बुधवार, 29 सितंबर 2010

निराशा में भी छिपी होती है आशा

 
 
जीत या हार, रहो तैयार रितु ने स्कूल से आकर बस्ते को एक तरफ फेंका और तेजी से अपने बेडरूम में चली गई। उसके चेहरे से गहरी उदासी साफ झलक रही थी। पापा ने कारण पूछा, तो रितु ने कहा-आई एम द लूजर पापा, मैं मैथ में कभी अच्छे अंक नहीं ला सकती। क्यों? पापा ने सवाल किया। ..क्योंकि इस बार भी मेरे गणित में कम नंबर आए, जाहिर है मैं मैथ में हमेशा जीरो रहूंगी। तुम्हें क्या लगता है, रितु को खुद को लूजर कहना चाहिए? अब तनु को ही लो, वह अक्सर इस बात से अपसेट हो जाती है कि उसे उसके दोस्त मोटी कहते हैं। और जानते हो, केवल इस बात से उसने अपनी पूरी लाइफ ही बेकार मान ली। दोस्तो, हर चीज हमारी सोच के मुताबिक नहीं होती। ऐसे में जाहिर है दुख तो होगा ही, लेकिन केवल टेंशन लेने या खुद को कमजोर मान लेने से तो हमारा ही नुकसान होगा। हम ऐसी प्रॉब्लम्स को कैसे मैनेज करें? ऐसा मैनेजमेंट जिसकी बदौलत हमारा आत्मविश्वास बरकरार रहे और हमें इस बात का पक्का भरोसा हो कि किसी भी समस्या के आगे हम घुटने नहीं टेकेंगे। यदि इस बारे में तुम्हारे मन में हैं ढेरों सवाल, तो हाजिर हैं वे खास टिप्स, जिन्हें अमल में लाने पर तुम्हारी टेंशन हो जाएगी छू-मंतर..
कम्युनिकेशन जरूरी
किसी ने तुम्हारा दिल दुखाया हो या तुम्हें लगा हो कि अमुक व्यक्ति की वजह से तुम्हारा जरूरी काम बिगड गया, तो उन्हें बता दो न। क्या सोचते हो? इससे उनका दिल दुखा दोगे तुम और बात बिगड जाएगी? बिल्कुल गलत। दरअसल, तुम अपनी बात कैसे कहते हो, यह तरीका जानना सबसे जरूरी है। वह चाहे बोलकर हो या लिखकर। पत्र या ईमेल के माध्यम से, फोन पर या सामने, तुम्हें अपनी बात का टोन धीमा रखना चाहिए। किसी ने जो बात कही, उस पर फोकस करने की बजाय, तुम्हें उससे क्या तकलीफ पहुंची और क्यों, यह साफ करना जरूरी है। सावधान, बॉडी-लैंग्वेज से कभी यह मत शो करो कि गलती किसकी है। इसके बाद जब तुम्हें लगे कि बात असर कर रही है, तो एक प्यार भरी झप्पी या मीठे स्वर में थैंक्यू कहना काफी है। फिर देखो, कमाल होता है या नहीं।
सेल्फ टॉक जरूरी
हम किसी भी घटना या समस्या को किस तरह से लेते हैं, क्या अर्थ निकालते हैं? उसी सवाल पर टिकी होती है उस घटना पर आधारित हमारी फीलिंग्स। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, यह हमारा स्वभाव होता है कि प्रॉब्लम सामने आते ही हम अक्सर निगेटिव सोचने लगते हैं। ऐसे में हर किसी को सेल्फ-टॉक यानी खुद से बात करनी चाहिए। यदि गंभीरतापूर्वक ऐसा करें, तो हम खुद देखते हैं कि प्रॉब्लम का एक बढिया सॉल्यूशन निकल आता है।
शेयर करो
निराशा हावी होने पर तुम्हारे सारे काम प्रभावित हो सकते हैं। ऐसे में बेहतर यही होगा, जिनसे मिलकर अच्छा लगे, उनसे अपनी प्रॉब्लम शेयर करो। वे तुम्हारे पैरेंट्स हो सकते हैं, दोस्त अथवा भाई-बहन भी या कोई और। हो सकता है कि इनके पास हो तुम्हारी परेशानी का बेस्ट सॉल्यूशन। ऐसा सॉल्यूशन, जिसके बारे तुमने कभी विचार ही न किया हो! हां, यदि तुम प्रोफेशनल हेल्प लेना चाहते हो, तो इसमें कोई बुराई नहीं। 
घटना का क्या अर्थ निकालते हैं, यह बात घटना से ज्यादा महत्वपूर्ण है।
अच्छी बुक्स, प्रेरक व्यक्ति से बातचीत है जरूरी।
प्रोफेशनल हेल्प लेने में कोई बुराई नहीं।
योगा और मेडिटेशन दिनचर्या में हो शामिल।
बचना एकरसता से
इन दिनों ज्यादातर टीनएजर्स की जीवन-शैली स्कूल से घर, फिर कम्प्यूटर, वीडियो-गेम और टेलीविजन तक सीमित हो गई है। यदि तुम्हारी दिनचर्या भी ऐसी ही है, तो प्लीज आज ही इसे बदल डालो। जिस गेम में रुचि हो, मसलन, क्रिकेट, फुटबॉल, बॉस्केटबॉल जमकर खेलो। यदि एक्सरसाइज और योगा में दिलचस्पी है, तो तुम्हें इन्हें एक बार आजमा कर जरूर देखना चाहिए। हां, पास-पडोस में होने वाले आयोजनों व समारोहों में भाग लेने और लोगों से मिलने-जुलने से भी तुम्हें काफी अच्छा लगेगा।
आज हमारी लाइफ जरूर बहुत फास्ट हो गई है, लेकिन क्या तुम्हें नहीं लगता कि इसे तुम अपने अंदाज में जी सकते हो? तो फिर देर किस बात की, आज ही यह संकल्प लो कि टेंशन को कहोगे बाय और हर परिस्थिति के लिए रहोगे हरदम तैयार..।
सीमा झा