एकाकी जीवन गुजार रहे विधुर और विधवाओं की अपनी अजब-गजब समस्याएं होती हैं, दुखड़ा रोते हैं। है कोई समाज अथवा संगठन जो उनकी आंसुओं को पोंछ सके। बंद पड़ी जीवन की घड़ी अथवा धड़कनों को पुन: रिचार्ज कर सके, रुढिय़ों, परंपराओं मे जकड़े समाजों का कभी दिल नहीं पसीजता कि जिनके जीवन में नि:सारिता आ गई है, अंधेरे में भटक रहे हैं, उसे उपवन बना दिया जाए? एक ऐसा ही सार्थक प्रयास राजधानी के एक संगठन रायपुर ब्राइट फाउन्डेशन ने किया है। इसी पर आधारित है छत्तीसगढ़ी आलेख- बुढ़वा मन के बिहाव करे के साध.... ।
बुढ़त काल मं जेकर गोसइन के इंतकाल हो जथे या फेर जेकर गोसइया चल बसथे, विधवा हो जथे या आधा उमर के पहिली रांडी अनाथिन हो जथे या गोसइया विधुर हो जथे तेकर मन के जिनगी अधर मं लटक जथे। बिन जोड़ी-जांवर के अइसन मन के जीव मुंहाचाली बिगन छटपटावत रहिथे। काकर संग अपन दुख-सुख के गोठ बात करिन, बात के छोड़े अउ दूसर इच्छा होगे ओकर भरपाई कइसे करे जाय। शरीर घला कुछु मांगथे, उहू ला कोनो जिनिस के भूख लगथे जइसे पेट हा खाय बर अनाज-पानी मांगथे। ये अलकरहा समस्या हे। घर-परिवार सबो हे फेर ये भूख अइसे हे ये सबो के रहिथे फेर ओ भूख ला कोनो नइ मेटा सकय।
अइसन बहुत दाई-महतारी, बेटी-बहिनी, काकी, मामी, मौसी, भउजी, फूफू हे जउन आधा उमर में जुच्छा हाथ होगे हे विधवा होगे हे, अइसने पुरुष मन घला विधुर होगे हे। घर मं कांही जिनिस के कमी नइहे, कमी हे तो सिरिफ जोड़ी जांवर के? कहां जाय, कोन ल बतावय अपन दुख अउ तकलीफ? कहूं इच्छा पूरा करे खातिर ककरो संग अवैध संबंध बनावत हे, गांव-शहर मं अइसन कारोबार धड़ल्ले से चलत हे, फेर अवैध हा तो अवैध होथे। कहूं ऊंच-नीच होगे, पकड़ागे, पेट भरागे तब बदनामी के सिवाय कांही हासिल नइ होवय।
कइसे करबे हरहा गरुवा हरियर चारा खाये बिगन मन माडय़ नहीं। सरी उमर भर तो टकराही परे रिहिसे तेकर सेती आदत जाय रहिथे। उदुक ले खेत के चारा लुआ जथे तहां ले धपोर देथे गाड़ी हा। मन छुनहुन - छुनहुन लागत रहिथे। कतको मनाबे, लगाम ल तीरके रखबे फेर हरियर-हरियर चारा देख के येहर उही कोती रेंगे ले धर लेथे। ओ चारा ल लाइन मं लाय खातरि गजब उदीम करे ले परथे। फेर अइसन कतेक दिन ले चलही। पर के खेती पर के चारा, परे होथे, अपन हो नइ सकय। कतको झन किराया मं घला काम चला लेथे। गांव अउ शहर मं सबो जघा अइसन जुगाड़ हो जथे। फेर किराया के माल किराया के होथे, ओकर ऊपर अपन हक जता नइ सकस।
समाज के जबर समस्या हे। सब घर अइसन बहू - बेटी, दाई-बहिनी, काकी, मामी, फूफू कोनो-कोनो कारन से बेवा होके बइठे हे। ये माई लोगिन मन के जउन समस्या हे तउन तो हइहे, ओकर ले भारी समस्या अउ संकट ओकर परिवार के मुखिया मन के हे जेकर घर मं अइसन जवान या अधेड़ बहिनी, बेटी मन के हे। कइसे ओकर मन के जिनगी के नइया पार होही, उमर पहाही? ओकर मन के दुख अउ हालत ल देख-देख के ओमन राहेर अउ संडइया काड़ी असन सुखावत जात हे। कोनो-कोनो समाज मं ये समस्या के हल निकाल ले हे, चूरी पहिना के बहिनी बेटी के जिनगी ला संवार देथे। पटरी मं आ जथे ओकर मन के गाड़ी, बने चले ले धर लेथे। फेर कतको अइसे समाज हे जेकर मन के नियम, कानून कठोर हे। बेटी-बहू घर मं बइठके सरी उमर पहा लिही फेर ओकर मन के जिनगी संवारे के कोनो रस्दा नइ चतवार सकिन ओमन। ओकर मन बर जिनगी पहाड़ असन हो जथे।
सुरता आवत हे मोला, गांव के तीन झन अधेड़ जउन पचास, साठ अउ अस्सी के उमर ल पार कर डरे रिहिन, तेन मन विधवा विवाह करके गोसइन लाइन। ओकर मन के अपन-अपन घरेलू समस्या रिहिन, तब कतको के शरीर के भूख मेटाय बर जुगत करिन। शर्त, समझौता हे तिहां सब जुगाड़ हो जथे। लेन-देन, लिखा-पढ़ी करके ये बेवस्था करे जाथे। अस्सी साल के बुढ़वा, जेकर बेटी, नाती, नतनीन सबो रिहिसे तेला भला का के जरूरत रिहिस होही, फेर का करबे हरहा मन मानय नहीं। पांच एकड़ जमीन बेवा छोकरी के नांव मं रजिस्ट्री करा के गोसाइन बना के ले आनिस।
ये विकट समस्या हे, समाज ला एकर मन के समस्या ला समझना चाही। मरद मन तो बोल डरथे फेर बेटी, बहिनी अउ बहू मन कइसे बोल पाही बपरी गरीबीन मन। लोक लाज ओमन ल धर जाथे. हल निकाले बर चाही अउ जरूर ये दिशा मं कदम उठाना चाही। रस्दा नइ निकाले मं कदम भटक जथे, भरे जवानी के बोझ सहे नइ जा सकय। अइसन दरद ल उही जान सकत हे जेन गुजरत हे। अभी हाले के बात हे- एक झन संगवारी पूछथे- कइसे जी फलाना, गोसइन गुजरे के बाद तोला अब कइसे लागत हे, कमी खलत होही ना? मुड़ मं पथरा कचारे असन लगिस ओकर बात हा। आगी मं नून झन छिड़क भाई। तेवर ला देख के चुप होगे।
भला होय, हमर राजधानी के जागरुक सियान मन ला, जउन अइसन मन के बज्र समस्या ला हल करे खातिर ठोसलगहा कदम उठाय हे। रायपुर बॉइट फाउन्डेशन नांव के एक संस्था हे जेकर पदाधिकारी मन जीवन के आखिरी पड़ाव मं एकाकी जीवन गुजारत बुजुर्ग मनखे बर जीवन साथी के जुगाड़ करे खातिर परिचय सम्मेलन करिन। तेमा तीरपन कोरी ले ऊपर महिला अउ पुरुष मन भाग लिन। एमा छै कोरी मन फिर से बिहाव करे के बातचीत ल आघू बढ़इन । ये सम्मेलन मं दू कोरी ले कम उमर के महिला पुरुष के संख्या दस कोरी रिहिसे उहें तीन कोरी ले अधिक उमर के संख्या पांच कोरी रिहिस। महासमुंद, रायपुर, कांकेर, धमतरी ले घला अइसन महिला-पुरुष मनखे सम्मेलन मं भाग लिन। ये विधवा मन घला खुलके भाग लिन अउ अपन समस्या गिनाइन अउ एकाकी जीवन के दुखड़ा सुनइन।
परमानंद वर्मा
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