साधिकार भेंट लेने और उदारता से भेंट देकर आत्मसंतुष्ट होने का पर्व है - छेरछेराहमारे छत्तीसगढ़ राज्य में पौष पूर्णिमा तिथि पर छेरछेरा पर्व मनाया जाता है। यह खरीफ़ सीजन के समस्त कृषि कार्य सम्पन्न हो जाने की खुशी में मनाया जाने वाला कृषि लोकपर्व है। छेरछेरा का आशय खरीफ सीजन के समूचे कृषि कार्य का पूरे अंचल में सम्पन्न, अंतिम,आखिरी,चरम या पूर्ण हो जाना है।जब व्यक्तिगत एक कृषक की खरीफ सीजन फसल की मिंजाई का काम जिस दिन आखिरी होती है उसे छेवर कहते हैं। पूरे अंचल में पौष पूर्णिमा तक सभी कृषकों का कार्य सम्पन्न हो जाता तब इसे छेरछेरा कहते हैं।यानी इस सीजन के कृषि कार्यों की आखिरी यानी समापन होकर,कृषि कार्य से फुर्सत मिल जाती है।धन धान्य से कृषकों की कोठी भर जाती है।इसी खुशी में पूरा अंचल छेरछेरा त्यौहार मनाता है।इस मौके पर सभी का घर धन धान्य से परिपूर्ण हो जाता है।गरीब,कृषि मजदूर व्यक्ति के घर भी सम्पन्नता रहती है।हर कोई कुछ न कुछ भेंट देने में सक्षम रहता है। व्यक्तिगत या सामूहिक तौर पर लिंगभेद,आर्थिक बंधन,आयु,जाति,धर्म,पंथ व मजहब से परे बच्चे,युवा व बुजूर्ग हाथ में टोकरी या थैला लेकर घर घर जाकर जोश खरोस व जोर शोर से छेरछेरा शब्द उच्चारित करते हैं। इसे छेरछेरा कूटना कहते हैं।फिर जिससे जो बन पड़ता है वह वही उनकी टोकरी या थैले में डाल देता है।वैसे यह जिम्मा अधिकांशतःमाँ लक्ष्मी स्वरूपा महिलाएं ही पूरा करती हैं। चूंकि धान छत्तीसगढ़ की प्रमुख खरीफ फसल है और यह अनाज प्रत्येक घर में उपलब्ध रहता है इसलिये धान भेंट करने की परंपरा अधिक प्रचलित है।इसमें याचना या दान का भाव निहित नही है। वस्तुतःकृषि कार्य समाप्त हो जाने की खुशी में साधिकार भेंट लेने और उदारता से भेंट देकर आत्मसंतुष्ट होने का पर्व है।
तभी तो लोग मनोरंजक शैली में कहते सुने जा सकते हैं यथा-
छेरछेरा,छेरछेरा माई कोठी के धान ला हेरहेरा।
छेरिकछेरा छेर मड़ईकिन छेरछेरा।
अर्थात कृषि कार्य समाप्त हो गया।इस खुशी में माई कोठी अर्थात् मुख्य धान भंडारन स्थान से धान निकालकर हमें भेंट में दें।
यदि किसी से धान निकालने में थोड़ी भी देर हो जाती है तो छेरछेरा कूटने वालों के मुंह से बरबस ही निकल पड़ता है-
अरन बरन कोदो दरन,
जभे देबे तभे टरन।
चाहे कुछ भी हो। यहाँ तक कि हमें कोदो भी दलना पड़ जाये अर्थात कितनो भी प्रतीक्षा करनी पड़े जब आप भेंट देंगे तभी आपके द्वार से टलेंगे।पूरा छत्तीसगढ़ इस पर्व में खुशी से सराबोर रहता है। छत्तीसगढ़ी व्यंजन जैसे बरा,सोंहारी,गुलगुला भजिया प्रत्येक घर में बनता है। खाते खिलाते आनंद मग्न हो जाते हैं। लोकगीत संगीत वालों की छेरछेरा टोली इन खुशियों में पूनम के चार चांद लगा देती है।इस पर्व की महत्ता व मान बढ़ाते हुए जन भावनाओं के अनुरूप इस वर्ष से छत्तीसगढ़ सरकार ने छेरछेरा पर्व पर सार्वजनिक अवकाश की स्वीकृति दी है जो जन सरोकार के दृष्टिकोण काफी सराहनीय कदम है।
बन्धु राजेश्वर खरे लक्ष्मण कुंज
शिव मंदिर के पास,अयोध्यानगर
महासमुंद,( छ. ग.)