अमित अरोड़ा
कोलकाता की रॉयटर्स बिल्डिंग पर नजर रखते हुए रेलमंत्री ममता बनर्जी ने इस साल के लिए 57,630 करोड़ रुपये का रेल बजट पेश किया है। इस बजट में उन्होंने कई लोक लुभावन घोषणाएं की हैं। रेलमंत्री ने यात्री किराये में कोई बढ़ोतरी नहीं की, बल्कि ऑनलाइन आरक्षण कराने वालों को अब कम आरक्षण शुल्क चुकाना होगा। रेलमंत्री ने कुल 56 नई एक्सप्रेस रेलगाडि़यां, तीन शताब्दी और नौ दूरंतो शुरू करने की भी घोषणा की। पर इस पूरे बजट में सबसे ज्यादा उपेक्षा जिस बात की हुई, वह है यात्री सुविधा। कुछ लोग यह तर्क दे सकते हैं कि नई रेलगाडि़यों के शुरू होने और पुरानी रेलगाडि़यों को विस्तार देने से यात्री सुविधाओं में इजाफा होगा। उनका यह तर्क एक हद तक सही है और यात्री किराये में कोई बढ़ोतरी नहीं करना महंगाई की मार से जूझ रहे आम आदमी के लिए किसी बड़ी राहत से कम नहीं है, लेकिन यह भी ध्यान रखना चाहिए कि जब कोई रेलवे स्टेशन पर जाता है तो उसे कई तरह की बुनियादी सुविधाओं के अभाव का सामना करना पड़ता है। इन सुविधाओं को दुरुस्त करने के लिए ममता बनर्जी ने कोई ठोस घोषणा नहीं की। हालांकि इसके बावजूद वे इसे आम आदमी का बजट कह रही हैं। एक आम यात्री को रेलवे स्टेशन पर न तो पीने लायक पानी मिलता है और न ही उसे साफ-सुथरे शौचालय मिलते हैं। अगर किसी को रेलवे स्टेशन या रेलगाड़ी में प्यास लग गई तो उसे 10 से 15 रुपये खर्च करके बोतलबंद पानी खरीदना पड़ता है। खुद रेलवे भी रेल नीर के नाम से बोतलबंद पानी बेचकर हर साल करोड़ों रुपये कमा रहा है। रेलवे स्टेशन के शौचालय भी बदहाल हैं। रेलमंत्री ने कई योजनाओं की घोषणा तो कर दी, लेकिन उन्होंने आमदनी को लेकर तस्वीर बहुत साफ नहीं की। बीते वित्त वर्ष के दौरान भारतीय रेल का परिचालन औसत 95.3 फीसदी रहा। इसका मतलब यह हुआ कि अगर रेलवे को 100 रुपये की आमदनी हुई तो इसमें 95.3 रुपये परिचालन पर खर्च हुए यानी रेलवे के विकास योजनाओं पर निवेश के लिए हर 100 रुपये में से बचे सिर्फ 4.70 रुपये। रेलमंत्री ने परिचालन औसत में बढ़ोतरी के लिए छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने को वजह बताया। उन्होंने कहा कि इन सिफारिशों की वजह से 11वीं पंचवर्षीय योजना में रेलवे पर 73,000 करोड़ रुपये का बोझ बढ़ा है। इस रेल बजट से साफ है कि रेलवे का खर्च बढ़ रहा है और आमदनी को लेकर अनिश्चितता है। इसके बावजूद अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री रेल बजट पेश होने के थोड़ी देर बाद ही संसद परिसर में संवाददाताओं से बात करने आए और उन्होंने इस बजट के लिए रेलमंत्री की तारीफ की। इस बार के रेल बजट में ममता बनर्जी ने जिन नई रेलगाडि़यों और परियोजनाओं की घोषणा की, उसमें से कई तो सीधे तौर पर उनके गृह राज्य पश्चिम बंगाल से जुड़ी हुई हैं। बंगाल में मई में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और इस रेल बजट के जरिए वहां तीन दशक से राज कर रहे वामपंथी दलों को सत्ता से बेदखल करने का मंसूबा भी ममता बनर्जी ने पाल रखा है। पश्चिम बंगाल के चुनावी माहौल को देखते हुए ममता बनर्जी ने इस राज्य को न सिर्फ नई रेलगाडि़यां दीं, बल्कि यहां रेलवे की कई परियोजनाएं लगाने की भी घोषणा की। इसमें दार्जिलिंग में सॉफ्टवेयर एक्सिलेंस पार्क, नंदीग्राम में रेल इंडस्ट्रीयल पार्क और सिंगुर में मेट्रो रेल कोच कारखाना प्रमुख हैं। जाहिर है, ऐसे में ममता पर बिहार और उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों के सांसद भेदभाव का आरोप लगा रहे हैं। दरअसल, रेल बजट में अपने राज्य को ज्यादा देने का चलन नया नहीं है। बिहार से रेलमंत्री बनने वाले नेताओं ने भी ऐसा किया है और अब इसे स्वाभाविक मान लिया गया। लेकिन यह ठीक नहीं है। एक रेलमंत्री से पूरे देश की उम्मीदें जुड़ी रहती हैं और ऐसे में अपने राज्य के लिए खास और दूसरे राज्यों के लिए मन बहलाने वाली घोषणाओं से काम चला लेना असंतोष पैदा करने का काम कर रहा है। वैसे, इस परिचालन औसत को देखते हुए इस बात पर संदेह होना स्वाभाविक है कि ममता बनर्जी ने जिन परियोजनाओं की घोषणा की है, उनमें से कितने पर अमल हो पाएगा। योजनाओं को लटकाने में रेल मंत्रालय का रिकॉर्ड बहुत खराब रहा है। पिछले दो बजट में भी जिन नई परियोजनाओं की घोषणा रेलमंत्री ने की थी, उनमें से कुछ को छोड़कर ज्यादातर परियोजनाओं की प्रगति पर उन्होंने अपने बजट भाषण के दौरान कुछ नहीं बोला। हकीकत तो यह है कि पिछले दो बजट में घोषित की गई कई परियोजनाएं अधर में लटकी हुई हैं। इस बजट में रेलमंत्री ने कहा कि एक साल में 700 किलोमीटर नई रेल लाइन बिछाने की कोशिश की जाएगी। पर उन्होंने यह नहीं बताया कि इसके लिए पैसा कहां से आएगा। संभव है कि पश्चिम बंगाल चुनावों में विजयी होकर ममता बनर्जी का कोलकाता के रॉयटर्स बिल्डिंग में पहुंचने का ख्वाब पूरा हो जाए, लेकिन ऐसे में जो नया रेलमंत्री बनेगा, उसके लिए इन घोषित परियोजनाओं पर अमल करना बेहद मुश्किल हो जाएगा।
अमित अरोड़ा
कोलकाता की रॉयटर्स बिल्डिंग पर नजर रखते हुए रेलमंत्री ममता बनर्जी ने इस साल के लिए 57,630 करोड़ रुपये का रेल बजट पेश किया है। इस बजट में उन्होंने कई लोक लुभावन घोषणाएं की हैं। रेलमंत्री ने यात्री किराये में कोई बढ़ोतरी नहीं की, बल्कि ऑनलाइन आरक्षण कराने वालों को अब कम आरक्षण शुल्क चुकाना होगा। रेलमंत्री ने कुल 56 नई एक्सप्रेस रेलगाडि़यां, तीन शताब्दी और नौ दूरंतो शुरू करने की भी घोषणा की। पर इस पूरे बजट में सबसे ज्यादा उपेक्षा जिस बात की हुई, वह है यात्री सुविधा। कुछ लोग यह तर्क दे सकते हैं कि नई रेलगाडि़यों के शुरू होने और पुरानी रेलगाडि़यों को विस्तार देने से यात्री सुविधाओं में इजाफा होगा। उनका यह तर्क एक हद तक सही है और यात्री किराये में कोई बढ़ोतरी नहीं करना महंगाई की मार से जूझ रहे आम आदमी के लिए किसी बड़ी राहत से कम नहीं है, लेकिन यह भी ध्यान रखना चाहिए कि जब कोई रेलवे स्टेशन पर जाता है तो उसे कई तरह की बुनियादी सुविधाओं के अभाव का सामना करना पड़ता है। इन सुविधाओं को दुरुस्त करने के लिए ममता बनर्जी ने कोई ठोस घोषणा नहीं की। हालांकि इसके बावजूद वे इसे आम आदमी का बजट कह रही हैं। एक आम यात्री को रेलवे स्टेशन पर न तो पीने लायक पानी मिलता है और न ही उसे साफ-सुथरे शौचालय मिलते हैं। अगर किसी को रेलवे स्टेशन या रेलगाड़ी में प्यास लग गई तो उसे 10 से 15 रुपये खर्च करके बोतलबंद पानी खरीदना पड़ता है। खुद रेलवे भी रेल नीर के नाम से बोतलबंद पानी बेचकर हर साल करोड़ों रुपये कमा रहा है। रेलवे स्टेशन के शौचालय भी बदहाल हैं। रेलमंत्री ने कई योजनाओं की घोषणा तो कर दी, लेकिन उन्होंने आमदनी को लेकर तस्वीर बहुत साफ नहीं की। बीते वित्त वर्ष के दौरान भारतीय रेल का परिचालन औसत 95.3 फीसदी रहा। इसका मतलब यह हुआ कि अगर रेलवे को 100 रुपये की आमदनी हुई तो इसमें 95.3 रुपये परिचालन पर खर्च हुए यानी रेलवे के विकास योजनाओं पर निवेश के लिए हर 100 रुपये में से बचे सिर्फ 4.70 रुपये। रेलमंत्री ने परिचालन औसत में बढ़ोतरी के लिए छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने को वजह बताया। उन्होंने कहा कि इन सिफारिशों की वजह से 11वीं पंचवर्षीय योजना में रेलवे पर 73,000 करोड़ रुपये का बोझ बढ़ा है। इस रेल बजट से साफ है कि रेलवे का खर्च बढ़ रहा है और आमदनी को लेकर अनिश्चितता है। इसके बावजूद अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री रेल बजट पेश होने के थोड़ी देर बाद ही संसद परिसर में संवाददाताओं से बात करने आए और उन्होंने इस बजट के लिए रेलमंत्री की तारीफ की। इस बार के रेल बजट में ममता बनर्जी ने जिन नई रेलगाडि़यों और परियोजनाओं की घोषणा की, उसमें से कई तो सीधे तौर पर उनके गृह राज्य पश्चिम बंगाल से जुड़ी हुई हैं। बंगाल में मई में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और इस रेल बजट के जरिए वहां तीन दशक से राज कर रहे वामपंथी दलों को सत्ता से बेदखल करने का मंसूबा भी ममता बनर्जी ने पाल रखा है। पश्चिम बंगाल के चुनावी माहौल को देखते हुए ममता बनर्जी ने इस राज्य को न सिर्फ नई रेलगाडि़यां दीं, बल्कि यहां रेलवे की कई परियोजनाएं लगाने की भी घोषणा की। इसमें दार्जिलिंग में सॉफ्टवेयर एक्सिलेंस पार्क, नंदीग्राम में रेल इंडस्ट्रीयल पार्क और सिंगुर में मेट्रो रेल कोच कारखाना प्रमुख हैं। जाहिर है, ऐसे में ममता पर बिहार और उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों के सांसद भेदभाव का आरोप लगा रहे हैं। दरअसल, रेल बजट में अपने राज्य को ज्यादा देने का चलन नया नहीं है। बिहार से रेलमंत्री बनने वाले नेताओं ने भी ऐसा किया है और अब इसे स्वाभाविक मान लिया गया। लेकिन यह ठीक नहीं है। एक रेलमंत्री से पूरे देश की उम्मीदें जुड़ी रहती हैं और ऐसे में अपने राज्य के लिए खास और दूसरे राज्यों के लिए मन बहलाने वाली घोषणाओं से काम चला लेना असंतोष पैदा करने का काम कर रहा है। वैसे, इस परिचालन औसत को देखते हुए इस बात पर संदेह होना स्वाभाविक है कि ममता बनर्जी ने जिन परियोजनाओं की घोषणा की है, उनमें से कितने पर अमल हो पाएगा। योजनाओं को लटकाने में रेल मंत्रालय का रिकॉर्ड बहुत खराब रहा है। पिछले दो बजट में भी जिन नई परियोजनाओं की घोषणा रेलमंत्री ने की थी, उनमें से कुछ को छोड़कर ज्यादातर परियोजनाओं की प्रगति पर उन्होंने अपने बजट भाषण के दौरान कुछ नहीं बोला। हकीकत तो यह है कि पिछले दो बजट में घोषित की गई कई परियोजनाएं अधर में लटकी हुई हैं। इस बजट में रेलमंत्री ने कहा कि एक साल में 700 किलोमीटर नई रेल लाइन बिछाने की कोशिश की जाएगी। पर उन्होंने यह नहीं बताया कि इसके लिए पैसा कहां से आएगा। संभव है कि पश्चिम बंगाल चुनावों में विजयी होकर ममता बनर्जी का कोलकाता के रॉयटर्स बिल्डिंग में पहुंचने का ख्वाब पूरा हो जाए, लेकिन ऐसे में जो नया रेलमंत्री बनेगा, उसके लिए इन घोषित परियोजनाओं पर अमल करना बेहद मुश्किल हो जाएगा।
अमित अरोड़ा