखते है ..!! फिर दूसरे add में  रणवीर सिंह शैम्पू के ऐड में लड़की पटाने के तरीके बताता है...!! ऐसे ही Close up, लिम्का, Thumsup भी दिखाता है। लेकिन तब आपको गुस्सा नही आता है ना ??? आप अपने छोटे बच्चों के साथ music चैनल पर सुनते ही हैं  दारू बदनाम कर दी, कुंडी मत खड़काओ राजा, मुन्नी बदनाम, चिकनी चमेली, झण्डू बाम, तेरे साथ करूँगा गन्दी बात, और न जाने ऐसी कितनी मूवीज गाने देखते सुनते है। तब आपको गुस्सा नही आता ??
मम्मी बच्चों के साथ Star Plus, जी TV, सोनी TV देखती है, जिसमें एक्टर और एक्ट्रेस सुहागरात मनाते है।  किस करते है। आँखो में आँखे डालते हैं। और तो और भाभीजी घर पर हैं, जीजाजी छत पर हैं, टप्पू के पापा और बबीता जिसमे एक व्यक्ति दूसरे की पत्नी के पीछे घूमता लार टपकता नज़र आएगा,  पूरे परिवार के साथ देखते हैं। इन सब serial को देखकर आपको गुस्सा नहीं आता ?? फिल्मों मे किस (चुम्बन, आलिंगन), रोमांस से लेकर गंदी कॉमेडी आदि सब कुछ दिखाया जाता है। पर आप बड़े मजे लेकर देखते हैं, इन सब को देखकर आपको गुस्सा नहीं आता ?? खुलेआम TV- फिल्म वाले आपके बच्चों को बलात्कारी बनाते हैं।  उनके मन में जहर घोलते है। तब आपको गुस्सा नहीं आता ? क्योंकि आपको लगता है कि रेप रोकना सरकार की जिम्मेदारी है । पुलिस, प्रशासन, न्याय व्यवस्था की जिम्मेदारी है.. लेकिन क्या समाज और मीडिया की कोई जिम्मेदारी नहीं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में कुछ भी परोस दोगे क्या ?
आप तो अखबार पढ़कर, News देखकर बस गुस्सा निकालेंगे। कोसेंगे सिस्टम को,  सरकार को, पुलिस को, प्रशासन को, DP बदल लेंगे, सोशल मीडिया पे खूब हल्ला मचाएंगे,  बहुत ज्यादा हुआ तो कैंडल मार्च या धरना कर लेंगे। लेकिन.... TV चैनल्स, वालीवुड, मीडिया को कुछ नहीं कहेंगे। क्योंकि वो आपके मनोरंजन के लिए हैं।  सच पुछिऐ तो TV Channels अश्लीलता परोस रहे हैं … पाखंड परोस रहे हैं, झूंठे विज्ञापन परोस रहे है , झूंठे और सत्य से परे ज्योतिषी पाखंड से भरी कहानियां एवं मंत्र, ताबीज आदि परोस रहे हैं। गलतीउनकी भी नहीं है। क्योंकि आप खरीददार हो .....?? बाबा बंगाली, तांत्रिक बाबा, स्त्री वशीकरण के जाल में खुद फंसते हो ।
(3) अभी टीवी का खबरिया चैनल मंदसौर के गैंगरेप की घटना पर समाचार चला रहा है।  जैसे ही ब्रेक आएगा:- पहला विज्ञापन बॉडी स्प्रे का जिसमे लड़की आसमान से गिरती है, दूसरा कंडोम का,  तीसरा नेहा स्वाहा-स्नेहा स्वाहा वाला, और चौथा प्रेगनेंसी चेक करने वाले मशीन का...... जब हर विज्ञापन, हर फिल्म में नारी को केवल भोग की वस्तु समझा जाएगा तो बलात्कार के ऐसे मामलों को बढ़ावा मिलना निश्चित है। क्योंकि "हादसा एक दम नहीं होता, वक़्त करता है परवरिश बरसों....!" ऐसी निंदनीय घटनाओं के पीछे निश्चित तौर पर भी बाजारवाद ही ज़िम्मेदार है ..
(4) आज सोशल मीडिया, इंटरनेट और फिल्मों में पोर्न परोसा जा रहा है। तो बच्चे तो बलात्कारी ही बनेंगे ना। ध्यान रहे समाज और मीडिया को बदले बिना ये आपके कठोर सख्त कानून कितने ही बना लीजिए, ये घटनाएं नहाँ रुकने वाली है। इंतज़ार करें, बहुत जल्द आपको फिर केंडल मार्च निकालने का अवसर हमारा स्वच्छंद समाज, बाजारू मीडिया और गंदगी से भरा सोशल मीडिया देने वाला है । अगर अब भी आप बदलने की शुरुआत नही करते हैं ,तो समझिए कि ......फिर कोई भारत की बेटी निर्भया एवम् अन्य बेटियों की तरह बर्बाद होने वाली है। आपको आपकी बेटियां बचाना है, तो सरकार कानून पुलिस के भरोसे से बाहर निकलकर समाज मीडिया और सोशल मीडिया की गंदगी साफ करने में अपनी अहम भूमिका निभाएं। तभी कुछ हो पाएगा, अन्यथा कुछ न करने पर कुछ बहुत बड़ा ऐसा हो जाएगा, जिससे आप आंदोलित हो जाएंगे, पर कर कुछ भी नहीं पाएँगे।

बुधवार, 4 जुलाई 2018

जीवन के उतार-चढ़ाव

एक लड़का था.  बहुत ब्रिलियंट था. सारी जिंदगी फर्स्ट आया. साइंस  में हमेशा 100% स्कोर किया. अब ऐसे लड़के आम तौर पर इंजिनियर बनने चले जाते हैं, सो उसका भी सिलेक्शन हो गया IIT चेन्नई  में.  वहां से B Tech किया और वहां से आगे पढने अमेरिका चला गया. वहां से आगे की पढ़ाई पूरी की. M.Tech वगैरा कुछ किया होगा फिर उसने यूनिवर्सिटी ऑफ़ केलिफ़ोर्निया से MBA किया.
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अब इतना पढने के बाद तो वहां अच्छी नौकरी मिल ही जाती है. सुनते हैं कि वहां भी हमेशा टॉप ही किया. वहीं नौकरी करने लगा. बताया जाता है कि 5 बेडरूम का घर था उसके पास. शादी यहाँ चेन्नई की ही एक बेहद खूबसूरत लड़की से हुई थी. बताते हैं कि ससुर साहब भी कोई बड़े आदमी ही थे, कई किलो सोना दिया उन्होंने अपनी लड़की को दहेज़ में.
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अब हमारे यहाँ आजकल के हिन्दुस्तान में इस से आदर्श जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती. एक आदमी और क्या मांग सकता है अपने जीवन में? पढ़ लिख के इंजिनियर बन गए, अमेरिका में सेटल हो गए, मोटी तनख्वाह की नौकरी, बीवी बच्चे, सुख ही सुख, इसके बाद हीरो हेरोइने सुखपूर्वक वहां की साफ़ सुथरी सड़कों पर भ्रष्टाचार मुक्त माहौल में सुखपूर्वक विचरने लगे, The End.
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अब एक दोस्त हैं हमारे, भाई नीरज जाट जी. एक नंबर के घुमक्कड़ हैं, घर कम रहते हैं सफ़र में ज्यादा रहते हैं.  ऐसी ऐसी जगह घूमने चल पड़ते हैं पैदल ही, 4 -6 दिन पहाड़ों पर घूमना, trekking करना उनके लिए आम बात है. ऐसे ऐसे दुर्गम स्थानों पर जाते है, फिर आ के किस्से सुनाते हैं,ब्लॉग लिखते हैं. उनका ब्लॉग पढ़ के मुझे थकावट हो जाती है, न रहने का ठिकाना न खाने का ठिकाना (सफ़र में), फिर भी कोई टेंशन नहीं,  चल पड़े घूमने, बैग कंधे पर लाद के. मेरी बीवी कहती है अक्सर, कि एक तो तुम पहले ही आवारा थे ऊपर से ऐसे दोस्त पाल लिए, नीरज जाट जैसे, जो न खुद घर रहता है, न दूसरों को रहने देता है, बहला फुसला के ले जाता है अपने साथ. पर मुझे उनकी घुमक्कड़ी देख सुन के रश्क होता है, कितना रफ एंड टफ है यार ये आदमी, कितना जीवट है इसमें, बड़ी सख्त जान है.
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आओ अब जरा कहानी के पहले पात्र पर दुबारा आ जाते हैं. तो आप उस इंजीनियर लड़के का क्या फ्यूचर देखते हैं लाइफ में? सब बढ़िया ही दिखता है?  पर नहीं, आज से तीन साल पहले उसने वहीं अमेरिका में, सपरिवार आत्महत्या कर ली. अपनी पत्नी और बच्चों को गोली मार कर खुद को भी गोली मार ली.  What went wrong? आखिर ऐसा क्या हुआ, गड़बड़ कहाँ हुई.
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ये कदम उठाने से पहले उसने बाकायदा अपनी wife से discuss किया, फिर एक लम्बा suicide नोट लिखा और उसमें बाकायदा justify किया अपने इस कदम को और यहाँ तक लिखा कि यही सबसे श्रेष्ठ रास्ता था इन परिस्थितयों में. उनके इस केस को और उस suicide नोट को California Institute of Clinical Psychology ने study किया है. What went wrong?
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हुआ यूँ था कि अमेरिका की आर्थिक मंदी में उसकी नौकरी चली गयी. बहुत दिन खाली बैठे रहे. नौकरियां ढूंढते रहे. फिर अपनी तनख्वाह कम करते गए और फिर भी जब नौकरी न मिली, मकान की किश्त जब टूट गयी, तो सड़क पे आने की नौबत आ गयी. कुछ दिन किसी पेट्रोल पम्प पे तेल भरा बताते हैं. साल भर ये सब बर्दाश्त किया और फिर अंत में ख़ुदकुशी कर ली... ख़ुशी ख़ुशी और उसकी बीवी भी इसके लिए राज़ी हो गयी, ख़ुशी ख़ुशी. जी हाँ लिखा है उन्होंने कि हम सब लोग बहुत खुश हैं, कि अब सब कुछ ठीक हो जायेगा, सब कष्ट ख़तम हो जायेंगे.
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इस case study को ऐसे conclude किया है experts ने : This man was programmed for success but he was not trained,how to handle failure. यह व्यक्ति सफलता के लिए तो तैयार था, पर इसे जीवन में ये नहीं सिखाया गया कि असफलता का सामना कैसे किया जाए.
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आइये ज़रा उसके जीवन पर शुरू से नज़र डालते हैं. बहुत तेज़ था पढने में, हमेशा फर्स्ट ही आया. ऐसे बहुत से Parents को मैं जानता हूँ जो यही चाहते हैं कि बस उनका बच्चा हमेशा फर्स्ट ही आये, कोई गलती न हो उस से. गलती करना तो यूँ मानो कोई बहुत बड़ा पाप कर दिया और इसके लिए वो सब कुछ करते हैं, हमेशा फर्स्ट आने के लिए.  फिर ऐसे बच्चे चूंकि पढ़ाकू कुछ ज्यादा होते हैं सो खेल कूद, घूमना फिरना, लड़ाई झगडा, मार पीट, ऐसे पंगों का मौका कम मिलता है बेचारों को,12 th कर के निकले तो इंजीनियरिंग कॉलेज का बोझ लद गया बेचारे पर, वहां से निकले तो MBA और अभी पढ़ ही रहे थे की मोटी तनख्वाह की नौकरी. अब मोटी तनख्वाह तो बड़ी जिम्मेवारी, यानी बड़े बड़े targets.
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कमबख्त ये दुनिया साली, बड़ी कठोर है और ये ज़िदगी, अलग से इम्तहान लेती है. आपकी कॉलेज की डिग्री और मार्कशीट से कोई मतलब नहीं उसे. वहां कितने नंबर लिए कोई फर्क नहीं पड़ता. ये ज़िदगी अपना अलग question paper सेट करती है. और सवाल साले,सब out ऑफ़ syllabus होते हैं, टेढ़े मेढ़े, ऊट पटाँग और रोज़ इम्तहान लेती है. कोई डेट sheet नहीं.
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एक बार एक बहुत बड़े स्कूल में हम लोग summer camp ले रहे थे दिल्ली में. Mercedeze और BMW में आते थे बच्चे वहां. तभी एक लड़की, रही होगी यही कोई 7-8 साल की, अचानक जोर जोर से रोने लगी. हम लोग दौड़े, क्या हुआ भैया, देखा तो वो लड़की गिर गयी थी. वहां ज़मीन कुछ गीली थी सो उसके हाथ में ज़रा सी गीली मिट्टी लग गई थी और थोड़ी उसकी frock में भी. सो वो जार जार रो रही थी. खैर हमने उसके हाथ धोये और ये बताया कि कुछ नहीं हुआ बेटा, ये देखो, धुल गयी मिट्टी. खैर साहब थोड़ी देर में उसकी माँ आ गई, high heels पहन के और उसने हमारी बड़ी क्लास लगाई कि आप लोग ठीक से काम नहीं करते हो, लापरवाही करते हो, कैसे गिर गया बच्चा, अगर कुछ हो जाता तो? सचमुच इतना बड़ा हादसा, भगवान् न करे किसी के साथ हो जीवन में.
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एक और आँखों देखी घटना है मेरी. कैसे माँ बाप अपने बच्चों को spoil करते हैं. हम लोग एक स्कूल में एक और कैंप लगा रहे थे, बच्चे स्कूल बस से आते थे. ड्राईवर ने जोर से ब्रेक मारी तो एक बच्चा गिर गया और उसके माथे पे हलकी सी चोट लग गयी, यही कोई एक सेन्टीमीटर का हल्का सा कट. अब वो बच्चा जोर जोर से रोने लगा, बस यूँ समझ लीजे, चिंघाड़ चिंघाड़ के, क्योंकि उसने वो खून देख लिया अपने हाथ पे. खैर मामूली सी बात थी, हमने उसे फर्स्ट एड दे के बैठा दिया. तभी भैया, यही कोई 10 मिनट बीते होंगे, उस बच्चे के माँ बाप पहुँच गए स्कूल और फिर वहां जो कोहराम मचा. वो बच्चा जितनी जोर से रोता, उसकी माँ उस से ज्यादा जोर से चिंघाड़ती और उसका बाप जोर जोर से चिल्ला रहा था, पागलों की तरह. मेरे बच्चे को सर में चोट लगी है, आप लोग अभी तक हॉस्पिटल ले के नहीं गए? अरे ये तो न्यूरो का केस है सर में चोट लगी है.
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मेरा एक दोस्त जो वहां PTI था उसके साथ हम एक स्थानीय neurology के हॉस्पिटल में गए. अब अस्पताल वालों को तो बकरा चाहिए काटने के लिए. वहां पर भी उस लड़के का बाप CT Scan, Plastic surgery न जाने क्या क्या बक रहा था. पर finally उस अस्पताल के doctors ने एक BANDAID लगा के भेज दिया.
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एक और किस्सा उसी स्कूल का, एक श्रीमान जी सुबह सुबह आ के लड़ रहे थे, क्या हुआ भैया, स्कूल बस नहीं आई, हमें आना पड़ा छोड़ने. बाद में पता चला श्रीमान जी का घर स्कूल से बमुश्किल 200 मीटर दूर, उसी कालोनी में तीन सड़क छोड़ के था और लड़का उनका 10 साल का था.
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क्या बनाना चाहते हैं आज कल के माँ बाप अपने बच्चों को? ये spoon fed बच्चे जीवन के संघर्षों को कैसे या कितना झेल पाएंगे?
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आज से लगभग 15 साल पहले, मेरा बड़ा बेटा 4-5 साल का था, अपने खेत पे जा रहे थे हम. बरसात का season था, धान के खेतों में पानी भरा था. मेरे बेटे ने मुझे कहा, पापा, मुझे गोदी उठा लो. मैंने कहा कुछ नहीं होता बेटा, पैदल चलो और वो चलने लगा और थोड़ी ही देर बाद पानी में गिर गया. कपडे सब कीचड में सन गए. अब वो रोने लगा, मैंने फिर कहा कुछ नहीं हुआ बेटा, उठो, वो वहीं बैठा बैठा रो रहा था. उसने मेरी तरफ हाथ बढाए, मैंने कहा अरे पहले उठो तो और वो उठ खड़ा हुआ. मैंने उसे सिर्फ अपनी ऊँगली थमाई और वो उसे पकड़ के ऊपर आ गया. हम फिर चल पड़े. थोड़ी देर बाद वो फिर गिर गया, पर अबकी बार उसकी प्रतिक्रिया बिलकुल अलग थी. उसने सिर्फ इतना ही कहा, अर्रे... और हम सब हंस दिए. वो भी हंसने लगा और फिर अपने आप उठा और ऊपर आ गया. मुझे याद है उस साल हम दोनों बाप बेटा बीसों बार उस खेत पे गए होंगे, वो उसके बाद वहां से आते जाते कभी नहीं गिरा.
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कल मैं नीरज जाट जी की करेरी झील की trekking वाली पोस्ट पढ़ रहा था. 4 दिन उस सुनसान बियाबान में, जिसका रास्ता तक नहीं पता, इतनी बारिश और ओला वृष्टि में, ऊपर से ले कर नीचे तक भीगे, भूखे प्यासे, न रहने का ठिकाना न सोने का. उस कीचड भरे मंदिर के कमरे में, उस बिना chain वाले स्लीपिंग बैग में रात बिता के भी, कितने खुश थे. इतना संघर्ष शील आदमी, क्या जीवन में कभी हार मानेगा?
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काश कार्तिक राजाराम, जी हाँ यही नाम था उस लड़के का. उसे भी बचपन में गिरने की, गिर गिर के उठने की, बार बार हारने की और हार के बार बार जीतने की ट्रेनिंग मिली होती.
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कठोपनिषद में एक मंत्र है, उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत. उठो जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक आगे बढ़ते रहो. शुरू से ही अपने बच्चों को इतना कोमल, इतना सुकुमार मत बनाएं कि वो इस ज़ालिम दुनिया के झटके बर्दाश्त न कर सके.
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एक अंग्रेजी उपन्यास में एक किस्सा पढ़ा था. एक मेमना अपनी माँ से दूर निकल गया. आगे जा कर पहले तो भैंसों के झुण्ड से घिर गया. उनके पैरों तले कुचले जाने से बचा किसी तरह. अभी थोडा ही आगे बढ़ा था कि एक सियार उसकी तरफ झपटा. किसी तरह झाड़ियों में घुस के जान बचाई तो सामने से भेड़िये आते दिखे. बहुत देर वहीं झाड़ियों में दुबका रहा, किसी तरह माँ के पास वापस पहुंचा तो बोला, माँ, वहां तो बहुत खतरनाक जंगल है. Mom, there is a jungle out there.
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इस खतरनाक जंगल में जिंदा बचे रहने की ट्रेनिंग अभी से अपने बच्चों को दीजिए।

अकेली नारी तब क्या करे?

अकेली नारी तब क्या करे?
1. एक नारी को तब क्या करना चाहिए जब वह देर रात में किसी उँची इमारत की लिफ़्ट में किसी अजनबी के साथ स्वयं को अकेला पाए ?
Police का कहना है: जब आप लिफ़्ट में प्रवेश करें और आपको 13 वीं मंज़िल पर जाना हो, तो अपनी मंज़िल तक के सभी बटनों को दबा दें ! कोई भी व्यक्ति उस परिस्थिति में हमला नहीं कर सकता, जब लिफ़्ट प्रत्येक मंजिल पर रुकती हो !
2. जब आप घर में अकेली हों और कोई अजनबी आप पर हमला करे तो क्या करें ? तुरन्त रसोईघर की ओर दौड़ जाएं
Police का कहना है: आप स्वयं ही जानती हैं कि रसोई में पिसी मिर्च या हल्दी कहाँ पर उपलब्ध है ! और कहाँ पर चक्की व प्लेट रखे हैं ! यह सभी आपकी सुरक्षा के औज़ार का कार्य कर सकते हैं ! और भी नहीं तो प्लेट व बर्तनों को ज़ोर- जोर से फैंके भले ही टूटे !और चिल्लाना शुरु कर दो !स्मरण रखें कि शोरगुल ऐसे व्यक्तियों का सबसे बड़ा दुश्मन होता है ! वह अपने आप को पकड़ा जाना कभी भी पसंद नहीं करेगा !
3. रात में ऑटो या टैक्सी से सफ़र करते समय !
Police का कहना है: ऑटो या टैक्सी में बैठते समय उसका नं० नोट करके अपने पारिवारिक सदस्यों या मित्र को मोबाईल पर उस भाषा में विवरण से तुरन्त सूचित करें जिसको कि ड्राइवर जानता हो ! मोबाइल पर यदि कोई बात नहीं हो पा रही हो या उत्तर न भी मिल रहा हो तो भी ऐसा ही प्रदर्शित करें कि आपकी बात हो रही है व गाड़ी का विवरण आपके परिवार/ मित्र को मिल चुका है !  इससे ड्राइवर को आभास होगा कि उसकी गाड़ी का विवरण कोई व्यक्ति जानता है और यदि कोई दुस्साहस किया गया तो वह अविलम्ब पकड़ में आ जाएगा ! इस परिस्थिति में वह आपको सुरक्षित स्थिति में आपके घर पहुँचाएगा ! जिस व्यक्ति से ख़तरा होने की आशंका थी अब वह आपकी सुरक्षा का ध्यान रखेगा !
4. यदि ड्राईवर गाड़ी को उस गली/रास्ते पर मोड़ दे जहाँ जाना न हो और आपको महसूस हो कि आगे ख़तरा हो सकता है - तो क्या करें ?
Police  का कहना है कि आप अपने पर्स के हैंडल या अपने दुपट्टा/ चुनरी का प्रयोग उसकी गर्दन पर लपेट कर अपनी तरफ़ पीछे खींचती हैं तो सैकिण्डो में वह व्यक्ति असहाय व निर्बल हो जाएगा ! यदि आपके पास पर्स या दुपट्टा न भी हो तो भी आप न घबराएं ! आप उसकी क़मीज़ के काल़र को पीछे से पकड़ कर खींचेंगी तो शर्ट का जो बटन लगाया हुआ है वह भी वही काम करेगा और आपको अपने बचाव का मौक़ा मिल जाएगा !
5. यदि रात में कोई आपका पीछा करता है !
Police का कहना है: किसी भी नज़दीकी खुली दुकान या घर में घुस कर उन्हें अपनी परेशानी बताएं ! यदि रात होने के कारण बन्द हों तो नज़दीक में एटीएम हो तो एटीएम बाक्स में घुस जाएं क्योंकि वहाँ पर सीसीटीवी कैमरा लगे होते हैं ! पहचान उजागर होने के भय से किसी की भी आप पर वार करने की हिम्मत नहीं होगी !
आख़िरकार मानसिक रुप से जागरुक होना ही आपका आपके पास रहने वाला सबसे बड़ा हथियार सिद्ध होगा !
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मर्मस्पर्शी सच्ची घटना
बात बहुत पुरानी है। आठ-दस साल पहले की है  ।
मैं अपने एक मित्र का पासपोर्ट बनवाने के लिए दिल्ली के पासपोर्ट ऑफिस गया था।
उन दिनों इंटरनेट पर फार्म भरने की सुविधा नहीं थी। पासपोर्ट दफ्तर में दलालों का बोलबाला था और खुलेआम दलाल पैसे लेकर पासपोर्ट के फार्म बेचने से लेकर उसे भरवाने, जमा करवाने और पासपोर्ट बनवाने का काम करते थे।


मेरे मित्र को किसी कारण से पासपोर्ट की जल्दी थी, लेकिन दलालों के दलदल में फंसना नहीं चाहते थे।
हम पासपोर्ट दफ्तर पहुंच गए, लाइन में लग कर हमने पासपोर्ट का तत्काल फार्म भी ले लिया। पूरा फार्म भर लिया। इस चक्कर में कई घंटे निकल चुके थे, और अब हमें िकसी तरह पासपोर्ट की फीस जमा करानी थी।
हम लाइन में खड़े हुए लेकिन जैसे ही हमारा नंबर आया, बाबू ने खिड़की बंद कर दी और कहा कि समय खत्म हो चुका है अब कल आइएगा।
मैंने उससे मिन्नतें की, उससे कहा कि आज पूरा दिन हमने खर्च किया है और बस अब केवल फीस जमा कराने की बात रह गई है, कृपया फीस ले लीजिए।
बाबू बिगड़ गया। कहने लगा, "आपने पूरा दिन खर्च कर दिया तो उसके लिए वो जिम्मेदार है क्या? अरे सरकार ज्यादा लोगों को बहाल करे। मैं तो सुबह से अपना काम ही कर रहा हूं।"
मैने बहुत अनुरोध किया पर वो नहीं माना। उसने कहा कि बस दो बजे तक का समय होता है, दो बज गए। अब कुछ नहीं हो सकता।
मैं समझ रहा था कि सुबह से दलालों का काम वो कर रहा था, लेकिन जैसे ही बिना दलाल वाला काम आया उसने बहाने शुरू कर दिए हैं। पर हम भी अड़े हुए थे कि बिना अपने पद का इस्तेमाल किए और बिना उपर से पैसे खिलाए इस काम को अंजाम देना है।
मैं ये भी समझ गया था कि अब कल अगर आए तो कल का भी पूरा दिन निकल ही जाएगा, क्योंकि दलाल हर खिड़की को घेर कर खड़े रहते हैं, और आम आदमी वहां तक पहुंचने में बिलबिला उठता है।
खैर, मेरा मित्र बहुत मायूस हुआ और उसने कहा कि चलो अब कल आएंगे।
मैंने उसे रोका। कहा कि रुको एक और कोशिश करता हूं।
बाबू अपना थैला लेकर उठ चुका था। मैंने कुछ कहा नहीं, चुपचाप उसके-पीछे हो लिया। वो उसी दफ्तर में तीसरी या चौथी मंजिल पर बनी एक कैंटीन में गया, वहां उसने अपने थैले से लंच बॉक्स निकाला और धीरे-धीरे अकेला खाने लगा।
मैं उसके सामने की बेंच पर जाकर बैठ गया। उसने मेरी ओर देखा और बुरा सा मुंह बनाया। मैं उसकी ओर देख कर मुस्कराया। उससे मैंने पूछा कि रोज घर से खाना लाते हो?
उसने अनमने से कहा कि हां, रोज घर से लाता हूं।
मैंने कहा कि तुम्हारे पास तो बहुत काम है, रोज बहुत से नए-नए लोगों से मिलते होगे?
वो पता नहीं क्या समझा और कहने लगा कि हां मैं तो एक से एक बड़े अधिकारियों से मिलता हूं।
कई आईएएस, आईपीएस, विधायक और न जाने कौन-कौन रोज यहां आते हैं। मेरी कुर्सी के सामने बड़े-बड़े लोग इंतजार करते हैं।
मैंने बहुत गौर से देखा, ऐसा कहते हुए उसके चेहरे पर अहं का भाव था।
मैं चुपचाप उसे सुनता रहा।
फिर मैंने उससे पूछा कि एक रोटी तुम्हारी प्लेट से मैं भी खा लूं? वो समझ नहीं पाया कि मैं क्या कह रहा हूं। उसने बस हां में सिर हिला दिया।
मैंने एक रोटी उसकी प्लेट से उठा ली, और सब्जी के साथ खाने लगा।
वो चुपचाप मुझे देखता रहा। मैंने उसके खाने की तारीफ की, और कहा कि तुम्हारी पत्नी बहुत ही स्वादिष्ट खाना पकाती है।
वो चुप रहा।
मैंने फिर उसे कुरेदा। तुम बहुत महत्वपूर्ण सीट पर बैठे हो। बड़े-बड़े लोग तुम्हारे पास आते हैं। तो क्या तुम अपनी कुर्सी की इज्जत करते हो?
अब वो चौंका। उसने मेरी ओर देख कर पूछा कि इज्जत? मतलब?
मैंने कहा कि तुम बहुत भाग्यशाली हो, तुम्हें इतनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिली है, तुम न जाने कितने बड़े-बड़े अफसरों से डील करते हो, लेकिन तुम अपने पद की इज्जत नहीं करते।
उसने मुझसे पूछा कि ऐसा कैसे कहा आपने? मैंने कहा कि जो काम दिया गया है उसकी इज्जत करते तो तुम इस तरह रुखे व्यवहार वाले नहीं होते।
देखो तुम्हारा कोई दोस्त भी नहीं है। तुम दफ्तर की कैंटीन में अकेले खाना खाते हो, अपनी कुर्सी पर भी मायूस होकर बैठे रहते हो, लोगों का होता हुआ काम पूरा करने की जगह अटकाने की कोशिश करते हो।
मान लो कोई एकदम दो बजे ही तुम्हारे काउंटर पर पहुंचा तो तुमने इस बात का लिहाज तक नहीं किया कि वो सुबह से लाइऩ में खड़ा रहा होगा,
और तुमने फटाक से खिड़की बंद कर दी। जब मैंने तुमसे अनुरोध किया तो तुमने कहा कि सरकार से कहो कि ज्यादा लोगों को बहाल करे।
मान लो मैं सरकार से कह कर और लोग बहाल करा लूं, तो तुम्हारी अहमियत घट नहीं जाएगी? हो सकता है तुमसे ये काम ही ले लिया जाए। फिर तुम कैसे आईएएस, आईपीए और विधायकों से मिलोगे?
भगवान ने तुम्हें मौका दिया है रिश्ते बनाने के लिए। लेकिन अपना दुर्भाग्य देखो, तुम इसका लाभ उठाने की जगह रिश्ते बिगाड़ रहे हो।
मेरा क्या है, कल भी आ जाउंगा, परसों भी आ जाउंगा। ऐसा तो है नहीं कि आज नहीं काम हुआ तो कभी नहीं होगा। तुम नहीं करोगे कोई और बाबू कल करेगा।
पर तुम्हारे पास तो मौका था किसी को अपना अहसानमंद बनाने का। तुम उससे चूक गए।
वो खाना छोड़ कर मेरी बातें सुनने लगा था।
मैंने कहा कि पैसे तो बहुत कमा लोगे, लेकिन रिश्ते नहीं कमाए तो सब बेकार है। क्या करोगे पैसों का? अपना व्यवहार ठीक नहीं रखोगे तो तुम्हारे घर वाले भी तुमसे दुखी रहेंगे। यार दोस्त तो नहीं हैं,
ये तो मैं देख ही चुका हूं। मुझे देखो, अपने दफ्तर में कभी अकेला खाना नहीं खाता।
यहां भी भूख लगी तो तुम्हारे साथ खाना खाने आ गया। अरे अकेला खाना भी कोई ज़िंदगी है?
मेरी बात सुन कर वो रुंआसा हो गया। उसने कहा कि आपने बात सही कही है साहब। मैं अकेला हूं। पत्नी झगड़ा कर मायके चली गई है। बच्चे भी मुझे पसंद नहीं करते। मां है, वो भी कुछ ज्यादा बात नहीं करती। सुबह चार-पांच रोटी बना कर दे देती है, और मैं अकेले खाना खाता हूं। रात में घर जाने का भी मन नहीं करता। समझ में नहींं आता कि गड़बड़ी कहां है?
मैंने हौले से कहा कि खुद को लोगों से जोड़ो। किसी की मदद कर सकते तो तो करो। देखो मैं यहां अपने दोस्त के पासपोर्ट के लिए आया हूं। मेरे पास तो पासपोर्ट है।
मैंने दोस्त की खातिर तुम्हारी मिन्नतें कीं। नि:स्वार्थ भाव से। इसलिए मेरे पास दोस्त हैं, तुम्हारे पास नहीं हैं।
वो उठा और उसने मुझसे कहा कि आप मेरी खिड़की पर पहुंचो। मैं आज ही फार्म जमा करुंगा।
मैं नीचे गया, उसने फार्म जमा कर लिया, फीस ले ली। और हफ्ते भर में पासपोर्ट बन गया।
बाबू ने मुझसे मेरा नंबर मांगा, मैंने अपना मोबाइल नंबर उसे दे दिया और चला आया।
कल दिवाली पर मेरे पास बहुत से फोन आए। मैंने करीब-करीब सारे नंबर उठाए। सबको हैप्पी दिवाली बोला।
उसी में एक नंबर से फोन आया, "रविंद्र कुमार चौधरी बोल रहा हूं साहब।"
मैं एकदम नहीं पहचान सका। उसने कहा कि कई साल पहले आप हमारे पास अपने किसी दोस्त के पासपोर्ट के लिए आए थे, और आपने मेरे साथ रोटी भी खाई थी।
आपने कहा था कि पैसे की जगह रिश्ते बनाओ।
मुझे एकदम याद आ गया। मैंने कहा हां जी चौधरी साहब कैसे हैं?
उसने खुश होकर कहा, "साहब आप उस दिन चले गए, फिर मैं बहुत सोचता रहा। मुझे लगा कि पैसे तो सचमुच बहुत लोग दे जाते हैं, लेकिन साथ खाना खाने वाला कोई नहीं मिलता। सब अपने में व्यस्त हैं। मैं
साहब अगले ही दिन पत्नी के मायके गया, बहुत मिन्नतें कर उसे घर लाया। वो मान ही नहीं रही थी।
वो खाना खाने बैठी तो मैंने उसकी प्लेट से एक रोटी उठा ली,
कहा कि साथ खिलाओगी? वो हैरान थी।
रोने लगी। मेरे साथ चली आई। बच्चे भी साथ चले आए।
साहब अब मैं पैसे नहीं कमाता। रिश्ते कमाता हूं। जो आता है उसका काम कर देता हूं।
साहब आज आपको हैप्पी दिवाली बोलने के लिए फोन किया है।
अगल महीने बिटिया की शादी है। आपको आना है।
अपना पता भेज दीजिएगा। मैं और मेरी पत्नी आपके पास आएंगे।
मेरी पत्नी ने मुझसे पूछा था कि ये पासपोर्ट दफ्तर में रिश्ते कमाना कहां से सीखे?
तो मैंने पूरी कहानी बताई थी। आप किसी से नहीं मिले लेकिन मेरे घर में आपने रिश्ता जोड़ लिया है।
सब आपको जानते है बहुत दिनों से फोन करने की सोचता था, लेकिन हिम्मत नहीं होती थी।
आज दिवाली का मौका निकाल कर कर रहा हूं। शादी में आपको आना है। बिटिया को आशीर्वाद देने। रिश्ता जोड़ा है आपने। मुझे यकीन है आप आएंगे।
वो बोलता जा रहा था, मैं सुनता जा रहा था। सोचा नहीं था कि सचमुच उसकी ज़िंदगी में भी पैसों पर रिश्ता भारी पड़ेगा।
लेकिन मेरा कहा सच साबित हुआ। आदमी भावनाओं से संचालित होता है। कारणों से नहीं। कारण से तो मशीनें चला करती हैं।
फंडा ये है कि
""" जिंदगी में किसी का साथ ही काफी है,, कंधे पर रखा हुआ हाथ ही काफी है,,,,
दूर हो या पास क्या फर्क पड़ता है,, क्योंकि अनमोल रिश्तों का तो बस एहसास ही काफी है * । ।
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मालिक महत्वपूर्ण है, उसकी बनाई चीजें नहीं…


एक राजा ने यह ऐलान करवा दिया कि कल सुबह जब मेरे महल का मुख्य दरवाज़ा खोला जाएगा तब जिस शख़्स ने भी महल में जिस चीज़ को हाथ लगा दिया वह चीज़ उसकी हो जाएगी।
इस ऐलान को सुनकर सब लोग आपस में बातचीत करने लगे कि मैं तो सबसे क़िमती चीज़ को हाथ लगाऊंगा।
कुछ लोग कहने लगे मैं तो सोने को हाथ लगाऊंगा, कुछ लोग चादी को तो कुछ लोग कीमती जेवरात को, कुछ लोग घोड़ों को तो कुछ लोग हाथी को, कुछ लोग दुधारू गाय को हाथ लगाने की बात कर रहे थे।
जब सुबह महल का मुख्य दरवाजा खुला और सब लोग अपनी अपनी मनपसंद चीज़ों के लिए दौड़ने लगे।
सबको इस बात की जल्दी थी कि पहले मैं अपनी मनपसंद चीज़ों को हाथ लगा दूँ ताकि वह चीज़ हमेशा के लिए मेरी हो जाए।
राजा अपनी जगह पर बैठा सबको देख रहा था और अपने आस-पास हो रही भाग दौड़ को देखकर मुस्कुरा रहा था।
उसी समय उस भीड़ में से एक शख्स राजा की तरफ बढ़ने लगा और धीरे-धीरे चलता हुआ राजा के पास पहुँच कर उसने राजा को छु लिया।
राजा को हाथ लगाते ही राजा उसका हो गया और राजा की हर चीज भी उसकी हो गयी।
जिस तरह राजा ने उन लोगों को मौका दिया और उन लोगों ने गलतियां की।
ठीक इसी तरह सारी दुनिया का मालिक भी हम सबको हर रोज़ मौक़ा देता है, लेकिन अफ़सोस हम लोग भी हर रोज़ गलतियां करते है।
हम  मालिक को पाने के बजाए मालिक की बनाई हुई दुनियां की चीजों की कामना करते है। लेकिन कभी भी हम लोग इस बात पर गौर नहीं करते कि क्यों न दुनिया के बनाने वाले मालिक को पा लिया जाए।
अगर मालिक हमारा हो गया तो उसकी बनाई हुई हर चीज भी हमारी हो जाएगी ।
             
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Positive Attitude​
मेरी अपनी हैं मंजिलें, मेरी अपनी दौड़..!!!​


एक घर के पास काफी दिन से एक बड़ी इमारत का काम चल रहा था।
वहां रोज मजदूरों के छोटे-छोटे बच्चे एक दूसरे की शर्ट पकडकर रेल-रेल का खेल खेलते थे।
​रोज कोई बच्चा इंजिन बनता और बाकी बच्चे डिब्बे बनते थे...​
​इंजिन और डिब्बे वाले बच्चे रोज बदल  जाते,​
पर...
केवल चङ्ङी पहना एक छोटा बच्चा हाथ में रखा कपड़ा घुमाते हुए रोज गार्ड बनता था।
​एक दिन मैंने देखा कि​ ...
उन बच्चों को खेलते हुए रोज़ देखने वाले एक व्यक्ति ने कौतुहल से गार्ड बनने वाले बच्चे को पास बुलाकर पूछा....
​"बच्चे, तुम रोज़ गार्ड बनते हो। तुम्हें कभी इंजिन, कभी डिब्बा बनने की इच्छा नहीं होती?"​
इस पर वो बच्चा बोला...
​"बाबूजी, मेरे पास पहनने के लिए कोई शर्ट नहीं है। तो मेरे पीछे वाले बच्चे मुझे कैसे पकड़ेंगे... और मेरे पीछे कौन खड़ा रहेगा....?​
​इसीलिए मैं रोज गार्ड बनकर ही खेल में हिस्सा लेता हूँ।​
​"ये बोलते समय मुझे उसकी आँखों में पानी दिखाई दिया।​
​आज वो बच्चा मुझे जीवन का एक बड़ा पाठ पढ़ा गया...​
​अपना जीवन कभी भी परिपूर्ण नहीं होता। उसमें कोई न कोई कमी जरुर रहेगी....​
वो बच्चा माँ-बाप से ग़ुस्सा होकर रोते हुए बैठ सकता था। परन्तु ऐसा न करते हुए उसने परिस्थितियों का समाधान ढूंढा।
​हम कितना रोते हैं?​
कभी अपने ​साँवले रंग​ के लिए, कभी ​छोटे क़द​ के लिए,
कभी पड़ौसी की ​बडी कार,​
कभी पड़ोसन के ​गले का हार,​ कभी अपने ​कम मार्क्स,​
कभी ​अंग्रेज़ी,​
कभी ​पर्सनालिटी,​
कभी ​नौकरी की मार​ तो
कभी ​धंधे में मार​...
हमें इससे बाहर आना पड़ता है....
​ये जीवन है... इसे ऐसे ही जीना पड़ता है।​
​चील की ऊँची उड़ान देखकर चिड़िया कभी डिप्रेशन में नहीं आती,​
​वो अपने आस्तित्व में मस्त रहती है,​
​मगर इंसान, इंसान की ऊँची उड़ान देखकर बहुत जल्दी चिंता में आ जाता है।​
​तुलना से बचें और खुश रहें ।​
​ना किसी से ईर्ष्या, ना किसी से कोई होड़..!!!​
​मेरी अपनी हैं मंजिलें, मेरी अपनी दौड़..!!!​
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बढ़ती उम्र पर जॉर्ज कार्लिन की सलाह
कैसे बने रहें - चिरयुवा


1. फालतू की संख्याओं को दूर फेंक आइए। जैसे- उम्र, वजन, और लंबाई। इसकी चिंता डॉक्टर को करने दीजिए। इस बात के लिए ही तो आप उन्हें पैसा देते हैं।
2. केवल हँसमुख लोगों से दोस्ती रखिए। खड़ूस और  चिड़चिड़े लोग तो आपको नीचे गिरा देंगे।
3. हमेशा कुछ सीखते रहिए। इनके बारे में कुछ और जानने की कोशिश करिए - कम्प्यूटर, शिल्प, बागवानी, आदि कुछ भी। चाहे रेडियो ही। दिमाग को निष्क्रिय न रहने दें। खाली दिमाग शैतान का घर होता है और उस शैतान के परिवार का नाम है - अल्जाइमर मनोरोग।
4. सरल व साधारण चीजों का आनंद लीजिए।
5. खूब हँसा कीजिए - देर तक और ऊँची आवाज़ में।
6. आँसू तो आते ही हैं। उन्हें आने दीजिए, रो लीजिए, दुःख भी महसूस कर लीजिए और फिर आगे बढ़ जाइए। केवल एक व्यक्ति है जो पूरी जिंदगी हमारे साथ रहता है - वो हैं हम खुद। इसलिए जबतक जीवन है तबतक 'जिन्दा' रहिए।
7. अपने इर्द-गिर्द वो सब रखिए जो आपको प्यारा लगता हो - चाहे आपका परिवार, पालतू जानवर, स्मृतिचिह्न-उपहार, संगीत, पौधे, कोई शौक या कुछ भी। आपका घर ही आपका आश्रय है।
8. अपनी सेहत को संजोइए। यदि यह ठीक है तो बचाकर रखिए, अस्थिर है तो सुधार करिए, और यदि असाध्य है तो कोई मदद लीजिए।
9. अपराध-बोध की ओर मत जाइए। जाना ही है तो किसी मॉल में घूम लीजिए, पड़ोसी राज्यों की सैर कर लीजिए या विदेश घूम आइए। लेकिन वहाँ कतई नहीं, जहाँ खुद के बारे में खराब लगने लगे।
10. जिन्हें आप प्यार करते हैं उनसे हर मौके पर बताइए कि आप उन्हें चाहते हैं; और हमेशा याद रखिए  कि जीवन की माप उन साँसों की संख्या से नहीं होती जो हम लेते और छोड़ते हैं, बल्कि उन लम्हों से होती है जो हमारी सांस लेकर चले जाते हैं...
जीवन की यात्रा का अर्थ यह नहीं कि अच्छे से बचाकर रखा हुआ आपका शरीर सुरक्षित तरीके से श्मशान या कब्रगाह तक पहुँच जाएँ। बल्कि आड़े-तिरछे फिसलते हुए, पूरी तरह से इस्तेमाल होकर, सधकर, चूर-चूर होकर यह चिल्लाते हुए पहुँचो - वाह यार, क्या यात्रा थी!