" दीपक असीम
ताजमहल बन जाने के बाद शाहजहाँ ने बनाने वालों के हाथ काट लिए थे। क्यों? लोग कहते हैं कि शाहजहाँ नहीं चाहता था कि वे दूसरा ताजमहल बनाएँ। बात एकदम गलत है। दूसरे किसी के पास कहाँ इतना पैसा था कि वो ताजमहल बनाने की सोचता? बात दूसरी है। असल बात यह है कि शाहजहाँ ताजमहल के ठेकेदार और उसके मजदूरों से परेशान था। जिन लोगों ने मकान बनवाए हैं, वो इस बात की गवाही देंगे कि मकान बनने के बाद और बनने के दौरान कई बार उनकी भी इच्छा हुई है कि वे ठेकेदार और उसके तमाम मजदूरों के हाथ बल्कि गर्दन काट दें। मगर नहीं काट पाए क्योंकि वे कहीं के भी बादशाह नहीं हैं।
आप देखते हैं कि एक दीवार तिरछी जा रही है। आप चीखते हैं, चिल्लाते हैं। ठेकेदार आपकी बात पर कान नहीं धरता। कहता है कि दीवार बिलकुल ठीक है, अभी बीच में मत बोलिए, जब पूरी बन जाए तब कहिएगा। जब दीवार पूरी बन जाती है और तिरछापन एकदम साफ दिखने लगता है, तो ठेकेदार मान जाता है कि दीवार तिरछी है और उसे वापस तुड़वाने की मेहरबानी करता है। कई बार वो मानता ही नहीं कि कोई काम गलत हुआ है। आप गवाहियाँ पेश करें तो कहता है कि ये दोष कुछ समय बाद अपने आप दूर हो जाएगा। मगर कुछ समय बाद दोष और उभरकर सामने आता है।
ये दिक्कतें तो खैर काम होने के दौरान की हैं। कई बार ये होता है कि आप एडवांस देते हैं और ठेकेदार मजूरों समेत गायब हो जाता है। चार दिन बाद पता चलता है कि किसी और कॉलोनी में उसे दूसरा ठेका मिल गया है। आप ढूँढते हुए उसे वहाँ जाते हैं, तो वो सीधे मुँह बात ही नहीं करता। फिर कहता है कि आप चिंता मत करो, जो समय दिया है उस समय पर आपका काम पूरा हो जाएगा। बहुत जोर देने पर वो कहता है कि अच्छा दो दिन बाद से आपके यहाँ काम शुरू कर देंगे। दो दिन बाद वो काम शुरू करता है। एक दिन काम होता है कि अमावस आ जाती है। अब आप तो जानते हैं कि अमावस को कोई मिस्त्री काम नहीं करता। अमावस के बाद इतवार आ जाता है। सोमवार को टैंकर वाला पानी नहीं डाल के जाता और काम रुका पड़ा रहता है। मंगल को ठेकेदार भूल जाता है कि आपने क्या बनाने को कहा था। आप उधर अपने काम पर जाते हैं इधर ठेकेदार फिर कुछ गलती कर देता है। बुधवार को आप भन्नााते हैं। वो गलत निर्माण को फिर तोड़ता है और फिर बनाता है। आपका समय, आपका मटेरियल सब दोगुना लगता है। आप खून के आँसू रोने के सिवा कुछ नहीं कर सकते, क्योंकि आप शाहजहाँ नहीं हैं।
आपका मकान तय समय से कितने दिन बाद बनकर पूरा होगा, ये इस बात पर निर्भर करता है कि मकान कितना बड़ा है। चार महीने लेट होना तो चलता है। ताजमहल जैसा निर्माण शाहजहाँ के जिंदा रहते पूरा ही नहीं हो सकता था। शाहजहाँ बादशाह था, सो पूरा हुआ। आम आदमी होता तो नींव के कॉलमों से सिर फोड़ता-फोड़ता मर जाता। शाहजहाँ ने हाथ यूँ ही नहीं कटवाए। कोई भी होता तो यही करता। ताजमहल पर कई फिल्में बनी हैं, एक में भी निर्माणकर्ताओं के हाथ काटने का असल कारण नहीं बताया गया, इसीलिए आज नाचीज ये गुजारिश कर रहा है।
" दीपक असीम
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