परमानंद वर्मा
प्रतिबंध : सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था। लेकिन अचानक ऐसा वक्त आया कि तलवार उठाना ही पड़ गया। जनसंख्या विस्फोट और महंगाई ने सारी व्यवस्थाएं चौपट कर दी जिससे समाज भी अछूता नहीं रहा। जन्मदिन, विवाह, मृत्युभोज तथा इसी तरह के अन्य उत्सव व कार्यक्रमों में फिजूलखर्ची बढ़ रही थी। डीजे, डांस, तथा अनावश्यक कार्यक्रमों से फिजूलखर्ची की जाने लगी थी, शादियों में भी दिखावे के लिए पैसे पानी की तरह बहाए जा रहे थे। सम्पन्न वर्ग के लोगों पर पैसे की बर्बादी का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा था लेकिन पीसे जा रहे थे सामान्य वर्ग के लोग। इसी को ध्यान में रखते हुए लगभग सभी समाज के प्रमुखों ने कुरीतियों पर प्रतिबंध लगाने का कठोर निर्णय लिया है। इसी संदर्भ में है यह छत्तीसगढ़ी आलेख।
जइसन कभू सोचे, समझे नइ जाने रहिबे तउनो बात उदुक ले अचानचकरित हो जथे तउन ला भला का केहे जाए? अइसन होथे अउ होय घला हे। तब सब माथा धर के बइठगे हे। बात अउ समस्या आथे मुड़ी ऊपर तब सरक जथे, तब ओ समे हाथ मं हाथ धरे बइठे म तो कोनो बात नइ बनय ? रस्दा चतवारे ले परथे, वइसने कस समस्या के निराकरन करे खातिर सियान मन कदम उठाय हें। बड़ नीक लगिसे। जइसे समे तइसे काम करे मं ही भलइ हे।
अभी होय का हे, देश के सबो समाज जइसे जैन, कायस्थ, अग्रवाल, हिन्दू, मुस्लिम सबो मं मृत्यु भोज के बेवस्था चलत आवत रिहिसे। पहिली परिवार छोटे-छोटे राहत रिहिसे, सबो झन के आर्थिक स्थिति सजोर रिहिसे। धीरे-धीरे परिवार बढ़त गिस, सबो झन के आरर्थिक स्थिति जहां चरमराय लगिस तहां ले दांत ल निपोर दिन। जतका सामाजिक बेवस्था रिहिसे तउनो लखड़ावत गिस। खान-पान, लेना-देना, बात-बेवहार, सब गड़बड़ाए ल धर लिस। बहुत अकन सामाजिक बेवस्था अइसे रहिसे जउन गैरजरूरी असन रिहिसे फेर पूर्वज मन चला दे हे, चलत आवत रिहिसे ते पायके संकोच बस कोनो कांही नइ बोल सकत रिहिन हे। कुछ कर नइ पावत रिहिन हे।
फेर होथे का, जब पानी मुड़ ले ऊपर बाढ़े ले धर लेथे जीव उबूक-चुबुक होय ले धर लेथे, परान छूटे ले धर लेथे तब ओ बखत हाथ-पैर मारके कइसने करके परान बचाए ले परथे। अइसने कस हाल अभी देखे बर मिलिसे। कउवागे सब, केहे ल लगिन के समाज मं जउन कुरीति हे ओकर ले किनारा करे बिन भलई नइहे। ते पाके छत्तीसगढ़ के कतको समाज मन सादगी अउ साफ-सुथरा ले सब कारज ल निपटाय के निरनय लिन, अइसन करे ले जउन ओमन आरर्थिक तंगी ले जूझत रिहिन हे, तेकर ले छुटकारा पाय ल लगिन।
सबो समाज मं शादी, जन्मदिन, मरनी-हरनी अउ श्राद्ध जइसन कार्यक्रम मंं उछाहे-उछाह मं मनमाने खरचा कर डरय। फेर पाछू चलके भुगते ले उही मन ल परय। पीढ़ी दर पीढ़ी तो अइसन रीति-रिवाज चलत आवत हे। जरूरत ले जादा दिखावटी कार्यक्रम मं जेकर कोनो जरूरत नइ राहय, फेर शान-शौकत मं कोनो कमी झन होवय, सोच के मनमाने रुपया, पइसा फूंक डरय। श्राद्ध अउ मृत्युभोज मं घला वइसने फिजूलखर्ची। इही सब ला रोके खातिर समाज के मुखिया मन बइठक करके ओला छोड़े के निरनय लिन। एमा जैन समाज मं अब शादी समारोह मं कोनो पार्टी नइ होही, कायस्थ समाज मृत्युभोज पर बंदिश लगइन, मुस्लिम समाज मं शादी मं डीजे नइ बाजही। वइसने अउ समाज मन घला आघू आवत हे।
परमानंद वर्मा
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