सुनो भाई उधो
परमानंद वर्मा
फिर मन गया बिना गोसइया के
छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग का स्थापना दिवस ।आते हैं इस मे प्रदेश भर से छत्तीसगढ़ी साहित्यकार, लेखक, कवि, भाषाविद्, संस्कृति कर्मी। मुख्य अतिथि के उद्घाटन के बाद निर्धारित विषयों पर वक्ता अपने विचार रखते हैं, कवि गण अपनी कविताओं के पाठ करते हैं, लोक कलाकार संगीतमय प्रस्तुति से आगंतुकों को भाव-विभोर कर देते हैं, और अंत में भोजन प्रसादी पाकर अपने-अपने ठिकाने लौट जाते हैं। विगत पांच सालों से ऐसा ही चल रहा है। सचिव के भरोसे नैया आगे सरक रही है । हालाकि उन्होंने किसी को ऐसा आभास नहीं होने दिया कि अध्यक्ष नहीं है लेकिन सबको इस बात का मलाल है कि जब सभी आयोगों, मंडलों में अध्यक्षों व अन्य पदाधिकारियों की नियुक्ति प्रमुखता से की गई है तब छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग की उपेक्षा क्यों? इसी संदर्भ में प्रस्तुत है यह छत्तीसगढ़ी आलेख।
सीहोर वाले महाराज पंडित प्रदीप मिश्रा ओ दिन गोढियारी म शिवपुराण के कथा बाचत रिहिसे तब ओ कथा ल सुने बर डोंगा(नाव) घला पहुंचे राहय। उही बेरा हाथ उठा के ओहर हर हर महादेव काहत महराज सो बिनती करत पूछ-थे, सब के दुख, करलेस ल टारत आवत हस महाराज, मोरो एक ठन जबर करलेस हे, टार देते ते बने होतिस।
महाराज ह पूछ-थे,का करलेस है दाई बता ना। डोंगा हाथ जोर के आँखि कोती ले आंसू ढारत गोहरा-थे, मोर गोंसिइया डोंगहार पांच साल होए ले जावत हे, कहां चल देहे। अतेक खोजत हौं, पता लगावत हौं फेर कांही सोर नई मिलत हे। तुंहर आसन महाराज मन करा बिचरवा घला डरे हौं फेर कुछु नई पता लगिस। कोनो कोनो बताईन, सीयम हाउस कोती जात देखे हन। अब भगवान जानय ओहर कहां हे।
डोंगा के सबो बात ल सुने के बाद सीहोर वाले महाराज ओला बताथे- एक उपाय बतावत हौं धियान देके सुन। कोनो मेर के शिव मंदिर म जाके रोज एक लोटा पानी, एक ठन बेल पत्ती अउ कनेर, धतूरा, गुलाब के फूल हो सकय ते शिवजी म अर्पन करना शुरू कर दे। एक न एक तोर गोसइया जरूर लहुट के घर आ जही। ये उपाय ल करके देख तो भला। अउ हां श्री शिवाय नमस्तुभ्यम ये मन्त्र के जाप पांच घो जरूर करे करबे। अब दुनों हाथ ल उठा के बोल, हर हर महादेव। अइसने कस हाल छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के सध होवत हे। खोजत फिरत भटकत हे अपन गोसइया(अध्यक्ष) के फिराक मे ।
सोचथौं बिना किसान के खेती, बिना डॉक्टर के अस्पताल, बिना जज के कोर्ट, बिना परानी के गिरहस्थी, बिना डोंगहार के डोंगा (नाव), बिना पायलट के हवाई जहाज अउ बिन राजा के राज्य कइसे चलत होही, चलेच नइ सकय, अउ अइसने कतको अकन बात हे जेकर बिना अधूरा के अधूरा रहि जाथे. विधवा, रांड़ी-अनाथिन कस रोवत-धोवत जिनगी गुजर जथे। तइसने कस हाल छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के हे। पांच साल गुजरे ले जात हे, छत्तीसगढ़ के मुखिया कइसे आंखी-कान ला लोरमा दे हे ते ये आयोग के अध्यक्ष के नियुक्ति नइ करिस। अउ सब मंडल, आयोग के अध्यक्ष, सचिव अउ पदाधिकारी मन के नियुक्ति कर डरिस, फेर एती हीरक के नइ निहारिस। कतको सुख-सुविधा दे-दे, ददा (मुखिया) बिना घर सुन्ना लगथे, नइ सुंदरावय। लक्ष्मण मस्तुरिया, श्यामलाल चतुर्वेदी, दानेश्वर शर्मा अउ डॉ. विनय पाठक जइसे बड़े-बड़े गुनिक मन ये आयोग के अध्यक्ष बने रिहिन हे जेकर से ये आयोग के शोभा बढ़े रिहिसे। अइसे बात नइहे के कोनो अध्यक्ष पद के लइक नइहे, एक ले बढ़के एक सुजानिक चेहरा ये पद के काबिल हे। ओकर से छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के मान-शान मंं बरकत हो सकत रिहिसे। उपेक्षा के शिकार काबर होइस ये बात के सवाल सब साहित्यकार, कला, संस्कृति, भाषा, बोली के समझ रखइया मन उठाथे, उठावत हें। 'छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया' के नारा के ढिंढोरा पीटे भर ले छत्तीसगढ़िया के विकास नइ होना हे। विकास होही ओकर मातृभाषा ल पंदोली देके, ऊपर उठायले, प्राथमिक कक्षा ले पढ़ई शुरू करे ले। जइसने किसानी के रकम ल किसान ले बने दूसर कोनो जान नइ सकय, वइसने शिक्षा के विकास के रकम शिक्षा के विद्वान ले दूसर कोनो नइ जानय। राजा करा तो दुनिया भर के काम रहिथे, रात-दिन राज-काज मं बूड़े रहिथे। अइसन काम के नेत-घात जउन जानथे तेला सौंपना चाही। नहीं ते फेर बिन मांझी के डोंगा हवा के झोंका में कोन कोती के रसदा रेंग दिही, भगवाने मालिक हे।
अभी ओ दिन 14 अगस्त के छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के स्थापना दिवस मनाये गिस, जेमा प्रदेश भर के साहित्यकार, कलाकार, संस्कृति कर्मी, कवि, विद्यार्थी मन सकलाय रिहिन हे। माई पहुना संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत दीया बार के कार्यक्रम के उद्घाटन करिस, जेकर पगरइत रिहिन हे संसदीय सचिव कुंवरसिंह निषाद। ये मौका मं गीत-संगीत के प्रस्तुति राज गान के बाद होइस। ये बेरा मं फिल्म डायरेक्टर मनोज वर्मा अउ टीवी के उद्घोषक श्रीमती मधुलिका पाल अपन-अपन विचार रखिन।
महंत सर्वेश्वर दास सभा भवन में आयोजित ये समारोह मं प्रदेशभर ले आये छत्तीसगढ़ी साहित्य प्रेमी के मन मं इही बात के जादा चरचा अउ दुख होवत रिहिसे के प्रदेश के मुखिया ये आयोग ल काबर अनदेखी करत हे, काबर अध्यक्ष नइ नियुक्त करत हे। कोनो खुसुर-फुसुर गोठियावय तब कोनो टांठ भाखा मं। फेर कोनो ये बात, ये मुद्दा ल लेके सोझ मुखिया मेर जाके हिम्मत नइ जुटा सकत रिहिन हे।
कार्यक्रम के दूसर सत्र मं श्रीमती धनेश्वरी सोनी, टिकेश्वर सिंह, अरविन्द मिश्र, नवलदास मानिकपुरी, कपिलनाथ कश्यप, दुर्गाप्रसाद पारकर, अशोक पटेल आशु अउ हितेश कुमार के लिखे पुस्तक मन के मुख्य अतिथि संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत अउ दूसर अ्तिथि मन के हाथों विमोचन होइस। ये पुस्तक मन के प्रकाशन राजभाषा आयोग करे हे। युहू मं एक ठन बड़े विडम्बना ये हे के लेखक मन ल सिरिफ पुस्तक के 20-20 प्रति देके भुलवार दे हे। इही ये आयोग के योजना हे। मर-खप के लिखबे, गरीब, दीन-हीन साहित्यकार मन, ओमन ल मिलथे का... फुसका। कुछ तो बीस पच्चीस हजार देतीन ओकर मेहताना, जउन लिखत-पढ़त हे तेकर जुगाड़ करना चाही। हो सकत अउ ये लिखे हे तेकर ले बढ़िया कोनो पुस्तक, ग्रंथ, महाकाव्य लिख परही? अउ दूसर बाहिर के मन बर सरकार के खजाना खुले हे, हजारों, लाखों लुटा देवत हे अउ इहाके बुद्धिजीवी, कलाकार, संस्कृति कर्मी मन बर फुसका परे हे। बस्तर, सरगुजा, बिलासपुर, रायगढ़, राजनांदगांव मं अइसन कतको बुद्धिजीवी कलाकार भरे परे हे, पढ़े-लिखे नइहे फेर कला, संस्कृति, बोली भाखा मं शहरी क्षेत्र ले तो गंवई क्षेत्र मं जादा हे कोनो ओकर हियाब करइया नइ हे । ये बात के जानकारी संसदीय सचिव कुंवर सिंह निषाद के मारफत मिलिस।
तीसर सत्र के चरचा गोष्ठी मं डॉ. परदेशी राम वर्मा, डॉ. सविता मिश्रा अउ सेवक राम बांधे अपन-अपन विचार रखिन। एकर बाद कवि सम्मेलन मं प्रदेशभर ले आए कवि मन अपन-अपन कविता पाठ करिन, कार्यक्रम के समापन राजभाषा आयोग के अनुवादक सुषमा गौराहा के आभार प्रदर्शन ले होइस।
जाती बिराती
बाग बगइचा दीखे ले हरियर
हां...हां... दीखे ले हरियर,
मोर डोगहार नइ दीखत हे
बदे हां नरियर हां...हां...होरे।
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