रविवार, 18 सितंबर 2022

ऐ फूल

ऐ फूल! अहाऽ हाऽ हा ऽ हा..., तू कौन है रे? तू फूल  है या नूर या ज्योति है आखिर तू है कौन जो इतना आकर्षक है। कहीं तू मोहिनी बनकर तो नहीं खिला है किसी को लुभाने और लूटने के लिए? अद्भुत है तू, कितना सुंदर है, किसकी रचना है, किसने रचा है तुम्हें? कहीं ऐसा तो नही उस रचनाकार ने तुमको स्वयं अपने हाथों से गढ़ा है? नजर हट भी नहीं रही है तुमसे, और यह क्या तुम भी तो टकटकी लगाए देख रही है मुझे।  उस रचनाकार ने सुंदरता के साथ-साथ तुम्हें ऐसी आभा दी है, सौरभ दिया है जो कोई भी अनजाने में देख ले तो चुम्बक की तरह खींचा चला जाएगा। हर कोई तुम्हारी तरफ फिदा होकर तुम पर मर मिटने के लिए हांफता हुआ चला आएगा। 

कवियत्री महादेवी वर्मा भी तो न जाने क्यों फिदा हो गई थी तुम पर। कौन कवि, साहित्यकार, कलाकार, पत्रकार, युवक-युवतियां राजे-महाराजे, नवाब, शहंशाह, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री ऐसे हैं तुम्हारी रंग, रूप, आभा और सौरभ से  सम्मोहित न हो। किसी के गले का हार बनती हो, देवी-देवाताओं पर श्रृंगारी जाती हो। कौन ऐसी जगह है जहां तुम्हारी दस्तक नहीं है। लगता है जैसे राजकुमारी हो सबकी लाडली हो। तभी न सबकी चाहत बनी हुई हो। कोई भूलकर भी तुम्हें हाथ लगाने की हिम्मत नहीं कर सकता। 

जब सुबह-सुबह बाग-बगीचों में, बड़े-बड़े शहरों में, राजधानियों के गार्डन में खिलती हो तब ऐसा लगता है जैसे सुहागरात के दिन नवविवाहिता दुल्हन अपने प्रियतम को सब कुछ लुटाने के लिए सज-संवरकर बैठी रहती है, प्रतीक्षारत रहती है। सचमुच कौन नहीं मर जाए, इस सुंदरता पर, ऐ खुदा! हरिद्वार, दिल्ली के मुगल गार्डन, माउंट आबू स्थित मधुबन के गार्डनों में नाना प्रकार के रंग-बिरंगे गुलाब के फूल सहित और भी कई प्रकार के फूल देखे। देखने में अतीव सुंदर, मनमोहक और चित्ताकर्षक। ऐसे रूपों और खुशबुओं से कौन भंवरा ऐसा है जिसका मन बावरा न हो जाए और टूट पड़ता है उसके रूपों और सौरभों का पान करने। 

आज भी दुनिया कायल है, पागल और दीवाना है रूपों का। लेकिन ये फूल देखने की वस्तु है, जीभर कर देखिये, किसी को कोई मनाही नहीं, बेहतर होगा उसी की तरह उसके गुणों को धारण कर सुंदर और गुणवान बना जाए। कहा भी जाता है जो जैसे देखता है, सोचता है, मनन और चिंतन करता है, वह वैसा ही बन जाता है। सकारात्मक गुणों व सोच को ग्रहण करने वाले निश्चय ही फूल की तरह बन जाते हैं। 

फूलों को तोड़े नहीं, फेंके नहीं, यह उनकी बेइज्जती होगी। हंसते, खाते, खेलते किसी की जिंदगी को बर्बाद नहीं करना चाहिए। लेकिन आज शैतानों की कमी नहीं है। परमात्मा ने कितना सुंदर संसार रचा, पुष्प और अशोक वाटिका की तरह, आखिर किसके लिए? और आज इंसान क्या कर रहा है। जश्न-ए-आतंक मना रहे हैं। युद्ध के उन्माद में मस्त हैं। ऐसे में यह संसार रूपी उपवन बचेगा अथवा नष्ट हो जाएगा। शांतिप्रिय विश्व का हर व्यक्ति आज अशांत है, दुखी है, रो रहा है। एक तरफ वे लोग हैं जिनके पास रहने, खाने-पीने, पहनने आदि के लिए आवश्यक वस्तुएं नहीं है और दूसरी ओर युद्धोन्मादित देश विश्व का सत्यानाश करने पर आमादा है। है कोई ऐसा देवदूत, महान आत्मा जो वहशियानापन हरकत पर उतारू लोगों को रोके, उनको शांति का पैगाम दे। 

फूल की दुर्दशा पर तो एक कवियत्री महादेवी वर्मा भी रो पड़ी थी। संसार के लोगों को चितेरों को, जिस पर कभी वह अपना सर्वस्व लुटाया करती थी, उसी फूल को शैतानों और  बदमाशों ने तोड़कर उसका सब कुछ लुटकर उसे निस्तेज कर दिया है, सड़क पर फेंक दिया है। सबके पैरों की जूतों, चप्पलों की ठोकर खा रही हैं। कौन है आज उसका दुख-दर्द सुनने वाला, शायद कोई नहीं। वह अनाथ बच्चों की तरह असहाय होकर देख रही है, दया की भीख मांग रही है। अचानक मेरी नजर एक दिन उस पर पड़ जाती है उसे हाथों से उठाकर सीने से लगा लेता हूं। उसे सांत्वना दिलाते हुए कहता हूं- न रो गुलाब के ऐ फूल, संसार की यही नियति है। यहां हर कोई हंसते हुए आता है, और रोते हुए इसी ही तरह विदा ले लेता है। यही सच्चाई है, कभी खुशी-कभी गम।

-परमानंद वर्मा

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