बुधवार, 16 फ़रवरी 2022

खुशवंत सिंह के लिखे ज़िंदगी के दस सूत्र

1. अच्छा स्वास्थ्य - अगर आप पूरी तरह स्वस्थ नहीं हैं, तो आप कभी खुश नहीं रह सकते। बीमारी छोटी हो या बड़ी, ये आपकी खुशियां छीन लेती हैं। 

2. ठीक ठाक बैंक बैलेंस - अच्छी ज़िंदगी जीने के लिए 55 साल तक काम करना चाहिए और बहुत अमीर होना ज़रूरी नहीं। पर इतना पैसा बैंक में हो कि आप आप जब चाहे बाहर खाना खा पाएं, सिनेमा देख पाएं, समंदर और पहाड़ घूमने जा पाएं, तो आप खुश रह सकते हैं। उधारी में जीना आदमी को खुद की निगाहों में गिरा देता है।

3. अपना मकान - मकान चाहे छोटा हो या बड़ा, वो आपका अपना होना चाहिए। अगर उसमें छोटा सा बगीचा हो तो आपकी ज़िंदगी बेहद खुशहाल हो सकती है।

4. समझदार जीवन साथी - जिनकी ज़िंदगी में समझदार जीवन साथी होते हैं, जो एक-दूसरे को ठीक से समझते हैं, उनकी ज़िंदगी बेहद खुशहाल होती है, वर्ना ज़िंदगी में सबकुछ धरा का धरा रह जाता है, सारी खुशियां काफूर हो जाती हैं। हर वक्त कुढ़ते रहने से बेहतर है अपना अलग रास्ता चुन लेना।

5. दूसरों की उपलब्धियों से न जलना  - कोई आपसे आगे निकल जाए, किसी के पास आपसे ज़्यादा पैसा हो जाए, तो उससे जले नहीं। दूसरों से खुद की तुलना करने से आपकी खुशियां खत्म होने लगती हैं। 

6. गप से बचना - लोगों को गपशप के ज़रिए अपने पर हावी मत होने दीजिए। जब तक आप उनसे छुटकारा पाएंगे, आप बहुत थक चुके होंगे और दूसरों की चुगली-निंदा से आपके दिमाग में कहीं न कहीं ज़हर भर चुका होगा।

7. अच्छी आदत - कोई न कोई ऐसी हॉबी विकसित करें, जिसे करने में आपको मज़ा आता हो, मसलन गार्डेनिंग, पढ़ना, लिखना। फालतू बातों में समय बर्बाद करना ज़िंदगी के साथ किया जाने वाला सबसे बड़ा अपराध है। कुछ न कुछ ऐसा करना चाहिए, जिससे आपको खुशी मिले और उसे आप अपनी आदत में शुमार करके नियमित रूप से करें।

8. ध्यान - रोज सुबह कम से कम दस मिनट ध्यान करना चाहिए। ये दस मिनट आपको अपने ऊपर खर्च करने चाहिए। इसी तरह शाम को भी कुछ वक्त अपने साथ गुजारें। इस तरह आप खुद को जान पाएंगे। 

9. क्रोध से बचना - कभी अपना गुस्सा ज़ाहिर न करें। जब कभी आपको लगे कि आपका दोस्त आपके साथ तल्ख हो रहा है, तो आप उस वक्त उससे दूर हो जाएं, बजाय इसके कि वहीं उसका हिसाब-किताब करने पर आमदा हो जाएं।

10. अंतिम समय - जब यमराज दस्तक दें, तो बिना किसी दुख, शोक या अफसोस के साथ उनके साथ निकल पड़ना चाहिए अंतिम यात्रा पर, खुशी-खुशी। शोक, मोह के बंधन से मुक्त हो कर जो यहां से निकलता है, उसी का जीवन सफल होता है।

मुझे नहीं पता कि खुशवंत सिंह ने पीएचडी की थी या नहीं। पर इन्हें पढ़ने के बाद मुझे लगने लगा है कि ज़िंदगी के डॉक्टर भी होते हैं। ऐसे डॉक्टर ज़िंदगी बेहतर बनाने का फॉर्मूला देते हैं । ये ज़िंदगी के डॉक्टर की ओर से ज़िंदगी जीने के लिए दिए गए नुस्खे है। इन दसों सूत्रों को पढ़ने के बाद पता चला कि सचमुच खुशहाल ज़िंदगी और शानदार मौत के लिए ये सूत्र बहुत ज़रूरी हैं।

रविवार, 6 फ़रवरी 2022

राष्ट्रीय चेतना के स्वर का अस्त..!

एक सुरीला सफर आज थम गया. जिन स्वरों के साथ हम बचपन से प्रौढ़ावस्था तक पहुंचे, जिन सुरों ने हमेशा हमारी साथ दी, वह स्वर आज निःशब्द हो गया. हमारे लता का पार्थिव आज हमको छोड़ कर चला गया !

लता जी प्रखर राष्ट्रीय सोच और विचारधारा की समर्थक रही हैं. उन का स्वर यह राष्ट्र का स्वर था, राष्ट्र की चेतना का स्वर था, राष्ट्र की आत्मानुभूति का स्वर था. छत्रपति शिवाजी उनके आराध्य थे. शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक को तीन सौ वर्ष पूर्ण होने पर शिवशाहिर स्व. बाबासाहेब पुरंदरे जी के साथ उन्होने ‘राजा शिवछत्रपति’ नाम से अत्यंत सुंदर एल पी रिकॉर्ड तैयार की थी. उस रिकॉर्ड के गीत आज भी छत्रपति शिवाजी पर गाये गए गीतों में सर्वश्रेष्ठ हैं. 

वीर सावरकर उनके प्रेरणास्त्रोत थे. कोरोना से कुछ पहले, वर्ष २०१९ मे, जब सावरकर जी को लेकर काँग्रेस ने विवाद खड़ा किया था, तब बड़े क्षोभ और व्यथित अंतःकरण के साथ, १९ सितंबर २०१९ को लता जी ने ट्वीट किया था, “वीर सावरकर जी और हमारे परिवार के बहुत घनिष्ठ संबंध थे, इसलिए उन्होने मेरे पिताजी की नाटक कंपनी के लिए नाटक ‘सन्यस्त खड्ग’ लिखा था. इस नाटक का पहला प्रयोग १८ सितंबर १९३१ को हुआ था. इस नाटक में से एक गीत बहुत लोकप्रिय हुआ.“ ‘शत जन्म शोधताना...’ यह गीत लता जी ने इस ट्वीट के साथ जोड़ा था. (‘शत जन्म शोधताना...’ यह गीत सावरकर जी की उत्तुंग और जबरदस्त प्रतिभा का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं. प्रख्यात लेखक पु. ल. देशपांडे जी ने कहा था, “इस एक गीत के लिए सावरकर जी को ज्ञानपीठ जैसा सर्वोच्च सम्मान मिलना चाहिए.“)

सावरकर जी की जयंती २८ मई और पुण्यतिथि २६ फरवरी को लता मंगेशकर इस हिन्दुत्व के पुरोधा को प्रतिवर्ष सार्वजनिक तौर पर श्रद्धांजलि देती थी. अंग्रेजों के विरोध में, भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान का हमेशा गौरवपूर्ण उल्लेख करती थी. सावरकर जी के बारे में उनका एक ट्वीट – “नमस्कार. भारतमाता के सच्चे सपूत, स्वतंत्रता सेनानी, मेरे पिता समान वीर सावरकर जी की आज जयंती हैं. मैं उनको कोटी – कोटी प्रणाम करती हूँ.“ 

अपनी युवावस्था में लता मंगेशकर, सावरकर जी के विचारों से बहुत ज्यादा प्रभावित थी. वे सावरकर जी से इस बारे में विचार – विमर्श करती थी. समाज के लिए कुछ करने की उन में जबरदस्त ललक थी. एक समय ऐसा भी आया, जब लता जी समाज कार्य करने के लिए गायन छोड़ने जा रही थी. उस समय सावरकर जी ने उन को मिल कर समझाया. उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर की याद दिलाई और उन्हे बताया की संगीत और गायन के प्रति समर्पित होकर भी वो समाज की सेवा कर सकती हैं. इसके बाद सावरकर जी की सलाह मानते हुए वे पूरी तरह से संगीत की दुनिया में डूब गई और हमारे संगीत विश्व में एक नया ध्रुव तारा चमक उठा. (संदर्भ – ‘लता : सुर गाथा’. लेखक – यतीन्द्र मिश्रा)

लता जी का पूरा परिवार कट्टर देशभक्त और राष्ट्रीय विचारों से ओतप्रोत हैं. वीर सावरकर जी की लिखी कविताओं का चयन करने के कारण तत्कालीन काँग्रेस सरकार ने, लता मंगेशकर जी के भाई, हृदयनाथ मंगेशकर को ‘ऑल इंडिया रेडियो’ से निकाल दिया था. १९५४ की यह घटना हैं, जब हृदयनाथ जी मात्र १७ वर्ष के थे. 

वर्ष २००९ में, सावरकर जी द्वारा ब्रायटन के समुद्र किनारे पर लिखी अमर कविता ‘ने मजसी ने परत मातृभूमीला, सागरा प्राण तळमळला...’ के सौ वर्ष पूर्ण होने के कार्यक्रम प्रारंभ हुए थे. इस दौरान लता जी ने बताया की इस कविता ने देशभक्ति की भावना जगाई और न केवल मराठी, बल्कि सभी भारतीयों के लिए यह प्रेरणादायी बनी थी. उस समय आँसू बहाते लता जी ने अफसोस जताया था की ‘वीर सावरकर जी को स्वतंत्र भारत में वह सम्मान नहीं मिला, जिसके वे हकदार थे’. 

चित्रमहर्षि और फ़िल्मकार भालजी पेंढारकर यह हिन्दुत्व के प्रखर समर्थक थे. १९४८ में गांधी हत्या के बाद, महाराष्ट्र में ब्राह्मणों के घरों को बड़ी संख्या में जलाया गया था. उस में भालजी पेंढारकर जी का ‘जयप्रभा स्टुडियो’ जलाकर राख़ कर दिया गया था. भालजी ने हिम्मत के साथ उसे फिर खड़ा किया. इस में उन को साठ हजार रुपयों का कर्जा हुआ. यह कर्ज समाप्त करने के लिए लता जी ने उन्हे आर्थिक रूप से सहायता की थी. लताजी ने जीवन पर्यंत राष्ट्रीय विचारों का साथ दिया और देश तोड़ने वाली शक्तियों का विरोध किया. बॉलीवुड जैसे विषाक्त वातावरण में भी लता जी शुचिता और पावित्र्य की प्रतिमूर्ति थी. शतकों – शतकों में निर्माण होने वाले इस ईश्वरीय रचना के अवसान पर उन्हे विनम्र श्रध्दासुमन..!

 प्रशांत पोळ    

(बिलासपुर से रवींद्र तैलंग ने वाट्स एप पर भेजा)

शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2022

ऐसे आता है जीवन में बदलाव

 


मैंने अपने एक दोस्त से पूछा, जो 60 पार कर चुका है और 70 की ओर जा रहा है। वह अपने जीवन में किस तरह का बदलाव महसूस कर रहा है?

उसने मुझे निम्नलिखित बहुत दिलचस्प पंक्तियाँ भेजीं, जिन्हें मैं आप सभी के साथ साझा करना चाहूँगा ....

• मेरे माता-पिता, मेरे भाई-बहनों, मेरी पत्नी, मेरे बच्चों, मेरे दोस्तों से प्यार करने के बाद, अब मैं खुद से प्यार करने लगा  हूं।

• मुझे बस एहसास हुआ कि मैं "एटलस" नहीं हूं। दुनिया मेरे कंधों पर टिकी नहीं है।

• मैंने अब सब्जियों और फलों के विक्रेताओं के साथ सौदेबाजी बंद कर दी। आखिरकार, कुछ रुपए अधिक देनेसे मेरी जेब में कोई छेद नहीं होगा, लेकिन इससे इस  गरीब को अपनी बेटी की स्कूल फीस बचाने में मदद मिल सकती है।

• मैं बची चिल्लर का इंतजार किए बिना टैक्सी चालक को भुगतान करता हूं। अतिरिक्त धन उसके चेहरे पर एक मुस्कान ला सकता है। आखिर वह मेरे मुकाबले जीने के लिए बहुत मेहनत कर रहा है|

• मैंने बुजुर्गों को यह बताना बंद कर दिया कि वे पहले ही कई बार उस कहानी को सुना चुके हैं। आखिर वह कहानी उनकी अतीत की यादें ताज़ा करती है और जिंदगी जीने का होंसला बढाती है |

• कोई इंसान अगर गलत भी हो तो मैंने उसको सुधारना बंद किया है । आखिर सबको परफेक्ट बनाने का ओन मुझ पर नहीं है। ऐसे परफेक्शन से शांति अधिक कीमती है।

• मैं अब सबकी तारीफ  बड़ी उदारता से करता  हूं। यह न केवल तारीफ प्राप्तकर्ता की मनोदशा को उल्हासित करता है, बल्कि यह मेरी मनोदशा को भी ऊर्जा देता है!!

• अब मैंने अपनी शर्ट पर क्रीज या स्पॉट के बारे में सोचना और परेशान होना बंद कर दिया है। मेरा अब मानना है की दिखावे के अपेक्षा व्यक्तित्व ज्यादा मालूम पड़ता है।

• मैं उन लोगों से दूर ही रहता हूं जो मुझे महत्व नहीं देते। आखिरकार, वे मेरी कीमत नहीं जान सकते, लेकिन मैं वह बखूबी जनता हूँ।

• मैं तब शांत रहता हूं जब कोई मुझे "चूहे की दौड़" से बाहर निकालने के लिए गंदी राजनीति करता है। आखिरकार, मैं कोई चूहा नहीं हूं और  न ही मैं किसी दौड़ में शामिल हूं। 

• मैं अपनी भावनाओं से शर्मिंदा ना होना सीख रहा हूं। आखिरकार, यह मेरी भावनाएं ही हैं जो मुझे मानव बनाती हैं।

• मैंने सीखा है कि किसी रिश्ते को तोड़ने की तुलना में अहंकार को छोड़ना बेहतर है। आखिरकार, मेरा अहंकार मुझे सबसे अलग रखेगा, जबकि रिश्तों के साथ मैं कभी अकेला नहीं रहूंगा।

• मैंने प्रत्येक दिन ऐसे जीना सीख लिया है जैसे कि यह आखिरी हो। क्या पता, आज का दिन आखिरी हो!

सबसे महत्वपूर्ण – MOST IMPORTANT

• मैं वही काम करता हूं जो मुझे खुश करता है। आखिरकार, मैं अपनी खुशी के लिए जिम्मेदार हूं, और मै उसका हक़दार भी हूँ।

(वाट्सएप से प्राप्त)


मंगलवार, 1 फ़रवरी 2022

जीवन में दोस्त ज़रूरी है


 

मैं अपने पिता के साथ, सोफे पर कभी नहीं बैठा था I अपने विवाह के बाद तो मैं उनसे अलग ही रह रहा था।

अपने विवाह के बाद, बहुत साल पहले, एक गर्म उमस भरे दिन, मैं अपने घर उनके आगमन पर, उनके साथ सोफे पर बैठा, बर्फ जैसा ठंडा जूस सुड़क रहा रहा था I

जब मैं अपने पिता से, विवाह के बाद की व्यस्क जिंदगी, जिम्मेदारियों और उम्मीदों के बारे में अपने ख़यालात का इज़हार कर रहा था, तब वह अपने गिलास में पड़े बर्फ के टुकड़ों को स्ट्रा से इधर उधर नचाते हुए, बहुत गंभीर और शालीन खामोशी से मुझे सुनते जा रहे थे I       

अचानक उन्होंने कहा, "अपने दोस्तों को कभी मत भूलना !" उन्होंने सलाह दी, " तुम्हारे दोस्त उम्र के ढलने पर पर तुम्हारे लिए और भी महत्वपूर्ण और ज़रूरी हो जाएँगे I"

"बेशक अपने बच्चों, बच्चों के बच्चों और उन सभी के जान से भी ज़्यादा प्यारे परिवारों को रत्ती भर भी कम प्यार मत देना, मगर अपने पुराने, निस्वार्थ और सदा साथ निभानेवाले दोस्तों को हरगिज़ मत भुलाना I वक्त निकाल कर, उनके साथ समय ज़रूर बिताना I मौज मस्ती करना I उनके घर खाना खाने जाना और जब मौक़ा मिले उनको अपने घर बुलाना I कुछ ना हो सके तो फोन पर ही जब तब, हाल चाल पूछ लिया करना I"     

"क्या बेतुकी, विचित्र और अटपटी सलाह हैI" मैंने मन ही मन सोचा I

मैं नए नए विवाहित जीवन की खुमारी में था और बुढऊ मुझे यारी-दोस्ती के फलसफे समझा रहे थे I

मैंने सोचा, "क्या जूस में भी नशा होता है, जो ये बिन पिए बहकी बहकी बातें करने लगे? आखिर मैं अब बड़ा हो चुका हूँ, मेरी पत्नी और मेरा होने वाला परिवार मेरे लिए जीवन का मकसद और सब कुछ है I दोस्तों का क्या मैं अचार डालूँगा?"

लेकिन मैंने आगे चल कर, एक सीमा तक उनकी बात माननी जारी रखी I मैं अपने गिने-चुने दोस्तों के संपर्क में लगातार रहा I संयोगवश समय बीतने के साथ उनकी संख्या भी बढ़ती ही रही I

कुछ वक्त बाद मुझे



अहसास हुआ कि उस दिन मेरे पिता 'जूस के नशे' में नहीं उम्र के खरे तजुर्बे से मुझे समझा रहे थेI  उनको मालूम था कि उम्र के आख़िरी दौर तक ज़िन्दगी क्या और कैसे करवट बदलती हैI      

हकीकत में ज़िन्दगी के बड़े से बड़े तूफानों में दोस्त कभी मल्लाह बनकर, कभी नाव बन कर साथ निभाते हैं और कभी पतवार बन कर I कभी वह आपके साथ ही ज़िन्दगी की जंग में, कूद पड़ते हैं I

सच्चे दोस्तों का काम एक ही होता है- दोस्ती I उनका मजहब भी एक ही होता है- दोस्ती I उनका मकसद भी एक ही होता है- दोस्ती !   

ज़िन्दगी के पचास साल बीत जाने के बाद मुझे पता चलने लगा कि घड़ी की सुइंयाँ पूरा चक्कर लगा कर वहीं पहुँच गयीं थी, जहाँ से मैंने जिंदगी शुरू की थी I

विवाह होने से पहले मेरे पास सिर्फ दोस्त थेI विवाह के बाद बच्चे हुए I बच्चे बड़े हुएI उनकी जिम्मेदारियां निभाते निभाते मैं बूढा हो गयाI बच्चों के विवाह हो गएI उनके कारोबार चालू हो गए I अलग परिवार और घर बन गएI बेटियाँ अपनी जिम्मेदारियों में व्यस्त हो गयीं I बेटे बेटियों के बच्चे कुछ समय तक दादा-दादी और नाना-नानी के खिलौने रहेI उसके बाद उनकी रुचियाँ मित्र मंडलियाँ और जिंदगी अलग पटरी पर चलने लगींI          

अपने घर में मैं और मेरी पत्नी ही रह गए I 

वक्त बीतता रहा I नौकरी का भी अंत गया I साथी-सहयोगी और प्रतिद्वंद्वी मुझे बहुत जल्दी भूल गएI

जिस मालिक से मैं पहले कभी छुट्टी मांगने जाता था, तो जो आदमी  मेरी मौजूदगी को कम्पनी के लिए  जीने-मरने का सवाल बताता था, वह मुझे यूं भूल गया जैसे मैं कभी वहाँ काम करता ही नहीं थाI

एक चीज़ कभी नहीं बदली, मेरे मुठ्ठी भर पुराने दोस्त I मेरी दोस्तियाँ ना तो कभी बूढ़ी हुईं, ना रिटायर I

आज भी जब मैं अपने दोस्तों के साथ होता हूँ, लगता है अभी तो मैं जवान हूँ और मुझे अभी बहुत से साल ज़िंदा रहना चाहिए I   

सच्चे दोस्त जिन्दगी की ज़रुरत हैं, कम ही सही कुछ दोस्तों का साथ हमेशा रखिये, साले कितने भी अटपटे, गैरजिम्मेदार, बेहूदे और कम अक्ल क्यों ना हों, ज़िन्दगी के बेहद खराब वक्त में उनसे बड़ा योद्धा और चिकित्सक मिलना नामुमकिन हैI 

अच्छा दोस्त दूर हो चाहे पास हो, आपके दिल में धडकता है I

सच्चे दोस्त उम्र भर साथ रखिये I जिम्मेदारियां निभाइए I

लेकिन हर कीमत पर यारियां बचाइये I उनको सलामत रखियेI

ये बचत उम्र भर आपके काम आएगी I🙏🙏