"समोसा" सुनते ही मुंह में पानी आ जाना स्वाभाविक है। यह तिकोना, मोटा और भूरा सा व्यंजन अपनी कद काठी के कारण अपनी बिरादरी में अलग ही नजर आता है। अपने रूप रंग में भले ही यह उन्नीस बैठता हो लेकिन स्वाद में पूरा बीस है और शायद यही कारण है कि तेल की कढ़ाई में घंटों उछलकूद करने वाला गरमागरम समोसा हर उम्र के लोगों की पहली पसंद है। शायद ही कोई अभागा हो, जिसे समोसा खाने का मौका न मिला हो क्योंकि यह तो हर छोटी-बड़ी पार्टी की शान है....लेकिन क्या आपको पता है कि आपके जन्मदिन की तरह आपके प्रिय समोसे का भी एक दिन है जिसे विश्व समोसा दिवस (World Samosa Day) जाता है।...शायद कम ही लोगों को यह पता होगा कि दुनिया भर में 5 सितम्बर को विश्व समोसा दिवस मनाया जाता है।
हमारे-आपके प्रिय समोसे का बस यह दुर्भाग्य है कि उसका दिन ‘शिक्षक दिवस’ के साथ पड़ता है और गुरुओं को समर्पित इस दिन की गरिमा-भव्यता और दिव्यता में समोसा समर्पित शिष्य की भाँति अपने दिन को कुर्बान कर देता है।...इसलिए भले ही वह शिक्षक दिवस की हर दावत में डायनिंग टेबल पर पूरी शान और गर्व से इठलाता हो लेकिन अपना दिन खुलकर नहीं माना पाता। शिक्षक दिवस और समोसे के बीच एक खास सम्बन्ध यह भी है हर व्यक्ति का और प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी का ‘समोसा गुरु’ जरुर होता है, जो यह बताता है कि ‘गुरु फलाने शहर में फलाने के समोसे बहुत गज़ब हैं’...और हर शहर-हर गली नुक्कड़ पर स्वादिष्ट समोसे का यह गुरुपन पलता-बढ़ता रहता है।
समोसा दिवस पर अपनी जानकारी बढ़ाने के लिए जब हमने इस लज़ीज़-मोटे समोसे का इतिहास खंगालना शुरू किया तो गूगल गुरु ने बताया कि समोसा असल में फारसी शब्द 'सम्मोकसा' से बना है। माना जाता है कि समोसे की उत्पत्ति 10वीं शताब्दी से पहले मध्य पूर्व में कहीं हुई थी और यह 13वीं से 14वीं शताब्दी के बीच भारत में आया। ऐसा माना जाता है कि समोसा मध्य-पूर्व के व्यापारियों के साथ भारत आया और आते ही पूरा भारतीय हो गया। तभी तो आजकल हर शहर की गली,मोहल्ले और नुक्कड पर समोसा आसानी से मिल जाता है। वैसे इन दिनों एक थ्योरी यह भी चल रही है कि अरब देशों में गेहूँ तो होता नहीं है तो उनको समोसा बनाने के लिए मैदा कहाँ से मिलेगा इसलिए समोसा पूरी तरह भारतीय पैदाइश है। बहरहाल अब तो समय के साथ समोसा रंग-रूप,आकार-प्रकार,स्वाद और गुण भी बदलता जा रहा है। शहरों में नमकीन की दुकानों पर मिलने वाले छोटे सूखे समोसों से लेकर दिल्ली के पास नोएडा में मिलने वाले गरमा-गरम छोटे समोसों और दिल्ली के ही नूडल्स वाले समोसे तक इसने लम्बा सफ़र तय किया है। अब तो इसने धीरे से मिठाइयों के बीच भी घुसपैठ कर ली है और चाकलेट और खोया भरे मीठे समोसे के रूप में भी अपने स्वाद से आमोखास की जुबान पर चढ़ने लगा है। पूर्वी दिल्ली में तो करीब 25 प्रकार के समोसे मिलते हैं। यहां आलू के साथ पास्ता, नूडल्स, पिज्जा और चॉकलेट समोसे जैसे कई प्रकार के समोसे लोगों को खूब भा रहे हैं । समोसे की लोकप्रियता का ही प्रमाण है कि दशक भर पहले बिहार के साथ साथ हिंदी पट्टी में यह नारा खूब लोकप्रिय हुआ था... ‘ जब तक रहेगा समोसे में आलू-तब तक रहेगा बिहार में लालू’...और इसीतरह ‘मिस्टर और मिसेज खिलाड़ी’ फिल्म के एक गीत ‘जब तक रहेगा समोसे में आलू, तब तक रहूँगा तेरा मैं शालू..’ ने भी समोसे की लोकप्रियता की आड़ में खूब कमाई की थी।....खैर इस फिल्म या लालूप्रसाद की लोकप्रियता तो समय के साथ कम होती गयी लेकिन हमारा समोसा आज भी पूरी आन-बान-शान के साथ स्वाद के पहले पायदान पर कायम है....तो चलिए हो जाए एक-एक समोसा.... ।।
संजीव शर्मा
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