मंगलवार, 17 दिसंबर 2019

ठिठुरती ठंड और तुम


बहुत-से लोगों को है ईर्ष्या
जब तुम ठिठुरती ठंड में
सुबह की सैर पर जाते हो,
बिना स्वेटर के फुर्ती से 
कदम ताल मिलाते हो।
जल उठते हैं सारे कि
क्या तुम्हें ठंड भी नहीं लगती?
पिछले साल ही तो इन्हीं दिनों में
जीवन-संघर्ष किया था तुमने
सारे ईर्ष्यालु इसके साक्षी हैं
इसलिए हैरत की लकीरें 
इनके माथे पर बन आती है
कुछ तुम तक पहुँचती है
कुछ मुझसे जुड़ जाती है।
मुझे मालूम है, 
ठंड तुमसे होकर गुजरती है
तुम्हारे पास बसेरा नहीं करती,
पर किसी और की नज़र में
दबंग बनोगे तो ईर्ष्यालु बन जाऊँगी मैं
जो गैरों की नज़र लगी तुम्हें
तो कैसे तुम्हें सम्हालूंगी मैं?
मेरे सुपरमैन, तुम हमारे पॉवरमैन हो
शक्तिस्रोत बनने के लिए, 
इस ठिठुरती ठंड में 
एक स्वेटर तो बनता है।
बेचारे स्वेटर ने क्या बिगाड़ा है,
पूरे साल भर बाद उसे भी तो
तुम्हारे नज़दीक आने का हक़ बनता है।
भारती परिमल

सोमवार, 16 सितंबर 2019

एक IPS जिसने कई साल तक आईना नहीं देखा

सुनील मेहरोत्रा
29 साल पहले जब मुंबई आया था, तो अमिताभ बच्चन से जुड़ा एक किस्सा बहुत पढ़ा था कि उन्होंने मुंबई के फुटपाथों पर कई रातें गुजारीं। इस किस्से में कितनी सच्चाई है, मुझे खुद नहीं पता। पर इस उदाहरण को हमेशा एक संघर्ष के प्रतीक के रूप में बताया जाता था। धीरे-धीरे कई और सेलिब्रेटीज के संघर्ष की कहानी मीडिया में आईं। कई पर बायोपिक भी बनीं, पर मुझे लगता है आईपीएस अधिकारी मनोज कुमार शर्मा के संघर्ष की कहानी के सामने बाकी का संघर्ष  एक प्रतिशत भी नहीं है। शर्मा की जिंदगी पर केंद्रित अनुराग पाठक के उपन्यास ‘ ट्वेल्थ फेल’ के जितने भी पेज पढ़ो, आपकी आंखें नम होती रहेंगी।
एक लड़का, दसवीं में नकल से थर्ड डिवीजन में पास होता है। वही लड़का नकल न हो पाने की वजह से 12 वीं में हिंदी को छोड़कर सभी विषयों में फेल हो जाता है। उसकी जिंदगी की कहानी यह नहीं है। असली संघर्ष की कहानी इसके बाद शुरू होती है। यह लड़का घर चलाने के लिए टैम्पो कंडक्टर बनता है। आवाज दे देकर अपने टैम्पो के लिए सवारी जुटाता है। फिर उसे एक झूठे केस में फंसाकर कुछ घंटों के लिए लॉकअप में बंद कर दिया जाता है। उसका टैम्पो जब्त कर लिया जाता है। उसे तब अहसास होता है कि अंधा कानून क्या होता है। यह लड़का पढ़ाई की फीस के लिए दिल्ली में शाम को बड़े लोगों के कुत्ते टहलाता है और घर के किराए के लिए कुछ लोगों के घर कुक का भी काम करता है और उनके बर्तन भी मांजता है। यह लड़का ग्वालियर में आंटे की चक्की में गेंहूं पीसने का भी काम करता है। पर सबसे दर्दनाक प्रकरण है ग्वालियर की लाइब्रेरी का। मनोज शर्मा ने वहां तीन सौ रुपये महीने पर करीब एक साल तक नौकरी की। लेकिन इतनी सारी रकम उनकी पढ़ाई और खाने पीने में खर्च हो जाती। बाकी कुछ बचता नहीं था। इसलिए वह लाइब्रेरी में ही सो जाते थे। इस लाइब्रेरी में कई बार कवि सम्मेलन भी होते थे। एक बार बाहर से आए एक कवि वहां रुक गए। कवि की बस अगले दिन सुबह की थी। उन्होंने सुबह नहाने के बाद मनोज शर्मा से कहा कि क्या आपके पास बालों में लगाने के लिए तेल मिलेगा? मनोज ने संकोच में कहा- तेल तो नहीं है? कवि ने फिर कहा कि कंघा ही दे दो। बिना तेल के ही बाल बना लूंगा।  मनोज के पास कंघा भी नहीं था। कवि को थोड़ा आश्चर्य हुआ –बोला, कैसे लड़के हो तुम? फिर कहा कि कोई बात नहीं, शीशा ही दे दो, अपनी शक्ल ही देख लूं एक बार। पर मनोज ने कहा कि शीशा भी नहीं है। कवि को इस बार सदमा सा लगा। उसने पूछा कि कितने साल से यहां काम कर रहे हो? मनोज ने जवाब दिया कि एक साल से? मतलब तुमने एक साल से आईने में अपना चेहरा तक नहीं देखा।  मनोज को कई मिनट तक कवि देखते रहे और फिर आशीर्वाद  देकर वहां से चले गए कि तुम एक दिन जरूर सफल होगे। मनोज ने हकीकत में आईना उससे पहले और उसके बाद भी काफी वक्त तक नहीं देखा था।
मनोज कुमार शर्मा पर केंद्रित इस उपन्नास के मूल रूप से दो पार्ट हैं। एक भाग में उनके बचपन,  ‘ट्वेल्थ फेल’ , कई और असफलताएं  और फिर सिविल सर्विस की पढ़ाई तक की पूरी कहानी है। दूसरे भाग में उनकी श्रद्धा नामक लड़की से जुड़ी पूरी लव स्टोरी है। श्रद्धा के प्यार में वह इतने पागल हो जाते हैं कि उसे बताए बिना अल्मोडा में उसके घर तक पहुंच जाते हैं।  पूरा उपन्नास पढ़ो, तो साफ हो जाता है कि यदि श्रद्धा उनकी जिंदगी में न आतीं, तो शर्मा कभी आईपाीएस नहीं बन पाते। इस लड़की ने उनकी जिंदगी को बहुत मोटिवेट किया। शादी के लिए परिवार वाले आजकल लड़के-लड़कियों का सालाना पैकेज देखते हैं। मनोज शर्मा और श्रद्धा की लव स्टोरी बताती है कि प्यार से बड़ा कोई पैकेज नहीं होता। मनोज शर्मा ने चौथे अटेम्प में सिविल सर्विस की परीक्षा पास की और इंटरव्यू के वक्त श्रद्धा अल्मोड़ा से खासतौर पर उनसे मिलने आईं। जब इंटरव्यू का रिजल्ट आया, तो भी वह उनके साथ थीं।  श्रद्धा को मनोज ने हिंदी साहित्य का ज्ञान दिया, जबकि श्रद्धा ने मनोज को अंग्रेजी सिखाई। मनोज की अंग्रेजी ऐसी कमाल की थी कि सेकेंड अटेम्प में प्रिलिम्स पास करने के बाद उन्होंने मेन की बीच में इसलिए परीक्षा छोड़ दी, क्योंकि अंग्रेजी के पेपर में वह टूरिज्म इन इंडिया के स्थान पर टेररिज्म इन इंडिया पर निबंध लिख बैठे।
उनकी कमजोर अंग्रेजी और फिर बारहवीं में नकल न कर पाने की वजह से लगभग सभी विषयों में फेल होने और हिंदी भाषा में पढ़ाई के ट्रैक रेकॉर्ड ने उनका सिविल सर्विस के इंटरव्यू तक में पीछा नहीं छोड़ा। फिर भी उनके दिए कुछ जवाबों या प्रकरण ने इंटरव्यू बोर्ड को उनके प्रति सोचने को मजबूर कर दिया। एक प्रकरण में जब मनोज इंटरव्यू के दौरान एक सवाल से बुरी तरह हिल जाते हैं और पसीना-पसीना हो जाते हैं, तो एक इंटरव्यू मेंबर उन्हें पानी का गिलास देते हैं। मनोज शर्मा पानी पीने से मना कर देते हैं। कहते हैं यह मैं पानी नहीं पी सकता। इंटरव्यू मेंबर पूछते हैं कि क्या पानी गंदा है? मनोज कहते हैं कि नहीं सर, पानी तो साफ है, लेकिन मैं कांच के गिलास में पानी नहीं पीता, मुझे स्टील के गिलास में पानी पसंद है। जब इंटरव्यू बोर्ड मेंबर कहता है कि तुम्हें पानी पीने से काम है या गिलास से? कोई भी गिलास हो, तो पानी तो वही ही रहेगा ना? तब मनोज बहुत सटीक जवाब देते हैं—जी सर, यही मैं कहना चाह रहा हूं, असली चीज पानी है, बर्तन नहीं। अगर पानी साफ है, तो वह कांच के गिलास में है या स्टील के गिलास में कोई फर्क नहीं पड़ता। यदि आपका ज्ञान, आपके विचार व आपकी भावनाएं अच्छी हैं, तो यह अंतर नहीं पड़ता कि वह इंग्लिश माध्यम से प्रकट हो या हिंदी माध्यम से। इसके बाद मनोज जानबूझकर पानी के गिलास से पानी पीकर खाली गिलास वहां रख देते हैं और फिर मुस्करा कर बाहर आ जाते हैं।
पूरे उपन्यास का क्लाइमेक्स बिल्कुल फिल्म दंगल जैसा है । इसमें कई जगह चुटकियां भी हैं और इतनी मस्तियां हैं कि कोई भी अपनी हंसी रोक नहीं सकता।  उपन्यास  में एक विलेन भी है और वह है उनका अपना वह दोस्त, जिसने शुरूआत में उसकी बहुत मदद की और ग्वालियर की लाइब्रेरी में नौकरी तक दिलवाई। उपन्यास में कई जगह इस तरह का रोमांच और रोमांस है कि कई बार महेंद्र सिंह धोनी की बायोपिक याद आ गई। मुझे लगता है कि इस उपन्यास पर भी कभी बायोपिक  जरूर बनेगी—शायद तब जब शर्मा कुछ साल बाद मुंबई सीपी की दौड़ में होंगे, क्योंकि बॉलिवुड भी हमेशा उगते सूरज को सलाम करता है।
सिविल सर्विस की परीक्षा की तैयारी करने वाले प्राय: द टाइम्स ऑफ इंडिया, द इंडियन एक्सप्रेस या द हिंदू पढते हैं। मुझे लगता है कि अबसे तैयारी करने वाले मोटिवेशन के लिए ‘ ट्वेल्थ फेल’ भी जरूर पढ़ेंगे। मैंने बहुत दिनों बाद पूरी एक किस्त में करीब आठ घंटे में पूरा उपन्यास पूरा किया। पढ़ते-पढ़ते कई बार आंखें नम हुईं। लगा कि यह अधिकारी और उनकी पत्नी श्रद्धा दोनों ही सैल्यूट के हकदार है। हर किसी के जिंदगी में ऐसा ही हमसफर होना चाहिए।
सुनील मेहरोत्रा

शनिवार, 14 सितंबर 2019

हिंदी के बारे में...

             
हिंदी एक वैज्ञानिक भाषा है
और कोई भी अक्षर वैसा क्यूँ है
उसके पीछे कुछ कारण है ,
अंग्रेजी भाषा में ये
बात देखने में नहीं आती |
________
क, ख, ग, घ, ङ- कंठव्य कहे गए,
 क्योंकि इनके उच्चारण के समय
ध्वनि
कंठ से निकलती है।
एक बार बोल कर देखिये |

च, छ, ज, झ,ञ- तालव्य कहे गए,
क्योंकि इनके उच्चारण के
समय जीभ
तालू से लगती है।
एक बार बोल कर देखिये |

ट, ठ, ड, ढ , ण- मूर्धन्य कहे गए,
क्योंकि इनका उच्चारण जीभ के
मूर्धा से लगने पर ही सम्भव है।
एक बार बोल कर देखिये |

त, थ, द, ध, न- दंतीय कहे गए,
क्योंकि इनके उच्चारण के
समय
जीभ दांतों से लगती है।
एक बार बोल कर देखिये |

प, फ, ब, भ, म,- ओष्ठ्य कहे गए,
क्योंकि इनका उच्चारण ओठों के
मिलने
पर ही होता है। एक बार बोल
कर देखिये ।
________

हम अपनी भाषा पर गर्व
करते हैं ये सही है परन्तु लोगो को
इसका कारण भी बताईये |
इतनी वैज्ञानिकता
दुनिया की किसी भाषा मे
नही है
जय हिन्द
क,ख,ग क्या कहता है जरा गौर करें....
••••••••••••••••••••••••••••••••••••
क - क्लेश मत करो
ख- खराब मत करो
ग- गर्व ना करो
घ- घमण्ड मत करो
च- चिँता मत करो
छ- छल-कपट मत करो
ज- जवाबदारी निभाओ
झ- झूठ मत बोलो
ट- टिप्पणी मत करो
ठ- ठगो मत
ड- डरपोक मत बनो
ढ- ढोंग ना करो
त- तैश मे मत रहो
थ- थको मत
द- दिलदार बनो
ध- धोखा मत करो
न- नम्र बनो
प- पाप मत करो
फ- फालतू काम मत करो
ब- बिगाङ मत करो
भ- भावुक बनो
म- मधुर बनो
य- यशश्वी बनो
र- रोओ मत
ल- लोभ मत करो
व- वैर मत करो
श- शत्रुता मत करो
ष- षटकोण की तरह स्थिर रहो
स- सच बोलो

ह- हँसमुख रहो
क्ष- क्षमा करो
त्र- त्रास मत करो
ज्ञ- ज्ञानी बनो !!

शनिवार, 7 सितंबर 2019

हमें आरक्षण से कोई आपत्ति नहीं है !

हमें आरक्षण से कोई आपत्ति नहीं है !
   
        समस्या तो यह है कि ~
जिसको आरक्षण दिया जा रहा है , वो 
सामान्य आदमी बन ही नहीं पा रहा है !
        समय सीमा तय हो कि ~
         वह सामान्य नागरिक
          कब तक बन जायेगा ?

किसी व्यक्ति को आरक्षण दिया गया और 
वो किसी सरकारी नौकरी में आ गया !
अब उसका वेतन ₹5500 से ₹50000 व 
इससे भी अधिक है , पर जब उसकी 
संतान हुई तो वह भी पिछडी ही पैदा हुई ,
          और ... हो गई शुरुआत !

उसका जन्म हुआ प्राईवेट अस्पताल में ~
  पालन पोषण हुआ राजसी माहोल में ~
      फिर भी वह गरीब पिछड़ा और 
    सवर्णों के अत्याचार का मारा  हुआ ?

उसका पिता लाखों रूपए सालाना कमा 
  रहा है , तथा उच्च पद पर आसीन है !
    सारी सरकारी सुविधाएं  ले रहा है !
           वो खुद जिले के ...
 सबसे अच्छे स्कूल में पढ़ रहा है , और 
   सरकार ... उसे पिछड़ा मान रही है !
     सदियों से सवर्णों के ...
      अत्याचार का शिकार मान रही है !

आपको आरक्षण देना है , बिलकुल दो 
पर उसे नौकरी देने के बाद तो ...
सामान्य बना दो ! ये गरीबी ओर पिछड़ा 
दलित आदमी होने का तमगा तो हटा दो !

यह आरक्षण कब तक मिलता रहेगा उसे ?
इसकी भी कोई समय सीमा तय कर दो ?
या कि ~ बस जाति विशेष में पैदा हो गया 
तो आरक्षण का हकदार हो गया , और 
वह कभी सामान्य नागरिक नही होगा !

दादा जी जुल्म के मारे !
  बाप जुल्म का मारा !
    अब ... पोता भी जुल्म का मारा !
       आगे जो पैदा होगा वह भी ~
          जुल्म का मारा ही पैदा होगा !
             ये पहले से ही तय कर रहे हो ?

              वाह रे मेरे देश का दुर्भाग्य !

वाट्स एप से प्राप्त

गुरुवार, 29 अगस्त 2019

"भादवे का घी"

भाद्रपद मास आते आते घास पक जाती है।
जिसे हम घास कहते हैं, वह वास्तव में अत्यंत दुर्लभ #औषधियाँ हैं।
इनमें धामन जो कि गायों को अति प्रिय होता है, खेतों और मार्गों के किनारे उगा हुआ साफ सुथरा, ताकतवर चारा होता है।
सेवण एक और घास है जो गुच्छों के रूप में होता है। इसी प्रकार गंठिया भी एक ठोस खड़ है। मुरट, भूरट,बेकर, कण्टी, ग्रामणा, मखणी, कूरी, झेर्णीया,सनावड़ी, चिड़की का खेत, हाडे का खेत, लम्प, आदि वनस्पतियां इन दिनों पक कर लहलहाने लगती हैं।
यदि समय पर वर्षा हुई है तो पड़त भूमि पर रोहिणी नक्षत्र की तप्त से संतृप्त उर्वरकों से ये घास ऐसे बढ़ती है मानो कोई विस्फोट हो रहा है।
इनमें विचरण करती गायें, पूंछ हिलाकर चरती रहती हैं। उनके सहारे सहारे सफेद बगुले भी इतराते हुए चलते हैं। यह बड़ा ही स्वर्गिक दृश्य होता है।
इन जड़ी बूटियों पर जब दो शुक्ल पक्ष गुजर जाते हैं तो चंद्रमा का अमृत इनमें समा जाता है। आश्चर्यजनक रूप से इनकी गुणवत्ता बहुत बढ़ जाती है।
कम से कम 5 km चलकर, घूमते हुए गायें इन्हें चरकर, शाम को आकर बैठ जाती है।
रात भर जुगाली करती हैं।
अमृत रस को अपने दुग्ध में परिवर्तित करती हैं।
यह दूध भी अत्यंत गुणकारी होता है।
इससे बने दही को जब मथा जाता है तो पीलापन लिए नवनीत निकलता है।
5से 7 दिनों में एकत्र मक्खन को गर्म करके, घी बनाया जाता है।
इसे ही #भादवेकाघी कहते हैं।
इसमें अतिशय पीलापन होता है। ढक्कन खोलते ही 100 मीटर दूर तक इसकी मादक सुगन्ध हवा में तैरने लगती है।
बस,,,, मरे हुए को जिंदा करने के अतिरिक्त, यह सब कुछ कर सकता है।
ज्यादा है तो खा लो, कम है तो नाक में चुपड़ लो। हाथों में लगा है तो चेहरे पर मल दो। बालों में लगा लो।
दूध में डालकर पी जाओ।सब्जी या चूरमे के साथ जीम लो।
बुजुर्ग है तो घुटनों और तलुओं पर मालिश कर लो।
इसमें अलग से कुछ भी नहीं मिलाना। सारी औषधियों का सर्वोत्तम सत्त्व तो आ गया!!
इस घी से हवन, देवपूजन और श्राद्ध करने से अखिल पर्यावरण, देवता और पितर तृप्त हो जाते हैं।
कभी सारे मारवाड़ में इस घी की धाक थी।
इसका सेवन करने वाली विश्नोई महिला 5 वर्ष के उग्र सांड की पिछली टांग पकड़ लेती और वह चूं भी नहीं कर पाता था।
मेरे प्रत्यक्ष की घटना में एक व्यक्ति ने एक रुपये के सिक्के को मात्र उँगुली और अंगूठे से मोड़कर दोहरा कर दिया था!!
आधुनिक विज्ञान तो घी को #वसा के रूप में परिभाषित करता है। उसे भैंस का घी भी वैसा ही नजर आता है। वनस्पति घी, डालडा और चर्बी में भी अंतर नहीं पता उसे।
लेकिन पारखी लोग तो यह तक पता कर देते थे कि यह फलां गाय का घी है!!
यही वह घी था जिसके कारण
कुंवारे रात भर कबड्डी खेलते रहते थे!!
इसमें # स्वर्ण की मात्रा इतनी रहती थी, जिससे सर कटने पर भी धड़ लड़ते रहते थे!!

बाड़मेर जिले के #गूंगा गांव में घी की मंडी थी। वहाँ सारे मरुस्थल का अतिरिक्त घी बिकने आता था जिसके परिवहन का कार्य बाळदिये भाट करते थे। वे अपने करपृष्ठ पर एक बूंद घी लगा कर सूंघ कर उसका परीक्षण कर दिया करते थे।
इसे घड़ों में या घोड़े के चर्म से बने विशाल मर्तबानों में इकट्ठा किया जाता था जिन्हें "दबी" कहते थे।
घी की गुणवत्ता तब और बढ़ जाती, यदि गाय पैदल चलते हुए स्वयं गौचर में चरती थी, तालाब का पानी पीती, जिसमें प्रचुर विटामिन डी होता है और मिट्टी के बर्तनों में बिलौना किया जाता हो।
वही गायें, वही भादवा और वही घास,,,, आज भी है। इस महान रहस्य को जानते हुए भी यदि यह व्यवस्था भंग हो गई तो किसे दोष दें?

 जो इस अमृत का उपभोग कर रहे हैं वे निश्चय ही भाग्यशाली हैं। यदि घी शुद्ध है तो जिस किसी भी भाव से मिले, अवश्य ले लें।
यदि भादवे का घी नहीं मिले तो गौमूत्र सेवन करें। वह भी गुणकारी है।

बुधवार, 21 अगस्त 2019

घूम रहा है काल पहिया

 आज अगर अमित शाह की जगह कोई दूसरा गृहमंत्री होता तो चिदंबरम आज भी अपने घर पर मिलते। वे डरे हुए न होते। लापता न होते। वाकई बहुत ही दिलचस्प राजनीतिक लड़ाई है। संयोग देखिए। पी. चिदंबरम आज भागे हुए हैं और आज देश का गृह मंत्रालय अमित शाह के हाथ में है। कभी तस्वीर एकदम उल्टी थी। तब चिदंबरम देश के गृहमंत्री थे और अमित शाह साबरमती की जेल में थे। तब चिदंबरम नॉर्थ ब्लॉक स्थित गृहमंत्री कार्यालय में बैठकर "भगवा आतंकवाद" की फाइल तैयार करवा रहे थे और अमित शाह अपने बचाव की फ़ाइल में रोज़ ही नए पन्ने जोड़ रहे थे। अमित शाह इस मामले में हिसाब किताब पूरा रखने के आदी हैं। मुरव्वत करना उनकी आदत में नही है। ये अमित शाह के गृहमंत्री होने का खौफ ही है कि चिदंबरम रातोंरात लापता हैं।

यही अमित शाह के काम करने की शैली है। किसी ने कभी उम्मीद नही की थी कि एक रोज़ कश्मीर में यूँ बाजी पलट दी जाएगी। उम्मीद तो ये भी नही थी कि कभी देश के सबसे ताकतवर मंत्री रहे चिदंबरम का ये हश्र भी होगा! पर यही अमित शाह हैं। उनकी किताब में "रियायत" नाम का शब्द नही हैं। सही-गलत क्या है, ये फैसला वक़्त और कोर्ट पर छोड़ते हैं। आज सिर्फ राजनीति की नई इबारत को पढ़ने की कोशिश हैं। चिदम्बरम मार्च 2018 से लगातार अपनी गिरफ्तारी पर रोक का आदेश हासिल कर रहे थे। मगर आज किस्मत जवाब दे गई। उनके खिलाफ ठोस सबूत हैं। एक भी आरोप हवाई नहीं हैं। विदेशों में परिवार के नाम हजारों करोड़ों की संपत्ति के कागज हैं। आईएनएक्स मीडिया और फिर एयरसेल-मैक्सिस के मामले में एफआईपीबी नियमों को तोड़ मरोड़ कर सैकड़ों करोड़ का फायदा पहुंचाने और उसका एक बड़ा परसेंटेज अपने बेटे की कंपनी तक पहुंचाने के पक्के सबूत हैं। ये सब तब हो रहा था जब चिदंबरम देश के वित्तमंत्री थे।

यकीन मानिए कि इस देश की राजनीति वक़्त के एक निर्णायक दौर में पहुंच चुकी है। परिवार, खानदान, प्रभावशाली लोग, बड़े नेताओं से मीठे रिश्ते जैसे सियासत के खानदानी शब्द राजनीति की इस नई डिक्शनरी से साफ हो चुके हैं। अब ये आर-पार की लड़ाई है। आज चिदंबरम की बारी आई है। नोट कर लीजिए, कल दस जनपथ का बुलावा आएगा। इन पांच सालों में बहुत कुछ ऐसा होगा जो इतिहास में कभी न हुआ।

नोट कर लीजिए कि भारत की राजनीति के ये 5 साल अगले सौ सालों तक राजनीति के लिए शोध का विषय रहेंगे।

ध्यान से सोचो क्या करना है ?


* खर्च करते समय सावधानी बरतें। आगे भारी मंदी आ रही है। *
अमेरिका ने घोषित कर दिया है 2020-21 में मंदी आ रही है*
औद्योगिक उत्पादन में कमी के कारण माल की माँग पर स्पष्ट प्रभाव पड़ता है। विनिर्माण क्षेत्र से मांग, जो कि ट्रक परिवहन में सबसे अधिक योगदान देता है, न्यूनतम स्तर पर है।
माल की मांग में कमी के कारण, पहली तिमाही में देश के सभी प्रमुख मार्गों पर ट्रक बेड़े में 30% की कमी आई है।
समय सोचने का, अब आपके परिवार में धन लक्ष्मी के पास वो छुपा धन भी नही है, जिससे उसने, 2006-8 में आपके परिवार को, देश को मंदी से बचा लिया था ?
मंडीदीप हो या गोविंदपुरा हर तीसरा संस्थान मंदी ओर बंदी की ओर अग्रसर है???*

रोजगार घट रहे है, अपराध का ग्राफ बड़ रहा है, दर्ज नहीं हो रहे???*
* भारत में एक अघोषित वित्तीय संकट है। इस तरह के संकट जनता के लिए दिखाई देते हैं। मौजूदा स्थिति इस संकट का केवल पहला दौर है। ”
• बैंकों का एनपीए बढ़ने का मतलब है कि पूंजी की कमी जिसका मतलब है कि कोई नया निवेश नहीं।
• घरों को बेचा नहीं जा रहा है जिसका मतलब है कि स्टील, सीमेंट, बाथरूम फिटिंग, निर्माण में गिरावट। इस बैंकों के साथ एनपीए बढ़ेगा। ये एनपीए संकट को और गहरा बनाकर व्यक्तिगत स्तर तक जाते हैं।
• वाहन की बिक्री में कमी आ रही है। देश में पहली बार टू व्हीलर की बिक्री में नकारात्मक वृद्धि देखी जा रही है। मारुति ने उत्पादन में 50% की कटौती की है। कई ऑटो डीलर बंद कर रहे हैं। इसका मतलब है कि स्टील, टायर और अन्य सामान की मांग में काफी कमी है।
उपरोक्त घटनाक्रम का मतलब है कि करोड़ों नौकरियों का अंत और सरकार के कर राजस्व में कमी। ऐसी स्थिति में, सरकार निराश हो जाती है और हर चीज पर कर लगाकर अपना घाटा पूरा करना चाहती है। सरकार मुनाफे को निजी हाथों में लेती है और उसे सरकार के खाते में डाल देती है। इसके अलावा, ऐसी स्थिति में, सरकारी संपत्तियों को उनके पसंदीदा कॉर्पोरेट्स को कई गुना में बेचा जाता है और नुकसान बढ़ता है।
भारत में संकट मार्च 2020 के आसपास दिखाई देगा, अधिकांश औसत भारतीय इस बारे में अनजान हैं। यह सावधानी बरतने का समय है जब आप साबुन, शैम्पू और डिटर्जेंट नहीं बेच पा रहे हैं।
पिछले कुछ तिमाहियों से भी एफएमसीजी सेक्टर मंदी की चपेट में है। क्या आपको याद है जब आपने आखिरी बार बाबा रामदेव की पतंजलि कंपनी का विज्ञापन देखा होगा? पतंजलि टीवी पर लगभग 2 साल पहले सबसे अधिक सक्रिय था, लेकिन पिछले एक साल से, यहां तक ​​कि भारत के एफएमसीजी बाजार में सबसे तेज गति से बढ़ने वाली पतंजलि की स्थिति खतरनाक है। पतंजलि के उत्पादों की बिक्री सिकुड़ रही है। इसके अलावा, पतंजलि आयुर्वेद ने वित्त वर्ष 2018 में 10% राजस्व घाटा दिखाया है। न केवल पतंजलि, बल्कि हिंदुस्तान लीवर जैसी कंपनियां भी विकास में कमी आई हैं। तेजी से बिकने वाले उपभोक्ता सामान जैसे साबुन, टूथपेस्ट, हेयर ऑयल, बिस्कुट आदि की मांग ग्रामीण क्षेत्रों में काफी कम हो गई है। इसने उन व्यवसायों के प्रदर्शन को भी धीमा कर दिया है, जो स्वस्थ ग्रामीण मांग पर निर्भर हैं। इसमें एफएमसीजी, दोपहिया और ऑटो कंपनियां शामिल हैं जो एंट्री-लेवल कार बनाती हैं।
अब आते हैं ट्रांसपोर्ट पर- इंडियन फाउंडेशन ऑफ ट्रांसपोर्ट रिसर्च एंड ट्रेनिंग की रिपोर्ट के मुताबिक नवंबर 2018 से ट्रक किराये में 15% की गिरावट दर्ज की गई है। फ्लीट यूटिलाइजेशन भी इससे ज्यादा गिरा है। सभी 75 ट्रंक रूट, किराया काफी कम हो गए हैं। पिछले साल की पहली तिमाही की तुलना में अप्रैल से जून के बीच फ्लीट यूटिलाइजेशन में 25% से 30% की कमी आई है। इससे ट्रांसपोर्टर्स की आय में भी लगभग 30% की कमी आती है। कई ऑपरेटर अगली तिमाही में फ्लीट की ईएमआई डिफ़ॉल्ट में भी आ सकते हैं।
हीरोमोटर, टीव्हीएस या टाटा मोटर्स पुणे का प्लांट 3 दिनों के लिए बंद रहेगा, जिसमें कंपनी का 50% समय खर्च होगा और शेष राशि कर्मचारियों द्वारा ली गई पत्तियों के रूप में वहन की जाएगी। कारण कार उत्पादन को कम करना है क्योंकि मांग धीमी हो गई है और इकाइयाँ बेकार पड़ी हैं।
टाटा मोटर्स के साथ अन्य प्रमुख ऑटो कंपनियां अपने संविदा कर्मचारियों की पुन: नियुक्ति कर रही हैं और वास्तविक कर्मचारियों या काम किए गए घंटों के मामले में संख्या को कम कर रही हैं।
शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में खर्च करने वाले उपभोक्ताओं में कमी आई है और अप्रैल की चरम मांग के बाद कृषि में परिवहन लगभग सुस्त हो गया है।
जून में FMCG द्वारा फलों और सब्जियों की मांग में 20% की कमी आई है।

चंद्र भान सक्सेना
व्यापार प्रतिनिधि, भोपाल

गुरुवार, 4 जुलाई 2019

तलाक वही देते हैं, जिन्होंने निकाह किया हो

तब मैं जनसत्ता में नौकरी करता था। एक दिन खबर आई कि एक आदमी ने झगड़ा के बाद अपनी पत्नी की हत्या कर दी। मैंने खब़र में हेडिंग लगाई कि पति ने अपनी बीवी को मार डाला। खबर छप गई। किसी को आपत्ति नहीं थी। पर शाम को दफ्तर से घर के लिए निकलते हुए प्रधान संपादक प्रभाष जोशी जी सीढ़ी के पास मिल गए। मैंने उन्हें नमस्कार किया तो कहने लगे कि संजय जी, पति की बीवी नहीं होती।
“पति की बीवी नहीं होती?” मैं चौंका था।
“बीवी तो शौहर की होती है, मियां की होती है। पति की तो पत्नी होती है।”
भाषा के मामले में प्रभाष जी के सामने मेरा टिकना मुमकिन नहीं था। हालांकि मैं कहना चाह रहा था कि भाव तो साफ है न ? बीवी कहें या पत्नी या फिर वाइफ, सब एक ही तो हैं। लेकिन मेरे कहने से पहले ही उन्होंने मुझसे कहा कि भाव अपनी जगह है, शब्द अपनी जगह। कुछ शब्द कुछ जगहों के लिए बने ही नहीं होते, ऐसे में शब्दों का घालमेल गड़बड़ी पैदा करता है।
प्रभाष जी आमतौर पर उपसंपादकों से लंबी बातें नहीं किया करते थे। लेकिन उस दिन उन्होंने मुझे टोका था और तब से मेरे मन में ये बात बैठ गई थी कि शब्द बहुत सोच समझ कर गढ़े गए होते हैं।
खैर, आज मैं भाषा की कक्षा लगाने नहीं आया। आज मैं रिश्तों के एक अलग अध्याय को जीने के लिए आपके पास आया हूं। लेकिन इसके लिए आपको मेरे साथ निधि के पास चलना होगा।
निधि मेरी दोस्त है। कल उसने मुझे फोन करके अपने घर बुलाया था। फोन पर उसकी आवाज़ से मेरे मन में खटका हो चुका था कि कुछ न कुछ गड़बड़ है। मैं शाम को उसके घर पहुंचा। उसने चाय बनाई और मुझसे बात करने लगी। पहले तो इधर-उधर की बातें हुईं, फिर उसने कहना शुरू कर दिया कि नितिन से उसकी नहीं बन रही और उसने उसे तलाक देने का फैसला कर लिया है।
मैंने पूछा कि नितिन कहां है, तो उसने कहा कि अभी कहीं गए हैं, बता कर नहीं गए। उसने कहा कि बात-बात पर झगड़ा होता है और अब ये झगड़ा बहुत बढ़ गया है। ऐसे में अब एक ही रास्ता बचा है कि अलग हो जाएं, तलाक ले लें।
मैं चुपचाप बैठा रहा।
निधि जब काफी देर बोल चुकी तो मैंने उससे कहा कि तुम नितिन को फोन करो और घर बुलाओ, कहो कि संजय सिन्हा आए हैं।
निधि ने कहा कि उनकी तो बातचीत नहीं होती, फिर वो फोन कैसे करे?
अज़ीब संकट था। निधि को मैं बहुत पहले से जानता हूं। मैं जानता हूं कि नितिन से शादी करने के लिए उसने घर में कितना संघर्ष किया था। बहुत मुश्किल से दोनों के घर वाले राज़ी हुए थे, फिर धूमधाम से शादी हुई थी। ढेर सारी रस्म पूरी की गईं थीं। ऐसा लगता था कि ये जोड़ी ऊपर से बन कर आई है। पर शादी के कुछ ही साल बाद दोनों के बीच झगड़े होने लगे। दोनों एक-दूसरे को खरी-खोटी सुनाने लगे। और आज उसी का नतीज़ा था कि संजय सिन्हा निधि के सामने बैठे थे, उनके बीच के टूटते रिश्तों को बचाने के लिए।
खैर, निधि ने फोन नहीं किया। मैंने ही फोन किया और पूछा कि तुम कहां हो ? मैं तुम्हारे घर पर हूं, आ जाओ। नितिन पहले तो आनाकानी करता रहा, पर वो जल्दी ही मान गया और घर चला आया।
अब दोनों के चेहरों पर तनातनी साफ नज़र आ रही थी। ऐसा लग रहा था कि कभी दो जिस्म-एक जान कहे जाने वाले ये पति-पत्नी आंखों ही आंखों में एक दूसरे की जान ले लेंगे। दोनों के बीच कई दिनों से बातचीत नहीं हुई थी।
नितिन मेरे सामने बैठा था। मैंने उससे कहा कि सुना है कि तुम निधि से तलाक लेना चाहते हो?
उसने कहा, “हां, बिल्कुल सही सुना है। अब हम साथ नहीं रह सकते।”
मैंने कहा कि तुम चाहो तो अलग रह सकते हो। पर तलाक नहीं ले सकते।
“क्यों?”
“क्योंकि तुमने निकाह तो किया ही नहीं है।”
“अरे यार, हमने शादी तो की है।”
“हां, शादी की है। शादी में पति-पत्नी के बीच इस तरह अलग होने का कोई प्रावधान नहीं है। अगर तुमने मैरिज़ की होती तो तुम डाइवोर्स ले सकते थे। अगर तुमने निकाह किया होता तो तुम तलाक ले सकते थे। लेकिन क्योंकि तुमने शादी की है, इसका मतलब ये हुआ कि हिंदू धर्म और हिंदी में कहीं भी पति-पत्नी के एक हो जाने के बाद अलग होने का कोई प्रावधान है ही नहीं।”
मैंने इतनी-सी बात पूरी गंभीरता से कही थी, पर दोनों हंस पड़े थे। दोनों को साथ-साथ हंसते देख कर मुझे बहुत खुशी हुई थी। मैंने समझ लिया था कि रिश्तों पर पड़ी बर्फ अब पिघलने लगी है। वो हंसे, लेकिन मैं गंभीर बना रहा।
मैंने फिर निधि से पूछा कि ये तुम्हारे कौन हैं?
निधि ने नज़रे झुका कर कहा कि पति हैं। मैंने यही सवाल नितिन से किया कि ये तुम्हारी कौन हैं? उसने भी नज़रें इधर-उधर घुमाते हुए कहा कि बीवी हैं।
मैंने तुरंत टोका। ये तुम्हारी बीवी नहीं हैं। ये तुम्हारी बीवी इसलिए नहीं हैं क्योंकि तुम इनके शौहर नहीं। तुम इनके शौहर नहीं, क्योंकि तुमने इनसे साथ निकाह नहीं किया। तुमने शादी की है। शादी के बाद ये तुम्हारी पत्नी हुईं। हमारे यहां जोड़ी ऊपर से बन कर आती है। तुम भले सोचो कि शादी तुमने की है, पर ये सत्य नहीं है। तुम शादी का एलबम निकाल कर लाओ, मैं सबकुछ अभी इसी वक्त साबित कर दूंगा।
बात अलग दिशा में चल पड़ी थी। मेरे एक-दो बार कहने के बाद निधि शादी का एलबम निकाल लाई। अब तक माहौल थोड़ा ठंडा हो चुका था, एलबम लाते हुए उसने कहा कि कॉफी बना कर लाती हूं।
मैंने कहा कि अभी बैठो, इन तस्वीरों को देखो। कई तस्वीरों को देखते हुए मेरी निगाह एक तस्वीर पर गई जहां निधि और नितिन शादी के जोड़े में बैठे थे और पांव पूजन की रस्म चल रही थी। मैंने वो तस्वीर एलबम से निकाली और उनसे कहा कि इस तस्वीर को गौर से देखो।
उन्होंने तस्वीर देखी और साथ-साथ पूछ बैठे कि इसमें खास क्या है?
मैंने कहा कि ये पैर पूजन का रस्म है। तुम दोनों इन सभी लोगों से छोटे हो, जो तुम्हारे पांव छू रहे हैं।
“हां तो?”
“ये एक रस्म है। ऐसी रस्म संसार के किसी धर्म में नहीं होती जहां छोटों के पांव बड़े छूते हों। लेकिन हमारे यहां शादी को ईश्वरीय विधान माना गया है, इसलिए ऐसा माना जाता है कि शादी के दिन पति-पत्नी दोनों विष्णु और लक्ष्मी के रूप हो जाते हैं। दोनों के भीतर ईश्वर का निवास हो जाता है। अब तुम दोनों खुद सोचो कि क्या हज़ारों-लाखों साल से विष्णु और लक्ष्मी कभी अलग हुए हैं? दोनों के बीच कभी झिकझिक हुई भी हो तो क्या कभी तुम सोच सकते हो कि दोनों अलग हो जाएंगे? नहीं होंगे। हमारे यहां इस रिश्ते में ये प्रावधान है ही नहीं। तलाक शब्द हमारा नहीं है। डाइवोर्स शब्द भी हमारा नहीं है।
यहीं दोनों से मैंने ये भी पूछा कि बताओ कि हिंदी में तलाक को क्या कहते हैं?
दोनों मेरी ओर देखने लगे। उनके पास कोई जवाब था ही नहीं। फिर मैंने ही कहा कि दरअसल हिंदी में तलाक का कोई विकल्प नहीं। हमारे यहां तो ऐसा माना जाता है कि एक बार एक हो गए तो कई जन्मों के लिए एक हो गए। तो प्लीज़ जो हो ही नहीं सकता, उसे करने की कोशिश भी मत करो। या फिर पहले एक दूसरे से निकाह कर लो, फिर तलाक ले लेना।”
अब तक रिश्तों पर जमी बर्फ काफी पिघल चुकी थी।
निधि चुपचाप मेरी बातें सुन रही थी। फिर उसने कहा कि
भैया, मैं कॉफी लेकर आती हूं।
वो कॉफी लाने गई, मैंने नितिन से बातें शुरू कर दीं। बहुत जल्दी पता चल गया कि बहुत ही छोटी-छोटी बातें हैं, बहुत ही छोटी-छोटी इच्छाएं हैं, जिनकी वज़ह से झगड़े हो रहे हैं।
खैर, कॉफी आई। मैंने एक चम्मच चीनी अपने कप में डाली। नितिन के कप में चीनी डाल ही रहा था कि निधि ने रोक लिया, “भैया इन्हें शुगर है। चीनी नहीं लेंगे।”
लो जी, घंटा भर पहले ये इनसे अलग होने की सोच रही थीं और अब इनके स्वास्थ्य की सोच रही हैं।
मैं हंस पड़ा। मुझे हंसते देख निधि थोड़ा झेंपी। कॉफी पी कर मैंने कहा कि अब तुम लोग अगले हफ़्ते निकाह कर लो, फिर तलाक में मैं तुम दोनों की मदद करूंगा।
शायद अब दोनों समझ चुके थे।
हिन्दी एक भाषा ही नहीं - संस्कृति है।
इसी तरह हिन्दू भी धर्म नही - सभ्यता है।
(कहानी आजतक के Editor संजय सिन्हा की लिखी है )

मंगलवार, 2 जुलाई 2019

इनवेस्टमेंट या मूर्खता

मेरी बेटी की शादी थी और मैं कुछ दिनों की छुट्टी ले कर शादी के तमाम इंतजाम को देख रहा था. उस दिन सफर से लौट कर मैं घर आया तो पत्नी ने आ कर एक लिफाफा मुझे पकड़ा दिया. लिफाफा अनजाना था, लेकिन प्रेषक का नाम देख कर मुझे एक आश्चर्यमिश्रित जिज्ञासा हुई.
‘अमर विश्वास’ एक ऐसा नाम जिसे मिले मुझे वर्षों बीत गए थे. मैं ने लिफाफा खोला तो उस में 1 लाख डालर का चेक और एक चिट्ठी थी. इतनी बड़ी राशि वह भी मेरे नाम पर. मैं ने जल्दी से चिट्ठी खोली और एक सांस में ही सारा पत्र पढ़ डाला. पत्र किसी परी कथा की तरह मुझे अचंभित कर गया. लिखा था :
आदरणीय सर, मैं एक छोटी सी भेंट आप को दे रहा हूं. मुझे नहीं लगता कि आप के एहसानों का कर्ज मैं कभी उतार पाऊंगा. ये उपहार मेरी अनदेखी बहन के लिए है. घर पर सभी को मेरा प्रणाम.
आप का, अमर.
मेरी आंखों में वर्षों पुराने दिन सहसा किसी चलचित्र की तरह तैर गए.
एक दिन मैं चंडीगढ़ में टहलते हुए एक किताबों की दुकान पर अपनी मनपसंद पत्रिकाएं उलट पलट रहा था कि मेरी नजर बाहर पुस्तकों के एक छोटे से ढेर के पास खड़े एक लड़के पर पड़ी. वह पुस्तक की दुकान में घुसते हर सभ्रांत व्यक्ति से कुछ अनुनय विनय करता और कोई प्रतिक्रिया न मिलने पर वापस अपनी जगह पर जा कर खड़ा हो जाता. मैं काफी देर तक मूकदर्शक की तरह यह नजारा देखता रहा. पहली नजर में यह फुटपाथ पर दुकान लगाने वालों द्वारा की जाने वाली सामान्य सी व्यवस्था लगी, लेकिन उस लड़के के चेहरे की निराशा सामान्य नहीं थी. वह हर बार नई आशा के साथ अपनी कोशिश करता, फिर वही निराशा.
मैं काफी देर तक उसे देखने के बाद अपनी उत्सुकता दबा नहीं पाया और उस लड़के के पास जा कर खड़ा हो गया. वह लड़का कुछ सामान्य सी विज्ञान की पुस्तकें बेच रहा था. मुझे देख कर उस में फिर उम्मीद का संचार हुआ और बड़ी ऊर्जा के साथ उस ने मुझे पुस्तकें दिखानी शुरू कीं. मैं ने उस लड़के को ध्यान से देखा. साफ सुथरा, चेहरे पर आत्मविश्वास, लेकिन पहनावा बहुत ही साधारण. ठंड का मौसम था और वह केवल एक हलका सा स्वेटर पहने हुए था. पुस्तकें मेरे किसी काम की नहीं थीं फिर भी मैं ने जैसे किसी सम्मोहन से बंध कर उस से पूछा, ‘बच्चे, ये सारी पुस्तकें कितने की हैं?’
‘आप कितना दे सकते हैं, सर?’
‘अरे, कुछ तुम ने सोचा तो होगा.’
‘आप जो दे देंगे,’ लड़का थोड़ा निराश हो कर बोला.
‘तुम्हें कितना चाहिए?’ उस लड़के ने अब यह समझना शुरू कर दिया कि मैं अपना समय उस के साथ गुजार रहा हूं.
‘5 हजार रुपए,’ वह लड़का कुछ कड़वाहट में बोला.
‘इन पुस्तकों का कोई 500 भी दे दे तो बहुत है,’ मैं उसे दु:खी नहीं करना चाहता था फिर भी अनायास मुंह से निकल गया.
अब उस लड़के का चेहरा देखने लायक था. जैसे ढेर सारी निराशा किसी ने उस के चेहरे पर उंड़ेल दी हो. मुझे अब अपने कहे पर पछतावा हुआ. मैं ने अपना एक हाथ उस के कंधे पर रखा और उस से सांत्वना भरे शब्दों में फिर पूछा, ‘देखो बेटे, मुझे तुम पुस्तक बेचने वाले तो नहीं लगते, क्या बात है. साफ साफ बताओ कि क्या जरूरत है?’
वह लड़का तब जैसे फूट पड़ा. शायद काफी समय निराशा का उतार चढ़ाव अब उस के बर्दाश्त के बाहर था.
‘सर, मैं 10+2 कर चुका हूं. मेरे पिता एक छोटे से रेस्तरां में काम करते हैं. मेरा मेडिकल में चयन हो चुका है. अब उस में प्रवेश के लिए मुझे पैसे की जरूरत है. कुछ तो मेरे पिताजी देने के लिए तैयार हैं, कुछ का इंतजाम वह अभी नहीं कर सकते,’ लड़के ने एक ही सांस में बड़ी अच्छी अंगरेजी में कहा.

‘तुम्हारा नाम क्या है?’ मैं ने मंत्रमुग्ध हो कर पूछा?
‘अमर विश्वास.’
‘तुम विश्वास हो और दिल छोटा करते हो. कितना पैसा चाहिए?’
‘5 हजार,’ अब की बार उस के स्वर में दीनता थी.
‘अगर मैं तुम्हें यह रकम दे दूं तो क्या मुझे वापस कर पाओगे? इन पुस्तकों की इतनी कीमत तो है नहीं,’ इस बार मैं ने थोड़ा हँस कर पूछा.
‘सर, आप ने ही तो कहा कि मैं विश्वास हूं. आप मुझ पर विश्वास कर सकते हैं. मैं पिछले 4 दिन से यहां आता हूं, आप पहले आदमी हैं जिस ने इतना पूछा. अगर पैसे का इंतजाम नहीं हो पाया तो मैं भी आप को किसी होटल में कपप्लेटें धोता हुआ मिलूंगा,’ उस के स्वर में अपने भविष्य के डूबने की आशंका थी.
उस के स्वर में जाने क्या बात थी जो मेरे जेहन में उस के लिए सहयोग की भावना तैरने लगी. मस्तिष्क उसे एक जालसाज से ज्यादा कुछ मानने को तैयार नहीं था, जबकि दिल में उस की बात को स्वीकार करने का स्वर उठने लगा था. आखिर में दिल जीत गया. मैं ने अपने पर्स से 5 हजार रुपए निकाले, जिन को मैं शेयर मार्किट में निवेश करने की सोच रहा था, उसे पकड़ा दिए. वैसे इतने रुपए तो मेरे लिए भी माने रखते थे, लेकिन न जाने किस मोह ने मुझ से वह पैसे निकलवा लिए.
‘देखो बेटे, मैं नहीं जानता कि तुम्हारी बातों में, तुम्हारी इच्छाशक्ति में कितना दम है, लेकिन मेरा दिल कहता है कि तुम्हारी मदद करनी चाहिए, इसीलिए कर रहा हूं. तुम से 4-5 साल छोटी मेरी बेटी भी है मिनी. सोचूंगा उस के लिए ही कोई खिलौना खरीद लिया,’ मैं ने पैसे अमर की तरफ बढ़ाते हुए कहा.
अमर हतप्रभ था. शायद उसे यकीन नहीं हो रहा था. उस की आंखों में आँसू तैर आए. उस ने मेरे पैर छुए तो आंखों से निकली दो बूंदें मेरे पैरों को चूम गईं.
‘ये पुस्तकें मैं आप की गाड़ी में रख दूं?’
‘कोई जरूरत नहीं. इन्हें तुम अपने पास रखो. यह मेरा कार्ड है, जब भी कोई जरूरत हो तो मुझे बताना.’
वह मूर्ति बन कर खड़ा रहा और मैं ने उस का कंधा थपथपाया, कार स्टार्ट कर आगे बढ़ा दी.
कार को चलाते हुए वह घटना मेरे दिमाग में घूम रही थी और मैं अपने खेले जुए के बारे में सोच रहा था, जिस में अनिश्चितता ही ज्यादा थी. कोई दूसरा सुनेगा तो मुझे एक भावुक मूर्ख से ज्यादा कुछ नहीं समझेगा. अत: मैं ने यह घटना किसी को न बताने का फैसला किया.

दिन गुजरते गए. अमर ने अपने मेडिकल में दाखिले की सूचना मुझे एक पत्र के माध्यम से दी. मुझे अपनी मूर्खता में कुछ मानवता नजर आई. एक अनजान सी शक्ति में या कहें दिल में अंदर बैठे मानव ने मुझे प्रेरित किया कि मैं हजार 2 हजार रुपए उस के पते पर फिर भेज दूं. भावनाएं जीतीं और मैं ने अपनी मूर्खता फिर दोहराई. 
दिन हवा होते गए. उस का संक्षिप्त-सा पत्र आता जिस में 4 लाइनें होतीं. 2 मेरे लिए, एक अपनी पढ़ाई पर और एक मिनी के लिए, जिसे वह अपनी बहन बोलता था. मैं अपनी मूर्खता दोहराता और उसे भूल जाता. मैं ने कभी चेष्टा भी नहीं की कि उस के पास जा कर अपने पैसे का उपयोग देखूं, न कभी वह मेरे घर आया. कुछ साल तक यही क्रम चलता रहा. एक दिन उस का पत्र आया कि वह उच्च शिक्षा के लिए ऑस्ट्रेलिया जा रहा है. छात्रवृत्तियों के बारे में भी बताया था और एक लाइन मिनी के लिए लिखना वह अब भी नहीं भूला.
मुझे अपनी उस मूर्खता पर दूसरी बार फख्र हुआ, बिना उस पत्र की सचाई जाने. समय पंख लगा कर उड़ता रहा. अमर ने अपनी शादी का कार्ड भेजा. वह शायद ऑस्ट्रेलिया में ही बसने के विचार में था. मिनी भी अपनी पढ़ाई पूरी कर चुकी थी. एक बड़े परिवार में उस का रिश्ता तय हुआ था. अब मुझे मिनी की शादी लड़के वालों की हैसियत के हिसाब से करनी थी. एक सरकारी उपक्रम का बड़ा अफसर कागजी शेर ही होता है. शादी के प्रबंध के लिए ढेर सारे पैसे का इंतजाम…उधेड़बुन…और अब वह चेक?
मैं वापस अपनी दुनिया में लौट आया. मैं ने अमर को एक बार फिर याद किया और मिनी की शादी का एक कार्ड अमर को भी भेज दिया.
शादी की गहमागहमी चल रही थी. मैं और मेरी पत्नी व्यवस्थाओं में व्यस्त थे और मिनी अपनी सहेलियों में. एक बड़ी सी गाड़ी पोर्च में आ कर रुकी. एक सभ्रांत से शख्स के लिए ड्राइवर ने गाड़ी का गेट खोला तो उस शख्स के साथ उस की पत्नी जिस की गोद में एक बच्चा था, भी गाड़ी से बाहर निकले.
मैं अपने दरवाजे पर जा कर खड़ा हुआ तो लगा कि इस व्यक्ति को पहले भी कहीं देखा है. उस ने आ कर मेरी पत्नी और मेरे पैर छुए.
‘‘सर, मैं अमर…’’ वह बड़ी श्रद्धा से बोला.
मेरी पत्नी अचंभित सी खड़ी थी. मैं ने बड़े गर्व से उसे सीने से लगा लिया. उस का बेटा मेरी पत्नी की गोद में घर सा अनुभव कर रहा था. मिनी अब भी संशय में थी. अमर अपने साथ ढेर सारे उपहार ले कर आया था. मिनी को उस ने बड़ी आत्मीयता से गले लगाया. मिनी भाई पाकर बड़ी खुश थी.
अमर शादी में एक बड़े भाई की रस्म हर तरह से निभाने में लगा रहा. उस ने न तो कोई बड़ी जिम्मेदारी मुझ पर डाली और न ही मेरे चाहते हुए मुझे एक भी पैसा खर्च करने दिया. उस के भारत प्रवास के दिन जैसे पंख लगा कर उड़ गए.
इस बार अमर जब ऑस्ट्रेलिया वापस लौटा, तो हवाई अड्डे पर उस को विदा करते हुए न केवल मेरी बल्कि मेरी पत्नी, मिनी सभी की आँखें नम थीं. हवाई जहाज ऊंचा और ऊंचा आकाश को छूने चल दिया और उसी के साथ साथ मेरा विश्वास भी आसमान छू रहा था
मैं अपनी मूर्खता पर एक बार फिर गर्वित था और सोच रहा था कि इस नश्वर संसार को चलाने वाला कोई भगवान नहीं हमारा विश्वास ही है।
अशोक भावसार ने वाट्स एप पर भेजा

शनिवार, 15 जून 2019

ढोल,गवार,क्षुब्ध पशु,रारी”

श्रीरामचरितमानस में कहीं नहीं किया गया है शूद्रों और नारी का अपमान।
भगवान श्रीराम के चित्रों को जूतों से पीटने वाले भारत के राजनैतिक शूद्रों को पिछले 450 वर्षों में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित हिंदू महाग्रंथ 'श्रीरामचरितमानस' की कुल 10902 चौपाईयों में से आज तक मात्र 1 ही चौपाई पढ़ने में आ पाई है और वह है भगवान श्री राम का मार्ग रोकने वाले समुद्र द्वारा भय वश किया गया अनुनय का अंश है जो कि सुंदर कांड में 58 वें दोहे की छठी चौपाई है "ढोल गँवार शूद्र पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी”
इस सन्दर्भ में चित्रकूट में मौजूद तुलसीदास धाम के पीठाधीश्वर और विकलांग विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री राम भद्राचार्य जी जो नेत्रहीन होने के बावजूद संस्कृत, व्याकरण, सांख्य, न्याय, वेदांत, में 5 से अधिक GOLD Medal जीत चुकें हैं।
महाराज का कहना है कि बाजार में प्रचलित रामचरितमानस में 3 हजार से भी अधिक स्थानों पर अशुद्धियां हैं और इस चौपाई को भी अशुद्ध तरीके से प्रचारित किया जा रहा है।
उनका कथन है कि तुलसी दास जी महाराज खलनायक नहीं थे,आप स्वयं विचार करें यदि तुलसीदास जी की मंशा सच में शूद्रों और नारी को प्रताड़ित करने की ही होती तो क्या रामचरित्र मानस की 10902 चौपाईयों में से वो मात्र 1 चौपाई में ही शूद्रों और नारी को प्रताड़ित करने की ऐसी बात क्यों करते ?
यदि ऐसा ही होता तो भील शबरी के जूठे बेर को भगवान द्वारा खाये जाने का वह चाहते तो लेखन न करते।यदि ऐसा होता तो केवट को गले लगाने का लेखन न करते।
स्वामी जी के अनुसार ये चौपाई सही रूप में - ढोल,गवार, शूद्र,पशु,नारी नहीं है
बल्कि यह "ढोल,गवार,क्षुब्ध पशु,रारी” है।
ढोल = बेसुरा ढोलक
गवार = गवांर व्यक्ति
क्षुब्ध पशु = आवारा पशु जो लोगो को कष्ट देते हैं
रार = कलह करने वाले लोग
चौपाई का सही अर्थ है कि जिस तरह बेसुरा ढोलक, अनावश्यक ऊल जलूल बोलने वाला गवांर व्यक्ति, आवारा घूम कर लोगों की हानि पहुँचाने वाले (अर्थात क्षुब्ध, दुखी करने वाले) पशु और रार अर्थात कलह करने वाले लोग जिस तरह दण्ड के अधिकारी हैं उसी तरह मैं भी तीन दिन से आपका मार्ग अवरुद्ध करने के कारण दण्ड दिये जाने योग्य हूँ।

स्वामी राम भद्राचार्य जी जो के अनुसार श्रीरामचरितमानस की मूल चौपाई इस तरह है और इसमें ‘क्षुब्ध' के स्थान पर 'शूद्र' कर दिया और 'रारी' के स्थान पर 'नारी' कर दिया गया है।
भ्रमवश या भारतीय समाज को तोड़ने के लिये जानबूझ कर गलत तरह से प्रकाशित किया जा रहा है।इसी उद्देश्य के लिये उन्होंने अपने स्वयं के द्वारा शुद्ध की गई अलग रामचरित मानस प्रकाशित कर दी है।रामभद्राचार्य कहते हैं धार्मिक ग्रंथो को आधार बनाकर गलत व्याख्या करके जो लोग हिन्दू समाज को तोड़ने का काम कर रहे है उन्हें सफल नहीं होने दिया जायेगा।
आप सबसे से निवेदन है , इस लेख को अधिक से अधिक share करें।तुलसीदास जी की चौपाई का सही अर्थ लोगो तक पहुंचायें हिन्दू समाज को टूटने से बचाएं।

मंगलवार, 11 जून 2019

समय के साथ चलें

1998 में Kodak में 1,70,000 कर्मचारी काम करते थे और वो दुनिया का 85% फ़ोटो पेपर बेचते थे..चंद सालों में ही Digital photography ने उनको बाज़ार से बाहर कर दिया.. Kodak दिवालिया हो गयी और उनके सब कर्मचारी सड़क पे आ गए।

HMT (घडी)
BAJAJ (स्कूटर)
DYNORA (टीवी)
MURPHY (रेडियो)
NOKIA (मोबाइल)
RAJDOOT (बाईक)
AMBASDOR (कार)

मित्रों,
इन सभी की गुणवक्ता में कोई कमी नहीं थी फिर भी बाजार से बाहर हो गए!!
कारण???
उन्होंने समय के साथ बदलाव नहीं किया.!!

आपको अंदाजा है कि आने वाले 10 सालों में दुनिया पूरी तरह बदल जायेगी और आज चलने वाले 70 से 90% उद्योग बंद हो जायेंगे।

चौथी औद्योगिक क्रान्ति में आपका स्वागत है...

Uber सिर्फ एक software है। उनकी अपनी खुद की एक भी Car नहीं इसके बावजूद वो दुनिया की सबसे बड़ी Taxi Company है।

Airbnb दुनिया की सबसे बड़ी Hotel Company है, जब कि उनके पास अपना खुद का एक भी होटल नहीं है।

Paytm, ola cabs , oyo rooms जैसे अनेक उदाहरण हैं।

US में अब युवा वकीलों के लिए कोई काम नहीं बचा है, क्यों कि IBM Watson नामक Software पल भर में ज़्यादा बेहतर Legal Advice दे देता है। अगले 10 साल में US के 90% वकील बेरोजगार हो जायेंगे... जो 10% बचेंगे... वो Super Specialists होंगे।

Watson नामक Software मनुष्य की तुलना में Cancer का Diagnosis 4 गुना ज़्यादा Accuracy से करता है। 2030 तक Computer मनुष्य से ज़्यादा Intelligent हो जाएगा।

अगले 10 सालों में दुनिया भर की सड़कों से 90% cars गायब हो जायेंगी... जो बचेंगी वो या तो Electric Cars होंगी या फिर Hybrid...सडकें खाली होंगी,Petrol की खपत 90% घट जायेगी,सारे अरब देश दिवालिया हो जायेंगे।

आप Uber जैसे एक Software से Car मंगाएंगे और कुछ ही क्षणों में एक Driverless कार आपके दरवाज़े पे खड़ी होगी...उसे यदि आप किसी के साथ शेयर कर लेंगे तो वो ride आपकी Bike से भी सस्ती पड़ेगी।

Cars के Driverless होने के कारण 99% Accidents होने बंद हो जायेंगे.. इस से Car Insurance नामक धन्धा बंद हो जाएगा।

ड्राईवर जैसा कोई रोज़गार धरती पे नहीं बचेगा। जब शहरों और सड़कों से 90% Cars गायब हो जायेंगी, तो Traffic और Parking जैसी समस्याएं स्वतः समाप्त हो जायेंगी... क्योंकि एक कार आज की 20 Cars के बराबर होगी।

आज से 5 या 10 साल पहले ऐसी कोई ऐसी जगह नहीं होती थी जहां PCO न हो। फिर जब सब की जेब में मोबाइल फोन आ गया, तो PCO बंद होने लगे.. फिर उन सब PCO वालों ने फोन का recharge बेचना शुरू कर दिया। अब तो रिचार्ज भी ऑन लाइन होने लगा है।

आपने कभी ध्यान दिया है..?

आजकल बाज़ार में हर तीसरी दुकान आजकल मोबाइल फोन की है।
sale, service, recharge , accessories, repair, maintenance की।

अब सब Paytm से हो जाता है.. अब तो लोग रेल का टिकट भी अपने फोन से ही बुक कराने लगे हैं.. अब पैसे का लेनदेन भी बदल रहा है.. Currency Note की जगह पहले Plastic Money ने ली और अब Digital हो गया है लेनदेन।

दुनिया बहुत तेज़ी से बदल रही है.. आँख कान नाक खुले रखिये वरना आप पीछे छूट जायेंगे..।

समय के साथ बदलने की तैयारी करें।

इसलिए...
व्यक्ति को समयानुसार अपने व्यापार एवं अपने स्वभाव में भी बदलाव करते रहना चाहिये।

"Time to Time Update & Upgrade"

समयके साथ चलिये और सफलता पाइए ।

सोमवार, 18 मार्च 2019

बेटी क्या है और क्या नहीं !!

उन पिताओं को समर्पित जो अपनी लाडली बेटियों के पापा हैं

१:-  सूर्य के अगर बेटी होती और उसे विदा करने का अवसर आता तब उसे पता चलता कि अंधकार किसे कहते हैं ।

२:-  हर बेटी अपने पापा से सबसे ज़्यादा प्यार क्यों करती है ?

३:-  क्यों कि वह जानती है कि संसार में उसके पापा ही ऐसे व्यक्ति हैं जो उसे कभी दुखी देखना नहीं चाहते ।

४:-  किसी  भी  परिवार  में पापा को डाँटने का अधिकार बेटी को ही होता है क्यों कि जिसे प्यार किया जाता है, उसे ही डाँटा जा सकता है ।

५:-  मुझे मेरे एक मित्र ने कहा- मैं अपनी पत्नी से भी ज़्यादा प्यार अपनी बेटी को करता हूँ ।

६:-  जब  मैं  बीमार  होता  हूँ और बेटी हाल पूछने ससुराल से आती है तो मैं अपने सब दुख दर्द भूल जाता हूँ ।

७:-  मुझे भी लगता है कि विदाई के समय पापा को तकलीफ़ कम नहीं होती ।

८:--  क्यों कि माँ तो सामने रो सकती है,पर पापा अंदर ही अंदर रोते हैं ।

९:-  बेटी बीस बाईस की होने लगती है , उसके बाद
पापा का वात्सल्य और प्रेम बढने लगता है ।

१०:-  बेटी कभी माँ बनेगी, कभी दादी भी, पर दोस्त तो सदैव बनी रहेगी ।

११:-  बेटी का सुख पापा के होंठों की मुस्कान है ।

१२:-  पापा के दुख में बेटी हथेली बनकर आँखों के आँसू पोंछती है ।

१३:-  देखते ही देखते पता ही नहीं चलता कि बेटी बड़ी हो जाती है और एक दिन सुहाग का जोड़ा पहन कर विदा हो जाती है ।

१४:-  जाते समय पापा से चिपक कर जब बेटी पापा से सजल नेत्रों से कहती है ।

१५:-  पापा, मैं जा रही हूँ ,मेरी चिन्ता मत करना और अपना ध्यान रखना ।

१६:-  और तब पापा अपनी आँखों में उमड़ते हुए आँसुओं को रोक नहीं पाते।

१७- हर एक पापा को भगवान से प्रार्थना करनी चाहिये- हे प्रभो ! तुम संसार के सभी पुरूषों को सयाना और समझदार बनाना क्यों कि उन्हीं में से एक मेरी बेटी का पति बनेगा ।

१८:-  संसार की सभी स्त्रियों को बहुत प्रेममय बनाना क्यों कि उन्हीं में से कोई मेरी बेटी की सास या ननद बनने वाली है ।

१९:-  हाल ही में निवृत एक मित्र ने मुझसे कहा- यदि आपके घर में बेटी नहीं है तो पापा बेटी की घनिष्ठता के बारे में नहीं जान सकते ।

२०:-   बस इतना सा ख़याल रखना चाहिये  कि पुत्रवधू बेटी की तरह रहे और बेटी को उसके पापा के बारे में कुछ कटुवचन न कहा जाये ।

२१:-  क्यों कि बेटी भगवान के विरोध में सुन सकती है लेकिन अपने पापा के बारे में नहीं ।