बुधवार, 27 जुलाई 2011

मन में है विश्वास की घड़ी


आत्मविश्वास आपकी आंतरिक शक्ति होती है। आपकी प्राथमिकता अपनी आंतरिक शक्तियों के आकलन की होनी चाहिए। अगर आपके पास ऐसा करने की क्षमता नहीं है, तो आपका हर काम अधूरा ही रह जाएगा। खुद पर दृढ़ विश्वास करने से आप अपने लक्ष्य को ९० फीसदी तक वैसे ही हासिल कर लेते हैं...
मन में अगर लक्ष्य पाने का विश्वास पक्का है, तो आपकी विजय लगभग तय हो जाती है। बस १० फीसदी अतिरिक्त मेहनत की आवश्यकता होती है, जो कि आपका तकनीकी ज्ञान होता है।यह तकनीकी ज्ञान अनुभव से आता है।लेकिन अगर आपको तकनीकी ज्ञान होने के बावजूद खुद पर संदेह है, तो हो सकता है कि आप अपना लक्ष्य हासिल न कर पाएं।दुनिया में ज्यादातर असफल अपनी योग्यताओं और क्षमता पर किए गए संदेह का शिकार हो रहे हैं।वे इसलिए असफल हुए, क्योंकि उनमें आत्मविश्वास नहीं था।दुनिया में जितने भी महान आविष्कार हुए हैं, सबने पहले खुद पर विश्वास किया।फिर अपनी उपलब्धियों को हासिल करने पर। अगर उन्होंने अपनी क्षमता पर संदेह किया होता, तो वे कतई अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाते।
युधिष्ठिर पांडवों में सबसे बड़े थे। वे एक सत्यवादी इंसान थे और महज एक बार अपवादस्वरूप छोड़कर उन्होंने कभी भी झूठ नहीं बोला।महाभारत में उनका एक प्रतिष्ठित दर्जा है।मकुर नामक उनका एक पालतू कुत्ता था।वह हमेशा उनके साथरहता था।युधिष्ठिर जब भी कोई फैसला लेते, तो उसकी सलाह जरूर लेते थे।मृत्यु के बाद युधिष्ठिर को स्वर्ग में आने का आमंत्रण मिला।वे स्वर्ग के द्वार तक पहुंच गए।मकुर भी उनके साथ ही गया था।स्वर्ग के द्वार पर खड़े द्वारपाल ने युधिष्ठिर से कहा कि आपके साथ यह कुत्ता स्वर्ग नहीं जा सकता।नियमानुसार कुत्ते का स्वर्ग में जाना मना है।युधिष्ठिर ने कुत्ते के बिना स्वर्ग में जाने से मना कर दिया। स्वर्ग के संरक्षक इंद्र के लिए बड़ी समस्या पैदा हो गई।उन्होंने मंत्रीमंडल में बैठक आयोजित की और मामले पर चर्चा की गई।युधिष्ठिर को नियमों के बारे में समझाया गया, पर वे नहीं माने।अंतत: नियमों में संशोधन करते हुए युधिष्ठिर को मकुर के साथ स्वर्ग में जाने दिया गया।लेकिन यह भी तय किया गया कि ऐसा भविष्य में कोई नियम नहीं बनेगा।यह केवल एक बार के लिए ही मान्य है। दूसरों के साथ ऐसा नहीं लागू होगा।
युधिष्ठिर अपने व्यवहार से अपनी बात मनवाने में सफल रहे, क्योंकि उन्हें खुद पर विश्वास था कि वे गलत नहीं हैं।युधिष्ठिर को अपने विश्वास पर गर्व था और ऐसा करके वे अपना स्वाभिमान कायम रख सके।मुसीबत के दौरान अपने अनुसरण करने वालों को खो देना एक अच्छे नेता का गुण नहीं, ऐसे में एक समय के बाद नेता अकेला पड़ जाएगा।ऐसा खुद के स्वाभिमान को कायम न रखपाने की वजह से होगा।इस तरह के ढेरों उदाहरण पौराणिक ग्रंथों में मिल जाएंगे, जिन्होंने अपने स्वाभिमान के बल पर मनचाही मंजिल पाई है।(डायमंड बुक्स द्वारा प्रकाशित पुस्तक खुद बदलें अपनी किस्मत से साभार)