सुनो भाई उधो .....
छोटे बच्चे जब भूख से छटपटाते हैं, तिलमिलाते हैं और रोते-गाते हैं तब मां-बहनें दौड़कर आती हैं उनके पास। पूछती है -भूख लगी है ? तब दूध पिलाती हैं, खाना खिलाती हैं तब बच्चे शांत हो जाते हैं, मंद-मंद मुस्कुराने लगते हैं धीरे से झपकी आने के बाद सो भी जाते हैं। लेकिन इन माताओं की कौन-सी ऐसी भूख है जो उनके सिर चढ़कर सताने व परेशान करने लगी है, शैतानों की तरह वे भरा-पूरा परिवार छोड़कर 'पर पुरुष प्यारा लगे के तर्ज पर पंछियों की भांति उड़-उड़कर उनके घोंसले में जाकर चोंच लड़ाने लगी है। उनके बांहों में समा जाने के लिए बेताब हो रही हैं। इधर पति महोदय गण 'दो हंसों का जोड़ा बिछुड़ गयो रे, गजब भयो राम जुलूम भयो रे गाना गा-गाकर पत्नियों की याद में आंसू बहा रहे हैं और 'सारी-सारी रातें तेरी याद सताए गाना गुन-गुनाकर करवटें बदल रहे हैं। अब इन पंछियों का भी भरोसा नहीं, मर्दों का विश्वास उठने लगा है। पंछियां भी गुनगुनाने लगी है- 'चल उड़ जा रहे पंछी के अब ये देश हुआ बेगाना।
अभी-अभी टेलीविजन अउ इंटरनेट मं खबर आवत हे के जब ले सावन लगे हे पेड़ मं राहय तउन पंछी मन भर-भरले उड़ा-उड़ा के ये देश ले वो देश, ये शहर ले ओ शहर, ये गांव ले ओ गांव जा-जा के खुसरत (घुसना) जात हे। पता चले हे के ओ पंछी मन ला एक ठन कोरोना जइसे दूसर किसम के भयंकर रोग लग गे हे। ओ मन छटपटावत हे, जी-मिचलावत हे। ओ पंछी कोनो दूसर नहीं हमरे बहिनी-बेटी, बहू, गोसइन अउ दाई-महतारी हे। सब अपन घर गोसइयां, बेटा-बेटी, दाई-ददा, सास-ससुर ल छोड़-छोड़ के भागत हें अउ दूसर मरद संग रंगरेली मनावत हे। सबके नाक-कान काटत हें अउ खुदे नकटी बनत जात हे।
पांच लइका के महतारी सेठइन ओं दिन सोना, चांदी, रुपया-पइसा ल धरके एक झन टरक वाले संग बेंगलूर भाग गे। मुंबई के डॉक्टरीन कुली संग बिहाव कर लिस। दिल्ली, कलकत्ता, लखनऊ, पटना, भोपाल अउ रायपुर में कोनो जगह नइ बांचे हे जिहां दस-दस, बीस-बीस साल पति संग जीवन गुजारे बेटी, बहू, बहिनी, अउ गोसइन मन ला का अइसे चांटी चाबत हे, कीरा काटत हे के उढ़रिया भागे असन पर मरद के बांह पकड़त हे। जब तरिया के पानी मतलाहा (गंदा) हो जथे, तब मछरी मन उफला जथे, उमिहा जथे, जेने-पाय तेने कोतो रेंगे ले धर लेथे उही हाल अब होगे हे एकर मन के।
इही सब बात ल एक दिन समारू अपन कका ल बतावत कहिथे- समय के धार तलवार ले घला जादा घातक होथे कका, एके बार मं सामने वाला के घेंच (गला) भुइयां मं गिरत देरी नइ लगय, पानी नइ मांग सकय, वारा-न्यारा हो जथे।
भगेला पूछथे- सुने तो हौं बेटा फेर अइसन मउका के अभेडा मन नइ परै हौं न तेकर सेती ओकर रस-कस ल नइ पाय हौं।
समारू अपन कका भगेला ला कहिथे- ठउका काहत हस कका, 'अपन मरे बिगन सरग नइ दीखय। जइसे अंधियार मं डोरी ल सांप समझथन फेर ओहर सांप नहीं डोरी होथे, सांप के अभेडा मं कहूं कोनो परही तब ओकर तीर मं कोनो ठहर सकत हे का?
तोर बात ल समझ नइ सकत हौं बेटा, तैं जउन कथा सुनाय ले जाथस तेकर कुछु ओर-छोर ल बताबे के बाते-बात मं बेंझा के रख देबे?
अब तोला का बतावौं भगेला कका, जउन कथा तोला बताये बर जाथौं न, ओहर न शिव पुराण मं हे, न पद्म पुराण मं हे अउ गरुड़ पुराण मं। काग भुसुंडी, भारद्वाज, तुलसीदास, वैशम्पायन मुनि अउ न भगवान किसन घला अरजुन ल नइ सुनाय हे तइसन कथा तोला आज सुनाय ले जाथौं।
भगेला पूछथे- तब कस रे समारू, तैं जउन कथा सुनाय ले जाथस तउन कथा ल कोन पुराण मं पढ़, सुन डरे हस रे?
हांसत समारू ह कहिथे- अभी-अभी ताजा अउ नवा पुराण सीता प्रेस जोधपुर ले छप के आय हे। एक लाख प्रति छपे हे। सब शहर मन के बुक स्टाल मं धड़ाधड़ बिकत हे। उदूक ले मोरो हाथ लग गे, एक ले बढ़के एक सुंदर कथा हे। ओला पढ़बे न, तब तहूं ह काकी ल सुनाय बिगन नइ रहि सकबे।
अनेक सुंदर कथा हे ओ पुराण मं? तब भगेला कका पूछथे- तब ओ पुराण के का नांव हे बेटा समारू?
-ओकर नांव 'कलियुग पुराणÓ हे कका। समारू बताथे- काहत तो हौं न जइसे पहिली गुलशन नंदा के उपन्यास छपय तइसे ये 'कलियुग पुराणÓ बताथे, हाथों हाथ बिक गे। ओकर दूसर संस्करण छपे के तइयारी चलत हे।
भगेला पूछथे- तब ये पुराण के कथा मन तो लगथे गजबे के सुंदर होही, तब एहा नोनी, बहू-बेटी अउ गोसइन मन के लइक हे के नहीं?
अरे काला कहिबे कका, उही मन तो जादा खरीदत हें, ओमन जादा कथा परेमी हे न। समारू कहिथे- देखस नहीं का शिव पुराण, भागवत पुराण, गरुड़ पुराण अउ जइसनों पुराण होवय तिहा उही माई लोगिन मन के संख्या जादा रहिथे, रहिथे के नहीं?
भगेला कहिथे- बात तो सोलह आना सही बतावत हस बेटा 'फेर ले ना, ये कलियुग पुराण के एकाद ठन कथा सुना न, घर जाहूं त तोर काकी ल घला सुनाहूं। अउ बनही ते एक ठन 'कलियुग पुराण मोरो बर बिसा के ले आनबे बेटा।
समारू कलियुग पुराण सुनाय के पहिली गुरु वंदना करत ये दे इसलोक के उच्चारण करथे- 'गुरु ब्रम्हा, गुरु बिसनु, गुरु देवो महेश्वरा, गुरु: साक्षात पर ब्रम्ह तस्मै श्री गुरुवे नम: ओकर बाद गनेश जी अउ सरसती देवी के वंदना करत उकरो मन के इसलोक के पाठ घला करथे।
कका पूछथे- वाह बेटा, गजब के गियानी, धियानी लगथस रे, तैं हो न, अपन ददा ऊपर गेहस तइसे लगथे? समारू कहिथे- तुंहरे असन सियानहा मन के आशीर्वाद ल पाय हौं कका।
अब मेंहर जया किशोरी, पंडित प्रदीप मिश्रा अउ बागेश्वर धाम के धीरेन्द्रकृष्ण शास्त्री के स्टाइल में तो नइ सुना सकौं कका, मोला ओ हाथ मटका-मटका के, मुसकुरा-गुरकुरा के नचकाहा, जोकर मन असन पल्लू ल मुंह मं ढाक के हे 'नइ आवय जइसे मुरारी बापू अउ सुधांशु सादा सरबदा कहिथे न तुलसी दास, काग भुसुंडी, भरद्वाज असन उही स्टाइल मं सुनावत हौं, बने धियान देके सुन
एक घौं के बात हे कका, वैशम्पायन मुनि राजा जन्मेजय ल कलियुग पुराण के कथा सुनावत बताय रिहिसे के कलिजुग कइसे, कोन डहर ले अउ काकर ऊपर पहिली आइस हे।
वैशम्पायन मुनि बताइस- राजा सबसे पहिली कलिजुग भारत देश मं तोर ददा (पिता- परीक्षित) के मुड़ी ऊपर आइस, एकरे बाद पूरा संसार मं ओहर पांव पसार डरिस। अब तो ओहर कालिया नाग बनके सब ल डसत हे।
भगेला पूछथे- बेटा समारू, कालिया नाग तो जमुना नदी के रिहिसे, देश अउ संसार मं कइसे ओकर आतंक बगरगे, बने फोर के के बता ना।
सुन कका, अब असली कथा ला, सुन समारू भगेला ल बतावत कहिथे- अरे कका- कलियुग तो अब घर-घर मंं खुसरगे हे, बेटी-बहू, बहिनी- दाई-माई सबके मति ला भरमावत हे, छारियावत हे।
कइसे तोर केहे के का मतलब हे, तैं कहना का चाहत हस? समारू अपन कका भगेला ल धीरज बंधावत कहिथे- सुन, इही कथा ल तो अब शुरूआत करे ले जाथौं।
ओहर बताथे- एला तो तैं जानत हस के नहीं, पहिली के राजा-महाराजा, नवाब, पूंजीपति, मालगुजार मन कइसे दूसर के बहू, बेटी, मन ल भगा के लानय, गोसइन बना लै, रखैल राख ले, एक नहीं दस-दस...।
सही काहत हौं नहीं? भगेला जवाब देवत कहिथे- बात तो तोर सोलह आना सही हे बेटा।
समारू बताथे- अब पासा पलटगे हे, जमाना बदलगे हे अउ तेजी से बदलत जात हे।
एकर तोर करा कोनो परमान हे, के बस हवा मं सांय... सांय... तीर मारत हस? भगेला पूछथे।
समारू कहिथे- 'हाथ कंगन ल आरसी का, एक नई दू ठो परमान देवत हव कका 'अभी ओ दिन पाकिस्तान के सीमा हैदर नांव के एक झन मोटियारी, चार-चार लइका के महतारी तउन ल अपन देश अउ लइका मन ल छोड़ के सात समुंदर पार करके अपन परेमी करा आके बिहाव कर डरिस। मुसलिम औरत हिन्दू बनगे, मांग मं सिंदूर, हाथ मं चूड़ी अउ बने साड़ी, पोलका पहिन के राहत हे। बाद मं मीडिया वाले मन जानिन तब ओकर पीछू परगे हे।
कलियुग पुराण के दूसर अध्याय ले कथा सुनावत हौं, भारत के अंजू नांव के बाई अपन बिहाता ल छोड़के पाकिस्तान जाके नसरूल्लाह संग निकाह कर लिस। अउ सुन कका- ये तोरे शहर के बात सुनावत हौं- एक झन बंगाली बाई हा घला अइसने एक झन बेटा ला छोड़ के दूसर संग रेहे ले चल दीस। ओकर सास-ससुर अब बहुत परेशान हे।
ये तो अड़बड़, गड़बड़ झाला हे बेटा, ए सब कइसे होवत हे। समारू बताथे- ये सब तो कलजुग पुराण मं लिखाय हे कका। ओ दिन एक गांव के बेटी, शादी-शुदा हे, जगदलपुर मं ओकर नौकरी लगे हे, उहां दूसर संग शादी कर लिस। जब ओकर दाई-ददा मन जाके देखिन तब घर मं शराब के बोतल, सिगरेट पीयत देखके सब दंग रहिगे।
अउ सुन कका- जया किशोरी के कथा अउ गुलशन नंदा के उपन्यास घला एकर आगू मं फीका हे। एक गांव के मस्टरीन, बने खाता-पीता घर के बेटी अउ बहू, कोनो चीज-बस, रुपया कौड़ी के कोनो कमी नइहे तेकर मसमोटी ल देख, चार बेटी-बेटा ला छोड़ के आन जात के पियार मं पागल होगे, तलाक ले लिस, अइसने कस दसो ठन मामला रोज सुने मं आवत हे।
समारू बताथे- अइसन हाल अपने गांव, अपने देश भर मं नइ होवत हे पूरा संसार भर के होवत हे लगथे, बहिनी, बेटी, बहू, दाई-माई मन चरस, हेरोइन, धतूरा, नइते भांग खा-पी ले हे तइसे लगथे।
समारू कहिथे- अरे कका, पढ़े-लिखे, नौकरी लगे, लिव इन रिलेशनशिप, टीवी सीरियल, मॉल, होटल, क्लब और फिलिम के कमाल हे। सब पुराण फेल हे ये कलियुग पुराण के आघू मं।
भगेला कहिथे- अंधेर होवत हे बेटा, झन सुना अब अइसन कथा, मोर माथा चकरावत हे।
सुन कका, एक ठन आखिरी कथा सुनके कलिजुग पुराण के पुरनाहुति करत हौं।
तब सुन- एक झन चीनी महिला हे, अपन ब्वायफ्रेंड ऊपर अतेक मोहागे होगे के जउन बैंक मं ओहर काम करत रिहिसे हे तिहां ले पांच करोड़ रुपिया चोरा लिस सिरिफ एकर सेती के ओकर ऊपर काला जादू करके ओला अपन वश में करके रखिहौं। ओ परेमी थोकन नखरा देखावत रिहिसे। तंत्र-मंत्र, गुरु बाबा सब करा ले आन लाइन सेवा लेवत रिहिसे।
कका कहिथे- बस... बंद कर बेटा, ये पुराण ल सुनके तो मैं पागल हौं जाहौं।
समारू कहिथे- तै का पूरा घर परिवार, समाज, देश अउ संसार पागल होवत हे कका, ये महारोग झपागे हे, ये तो कोरोना ले अउ बढ़के बड़े रोग आगे हे। ए रोग ह कइसे ठीक होही तेला सुप्रीम कोर्ट के जज मन जाने, डॉक्टर मन जानय।
आखिर मं टिमोली (मजाक) लगावत समारू कहिथे- सुन कका, तोला ये नकटी-नकटा मन के ऊपर एक ठन गाना सुनावत हौं, मजेदार हे-
मैं बिलासपुरहिन अउ तैं रायगढ़िया।
तोर मोर जोड़ी फभे हे कतेक बढ़िया।।
-परमानंद वर्मा