गुरुवार, 24 जनवरी 2013

अमित पुराणिक की कविताऍं

डर लगता है
बंद रहने दो इन दरवाजों को है
खिड़की के पल्‍लों को डर लगता है
है हर तरफ बस धुआं धुआं
अब तो बाहर निकलने से डर लगÌæ ãñUÐ
न जाओ तुम इन उजालों से आगे
अजनबी अंधेरों से डर लगता है
कुछ यूं ले रही है करवट ये जिंदगी अपनी
कि अब तो हर कदम पे डर लगता है
नहीं मालूम कब आखिरी बार हँसा था खुलकर
हँसने की बात ना करो मेरे दोस्‍त
खुशी की हर बात से डर लगता है
पहले ऐसी डरावनी तो न थी ये जिंदगी
हर तरफ हँसी-खुशी थी अपने थे
मन में उत्‍साह उमंग का डेरा था
जाने अनजाने हमसे क्‍या भूल हुई
जीवन की खुशी जाने कहां गुम हुई
पहले तो हर पाल काम था
एक पल को न आराम था
यूं तो अब भी काफी कुछ है बाकी
बोझ से मेरी फटी जा रही है छाती
फिर भी कुछ करने में जाने क्‍यूं मन नहीं लगता है
कहा ना ममुझे अब हर नए काम में डर लगता है
हैं अभी सपने अधूरे, नींद अभी बाकी है
पता है मुझे मंजिल पाने में मेहनत अभी बाकी है
खुद पर अब भरोसा न रहा मेरा
न करो बात किस्‍मत की डर लगता है
जाने खुद को कैसे समझाऊं
ये लड़खड़ाते कदम कैसे बढ़ाऊं
मुकाम पे बढ़ते हर कदम पर डर लगता है
जो चाहा वो सब वक्‍त से पाहले पास है
फिर भी मन में जाने क्‍या पाने की आस है
आस की बात ना करो के डर लगता है
किस्‍मत ने सब दिया
भगवान ने दामन भर दिया
जाने क्‍यूं इनसे अब कुछ मांगने में डर लगता है
मिलने सबसे जाता हूं
अक्‍सर हँसता-हॅसाता हूं
पर दिल पर चुभने वाली उस फॉंस से डर लगता है
देर रात को सोता हूं और अल्‍सुबह उठ जाता हूं
ये नहीं कि सो नहीं पाता, ख्‍वाबों के आने से डर लगता है
छुपा रखा है नए काम का जोश दिल में
मगर आने वाले  पुराने परिणामों से डर लगता है
 यूं तो मैं डरपोक नहीं मगर
बहादुरी , निर्भयता की हर बात से डर लगता है
यही प्रार्थना है ईश्‍वर से और यही अभी की आखरी आस है
हो जाए सब कुछ अच्‍छा ओर मिल जाए, जो‍ बिलकुल पास है
दे जाए अचानक ये खुशी कोई मुझे हाथ बढ़ाने में डर लगता है

आदमी की दोस्ती

याद नहीं करते कभी सताते हैं दोस्त,
हमें हर खुशी हर गम मे याद आते हैं दोस्त,
हम दोस्तों को कभी भुल नहंीं पाते ....
पता नहीं हमें कैसे भूल जाते हैं दोस्त,
शायद है कमी मुझमें ही कोई ...
क्योंकि नहीं पत्थर दिल यहां इतना कोई,
दोस्तों के संग हंँसे रोए दोस्तों संग
हर सुख-दुख में रहे दोस्तों संग
अब क्यूं नहीं मेरा दु:ख बाँटने रहता है कोई दोस्त,
सुख भी तनहा अकेला कहता है मुझको,
सुख में नहीं रहा साथ हमारे कोई,
दु:ख में भी अकेले थे, मुश्किल यहां हुई,
लोग कहते है दोस्तो से बड़ा नहीं कोई,
अब जाने क्यूं लगे इससे छोटा नहीं कोई,
जाने क्यूं लगे खता है दोस्ती,
इस जमीं पे सबसे बड़ी सजा है दोस्ती,
 मँझधार की क्या कहूँ ......
किनारे पर ही छूट जाए, वो रिश्ता है दोस्ती,
कोई कभी भी तोड़ जाए,वो कमजोर नाता है दोस्ती,
सुना है बिना दोस्त आधा है आदमी,
जाने क्यूं लगे दोस्त संग मुर्दा है आदमी,
सारे राज बाँटता है दोस्तों से
बाद मे खुले राजों से पछताता है आदमी,
दोस्ती के हर मोड़ पर धोखा खाता है आदमी,
फिर भी दोस्ती बनाता है....
दोस्ती निभाता है....
मजबूर है आदमी,
मैं तो दुश्मन को भी ना दूं वो सजा है दोस्ती,
एक काली अंधेरी गुफा है दोस्ती
दुश्मन तो दुश्मनी में भी ईमानदार हैं,
यहां लोगों से दोस्ती भी ईमानदारी से निभती,
फिर भी दोस्ती बनाता है...
नांदा है आदमी
दुश्मन तो सीने में मारे
पीठ में पड़े वो खंजर है दोस्ती
दो कदम भी साथ चला ना जाए...
वो ढीला पंचर है दोस्ती
फिर क्यूं न कहूं-एक बुरा मंजर है दोस्ती,
उपजाऊ है दुश्मनी तो बंजर है दोस्ती,
धोखेबाजों, छलियों से भरा चंेबर है दोस्ती,
चंद दिन दूध पिलाओ तो सांप भी ना उसे
रह-रह के फन उठाए वो तक्षक है दोस्ती
हर अरमान हर सपने हर कामयाबी की भक्षक है दोस्ती,
फिर भी दोस्त बनाता है....
दोस्त निभाता है...
नासमझ है आदमी
सुना है बड़े-बड़े गम दोस्तों संग भुलाता है आदमी
एैसा लगता है हर बड़ा गम दोस्तों से ही पाता है आदमी
बार-बार मुसीबतों के दरवाजे पहुंच जाता है आदमी,
जिन्दगी के मोड़ की क्या कहुं .....
सीधे रास्तों में ठोकरें खाता है आदमी
सारी जिम्मेदारियां अकेला ढोता है
बोझ तले अकेला दबकर रोता है आदमी,
फिर भी दोस्त बनाता है...
बेवस है आदमी,
दोस्तों में मजबूर है आदमी
दुश्मनों में अकेला होकर भी सुखी है
कम से कम वहां दोस्तों से महफूज है आदमी
फिर भी दोस्त बनाता है
दोस्ती निभाता है...
बेतुक है आदमी
हरी-भरी जिन्दगी घावों से भरता है
जाने क्यूं दोस्ती करता है आदमी
हारना तो है ही मौत के सामने
फिर क्यूं दोस्ती में हारता है,सर झुकाता है आदमी
जिन्दगी से अकेले लड़ना क्यूं नहीं सीख लेता
तन्हाई की आड़ मे क्यूं शरमाता है आदमी
अकेला होने पर क्यूं घबराता है आदमी
खुद को पहचान सारी शक्ति तू ही तो है
फिर को क्यूं चंद बेवफाओं से घबराता है आदमी
सिर्फ तन्हाई दूर करने लोगों से मिलता है
इसीलिए दोस्त बनाता है...
दोस्ती निभाता है.... आदमी
वो सबके काम आया, कोई उसके भी आएगा
सबके दु:ख बाटे,कोई उसके भी बांटेगा
इसीलिए दोस्त बनाता है ....
दोस्ती निभाता है ....आदमी
अपने राजों के रास्ते चाहता है,
मुसीबतें नहीं उनका हल चाहता है
इसीलिए दोस्त बनाता है..
दोस्ती निभाता है ...आदमी
दु:ख तो सह लेगा अकेला, खुशियां बाँटना चाहता है
इसीलिए दोस्त बनाता है ...
दोस्ती निभाता है... आदमी
फिर भी छला जाता है, हर पल ठोकरें खाता है
जीवन के सफर में हर मोड़ पर, हर चौराहे पर ...
खुद को तन्हा-अकेला पाता है
क्या इसीलिए दोस्त बनाता है.......
दोस्ती निभाता है आदमी ..........


आदमी की दोस्ती

याद नहीं करते कभी सताते हैं दोस्त,
हमे हर खुशी हर गम में याद आते है दोस्त,
हम दोस्तों को कभी भुल नहीं पाते ....
पता नहीं हमें कैसे भुल जाते है दोस्त,
शायद है कमी मुझमें ही कोई ...
क्योंकि नहीं पत्थर दिल यहां इतना कोई,
दोस्तों के संग हंसे रोए दोस्तों संग
हर सुख-दुख मे रहे दोस्तों संग
अब क्यूं नहीं मेरा दु:ख बाँटने रहता है कोई दोस्त,
सुख भी तनहा अकेला कहता है मुझको,
सुख में नहीं रहा साथ हमारे कोई,
दु:ख में भी अकेले थे मुश्किल यहां हुई,
लोग कहते हैं दोस्तो से बड़ा नहीं कोई,
अब जाने क्यूं लगे इससे छोटा नहीं कोई,
जाने क्यूं लगे खता है दोस्ती,
इस जमीं पे सबसे बड़ी सजा है दोस्ती,
 मँझधार की क्या कहूं ......
किनारे पर ही छूट जाए,वो रिश्‍ता है दास्ती,
कोई कभी भी तोड़ जाए,वो कमजोर नाता है दोस्ती,
सुना है बिना दोस्त आधा है आदमी,
जाने क्यूं लगे दोस्त संग मुर्दा है आदमी,
सारे राज बाँटता है दोस्तों से
बाद मे खुले राजों से पछताता है आदमी,
दोस्ती के हर मोड़ पर धोखा खाता है आदमी,
फिर भी दोस्ती बनाता है....
दोस्ती निभाता है....
मजबूर है आदमी,
मै तो दुश्मन को भी ना दूं वो सजा है दोस्ती,
एक काली अंधेरी गुफा है दोस्ती
दुश्मन तो दुश्मनी में भी ईमानदार हैं,
यहां लोगों से दोस्ती भी ईमानदारी से निभती,
फिर भी दोस्ती बनाता है...
नांदा है आदमी
दुश्मन तो सीने मे मारे
पीठ में पड़े वो खंजर है दोस्ती
दो कदम भी साथ चला ना जाए...
वो ढीला पंचर है दोस्ती
फिर क्यूं न कहूं-एक बुरा मंजर है दोस्ती,
उपजाऊ है दुश्मनी तो बंजर है दोस्ती,
धोखे बाजों छलियों से भरा चंेबर है दोस्ती,
चंद दिन दूध पिलाओ तो सांप भी ना उसे
रह-रह के फन उठाए वो तक्षक है दोस्ती
हर अरमान हर सपने हर कामयाबी की भक्षक है दोस्ती,
फिर भी दोस्त बनाता है....
दोस्त निभाता है...
नासमझ है आदमी
सुना है बड़े-बड़े गम दोस्तों सग भुलाता है आदमी
एैसा लगता है हर बड़ा गम दोस्तों से ही पाता है आदमी
बार-बार मुसीबतों के दरवाजे पहुंच जाता है आदमी,
जिन्दगी के मोड़ की क्या कहुं ..??...??
सीधे रास्तों में ठोकरें खाता है आदमी
सारी जिम्मेदारीयां अकेला ढोता है
बोझ तले अकेला दबकर रोता है आदमी,
फिर भी दोस्त बनाता है...
बेबस है आदमी,
दोस्तों में मजबुर है आदमी
दुश्मनों में अकेला होकर भी सुखी है
कम से कम वहां दोस्तों से महफूज है आदमी
फिर भी दोस्त बनाता है
दोस्ती निभाता है...
बेतुक है आदमी
हरी-भरी जिन्दगी घावों से भरता है
जाने क्यूं दोस्ती करता है आदमी
हारना तो है ही मौत के सामने
फिर क्यूं दोस्ती में हारता है,सर झुकाता है आदमी
जिन्दगी से अकेले लड़ना क्यूं नहीं सीख लेता
तनहाई की आड़ मे क्यूं शरमाता है आदमी
अकेला होने पर क्यूं घबराता है आदमी
खुद को पहचान सारी शक्ति तु ही तो है
फिर को क्यूं चंद बेवफाओं से घबराता है आदमी
सिर्फ तनहाई दूर करने लोगों से मिलता है
इसीलिए दोस्त बनाता है...
दोस्ती निभाता है.... आदमी
वो सबके काम आया, कोई उसके भी आएगा
सबके दु:ख बाटे,कोई उसके भी बांटेगा
इसीलिए दोस्त बनाता है ....
दोस्ती निभाता है ....आदमी
अपने राजों के रास्ते चाहता है,
मुसीबतें नहीं उनका हल चाहता है
इसीलिए दोस्त बनाता है..
दोस्ती निभाता है ...आदमी
दु:ख तो सह लेगा अकेला, खुशियां बाँटना चाहता है
इसीलिए दोस्त बनाता है ...
दोस्ती निभाता है... आदमी
फिर भी छला जाता है, हर पल ठोकरें खाता है
जीवन के सफर में हर मोड़ पर, हर चौराहे पर ...
खुद को तनहा-अकेला पाता है
क्या इसीलिए दोस्त बनाता है.......
दोस्ती निभाता है आदमी ..........

अमित पुराणिक
मुंगेली छत्‍तीसगढ़
 
अमित पुराणिक साप्‍टवेयर इंजीनियर हैं, सिंटेल पुणे में कार्यरत हैं। इन दिनों वे नेशविल टेनिसी यूएसए में हैं।

शुक्रवार, 18 जनवरी 2013

कलाबाज़-सा शरीर, अभिनेता-सा दिमाग और कवि-सा हृदय



      माइम कला देखने में जितनी आसान लगती है, उसे करना उतना ही मुश्किल होता है, लेकिन सतत परिश्रम और अभ्यास से इसे साधा जा सकता है। फ्रांस के विश्व-विख्यात माइम कलाकार एटीएन दक्रू ने कहा है-"माइम कलाकार का शरीर एक कलाबाज़ (जिम्नास्ट) जैसा, दिमाग एक अभिनेता जैसा और हृदय एक कवि जैसा होना चाहिए।" एकाग्रता, कल्पनाशीलता, त्वरित प्रतिक्रिया तथा वस्तुओं और क्रियाओं के बारीक अवलोकन से इस कला में निपुणता प्राप्त की जा सकती है।
     यह बातें गाँधी भवन स्थित चिल्ड्रंस थियेटर अकादमी में 11 जनवरी 2013 से आयोजित तीन दिवसीय माइम कार्यशाला के दौरान भोपाल के प्रख्यात माइम कलाकार श्री मनोज नायर ने बच्चों से साझा कीं। कार्यशाला में 6 वर्ष की आयु के बच्चों से लेकर 25 वर्षीय युवाओं तक ने भाग लिया। श्री नायर ने अपने साथी कलाकार श्री मिथुन की सहायता से विद्यार्थियों को माइम कला के इतिहास और उसके विभिन्न आयामों से परिचित कराया। उन्होंने बताया कि संवादरहित होते हुए भी यह एक अत्यंत मनोरंजक और लोकप्रिय कला है। माइम में भाषा का बंधन नहीं होता, इसलिए इसे किसी के भी सामने प्रस्तुत किया जा सकता है। यह एक भावप्रधान कला है, जिसमें नवरसों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। श्री नायर ने सिखाया कि किस प्रकार अपनी शारीरिक मुद्राओं एवम हाव-भाव के माध्यम से कलाकार नवरसों को प्रदर्शित कर सकता है। इसके लिए उन्होंने बच्चों को कई खेल सिखाए तथा शरीर को फुर्तीला बनाए रखने के लिए शारीरिक अभ्यास की क्रियाएँ बताईं जैसे धीमी गति में कार्य करने का अभिनय, रोबोट-चाल आदि।
     श्री नायर ने बताया कि माइम कला में हमेशा कोशिश करनी चाहिए कि मंच पर कम से कम वस्तुओं का प्रयोग हो। कलाकार को चीज़ों को बहुत आसान बनाकर करना चाहिए, जिससे दर्शक को कथा से भटकने से रोका जा सके। कलाकार को उच्च कोटि का कल्पनाशील, अच्छी याददाश्त एवम तेज़ दिमाग वाला होना चाहिए, ताकि वह स्थिति को भाँपकर तुरंत निर्णय कर सके। अगर हम अपनी क्रियाओं का बारीकी से अवलोकन करें और निरंतर अभ्यास करें तो माइम करना आसान बन सकता है। उन्होंने बताया कि माइम में किस प्रकार किसी क्रिया की धीमी अथवा देर से दी गई प्रतिक्रिया से भी दर्शक को गुदगुदाया जा सकता है।
     श्री नायर ने बच्चों को अभ्यास के लिए कुछ काल्पनिक परिस्थितियाँ बताते हुए उन पर माइम करने को कहा, जिसके परिणामस्वरूप बच्चों ने छोटी-छोटी कई मनोरंजक प्रस्तुतियाँ दीं। उन्होंने सिखाया कि माइम में अपनी जगह पर स्थिर रहकर किस तरह चलने, भागने या हवा में उडने का भ्रम पैदा किया जा सकता है। उदाहरण के लिए श्री मनोज नायर एवम उनके साथी श्री मिथुन ने स्वयं काल्पनिक गुब्बारे, गेंद, छाते और पतंग के साथ मनोरंजक प्रस्तुतियाँ दीं। उन्होंने आगे बताया कि माइम में संगीत के मिश्रण से उसे अधिक मनोरंजक बनाया जा सकता है। इससे दर्शक लम्बे समय तक प्रस्तुति से बंधता है।
     कार्यशाला के आखिरी दिन बच्चों ने सीखी हुईं बातों को दो छोटी समूह प्रस्तुतियों के माध्यम से प्रदर्शित किया और श्री नायर से आशीर्वाद प्राप्त किया। कार्यशाला के लगभग 30 प्रतिभागियों में से एक अजय कुमार मेहरा ने अपना अनुभव बताते हुए कहा- मुझे हमेशा माइम प्रस्तुति देखने में बहुत मज़ा आता था इसलिए इसे सीखने के लिए मैं तुरंत तैयार हो गया। वास्तव में इसे पर्फेक्ट्ली करना मुश्किल है, लेकिन मुझे विश्वास है कि मनोज सर की सिखाई टेक्नीक्स से मैं जल्द ही अच्छे से माइम करने लगूँगा।
            एक अन्य प्रतिभागी प्रसन्न गुप्ता, जो एक स्कूल विद्यार्थी हैं, ने कहा- मैंने वर्कशॉप को खूब एंजॉय किया। मनोज सर ने बताया कि चूँकि माइम और पढाई दोनों में ही कंसंट्रेशन की बहुत ज़रूरत होती है इसलिए मुझे लगता है कि सभी स्टूडेंट्स को यह सीखना चाहिए। इससे उन्हें स्टडीज़ में भी हेल्प मिलेगी।
आरुणि परिमल

सोमवार, 7 जनवरी 2013

मजबूत होने चाहिए संस्कारों के तटबंध

डॉ. महेश परिमल
देश में कोई घटना हो या दुर्घटना, बयानवीर नेताओं को तो बोलना ही है। वह भी बेहूदा तरीके से, ताकि बयान सुर्खियां बन जाएं। मानव की सोच उसके विचार से स्पष्ट होती है और सोच तैयार होती है संस्कार से। आज की पीढ़ी इतनी संस्कारवान तो है कि अपनी प्रेमिका की जान बचाने के लिए जूझ सकती है। पीठ दिखाकर भागने वाली पीढ़ी नहीं है यह। पर यह तो सोचो कि क्या मोमबत्ती जलाने से सोच बदली जा सकती है? सोच बदलने के लिए अच्छे संस्कार होने चाहिए। एक मां अपनी कोख से बेटे को जन्म देती है और बेटी को भी। आगे चलकर बेटे को स्वतंत्रता और बेटी को जंजीरें मिलती हैं। आखिर इसका क्या कारण है? संस्कार की गलत शुरुआत तो यही से हो रही है। आज सोचने का वक्त  पालकों का है। हमारे देश के नेताओं को ऐसे संस्कार मिले ही नहीं, यह तो उनके बयानों से ही स्पष्ट हो जाता है। नेता हमेशा यही कहते हैं कि मीडिया ने उनके बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया। किसी विवादास्पद बयान के बाद हर नेता यही कहता है कि उनके पूरे बयान पर ध्यान नहीं दिया गया। आश्चर्य होता है, ऐसा कभी बाल ठाकरे के बारे में नहीं कहा गया। उन्होंने जब भी बयान दिया, सोच-समझकर दिया। फिर चाहे मीडिया ने उसे किसी भी तरह से तोँड़-मरोड़कर पेश किया हो। पर वे अपने बयान से कभी नही पलटे। आखिर ये नेता अपने बयान से पलट क्यों जाते हैं?
बलात्कार जैसी घटना नृशंस है, पाशवी है, अमानवीय है और बलात्कारी कड़ी से कड़ी सजा का पात्र है। बलात्कार क्यों होते हैं, यह सभी जानते हैं, पर इसे रोकने के लिए क्या करना चाहिए, इस पर विचार नहीं किया जा रहा है। ये बयानवीर नेता बलात्कार के लिए केवल नारी को ही दोषी मान रहे हैं। क्या इसके लिए केवल और केवल नारी ही दोषी है? ये नेता भूल जाते हैं कि बलात्कार के आरोपी सांसद-विधायक भी हैं, जो उनके साथ संसद और विधानसभा में आज तक बैठ रहे हैं। बलात्कार किसी नेता की बेटी या पत्नी के साथ क्यों नहीं होता। क्यों मजबूर और लाचार युवतियों बलात्कारियों के चंगुल में फंस जाती हैं। नेताओं के बयान खाप पंचायतों के मनसबदारों की तरह हैं, जो आज भी पुरातत्वकालीन दिनों में जी रहे हैं। बलात्कार को लेकर आज जो भी बयान सामने आ रहे हैं, वे सभी पूर्वग्रह से ग्रस्त हैं। सोच बदलने की बात कोई नहीं कर रहा है। पहले नेताओं के बारे में यह कहा जाता था कि वे जब भी जो कुछ कहते हैं, पूरी तरह से नाप-तौलकर बोलते हैं। पर अब ऐसा नहीं है, अब तो बड़े-बड़े महारथी नेताओं की जबान फिसलने लगी है। उन्हें खुद ही पता नहीं होता कि वे क्या कह रहे हैं। बाद में पछताते हैं और अपने बयान वापस लेने का ढोंगे करते हैं। शायद उन्हें नही मालूम की बंदूक से निकली गोली और जबान से निकले शब्द कभी वापस नहीं आते। आज सबसे अधिक आवश्यकता यह है कि महिलाओं पर हो रहे अत्याचार को किस तरह से रोका जाए, ऐसे में हमारे बयानवीर नेता अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं। विचार मंथन के समय ऐसी हरकतों शोभा नहीं देती। इन नेताओं को शायद इंडिया गेट और जंतर-मंतर पर भीड़ कम होने का ही इंतजार था। भीड़ घटी और नेता फट पड़े।
मध्यप्रदेश के उद्योग मंत्री कैलास विजयवर्गीय ने कहा कि यदि नारी लक्ष्मण रेखा पार करेंगी, तो रावण ही मिलेगा। यदि वे इसे दिल्ली में हुए गेंगरेप से जोड़कर कह रहे हैं तो सवाल यह उठता है कि दामिनी ने कौन सी लक्ष्मण रेखा पार की थी, जो उसे 6-6 रावण मिले? आज नारी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है और समाज को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दे रही है। ऐसे में इस तरह का बयान मूर्खतापूर्ण है। यदि सीता ने लक्ष्मण रेखा पार की थी, तो क्या उसे पूजा नहीं जाना चाहिए। आखिर उनकी पूजा क्यों हा ेरही है? सीता के बजाए रावण की हरकतों पर ध्यान क्यों नहीं दिया जा रहा है? क्या रावण के लिए लक्ष्मण रेखा नहीं होनी चाहिए? नारी पर हर तरह से बंदिशें लगाई जा रही हैं, पर पुरुष आज तक अपनी मनमानी कर रहा है।  उधर संघ से भागवत का बयान भी कम आपत्तिजनक नहीं है। आज छोटे-छोटे गांव में दुष्कर्म हो रहे हैं। गुजरात में इस समय जितने भी दुष्कर्म के मामले सामने आए, उसमें अधिकांश गांव में हुए हैं। इन घटनाओं पर वे क्या कहना चाहेगे? शायद उन्हें ही नहीं मालूम। आज कई परिवार ऐसे हैं, जहां महिलाएं काम न करें, तो उनका गुजारा ही मुश्किल हो जाए। ऐसे में नारी के योगदान को किसी भी तरह से कम नहीं आंका जाना चाहिए।
देश में बलात्कार की घटना एक सामाजिक रोग है, इसे भौगोलिक सीमा में नहीं बांधना चाहिए। इसे ाश्चात्य संस्कृति से भी जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। नारी अत्याचार को लेकर पहले अपनी सोच बदलनी होगी। इसे संस्कार से जोड़कर देखा जाना चाहिए। राम बनने के लिए कौशल्या जैसी मां और दशरथ जैसे पिता का होना आवश्यक है। आज जवान बेटे की हरकतों से डरने वाले माता-पिता बेटे को अनजाने में किस तरह का संस्कार दे रहे हैं, किसी से छिपा नहीं है। बेटे को मिली छूट को ही देखकर बेटी भी यदि बगावत करे, तो उस पर तुरंत ही पाबंदी लगा दी जाती है। नारी पहले से ही अपनी सीमाओं में हैं, पर पहले पुरुष तो अपनी सीमा तय करे। संस्कारों के तटबंध मजबूत होंगे, तभी सीमाएं सुरक्षित रह पाएंगी, अन्यथा आज जो कुछ हो रहा है, हालात उससे भी बदतर हो सकते हैं।
    डॉ. महेश परिमल