सोमवार, 16 सितंबर 2013

रूप-रूपान्तर

-रमेश जोशी 

यह सृष्टि विभिन्न संज्ञाओं और उनके विभिन्न रूपों से बनी है | जिन संज्ञाओं का रूप हमें दिखाई नहीं देता उन्हें भी हमने रूपों में ढालने की कोशिश की है | ईश्वर का विस्तार इतना है कि उसे  किसी विशेष रूप में उसे बाँधा नहीं जा सकता फिर भी मनुष्य ने, चाहे वह  किसी भी धर्म का हो , ईश्वर को किसी न किसी प्रतीक के द्वारा रूपों में बाँधने ही कोशिश की है |

कौन, किसे,कैसे, किस रूप में बाँध सकता है  क्योंकि लाख सँभालते-सँभालते भी रूप बदल जाता है | रूप का रूपान्तर ही सृष्टि का सच है | कोई कुछ भी न करे तो भी रूप बदल जाता है | बच्चा जवान हो जाता है, जवान होकर बूढ़ा भी होता है और अंत में मरना भी पड़ता है | फिर भी पता नही क्यों आदमी बाल काले करता है, झुर्री पड़ी चमड़ी को खिंचवाकर जवान दिखने की कोशिश करता है, सच  दिखाने वाले दर्पण को भी धोखा देने की कोशिश करता है |जब कि उसकी पत्नी और यमराज दोनों सही उम्र को जानते हैं | लेकिन आदमी है कि धोखा देने के चक्कर में धोखा खाता रहता है |

वैसे स्वस्थ रहना बहुत  आवश्यक है - अपने और दूसरों में भले के लिए भी | स्वस्थ रहकर आप स्वयं खुश और आत्मनिर्भर रहते हैं और दूसरों को अनावश्यक सेवा-सुश्रूषा के झंझट से बचाते हैं | और स्वस्थ रहकर ही आप अपने सभी ऋणों पितृ , देव और ऋषि ऋण  चुकता कर सकते हैं अर्थात सकारात्मक रूप से सक्रिय रह सकते हैं | तभी कहा गया है- पहला सुख निरोगी काया |इसलिए सब को अपने खान-पान, दिनचर्या, विचारों से स्वस्थ रहने का प्रयत्न करते रहना चाहिए |

इसके बाद भी कभी-कभी बीमारी भी आ सकती है और मरना भी अटल है | फिर भी स्वस्थ रहने के प्रयत्नों और साफ-सुथरा रहने को  किसी को धोखा देना या सिर्फ माया-मोह भरा बचपना नहीं माना जा सकता | यह तो सृष्टि के रूप परिवर्तन करने की,  रूप-रूपान्तरता  को सहज स्वीकार करना है | कुछ लोग कभी-कभी अभिनय करने के लिए रूप बदलते हैं | फिल्मों में अभिनेता विशेषरूप से हीरो विशेष कारणों और आवश्यकताओं के तहत रूप बदलते हैं | लेकिन यह जीवन का स्वाभाविक सच नहीं है, कला है | वैसे जीवन भी एक प्रकार का नाटक ही है जिसमें व्यक्ति को तरह-तरह की भूमिकाएं निभानी पड़ती हैं | एक ही दिन में कभी पति, कभी भाई, कभी मित्र, कभी मातहत, कभी मालिक | और कालांतर में बेटे को बाप बनना पड़ता है, बाप से फिर दादा भी बनना पड़ता है | इस प्रकार यह परिवर्तन स्वाभाविक रूप से चलता रहता है |

कभी-कभी कुछ लोग किसी विशेष रूप के साथ अपने आप को इस तरह से जोड़ लेते हैं कि उन्हें उसी रूप में सर्वाधिक सहजता रहती है जैसे कि तुलसी ने अपने आप को राम रूप के साथ जोड़ लिया था | कहते हैं कि एक बार वे मथुरा गए, जहाँ कृष्ण के विग्रह को देखकर कहने लगे-
कहा कहों छवि आप की भले बने हो नाथ |
तुलसी मस्तक तब नवे जब धनुष बाण हो हाथ |
कहते हैं तुलसी की एक निष्ठा से प्रभावित होकर कृष्ण ने उन्हें राम रूप में दर्शन दिए |

कुछ मतलब ले किए,  लोगों की श्रद्धा का अनुचित लाभ उठाने के लिए अपने आप को बदल लेते हैं | नेता हर धार्मिक स्थान पर वोटों के लिए  मत्था टेकते हैं जब कि उन्हें किसी भी धर्म में कोई श्रद्धा नहीं होती | ऐसे नेता लोगों  को खुश करने के लिए भले ही एक दो शब्द ही सही,  श्रोताओं की भाषा में बोलते हैं | मज़मा लगाने वाले और भिखारी कहते ही हैं- हिन्दू को राम-राम, मुसलमान को सलाम, सरदार को सतश्री अकाल और ईसाई को गुड मोर्निंग | ऐसे नेताओं दल बदल भी न तो आत्मा  की आवाज़ है और न ही घर वापसी, मात्र लाभ को लपकने की शब्दावली है | यदि कोई  विदेशी नेता भारत में आकर अपने भाषण में  'नमस्ते'  कहता है तो यह न तो भारत प्रेम है और न ही हिन्दी प्रेम |शुद्ध स्वार्थ है |

लेकिन कुछ धूर्त और दुष्ट लोग अपने स्वार्थ के लिए, दूसरों को धोखा देने के लिए रूप रूपांतरित करते हैं जैसे रावण ने सीता का हरण करने के लिए साधु का वेश बनाया और राम को धोखा देने के लिए मारीच को भी स्वर्ण मृग का रूप धारण करने के लिए बाध्य किया, सूर्पणखा राम-लक्ष्मण को फँसाने के लिए  सुंदरी बन गई, रावण ने संजीवनी बूटी लाने जा रहे हनुमान जी को भ्रमित करने के लिए, उनके मार्ग में साधु का वेश बनाकर कालनेमि को बैठाया | पूतना ने अपने विष-बुझे स्तनों से दूध पिलाकर कृष्ण को मारने के लिए गोपिका का रूप बनाया, इंद्र आदि देवता दमयंती को छलने के लिए नल का वेश बनाकर स्वयंवर में गए,  इंद्र ने गौतम ऋषि का वेश बनाकर अहल्या के साथ दुराचार किया |आजकल यात्रियों को लूटने वाले कभी उनके हित-चिन्तक, जाति- धर्म और इलाके या गाँव-गली वाले बनकर खाने में नशीली वस्तु मिलाकर माल लेकर चम्पत हो जाते हैं | तभी रेल और बसों में लिखा रहता है -अनजान व्यक्ति द्वारा दी गई कोई वस्तु न खाएँ |

रूपान्तर परोपकार के लिए भी हो सकता है जैसे कि विष्णु भगवान ने नृसिंह, कच्छप, मत्स्य, वराह आदि के रूप में अवतार लिए | लेकिन आजकल बहुत से नकली लोग बढ़ गए हैं इसलिए भगवान ने अवतार लेना बंद कर दिया है | उसके बाद उसने अपने बेटे को भेजा जिसे लोगों ने सूली पर चढ़ा दिया | इसके बाद अपने प्रतिनिधि को भेजा | उसके बाद तो उसने लोगों की बदमाशियों से परेशान होकर दुनिया की तरफ से मुँह मोड़ लिया | अब तो सारी श्रद्धा लम्पटों के हवाले हो गई है जिन्होंने धर्म का व्यापार और राजनीति करनी शुरू कर रखी है |

हमारे देश पर दो सौ वर्ष शासन करने वाले गौरांग महाप्रभुओं ने कभी हमें अपनी बराबरी का नहीं समझा | इतिहास इस बात का गवाह है कि कई स्थनों पर लिखा रहता था- डॉग्स एंड इंडियंस आर नॉट अलाउड | भारत में ही बहुत सी सड़कें ( जिन्हें माल रोड़ कहा जाता था ) और ऐसे स्थान थे जहां भारतीयों का प्रवेश दंडनीय था | हमें ज़मीन पर हगने वाला काला आदमी कहा जाता था | गांधी को अफ्रीका में ट्रेन से फेंकने वाली घटना करुणा का धर्म मानने वालों के मानव और विशेषकर भारत प्रेम का प्रमाण है | हमारी भाषाएँ वर्नाक्यूलर अर्थात असभ्यों की भाषा कही जाती थीं | वेद चरवाहों के गीत थे | सारा भारतीय वांग्मय अंग्रेजी की किताबों के एक शेल्फ से अधिक नहीं समझा गया |

आज भारत की सभी भाषाओं और विशेषकर आदिवासियों की बोलियों में गौरांग धर्म  की पुस्तकें, चर्चा और रेडियो कार्यक्रम निरंतर प्रसारित हो रहे हैं | सेवा के नाम पर कम पैसों में सरकार से ज़मीन प्राप्त करके स्कूल और अस्पताल खोलकर पैसे तो कमाए ही जा रहे हैं बल्कि भोले-भाले लोगों की श्रद्धा भी खरीदी जा रही है |

१० जुलाई २०१३ का समाचार है कि रांची ( झरखंड ) से पंद्रह किलोमीटर की दूरी पर सिंहपुर में एक चर्च बना है जिसमें जीसस और मेरी की एक मूर्ति लगाई गई है जिसके नाक-नक्श, लाल किनारी की सफ़ेद साड़ी, गले में नेकलेस आदि  झारखण्ड के  सरना समुदाय जैसे हैं | भारत के काले आदिवासी धन्य हो गए जिनके काले रंग को पसंद करके प्रभु ने उनके रूप में अपना रूपान्तर किया | 

इस समुदाय के कुछ लोग ईसाई भी हैं | इस समुदाय के गैर ईसाई लोगों का कहना है कि जीसस और मेरी न तो हमारे समुदाय के थे और न ही उनके नाक-नक्श, रंग  और पहनावा हमारे जैसे थे | फिर जीसस और मेरी के इस रूपांतरण का क्या उद्देश्य है ? उनके अनुसार इस तरह ये लोग जीसस और मेरी को हमारे समुदाय की सिद्ध करके हमारे लोगों की श्रद्धा का शोषण करना चाहते हैं | इससे हमारे समुदाय के लोग धीरे-धीरे जीसस और मेरी को हमारे ही समुदाय के देवी देवता मानने लग जाएँगे | तब उन्हें ईसाई बनाने में सरलता रहेगी | कितना दूरगामी, योजनाबद्ध और षड़यंत्रपूर्ण रूपान्तर है ?

यह रूप-रूपान्तर स्वाभाविक है या किसी बड़े, दूरगामी और योजनाबद्ध षड्यंत्र का हिस्सा ?

यदि नहीं, तो अभिव्यक्ति और विश्वास की स्वतंत्रता और भाई-चारे का ढिंढोरा पीटने वालों को क्यों 'सूर्य- नमस्कार' तक अपने धर्म पर हमला लगने लग जाता है ? सूर्य तो एक ही है और समस्त सृष्टि का आधार और कारण स्वरूप है फिर उसके प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता प्रकट करने मात्र से खतरे में पड़ जाने वाला धर्म क्या, कैसा और कितना खुला और कल्याणकारी हो सकता है ?
-रमेश जोशी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें