शुक्रवार, 30 मार्च 2018

डोली में विदा नहीं होते बेटे...

बेटे

डोली में विदा नही होते,
और बात है... मगर...
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उनके नाम का
"ज्वाइनिंग लेटर" आँगन छूटने
का पैगाम लाता है !

जाने की तारीखों के
नज़दीक आते आते
मन बेटे का
चुपचाप रोता है।

अपने कमरे की
दीवारें देख देख घर की
आखरी रात
सो नहीं पाता है,


होश संभालते संभालते
घर की जिम्मेदारियां
संभालने लगता है।

विदाई की सोच में
बैचेनियों का समंदर
हिलोर मारता है।

शहर, गलियाँ , घर
छूटने का दर्द समेटे
सूटकेस में किताबें और
कपड़े सहेजता है।


जिस आँगन में पला बढ़ा,
आज उसके छूटने पर
सीना चाक चाक फटता है।

अपनी बाइक, बैट,
कमरे के अजीज पोस्टर छोड़
आँसू छिपाता
मुस्कुराता निकलता है।

अब नही सजती गेट पर
दोस्तों की गुलज़ार महफ़िल
ना कोई बाइक का
तेज़ हॉर्न बजाता है।

बेपरवाही का इल्ज़ाम
किसी पर नही अब।
झिड़कियाँ सुनता देर तक
कोई नही सोता है।

वीरान कर गया
घर का कोना कोना
जाते हुए बेमन से
मुस्कुराता है ।

ट्रेन के दरवाजे से सबको
पनीली आंखों से निहारता है।
दोस्तों की टोली को हाथ हिलाता
अलगाव का दर्द मुश्किल से
सह पाता है।

बेटे डोली में विदा नही होते
ये और बात है....मगर....

फिक्र करता माँ की... मगर
बताना नही आता है।

कर देता है "आन लाइन"
घर के काम दूसरे शहरों से
और जताना नही आता है।

पर अपनी बड़ी से बड़ी
मुश्किलें आसानी से
छिपाना आता है।

माँ से फोन पर
पिता की खबर पूछते हैं।
पर पिता से कुछ पूछना
सूझ नही पाता है।


लापरवाह, बेतरतीब लगते हैं बेटे
मजबूरियों में बंधे।
दूर रहकर भी जिम्मेदारियां
निभाना आता है।

पहुँच कर अजनबी शहर में
जरूरतों के पीछे
दिल बच्चा बना माँ के
आँचल में बाँध जाता है।

ये बात और है कि बेटे...
डोली में विदा नहीं होते मगर..

अज्ञात

सोमवार, 19 मार्च 2018

नया साल किसे मानेंगे?

भारत के लोग साल में दो तीन बार नया साल मनाते हैं इसका कारण यहाँ पाए जाने वाले कैलेंडरों की विविधता है । इसके अलावा तीज त्योहार भी   कई तरह से मनाते हैं ।
तीज - त्योहारों की बात आई है तो  सबसे पहले चाँद के कैलेण्डर के बारे में बात करना ज़रूरी है । यह तो आप जानते ही होंगे कि हिन्दू धर्म के अलावा इस्लाम में भी सारे त्योहार चांद के घटने - बढ़ने पर ही आधारित होते हैं।
इसका कारण यह है कि मनुष्य ने सबसे पहले आकाश  में चाँद को घटते बढ़ते देखा । सूरज तो रोज एक जैसा ही दिखता था । इसलिए  चांद का कैलेंडर ही मनुष्य का पहला कैलेंडर बना।
आपको ज्ञात होगा कि बहुत  सारे तीज त्यौहार चाँद पर ही आधारित हैं ।
चाँद का वर्ष 354-355  दिनों का होता है जबकि सूरज का साल यानि सौर वर्ष 365-366 दिनों का होता है ।
दोनों कैलेण्डर में 10-11  दिनों का अंतर है । हम मकर संक्रांति हर साल 14-15 जनवरी को मनाते  हैं क्योंकि यह सूर्य के केलेंडर पर आधारित है लेकिन चाँद पर आधारित कैलेण्डर में ईद और दीवाली हर साल 10 दिन पहले आ जाती है । बल्कि हर त्योहार दस दिन पहले आता है ।
जैसे दीवाली
2012  में 13  नवम्बर को आई थी ।
 2013 में 3 नवम्बर को आई थी ।
2014  में 23 अक्टूबर को आई थी ।
देखिये सभी में 10-11 दिन कम होते गए , इस घटते क्रम से इसे
2015 में 12 या 13 अक्तूबर को आना था लेकिन 2015 में यह 2012 की दीवाली से मिलती -जुलती तारीख 11 नवम्बर को आई ।
आप देख। सकते हैं कि प्रत्येक दिवाली में 354-355 दिन का अंतर है ।
ऐसा क्यों हुआ?
इसका कारण यह है कि चन्द्र वर्ष में 354 दिनों बाद आने के कारण जनवरी -दिसम्बर वाले 365 दिनों वाले  कैलेंडर की तुलना में हर पर्व में प्रतिवर्ष 10-11 दिन कम होते जाते हैं और फिर  तीन साल बाद जब एक माह के 30-31 दिन जमा हो जाते हैं हर चौथे साल में 1 माह जोड़ दिया जाता है ,इसे अधिक मास या खर मास कहते हैं । इस तरह चाँद का कैलेंडर फिर सूरज के कैलेंडर के अनुसार चलने लगता है ।
और फिर यह क्रम अगले तीन साल तक चलता है ।  लेकिन हिजरी केलेंडर में तीन साल बाद एक माह नहीं जोड़ा जाता इसलिए  ईद हर साल 10-11  दिन पहले आ जाती है ।  जैसे 2012 में 20 अगस्त को आई , 2013 में 9 अगस्त को आई , 2014 में 29 जुलाई ,2015  में 19 जुलाई , और 2016 में 8 जुलाई को आई  ।  अगले साल फिर इसमें दस या ग्यारह  दिन कम हो जायेंगे । अर्थात यहाँ भी दो त्योहारों में 354 दिन का अंतर है ।
ऐसा कैसे हुआ?
यह कुछ इस तरह हुआ कि डेढ़ हजार साल पहले जब हिजरी कैलेण्डर बना तब हजरत पैगम्बर ने एक बैठक ली और तय किया कि सूर्य के कैलेण्डर की तुलना में वे हर साल इस कैलेण्डर में दस दिन कम करते जायेंगे । ऐसा कुरआन में उल्लेख है । यह उनकी अपनी व्यवस्था थी और इसमें अन्य किसी धर्म से प्रतिद्वंद्विता या उसका हस्तक्षेप नही था । हिन्दू भी 354 दिन का ही कैलेण्डर मानते हैं , बस हर तीन साल पर उसे सूरज के हिसाब से एडजस्ट कर देते हैं । इसका कारण यह भी है कि यह व्यवस्था कृषि पर आधारित है । अरब में कृषि आधारित नही थी सो उन्हें ज़रूरत नही पड़ी ।
 कैलेण्डर की यह व्यवस्था अलग अलग भूभागों में रहने वाले हमारे पूर्वजों द्वारा की गई है और अब तक उसका पालन हो रहा है । हिन्दू हों या मुस्लिम हम धार्मिक त्योहारों में चाँद के कैलेण्डर का इस्तेमाल करते हैं । और इसमें कोई मतभेद नही है ।

दूसरी ओर हम सभी अपनी भौतिक जीवन शैली के अनुसार ग्रेगोरियन यानि सूर्य के कैलेण्डर का इस्तेमाल करते हैं । जन्मदिन सूर्य के कैलेंडर से मनाते हैं , यात्रा की तारीख सूर्य के कैलेंडर से तय होती है , बच्चों की परीक्षाओं का टाइम टेबल सूर्य के कैलेंडर से बनता है  आदि आदि । यह सब सरलता से चलता रहता है और कहीं कोई विरोध नही होता ।

दुनिया के सारे धर्मो के लोगों के लिए चाँद और सूरज  एक हैं , ऐसा नही हो सकता कि हम अपने अपने चाँद सूरज पैदा कर लें । फिर भी हमने उन्हें अपनी सुविधा के अनुसार बांट लिया है । चाँद सूरज तो भौतिकीय परिघटना के अनुसार पैदा हुए लेकिन हमने अपने हिसाब से उनके जन्म की अलग अलग कथा गढ़ ली ।

जब प्रकृति सब के लिए एक जैसी है ,चाँद सूरज सबके लिए एक जैसे हैं , ग्रह नक्षत्र सबके लिए एक जैसे हैं तो फिर क्यों हम लोग आजकल अपने बनाये धर्म के नाम पर अपने अपने देवी देवता ,  पूजा पद्धति , परम्परा , रीति रिवाज , कर्म काण्ड और तीज त्योहारों को लेकर आपस में  लड़ते रहते हैं ?

*यह उनका नया साल है , यह हमारा नया साल है ,यह उनका त्योहार है यह हमारा त्योहार है , यह उनका खानपान है यह हमारा खानपान है , यह उनकी वेशभूषा है , यह हमारी वेशभूषा है..
क्या है यह सब?  क्यों है यह सब?
मान लीजिए अगर हम लोगों की लड़ाई देखकर जिस दिन चाँद सूरज निकलना बंद कर देंगे , सब समझ में आ जायेगा । धरा रह जायेगा , यह मेरा धरम यह तेरा धरम मिट जाएगा सारा भरम ।
(घबड़ाये नहीं ऐसा नही होगा यह सिर्फ कवि कल्पना है ।)
😀😀
(मगर एक दिन हम मनुष्य लोग आपस मे धर्म , तीज त्योहार , परम्परा आदि के नाम पर लड़ते हुए पूरी तरह खत्म हो जाएंगे ..यह कवि कल्पना नहीं है ।)
😧😧😧😧
शरद कोकास
की शीघ्र प्रकाश्य पुस्तक
मस्तिष्क की सत्ता से
8871665060

सोमवार, 12 मार्च 2018

पूर्वजो का पराक्रम

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा की भारत में ऐसे शिव मंदिर है जो केदारनाथ से लेकर रामेश्वरम तक एक सीधी रेखा में बनाये गये है। आश्चर्य है कि हमारे पूर्वजों के पास ऐसा कैसा विज्ञान और तकनीक था जिसे हम आज तक समझ ही नहीं पाये? उत्तराखंड का केदारनाथ, तेलंगाना का कालेश्वरम, आंध्रप्रदेश का कालहस्ती, तमिलनाडू का एकंबरेश्वर, चिदंबरम और अंततः रामेश्वरम मंदिरों को 79° E 41’54” Longitude के भौगोलिक सीधी रेखा में बनाया गया है।
यह सारे मंदिर प्रकृति के 5 तत्वों में लिंग की अभिव्यक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसे हम आम भाषा में पंच भूत कहते है। पंच भूत यानी पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और अंतरिक्ष। इन्ही पांच तत्वों के आधार पर इन पांच शिव लिंगों को प्रतिष्टापित किया है। जल का प्रतिनिधित्व तिरुवनैकवल मंदिर में है, आग का प्रतिनिधित्व तिरुवन्नमलई में है, हवा का प्रतिनिधित्व कालाहस्ती में है, पृथ्वी का प्रतिनिधित्व कांचीपुरम में है और अतं में अंतरिक्ष या आकाश का प्रतिनिधित्व चिदंबरम मंदिर में है! वास्तु-विज्ञान-वेद का अद्भुत समागम को दर्शाते हैं ये पांच मंदिर।
भौगॊलिक रूप से भी इन मंदिरों में विशेषता पायी जाती है। इन पांच मंदिरों को योग विज्ञान के अनुसार बनाया गया था, और एक दूसरे के साथ एक निश्चित भौगोलिक संरेखण में रखा गया है। इस के पीछे निश्चित ही कॊई विज्ञान होगा जो मनुष्य के शरीर पर प्रभाव करता होगा। इन मंदिरों का करीब चार हज़ार वर्ष पूर्व निर्माण किया गया था जब उन स्थानों के अक्षांश और देशांतर को मापने के लिए कोई उपग्रह तकनीक उपलब्ध ही नहीं था। तो फिर कैसे इतने सटीक रूप से पांच मंदिरों को प्रतिष्टापित किया गया था? उत्तर भगवान ही जाने।
केदारनाथ और रामेश्वरम के बीच 2383 किमी की दूरी है। लेकिन ये सारे मंदिर लगभग एक ही समानांतर रेखा में पड़ते है। आखिर हज़ारों वर्ष पूर्व किस तकनीक का उपयॊग कर इन मंदिरों को समानांतर रेखा में बनाया गया है यह आज तक रहस्य ही है। श्रीकालहस्ती मंदिर में टिमटिमाते दीपक से पता चलता है कि वह वायु लिंग है। तिरूवनिक्का मंदिर के अंदरूनी पठार में जल वसंत से पता चलता है कि यह जल लिंग है। अन्नामलाई पहाड़ी पर विशाल दीपक से पता चलता है कि वह अग्नि लिंग है। कंचिपुरम के रेत के स्वयंभू लिंग से पता चलता है कि वह पृथ्वी लिंग है और चिदंबरम की निराकार अवस्था से भगवान के निराकारता यानी आकाश तत्व का पता लगता है।
अब यह आश्चर्य की बात नहीं तो और क्या है कि ब्रह्मांड के पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करनेवाले पांच लिंगो को एक समान रेखा में सदियों पूर्व ही प्रतिष्टापित किया गया है। हमें हमारे पूर्वजों के ज्ञान और बुद्दिमत्ता पर गर्व होना चाहिए कि उनके पास ऐसा विज्ञान और तकनीक था जिसे आधुनिक विज्ञान भी नहीं भेद पाया है। माना जाता है कि केवल यह पांच मंदिर ही नहीं अपितु इसी रेखा में अनेक मंदिर होगें जो केदारनाथ से रामेश्वरम तक सीधी रेखा में पड़ते है। इस रेखा को “शिव शक्ति अक्श रेखा” भी कहा जाता है। संभवता यह सारे मंदिर कैलाश को द्यान में रखते हुए बनाया गया हो जो 81.3119° E में पड़ता है!? उत्तर शिवजी ही जानें….वाट्सएप से साभार

गुरुवार, 8 मार्च 2018

श्रीदेवी की मौत से उपजे सवाल

श्रीदेवी की आकस्मिक मृत्यु  ने एक विचार को जन्म दिया की ईश्वर के दिये हुए इस शरीर को नकारो मत!अपने आप को स्वीकारो? 

श्रीदेवी अपने समय की टॉप हीरोइन रही हैं और वो भी बिना प्लास्टिक सर्जरी के।
 फिर 50 पार करके उन्हें अचानक 20 साल का दिखने की धुन सवार हो गई। उसके चलते उन्होंने ढेरों सर्जरी करवाई।  gym, योग, डाइटिंग कुछ भी नही छोड़ा।

ये सब उन्होंने स्वस्थ रहने के लिए नही बल्कि जवान दिखने के लिए किया। शरीर पर हर तरह के अत्याचार किये। तो एक दिन शरीर ने उन्हें धोखा दे दिया। हमारे समाज मे स्त्रियों को सुंदर व जवान दिखने पर बहुत जोर है। क्योकि साधारण दिखने पर शायद उन्हें वो स्थान नही मिल पाता।
सुंदरता बेचने के नाम पर गली गली में ब्यूटी पार्लर भरे हैं। आपके सारे शरीर को तरह तरह के केमिकल्स से लबरेज़ करके आपको सुंदर बनाने का आश्वासन दिया जाता है। 20 तरह के facial बताये जाते हैं। 25 तरह के spa।
बहुत ज्यादा तो मुझे भी नही पता क्योकि ब्यूटी पार्लर से मेरे नाता बहुत ही limited है। मुझे भगवान की बनाई अपनी सूरत जैसी भी है वो स्वीकार है।
गाहे बगाहे शौक पूरा करके समझ आया कि ये सब मार्केटिंग का ड्रामा है क्योंकि ज्यादातर ब्यूटी पार्लर चलाने वाली महिलाएं खुद  मोटी और भद्दी दिखती हैं तो वो मुझे क्या सुंदर बनायेंगी।
सुंदर दिखने का अधिकार हर स्त्री को है लेकिन बाहर की सुंदरता के साथ यदि अंदर की सुंदरता पर भी ध्यान दें तो आप और भी खूबसूरत हो सकते है।
सिर्फ पतला होना ही स्वास्थ्य की निशानी नही है क्योंकि बहुत से मोटे लोग उम्र पूरी करके जाते हैं और पतले लोग समय से पहले ।
अपने को बढ़ती उम्र के साथ स्वीकारना एक तनावमुक्त जीवन देता है। हर उम्र एक अलग तरह की खूबसूरती लेकर आती है उसका आनंद लीजिये।
बाल रंगने है तो रंगिये, वज़न कम रखना है तो रखिये, मनचाहे कपड़े पहनने है तो पहनिए,बच्चों की तरह खिलखिलाइये, अच्छा सोचिये, अच्छा माहौल रखिये, शीशे में दिखते हुए अपने अस्तित्व को स्वीकारिये।
कोई भी क्रीम आपको गोरा नही बनाती, कोई शैम्पू बाल झड़ने नही रोकता,कोई तेल बाल नही उगाता, कोई साबुन आपको बच्चों जैसी स्किन नही देता। चाहे वो प्रॉक्टर गैम्बल हो या पतंजलि।सब सामान बेचने के लिए झूठ बोलते हैं।  ये सब कुदरती होता है। उम्र बढ़ने पर त्वचा से लेकर बॉलों तक मे बदलाव आता है। पुरानी मशीन को maintain करके बढ़िया चला तो सकते हैं उसे नई नही कर सकते।ना किसी टूथपेस्ट में नमक होता है ना किसी मे नीम। किसी क्रीम में केसर नही होती क्योंकी 2 ग्राम केसर भी 500 रुपए से कम की नही होती।
जो आपकी पॉकेट allow करती है वो प्रसाधन खरीदिये क्योंकी केमिकल्स सबमे हैं। lux की बनियान साधारण बनियान से इसलिये महंगी है क्योंकी उसमे विज्ञापन के लिए सनी देओल और अक्षय कुमार होते हैं। और वो लक्स नही calvin cline या पियरे कार्डिन पहनते हैं।
करीना कपूर कभी लक्स साबुन से नही नहाती और अमिताभ बच्चन लाल तेल नही लगाता।

कोई बात नही अगर आपकी नाक मोटी है तो,
 कोई बात नही आपकी आंखें छोटी हैं तो,
कोई बात नही अगर आप गोरे नही हैं
या आपके होंठों की shape perfect नही हैं....

फिर भी हम सुंदर हैं, अपनी सुंदरता को पहचानिए। दूसरों से कमेंट या वाह वाही लूटने के लिए सुंदर दिखने से ज्यादा ज़रूरी है अपनी सुंदरता को महसूस करना।
हर बच्चा सुंदर इसलिये दिखता है कि वो छल कपट से परे मासूम होता है और बडे होने पर जब हम छल व कपट से जीवन जीने लगते है तो वो मासूमियत खो देते हैं। और उस सुंदरता को पैसे खर्च करके खरीदने का प्रयास करते हैं। हमारी महिलायें दिन रात पार्लर के चक्कर काटती रहती हैं सुंदर दिखने के प्रयास में... लेकिन क्या ये प्रेशर उनके पति,घरवालों या boyfriends की ओर से आता है?साधारण दिखने वाली लड़कियों की शादी नही होती, सांवली लड़कियों को उपेक्षा झेलनी पड़ती है,मोटी लड़कियों पर पतले होने का दबाव होता है।  इस प्रेशर के चलते उन्हें chemicals और दवाओं का सहारा लेना पड़ता हैं।
क्यों अभी भी हमारे समाज मे मन की खूबसूरती पर ध्यान नही जाता?
हमारे पुरुष वर्ग का ये कर्तव्य है कि अपने परिवार महिलाओ को ये प्रेशर देना छोड़ दें। अपनी पत्नी, बेटी, बहन को ये अहसास दिलायें की वो प्रकुर्तिक रूप से सुंदर हैं वरना वो केमिकल्स का सहारा लेकर अपना स्वास्थ्य खराब कर लेंगी।
थोड़ा बहुत चलता है लेकिन सुंदर दिखने की चाह में कुछ भी कर गुज़रना आपकी जान ले सकता है।
आजकल युवा लड़के बॉडी बनाने की धुन में पागल रहते हूं ये असर है उन फ़िल्म स्तरों और मॉडल्स का जिससे ये युवा सोचते हैं कि वो अपने चहेते हीरो जैसी बॉडी बना कर हीरो जैसे दिखेंगे।
आपको शायद पता नही की एक भी हीरो naturally बॉडी नही बनाता। इनके पीछे बहुत सी प्लास्टिक सर्जरी,  steroids implants, lyposuctions, body contouring  का हाथ होता है। आपरेशन से 6 pack बनवाते हैँ, चेहरे पर सर्जरी करवाते हैं, बाल उगवाते हैं, मांसपेशियों में सिलिकॉन भरवाते हैं और ये सब वो इसलिते करते हैं क्योंकि उन्हें इन सबका पैसा मिलता है। स्क्रीन पर सुंदर दिखना उनके धंधे की मजबूरी है उसके लिये वो शरीर से भी खेलते हैं वरना उन्हें कोई काम नही देगा।
लेकिन आम जीवन मे हमे बॉडी दिखाने के पैसे नही मिलते काम करने के पैसे मिलते हैं तो हम हीरो जैसे दिखने से अच्छा है अपने काम मे हुनर दिखायें ।हमारी तरक्की तो उसी से होगी।
ये फ़िल्म स्टारों और मॉडल जैसा दिखने की चाह में हमारा समाज एक प्रेशर में जी रहा है।
पेट निकल गया तो कोई बात नही उसके लिए शर्माना ज़रूरी नही । आपका शरीर आपकी उम्र के साथ बदलता है तो वज़न भी उसी हिसाब से घटता बढ़ता है उसे समझिये।
सारा इंटरनेट और सोशल मीडिया तरह तरह के उपदेशों से भरा रहता है
ये खाओ,वो मत खाओ
ठंडा खाओ गर्म पीओ
कपाल भाटी करो, पॉवर योगा करो
सवेरे नीम्बू पीओ ,रात को दूध पीओ
ज़ोर से सांस लो, लंबी सांस लो
दाहिने से सोइये बाहिने से उठिए
हरी सब्जी खाओ, सब्जियी में हारमोन है
दाल में प्रोटीन है,दाल से कोलेस्ट्रॉल बढ़ जायेगा
अगर पूरे एक दिन सारे उपदेशों को पढ़ने लगें तो पता चलेगा ये ज़िन्दगी बेकार है ना कुछ खाने को बचेगा ना कुछ जीने को!!आप डिप्रेस्ड हो जायेंगे।
ये सारा ऑर्गेनिक ,एलोवेरा, करेला,मेथी ,पतंजलि में फंसकर दिम्मग का दही हो जाता है। स्वस्थ होना तो दूर स्ट्रेस हो जाता है। अरे! कभी ना कभी तो मरना है अभी तक बाज़ार में अमृत बिकना शुरू नही हुआ।
हर चीज़ सही मात्रा में खाइये, हर वो चीज़ थोड़ी थोड़ी जो आपको अच्छी लगती है। भोजन का संबंध मन से होता है और मन अच्छे भोजन से ही खुश रहता है।मन को मारकर खुश नही रहा जा सकता।
थोड़ा बहुत शारीरिक कार्य करते रहिए,टहलने जाइये, लाइट कसरत करिये  व्यस्त रहिये,  खुश रहिये ,शरीर से ज्यादा मन को सुंदर रखिये।
अगर पैसे से सुंदरता व जीवन खरीद लिया जाता तो कोई बड़ा आदमी इस दुनिया से ना जाता और हर अमीर आदमी सुंदर होता।
Live life Naturally!!  Your body is a gift of God, just love your body but dont be obsessed with it

लेखन अनजान

शनिवार, 3 मार्च 2018

Mystic Rose Meditation

Mystic Rose Meditation



The Mystic Rose Meditation is a very Good creation of OSHO. The meditation techniques of Osho are simple but they are powerful. The Mystic Rose is very powerful meditation but still it is easy to do. Now we should start this amazing meditation.

Full Body Relaxation

Sit in cross leg position and close your eyes. Focus on Breath and concentrate your mind on each part of the body one by one, from feet to head. Allow your mind to spread in the whole part--allow it to undertake a trip in the whole part; use the technique of autosuggestion to relax the whole part and experience the resulting relaxation. Experience that each and every muscle, each and every nerve has become relaxed. And in the same way attain, the relaxation of the whole body. Now we will do the next step and that is opening of the Golden Gates.

The Golden Gates of Hearts

Now we will open The Golden Gates of our Hearts. Now create a smile on your face and laugh for no reason at all. This will create high vibrations in yours energy systems. So the first part will be laughter - for few minutes, people simply laugh for no reason at all. Digging for few minutes you will be surprised how many layers of dust have gathered upon your being. It will cut them like a sword, in one blow. You cannot conceive how much transformation can come to your being. Now we will do the next step, which is called "The Unlocking Of Inner Windows".

The Unlocking
​ ​
o​f Inner Windows

The second part is tears. The first part removes everything that hinders your laughter -- all the inhibitions of past humanity, all the repressions. It cuts them away; it brings a new space within you. But still you have to go a few steps more to reach the temple of your being, because you have suppressed so much sadness, so much despair, so much anxiety, so many tears -- they are all there, covering you and destroying your beauty, your grace, your joy. In this step "Tears" removes yours suppressed emotions.

The Witnessing

Finally the third part is witnessing: The Watcher on the Hills. After the laughter and the tears, there is only a witnessing silence. Witnessing on its own is automatically suppressive. Weeping stops when you witness it, it becomes dormant. This meditation gets rid of the laughter and tears beforehand, so that there is nothing to suppress in your witnessing. Then the witnessing simply opens a pure sky. This is how we should do “The Mystic Rose” Meditation.
COURTESY - OSHOWorldFoundation