सोमवार, 28 जुलाई 2014

आदमी पर निबंध


शशिकांत सिंह ‘शशि’
जंगल की एक निंबध प्रतियोगिता में गाय ने आदमी पर निबंध लिखा, जो इस प्रकार है। आदमी एक दोपाया जानवर होता है। उसको दो कान, दो आंखें और दो हाथ होते हैं। वह सब- कुछ खाता है। उसका पेट बहुत बड़ा तो नहीं होता, लेकिन कभी भरता नहीं है। यही कारण है कि आदमी जुगाली नहीं करता। उसके सींग नहीं होते, लेकिन वह सबको मारता है। उसके दुम नहीं होती, लेकिन वह दुम हिला सकता है। वह एक अद्भुत किस्म का प्राणी है। उसके बच्चे भी बड़े होकर आदमी ही बनते हैं। आदमी हर जगह पाया जाता है। गांवों में, शहरों में, पहाड़ों और मैदानों में। रेगिस्तान से लेकर अंटार्कटिका जैसे ठंडे स्थानों पर भी पाया जाता है। वह कहीं भी रह सकता है, लेकिन जहां रहता है उस जगह को जहरीला कर देता है। उससे दुनिया के सारे जानवर डरते हैं। वह जानवरों का दुश्मन तो है ही पेड़-पौधों का भी शत्रु है। आदमियों के अनेक प्रकार होते है। गोरा आदमी, काला आदमी, हिंदू आदमी, मुसलमान आदमी, ऊंची जाति का, नीची जाति का। पर सबसे अधिक सं या में पाए जाते हैं- धनी आदमी, गरीब आदमी। आदमी हमेशा लड़ने वाला जीव होता है। वह नाम, मान, जान, पहचान, आन और खानदान के लिए लड़ता ही रहता है। सबसे अधिक अपनी पहचान के लिए लड़ता है। जानवरों में यह हंसी की बात मानी जाती है कि पहचान के लिए कोई लड़े। किसी के सींग छोटे हैं तो किसी के बड़े। किसी की दुम छोटी है तो किसी की बड़ी। हाथी के कान विशाल होते हैं तो ऊंट के एकदम छोटे, लेकिन दोनों लड़ते नहीं हैं। कौआ काला होता है। तोता हरा, लेकिन दोनों एक ही डाल पर प्रेम से रह सकते हैं। आदमियों में सबसे ज्यादा लड़ाई पहचान के लिए होती है। कहते हैं कि आदमी एक सामाजिक प्राणी है, जबकि समाज में रहना उसे आता ही नहीं। वह सबसे ज्यादा अपने पड़ोसी से लड़ता है। वह दो इंच जमीन के लिए भी लड़ सकता है और एक गज कपड़े के लिए भी। और तो और वह एक पके पपीते के लिए चौबीस घंटे अनवरत लड़े तो जानवरों को आश्चर्य नहीं होगा। लड़ने के लिए धर्म और जाति बनाई गई हैं। जानवरों में जाति और धर्म नहीं हैं तो वह कितने सुख से रहता है। ऐसा नहीं कि शेर के शक्‍ितशाली भगवान हैं और उन्हें मांसाहार पसंद है, तो खरगोश के भगवान शाकाहारी हैं। उनका अवतार जंगल को शेरों से मु त कराने के लिए हुआ था। मछलियों के भगवान पानी में रहते तो बंदरों के पेड़ पर। यदि ऐसा होता तो जंगल में जानवर लड़ते-लड़ते मर जाते। शुक्र है, जानवरों के पूर्वजों के दिमाग में ऐसी बातें नहीं आई। नहीं तो जंगल भी नगर बन जाते। हंसी तो तब आती है जब इतनी लड़ाइयों के बावजूद आदमी अपने को सामाजिक प्राणी मानता हैं। धन्य है आदमी!
शशिकांत सिंह ‘शशि’

गुरुवार, 24 जुलाई 2014

नाम के पहले अक्षर में छिपा है आपका चरित्र

आपके नाम का पहला अक्षर बताएगा कि आपका चरित्र कैसा है  ?

A
A- अक्षर से नाम वाले लोग काफी मेहनती और धैर्य वाले होते हैं। इन्हें अट्रैक्टिव दिखना और अट्रैक्टिव दिखने वाले लोग ज्यादा पसंद होते हैं। ये खुद को किसी भी परिस्थिति में ढाल लेने की गजब की क्षमता रखते हैं। इन्हें वैसी चीज ही भाती है, जो भीड़ से अलग दिखता हो।A- अध्ययन या करियर की बात करें तो किसी भी काम को अंजाम देने के लिए चाहे जो करना पड़े ये करते हैं, लेकिन लक्ष्य तक पहुंचने से पहले ये कभी हारकर बैठते नहीं। A- ए से नाम वाले लोग रोमांस के मामले में जरा पीछे रहना ही पसंद करते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वे प्यार और अपने करीबी रिश्तों को अहमियत नहीं देते। बस, इन्हें इन चीजों का इजहार करना अच्छा नहीं लगता।A- चाहे बात रिश्तों की हो या फिर काम की, इनका विचार बिल्कुल खुला होता है। सच और कड़वी बात भी इन्हें खुलकर कह दी जाए तो ये मान लेते हैं, लेकिन इशारों में या घुमाकर कुछ कहना-सुनना इन्हें पसंद नहीं।A- ए से नाम वाले लोग हिम्मती भी काफी होते हैं, लेकिन यदि इनमें मौजूद कमियों की बात करें तो इन्हें बात-बात पर गुस्सा भी आ जाता है।
B
B- जिनका नाम बी अक्षर से शुरू होता है वे अपनी जिंदगी में नए-नए रास्ते तलाशने में यकीन रखते हैं। अपने लिए कोई एक रास्ता चुनकर उसपर आगे बढ़ना इन्हें अच्छा नहीं लगता। B- बी अक्षर वाले लोग ज़रा संकोची स्वभाव के होते हैं। काफी सेंसिटिव नेचर के होते हैं ये। जल्दी अपने मित्रों से भी नहीं घुलते-मिलते। इनकी लाइफ में कई राज होते हैं, जो इनके करीबी को भी नहीं पता होता। ये ज्यादा दोस्त नहीं बनाते, लेकिन जिन्हें बनाते हैं उनके साथ सच्चे होते हैं।B- रोमांस के मामले में ये थोड़े खुले होते हैं। प्यार का इजहार ये कर लेते हैं। प्यार को लेकर ये धोखा भी खूब खाते हैं। इन्हें खुद पर कंट्रोल रखना आता है। खूबसूरत चीजों के ये दीवाने होते हैं।
C
c- सी नाम के लोगों को हर क्षेत्र में खूब सफलता मिलती है। एक तो इनका चेहरा-मोहरा भी काफी आकर्षक होता है और दूसरा कि काम के मामले में भी लक इनके साथ हमेशा रहता है। इन्हें आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता है। अच्छी सूरत तो भगवान देते ही हैं इन्हें, अच्छे दिखने में ये खुद भी कभी कोई कसर नहीं छोड़ते।C- सी नाम वाले दूसरों के दुख-दर्द के साथ-साथ चलते हैं। खुशी में ये शरीक हों या न हों, लेकिन किसी के ग़म में आगे बढ़कर ये उनकी मदद करते हैं।C- सी नाम वालों के लिए प्यार के महत्व की बात करें तो ये जिन्हें पसंद करते हैं उनके बेहद करीब हो जाते हैं। यदि इन्हें अपने हिसाब के कोई न मिले तो मस्त होकर अकेले भी रह लेते हैं। वैसे स्वभाव से ये काफी इमोशनल होते हैं।
D
D- डी नाम वाले लोगों को हर मामले में अपार सफलता हाथ लगती है। कभी भाग्य साथ न भी दे तो उन्हें विचलित नहीं होना चाहिए, क्योंकि उनकी जिंदगी में आगे चलकर सारी खुशियां लिखी होती हैं। लोगों की बात पर ध्यान न देकर अपने मन की करना ही इन्हें भाता है। जो ठान लेते हैं ये, उसे कहके ही मानते हैं। इन्हें सुंदर या आकर्षक दिखने के लिए बनने-संवरने की जरूरत नहीं होती। ये लोग बॉर्न स्मार्ट होते हैं। D- किसी की मदद करने में ये कभी पीछे नहीं रहते। यहां तक ये भी नहीं देखते कि जिनकी मदद के लिए उन्होंने अपना हाथ आगे बढ़ाया है वह उनके दुश्मन की लिस्ट में हैं या दोस्त की लिस्ट में।D- डी नाम के लोग प्यार को लेकर काफी जिद्दी होते हैं। जो इन्हें पसंद हो, उन्हें पाने के लिए या फिर उनसे रिश्ता निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। रिश्तों के मामले में इनपर अविश्वास करना बेवकूफी होगी।
E
E- ई या इ से नाम वाले मुंहफट किस्म के होते हैं। हंसी-मजाक की जिंदगी जीना इन्हें पसंद है। इन्हें अपने इच्छा अनुरूप सारी चीजें मिल जाती हैं। जो इन्हें टोका टाकी करे, उनसे किनारा भी तुरंत हो लेते हैं।E- ई या इ नाम वाले लोग जिंदगी को बेतरतीव जीना पसंद नहीं करते। इन्हें सारी चीजें सलीके और सुव्यवस्थित रखना ही पसंद है। E- ई या इ से नाम वाले लोग प्यार को लेकर उतने संजीदा नहीं रहते, इसलिए इनसे रिश्ते पीछे छूटने का किस्सा लगा ही रहता है। शुरुआत में ये दिलफेंक आशिक की तरह व्यवहार करते हैं, क्योंकि इनका दिल कब किसपर आ जाए कह नहीं सकते। लेकिन एक सच यह भी है कि जिन्हें ये फाइनली दिल में बिठा लेते हैं उनके प्रति पूरी तरह से सच्चे हो जाते हैं।
F
F नाम वाले लोग काफी जिम्मेदार किस्म के होते हैं। हां, इन्हें अकेले रहना काफी भाता है। ये स्वभाव से काफी भावुक होते हैं। हर चीज को लेकर ये बेहद कॉन्फिडेंट होते हैं। सोच-समझकर ही खर्च करना चाहते हैं ये। जीवन में हर चीज इनका काफी बैलेंस्ड होता है।
F से शुरू होने वाले नाम के लोगों के लिए प्यार की काफी अहमियत होती है। ये खुद भी सेक्सी और आकर्षक होते हैं और ऐसे लोगों को पसंद भी करते हैं। रोमांस तो समझिए कूट-कूटकर इनमें भरा होता है।
G
G से शुरू होनेवाले नाम वाले लोग दूसरों की मदद के लिए हमेशा ही खड़े होते हैं। ये खुद को हर परिस्थितियों में ढाल लेते हैं। ये चीजों को गोलमोल करके पेश करना पसंद नहीं करते, क्योंकि इनका दिल बिल्कुल साफ होता है। अपने किए से जल्द सबक लेते हैं और फूंत-फूंककर कदम आगे बढ़ाते हैं ये।G से नाम वाले प्यार को लेकर ईमानदार होते हैं। प्यार के मामले में ये समझदारी और धैर्य से काम लेते हैं। कमिटमेंट से पहले किसी पर बेवजह खर्च करना इनके लिए बेकार का काम है।
H
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H से नाम वाले लोगों के लिए पैसे काफी मायने रखते हैं। ये काफी हंसमुख स्वभाव के होते हैं और अपने आसपास का माहौल भी एकदम हल्का-फुल्का बनाए रखते हैं। ये लोग दिल के सच्चे होते हैं। काफी रॉयल नेचर के होते हैं और मस्त मौला होकर जीवन गुजारना पसंद करते हैं। झटपट निर्णय लेना इनकी काबिलियत है और दूसरों की मदद के लिए आधी रात को भी ये तैयार होते हैं।प्यार का इजहार करना इन्हें नहीं आता, लेकिन जब ये प्यार में पड़ते हैं तो जी जीन से प्यार करते हैं। उनके लिए कुछ भी कर गुजरते हैं ये। इन्हें अपने मान-सम्मान की भी खबह चिंता होती है।
I
I से शुरू होने वाले नाम के लोग कलाकार किस्म के होते हैं। न चाहते हुए भी ये लोगों के आकर्षण का केन्द्र बने रहते हैं। हालांकि मौका पड़े तो इन्हें अपनी बात पलटने में पल भर भी नहीं लगता और इसके लिए वे यह नहीं देखते कि सही का साथ दे रहे हैं या फिर गलत का। इनके हाथ तो काफी कुछ लगता है, लेकिन उन चीजों के हाथ से फिसलने में भी देर नहीं लगती। I से नाम वाले लोग प्यार के भूखे होते हैं। आपको वैसे लोग अपनी ओर खींच पाते हैं जो हर काम को काफी सोच-विचार के बाद ही करते हैं। स्वभाव से संवेदनशील और दिखने में बेहद सेक्सी होते हैं।
J
J से नाम वाले लोगों की बात करें तो ये स्वभाव से काफी चंचल होते हैं। लोग इनसे काफी चिढ़ते हैं, क्योंकि इनमें अच्छे गुणों के साथ-साथ खूबसूरती का भी सामंजस्य होता है। जो करने की ठान लेते हैं, उसे करके ही मानते हैं ये। पढ़ने-लिखने में थोड़ा पीछे ही रहते हैं, लेकिन जिम्मेदारी की बात करें तो सबसे आगे खड़े रहेंगे ये। j से नाम वाले लोगों के चाहने वाले कई होते हैं। हमसफर के रूप में ये जिन्हें मिल जाएं समझिए खुशनसीब हैं वह। जीवन के हर मोड़ पर ये साथ निभानेवाले होते हैं।
K
K से नाम वाले लोगों को हर चीज में परफेक्शन चाहिए। चाहे बेडशीट के बिछाने का तरीका हो या फिर ऑफिस की फाइलें, सारी चीजें इन्हें सेट चाहिए। दूसरों से हटकर चलना बेहद भाता है इन्हें। ये अपने बारे में पहले सोचते हैं। पैसे कमाने के मामले में भी ये काफी आगे चलते हैं।स्वभाव से ये रोमांटिक होते हैं। अपने प्यार का इजहार खुलकर करना इन्हें खूब आता है। इन्हें स्मार्ट और समझदार साथी चाहिए और जबतक ऐसा कोई न मिले तब तक किसी एक पर टिकते नहीं ये।
L
L से शुरू होने वाले नाम के लोग काफी चार्मिंग होते हैं। इन्हें बहुत ज्य़ादा पाने की तमन्ना नहीं होती, बल्कि छोटी-मोटी खुशियों से ये खुश रहते हैं। पैसों को लेकर समस्या बनती है, लेकिन किसी न किसी रास्ते इन्हें हल भी मिल जाता है। लोगों के साथ प्यार से पेश आते हैं ये। कल्पनाओं में जीते हैं और फैमिली को अहम हिस्सा मानकर चलते हैं ये।प्यार की बात करें तो इनके लिए इस शब्द के मायने ही सबकुछ हैं। बेहद ही रोमांटिक होते हैं ये। वैसे सच तो यह है कि अपनी काल्पनिक दुनिया का जिक्र ये अपने हमसफर तक से करना नहीं चाहते। प्यार के मामले में भी ये आदर्शवादी किस्म के होते हैं।
M
M नाम से शुरू होनेवाले लोग बातों को मन में दबाने वाली प्रवृत्ति के होते हैं। कहते हैं ऐसा नेचर कभी-कभी दूसरों के लिए खतरनाक भी साबित हो जाता है। चाहे बात कड़वी हो, यदि खुलकर कोई कह दे तो बात वहीं खत्म हो जाती है, लेकिन बातों को मन रखकर उस चलने से नतीजा अच्छा नहीं रहता। ऐसे लोगों से उचित दूरी बनाए रखना बेहतर है। इनका जिद्दी स्वभाव कभी-कभार इन्हें खुद परेशानी में डाल देता है। वैसे अपनी फैमिली को ये बेहद प्यार करते हैं। खर्च करने से पहले ज्यादा सोच-विचार नहीं करते। सबसे बेहतर की ओर ये ज्यादा आकर्षित होते हैं।प्यार की बात करें तो ये संवेदनशील होते हैं और जिस रिश्ते में पड़ते हैं उसमें डूबते चले जाते हैं और इन्हें ऐसा ही साथी भी चाहिए जो इनसे जी जीन से प्यार करे।
N
N से शुरू होनेवाले नाम के लोग खुले विचारों के होते हैं। ये कब क्या करेंगे इसके बारे में ये खुद भी नहीं जानते। बेहद महत्वाकांक्षी होते हैं। काम के मामले में परफेक्शन की चाहत इनमें होती है। आपके व्यक्तित्व में ऐसा आकर्षण होता है, जो सामने वालों को खींच लाता है। ये दूसरों से पंगे लेने में ज्यादा देर नहीं लगाते। इन्हें आधारभूत चीजों की कभी कोई कमी नहीं रहती और आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न होते हैं ये।कभी-कभार फ्लर्ट चलता है, लेकिन प्यार में वफादारी करना इन्हें आता है। स्वभाव से रोमांटिक और रिश्तों को लेकर बेहद संवेदनशील होते हैं ये।
O
o अक्षर से नाम के लोगों के स्वभाव की बात करें तो बता दें कि इनका दिमाग काफी तेज दौड़ता है। ये बोलते कम हैं और करते ज्यादा हैं, शायद यही वजह है कि ये जल्दी ही उन हर ऊंचाइयों को छू लेते हैं जिनका ख्वाब ये देखा करते हैं। इन सबके बावजूद समाज के साथ चलना इन्हें पसंद है। जीवन के हर क्षेत्र में सफल होते हैं।प्यार की बात करें तो ये ईमानदार किस्म के होते हैं। साथी को धोखा देना इन्हें पसंद नहीं और ऐसा ही उनसे भी अपेक्षा रखते हैं। जिससे कमिटमेंट हो गया, बस पूरी जिंदगी उसपर न्योछावर करने को तैयार रहते हैं ये।
P
P से शुरू होनेवाले नाम के लोग उलझनों में फंसे रहते हैं। वैसे, ये चाहते कुछ हैं और होता कुछ अलग ही है। काम को परफेक्शन के साथ करते हैं। इनके काम में सफाई और खरापन साफ झलकती है। खुले विचार के होते हैं ये। अपने आसपास के सभी लोगों का ख्याल रखते हैं और सबको साथ लेकर चलना चाहते हैं। हां, कभी-कभार अपने विचारों के घोड़े सबपर दौड़ाने की इनकी कोशिश इन्हें नुकसान भी पहुंचाती है।प्यार की बात करें तो सबसे पहले ये अपनी छवि से प्यार करते हैं। इन्हें खूबसूरत साथी खूब भाता है। कभी-कभार अपने साथी से ही दुश्मनी भी पाल लेते हैं, लेकिन चाहे लड़ते-झगड़ते सही साथ उनका कभी नहीं छोड़ते।
Q
Q से नाम वाले लोगों को जीवन में ज्यादा कुछ पाने की इच्छा नहीं होती, लेकिन नसीब इन्हें देता सब है। ये स्वभाव से सच्चे और ईमानदार होते हैं। नेचर से काफी क्रिएटिव होते हैं। अपनी ही दुनिया में खोए रहना इन्हें अच्छा लगता है।प्यार की बात करें तो ये अपने साथी के साथ नहीं चल पाते। कभी विचारों में तो कभी काम में असमानता इन्हें झेलना ही पड़ता है। वैसे, आपके प्रति आकर्षण आसानी से हो जाता है।
R
R से नाम वाले लोग ज्यादा सोशल लाइफ जीना पसंद नहीं करते। हालांकि, फैमिली इनके लिए मायने रखती है और पढ़ना-लिखना इन्हें नहीं भाता। जो भीड़ करे, उसे करने में इन्हें मजा नहीं आता। ये तो वह काम करना चाहते हैं, जिसे कोई नहीं कर सकता। R से नाम वाले लोग काफी तेजी से आगे बढ़ते हैं और धन-दौलत की कोई कमी नहीं रहती।अपने से ऊपर सोच-समझ और बुद्धि वाले लोग इन्हें आकर्षित करते हैं। दिखने में खूबसूरत और कोई ऐसा जिसपर आपको गर्व हो उनकी ओर आप खिंचे चले जाते हैं। वैसे वैवाहिक जीवन में उठा-पटक लगा ही रहता है।
S
S से नाम वाले लोग काफी मेहनती होते हैं। ये बातों के इतने धनी होते हैं कि सामने वाला इनकी ओर आकर्षित हो ही जाता है। दिमाग से तेज और सोच-विचार कर काम करते हैं ये। इन्हें अपनी चीजें शेयर करना पसंद नहीं। ये दिल से बुरे नहीं होते, लेकिन उनके बातचीत का अंदाज़ इन्हें लोगों के सामने बुरा बना देती है। प्यार के मामले में ये शर्मीले होते हैं। आप सोचते बहुत हैं, लेकिन प्यार के लिए कोई पहल करना नहीं आता। प्यार के मामले में ये सबसे ज्यादा गंभीर होते हैं।
T
T से शुरू होनेवाले नाम के लोग खर्च के मामले में एकदम खुले हाथ वाले होते हैं। चार्मिंग दिखने वाले ये लोग खुशमिजाज भी खूब रहते हैं। मेहनत करना इन्हें उतना अच्छा नहीं लगता, लेकिन पैसों की कभी कमी नहीं होती इन्हें। अपने दिल की बात किसी से जल्दी शेयर नहीं करते ये।प्यार की बात करें तो रिश्तों को लेकर काफी रोमांटिक होते हैं। लेकिन बातों को गुप्त रखने की आदत भी इनमें होती है।
U
U से शुरू होनेवाले नाम के लोग कोशिश तो बहुत-कुछ करने की करते हैं, लेकिन इनका काम बिगड़ते भी देर नहीं लगती। किसी का दिल कैसे जीतना है, वह इनसे सीखना चाहिए। दूसरों के लिए किसी भी तरह ये वक्त निकाल ही लेते हैं। ये बेहद होशियार किस्म के होते हैं। तरक्की के मार्ग आगे बढ़ने पर ये पीछे मुड़कर नहीं देखते।आप चाहते हैं कि आपका साथी हमेशी भीड़ में अलग नज़र आए। वह साथ न भी हो तो आप हर वक्त उन्ही के ख्यालों में डूबे रहना पसंद करते हैं। अपनी खुशी से पहले साथी की खुशियों का ध्यान रखते हैं ये।
V
V से शुरू वाले नाम के व्यक्ति स्वभाव से थोड़े ढीले होते हैं। इन्हें जो मन को भाता है वही काम करते हैं। दिल के साफ होते हैं, लेकिन अपनी बातें किसी से शेयर करना इन्हें अच्छा भी नहीं लगता। बंदिशों में रखकर इनसे आप कुछ नहीं करा सकते।बात प्यार की करें तो ये ये अपने प्यार का इजहार कभी नहीं करते। जिन बातों का कोई अर्थ नहीं या यूं कहिए कि हंसी-ठहाके में कही गई बातों से भी आप काफी गहरी बातें निकाल ही लेते हैं। कभी-कभीर ये बाते आपके लिए ही मुसीबत खड़ी कर देती हैं।
W
W से शुरू होनेवाले नाम के लोग संकुचित दिल के होते हैं। एक ही ढर्रे पर चलते हुए ये बोर भी नहीं होते। ईगो वाली भावना तो इनमें कूट-कूटकर भरी होती है। ये जहां रहते हैं वहीं अपनी सुनाने लग जाते हैं, जिससे सामने वाला इंसान इनसे दूर भागने लगता है। हालांकि, हर मामले में सफलता इनकी मुट्ठी तक पहुंच ही जाती है।प्यार की बात करें तो ये न न करते हुए ही आगे बढ़ते हैं। हालांकि, इन्हें ज्यादा दिखावा पसंद नहीं और अपने साथी को उसी रूप में स्वीकार करते हैं जैसा वह वास्तव में है।
X
X से नाम वाले लोग जरा अलग स्वभाव के होते हैं। ये हर मामले में परफेक्ट होते हैं, लेकिन न चाहते हुए भी गुस्से के शिकार हो ही जाते हैं ये। इन्हें काम को स्लो करना पसंद नहीं, फटाफट निपटाने में ही यकीन रखते हैं ये। बहुत जल्दी चीजों से बोरियत हो जाती है इन्हें। ये क्या करने वाले हैं इस बात का पता इन्हें खुद भी नहीं होता।प्यार के मामले में फ्लर्ट करना इन्हें ज्यादा पसंद है। कई रिश्तों को एकसाथ लेकर आगे चलने की हिम्मत इनमें होती है।
Y
Y से शुरू होनेवाले नाम के लोगों से कभी भी सलाह लें, आपकी सही रास्ता दिखाएंगे वह। खर्च के लिए कभी सोचते नहीं, बस खाना अच्छा मिले तो हमेशा खुश रहेंगे। अच्छी पर्सनैलिटी के बादशाह होते हैं। लोगों को दूर से ही पढ़ लेते हैं ये। इन्हें ज्यादा बातचीत करना पसंद नहीं। धन-दौलत नसीब तो होती है, लेकिन इन्हें पाने में वक्त लग जाता है।
बात प्यार की करें तो इन्हें अपने साथी की कोई बात याद नहीं रहती। हालांकि सच्चे, खुले दिल और रोमांटिक नेचर के होने के कारण इनकी हर गलती माफ भी हो जाती है।
Z
Z से नाम वाले लोग दूसरों से काफी जल्दी घुल-मिल जाते हैं। गंभीरता इनके स्वभाव में है, लेकिन बड़े ही कूल अंदाज में ये सारे काम करते हैं। जो बोलते हैं साफ बोलते हैं और जिंदगी को इंजॉय करना इन्हें आता है। न मिलने वाली चीजों पर रोने की बजाय उसे छोड़कर आगे बढ़ना इन्हें पसंद है। इन्हें दिखावा नहीं पसंद। इनकी सादगी को देख इन्हें बेवकूफ समझना बहुत बड़ी बेवकूफी होगी। स्वभाव से ये रोमांटिक होते हैं। आपकी ओर कोई भी बड़ी आसानी से अट्रैक्ट हो जाता है। अपने प्यार के सामने आप किसी को अहमियत नहीं देते।

बुधवार, 23 जुलाई 2014

भाव भरी भूमि

-मनोज कुमार
एक साल पुरानी बात है. तब 23 जुलाई को अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद की पुण्यभूमि पर जाने का मुझे अवसर मिला था. यह दिन मेरे लिये किसी उत्सव से कम नहीं था. कभी इस पुण्यभूमि को भाबरा के नाम से पुकारा जाता था किन्तु अब इस नगर की पहचान अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद के रूप में है. मध्यप्रदेश शासन के आदिमजाति कल्याण विभाग के सहयोग से राज्य के आदिवासी बाहुल्य जिलों में सामुदायिक रेडियो केन्द्रों की स्थापना की पहली कड़ी में यहां दो वर्ष पहले रेडियो वन्या की स्थापना हुई. 23 जुलाई को रेडियो वन्या के दूसरी सालगिरह पर मैं बतौर रेडियो के राज्य समन्वयक के नाते पहुंचा था. मैं पहली दफा इस पुण्य धरा पर आया था. इस धरा पर अपना पहला कदम रखते ही जैसे मेरे भीतर एक कंपन सी हुई. कुछ ऐसा मन में लगा जिसे अभिव्यक्त कर पाना मुश्किल सा लग रहा है. एक अपराध बोध भी मेरे मन को घर कर गया था. भोपाल से जिस वाहन से हम चंद्रशेखर आजाद नगर पहुंचे थे, उसी वाहन में बैठकर मैं और मेरे कुछ साथी आजाद की कुटिया की तरफ रवाना हुये. कुछ पल बाद ही मेरे मन में आया कि मैं कोई अनैतिक काम कर रहा हूं. उस वीर की भूमि पर मैं कार में सवार होकर उसी तरह चल रहा हूं जिस तरह कभी अंग्रेज चला करते थे. मन ग्लानि से भर गया और तत्काल अपनी भूल सुधार कर वाहन से नीचे उतर गया. वाहन से नीचे उतरते ही जैसेे मन हल्का हो गया. क्षणिक रूप से भूल तो सुधार लिया लेकिन एक टीस मन में शायद ताउम्र बनी रहेगी.

बहरहाल, मेेरे रेडियो स्टेशन पर कार्यक्रम सम्पन्न होने के बाद लगभग हजार विद्यार्थियों की बड़ी रैली अमर शहीद चंद्रशेखर की जयकारा करते हुये निकली तो मन खुश हो गया. परम्परा को आगे बढ़ाते देखना है तो आपको चंद्रशेखर नगर जरूर आना होगा. वीर शहीद की कुटिया को सरकार की तरफ से सुंदर बना दिया गया है. इस कुटिया में मध्यप्रदेश स्वराज संस्थान संचालनालय की ओर उनकी पुरानी तस्वीरों का सुंदर संयोजन किया गया है. इस कुटिया में प्रवेश करने से पूर्व ही एक अम्मां मिलेंगी जो बिना किसी स्वार्थ कुटिया की रखवाली करती हैं, जैसे वे अपने देश को अंग्रेजों से बचा रही हों. इस कुटिया के भीतर वीर शहीद चंद्रशेखर आजाद की आदमकद प्रतिमा है जिसे देखते ही लगता है कि वे बोल पड़ेंगे हम आजाद थे, आजाद रहेेंगे. सब-कुछ किसी फिल्म की रील की तरह आंखों के सामने से गुजरती हुई प्रतीत होता है. जब मैं प्रतिमा निहार रहा था तभी एक लगभग 30-35 बरस का युवा अपनी छोटी सी बिटिया को लेकर कुटिया में आया और बिना समय गंवाये नन्हीं बच्ची को गोद में उठाकर उसे इतना ऊपर उठाया कि बिटिया शहीद का तिलक कर सके. उसने यही नहीं किया बल्कि बिटिया को शहीद के पैरों पर ढोक लगाने के लिये प्रेरित किया. नन्हीं सी बच्ची को शहीद और भगवान में अंतर नहीं मालूम हो लेकिन एक पिता के नाते उस युवक की जिम्मेदारी देखकर मन भाव से भर गया.

एकाएक मन में आया कि काश, भारत आज भी गांवों का देश होता तो अभाव भले ही उसे घेरे होते किन्तु भाव तो नहीं मरते. बिलकुल जैसा कि मैंने चंद्रशेखर आजाद की नगरी में देखा. विकास के दौड़ में हम अपना गौरवशाली अतीत को विस्मृत कर रहे हैं लेकिन यह छोटा सा कस्बानुमा आज भी उस गौरवशाली इतिहास को परम्परा के रूप में आने वाली पीढ़ी को हस्तांतरित कर रहा है. परम्परा के संवर्धन एवं संरक्षण की यह कोशिश ही सही मायने में भारत की तस्वीर है. मैं यह बात बड़े गौरव के साथ कह सकता हूं कि देश का ह्दयप्रदेश मध्यप्रदेश ने भारत के स्वाधीनता संग्राम में जितना बड़ा योगदान दिया और इनके शहीदों को जिस तरह समाज ने सहेजा है, वह बिराला ही उदाहरण है. यह वही चीज है जिसे हम भारत की अस्मिता कहते हैं, यह वही चीज है जिससे भारत की दुनिया में पहचान है और शायद यही कारण है कि तमाम तरह की विसंगितयां, विश्व वक्रदृष्टि के बावजूद भारत बल से बलवान बना हुआ है.
दुख इस बात है कि विकास की अंधी दौड़ से अब चंद्रशेखर आजाद नगर भी नहीं बचा है. मकान, दुकान पसरते जा रहे हैं. वीर शहीद के नाम पर राजनीति अब आम हो रही है. हालांकि इसे यह सोच कर उबरा जा सकता है कि विकास होगा तो यह लालच बढ़ेगा और लालच बढ़ेगा तो विसंगतियां आम होंगी लेकिन यह बात भी दिल को सुकून देेने वाली हैं कि चंद्रशेखर आजाद की नगरी में 23 जुलाई का दिन हर वर्ष दीपावली से भी बड़े उत्सव की तरह मनाया जाता है. अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद को मेरा कोटिश: प्रणाम

शनिवार, 19 जुलाई 2014

बच्चों ने किया पौधरोपण

एक पेड़ एक ब्यक्ति के नारे को सार्थक रूप देते हुए पटौदी के सरकारी स्कूल खंडेवला   गाॉव में बच्चों ने पौधरोपण का आगाज किया। इस कार्यक्रम को जी अर्थ 2025 फाउंडेशन ने खेल विभाग गुड़गाव्  के साथ तरु उत्सव के रूप में मनाया।  बच्चों को सुबह जी अर्थ के सदस्यों ने पेड़ों के बारे में जानकारी दी।  पानी बचाओ ,पेड़ लगाओ ,जनसख्या धटाओ ,जीवन सफल बनाओ के बिषय में बच्चो को काफी जानकारी दी गई। 
संस्था की अधिकारी चेतना ने बच्चो को पेड़ो की अहमियत बताते हुए कहा की हम पुरे जीवन में 5  करोड़ से ज्यादा की ऑक्सीजन सांसों के माध्यम से लेते हे। अगर हम मात्र एक पीपल का पेड़ अपने जीवन में रोपें तो बह 150 सालो तक एक खरव् बीस अरव के करीब करीब ऑक्सीजन हमे देगा। ऊपर से वातावरण भी शुद्ध होगा। जिससे समाज में बीमारीया कम होगी और हमारा देश स्वछ व् सुन्दर होगा। 
स्कूल के प्रधानाचार्य राजीव रस्तोगी  और अध्यापकगण सुरेश शर्मा, कृष्ण कुमार ,ज्ञानवती संगीता ,ओशिका ,रीता ,रचना ,सीमा   ने इस कार्य को काफी सराहनीये बताया और कहा  ज्यादा से ज्यादा लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक होकर खनिज पदार्थों को जरुरत के मुताविक खर्च करना चाहिए।
पानी ,खनिज ,बनस्पती ,इंधन ,बायु , को बर्वाद होने से रोकना चाहिए। इसी में हमारे कल की भलाई होगी। जैसे "पेड़ है तो पानी है पानी है तो कहानी है " आदमी की कहानी ही पानी से शुरू हुई थी कही फिर से पानी को हम खत्म करते जाये और हमारी ही कहानी ना खत्म हो जाये। जरुरत है इस समस्या को समझने की  और एक नई शुरुआत करने की। संस्था के बरिष्ट अधिकारी जयकिशोर ने इस बात की और ध्यान खेंचा। डाक्टर सतीश कोशीक व ओम प्रकाश  जी ( स्कूल P.T.I) ने भी इस मोके पर पौधरोपण में भाग लिया  .
 जी अर्थ  फाउंडेशन ने  जुलाई अगस्त का लक्ष्य् गुडगाँव के आसपास सभी ग्रामीण स्कूलों व् गावों में पौधरोपण का रखा है। इसके लिये वन विभाग ,हुडा प्रसाशन ,M,C,G से सहयोग की उम्मीद भी रखी है।   संस्था का लक्ष्य् वैसे ही पूरा हो जायेगा जव हर ब्यक्ति अपने सांसों के लिये एक एक पेड़ लगाएगा। यही सुन्दर और सवच्छ भारत का सपना भी होगा। कार्यक्रम के अंत में सभी बच्चों  ने एक एक पेड़ लगाया और उसे बड़ा करने का बीड़ा भी उठाया। इसमें उर्मिला ,पूजा,सोनिया ,गोपाल , हनी ,रिचल ,हिमानी ,ने भरपूर सहयोग दिया।

सोमवार, 14 जुलाई 2014

वोट बैंक की राजनीति

हरविंदर सिंह कुकू
पंजाब में ज्यादातर ऐसे भी लोग है जिन के पास वोटर कार्ड है, आधार कार्ड है व राशन कार्ड भी बने हुए हैं, अगर नहीं कुछ बना तो उनकी जिंदगी व उनके घर, बिना घर के यह लोग किस प्रकार अपने बच्चों के साथ अपनी जिंदगी गुजारते है. यह देख कर आप का और हमारा दिल कांप उठता है, लेकिन भारत का खुशहाल राज्य कहे जाने वाले पंजाब में भी हमारी राजनितिक पार्टियों का दिल कितना कठोर है कि इन लोगों को सिर्फ वोट पाने के लिए ही इस तरह के पहचान पत्र प्रदान किए जाते हैं। हैरान कर देने वाली बात यह है कि चुनाव के बाद कोई नेता इन को पहचानता तक नहीं।
हम आपको दिखा रहे हैं, पंजाब का एक गाँव छाजली का सूरते हाल जहाँ दर्ज़नो परिवारों को सिर्फ वोट के खातिर ही बिना घर के यह पहचान पत्र दिए गए है, हमरे नेता गण को उनकी जिंदगी से कोई सरोकार नहीं के उन लोगों के भी अपने व अपने बच्चों के प्रति कुछ सपने हो सकते है, जिस को सोच कर वो पल पल मरते हैं.
पंजाब में अकाली-भाजपा और कांग्रेस की सरकारें बनती बिगड़ती रही, हर बार सांसद बदलते रहे लेकिन नहीं बदला तो इस लोगों का जीवन, जो आज भी पिछले लगभग 40 साल से पंजाब में इस दर्दभरी जिंदगी अपने बच्चों के साथ जी रहे हैं। आप इन लोगों के पॉलिथीन से बने घरों को तो आप देख रहे हैं कि किस कदर इन के बच्चे व महिलाएं बुनियादी सुविधाओं से कोसों दूर नज़र आ रही है. आप और हम को इस बात पर भी दुःख होता है कि इन परिवारों की महिलाएं वाश रूम के लिए कहां जाती होंगी. 
    यह लोग सिकलीगर परिवार व राजपूत परवार से संबंधत लोहे के औजार बनाने का काम करने के माहिर है। यह मेहनत कश लोग किसान के औजारों से लेकर घर की रसोई में प्रयोग हो रहे समान को बना कर ही यह लोग अपने परिवार का पेट पालते हैं।
       छाजली गावं के सरदार जोगिन्दर सिंह से हमने बात की तो उन्होंने इन लोगों की दर्द भरी दास्ताँ सुनाई। उन्होंने कहा कि इन लोगों के प्रति दर्द तब और बढ़ जाता है, जब बरसात की रातों में यह लोग अपने बच्चों के साथ रातें गुजारते है जब आंसू और पानी में इन्हने कोई फर्क नज़र नहीं आता । जोगिन्दर सिंह ने बताया के इन लोगो ने सभी पार्टियों के नेताओं से गुहार लगा चुके हैं कि हमारे रहने का इंतजाम भी करवा दो ! लेकिन किसी ने अभी तक नहीं सुनी। उन्होंने इन लोगों के दर्द को समझते हुए कहा अगर देश व प्रदेश की सरकारें इस बारे में खुद कुछ नहीं करेंगी तो हमें ही कुछ करना होगा, जोगिन्दर सिंह ने जब इन लोगो की जिंदगी के बारे में पटियाला के समाज सेवी गुरु नानक मोदीखाना के सेवादार व अंतराष्ट्रीय भाऊ भाईचारा संगठन के प्रधान सरदार बलविंदर सिंह सैफ्दीपुर से बात की तो सरदार बलविंदर सिंह सैफ्दीपुर ने इनकी दुःख तकलीफों के बारे में जानकारी लेते हुए कहा के पिछले लगभग चालीस वर्षों से पंजाब के इस गाव में गरीबी से जूझ रहे लोगों के लिए गुरु की मैहर सदका अंतराष्ट्रीय भाऊ भाई चारा संगठन इनकी समस्यायों का हल करने के लिए पहल कदमी कर इस की समस्याओं का हल निकालेगा। उन्होंने इस बात पर दुःख जताया के राजनितिक पार्टियों ने सत्ता का सुख भोगने के लिए इन लोगो के वोटर कार्ड, आधार कार्ड व राशन कार्ड तो बना दिए लेकिन इनके जीवन व दु:खों के बारे में कभी नहीं सोचा, उन्होंने देश व विदेश में बैठी सिख संगतों को अपील की के हम सब को मिल कर पंजाब में इस कदर जिंदगी जी रहे लोगों के लिए हल निकालना चाहिए, जिस से हमारा पंजाब खुशहाल नज़र आए ।
ऐसे लोगों की बदहाली का जिम्मेदार कौन ?
आखिर हम कहना चाहेंगे कि ऐसे लोगों की बदहाली का जिम्मेदार कौन है ? हमारी राजनितिक पार्टिया वोट बैंक की राजनीती के तहत ऐसा घिनौना कार्य कब तक करती रहेंगी। जिस का खामियाजा इस प्रकार की जिंदगी जी रहे लोगों को कब तक भुगतना पड़ेग ? जिसका भला होना चाहिए था, उसका तो नहीं हुआ, जो पूंजीपति थे वो और पूंजीपति हो गए लेकिन गरीब बेचारा गरीब ही रह गया. हम सभ को मिल बैठ कर इस पर चिंतन करने की जरूरत है ।
हरविंदर सिंह कुकू

शुक्रवार, 11 जुलाई 2014

एक शरीर में रहते हैं दो लोग

 पढ़िए उस बहन की कहानी जिसका अस्तित्व मर कर भी नहीं मिटा  

कसर लोग जब अपने बारे में किसी को बताते हैं तो वो अपने जन्म की तारीख, शादी की तारीख या फिर अपने जीवन से जुड़ी ऐसी ही कुछ बातों को सामने रखते हैं. लेकिन क्या आपने कभी कहीं पढ़ा है कि एक शख़्स अपने परिचय में शरीर के अंगों का भी विवरण दे रहा हो? जैसे; ‘मेरे दो हाथ, एक आंख और दो कान है’. ये सरासर बेवकूफी है लेकिन कोई है जिसे ऐसा भी करने की जरूरत पड़ती है. वो दुनिया से अलग है और अपने परिचय में उसे यह कहना पड़ता है कि ‘मेरे दो नहीं बल्कि चार पैर है’.


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ये हैं मायरटल कॉर्बिन

मायरटल कॉर्बिन का जन्म यूनाइटेड स्टेट के टेनेसी में हुआ. उसके जन्म ने हर किसी को हैरान कर दिया. बेहद मासूम व प्यारी मायरटल बाकी लोगों की तुलना में केवल एक अंतर लेकर इस दुनिया में आई थी और वो है उसके चार पैर. जी हां, मायरटल के दो नहीं बल्कि चार पैर हैं, दो सामान्य उसी स्थान पर और बाकी दो टांगें उनके ठीक बीचोबीच एक अलग अंग से जुड़ी है जो मायरटल की कमर के बीच से आती हैं.

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डॉक्टरों की मानें तो मायरटल के साथ जुड़े दो अलग पांव कमजोर हैं और मायरटल पूर्ण रूप से उनपर काबू भी नहीं पा सकती. ये पैर उनके दूसरे पैरों के मुकाबले में छोटे व नाजुक हैं.


ये पैर मायरटल के नहीं किसी और के हैं

डॉक्टरों के मुताबिक बीच की दो टांगें उसकी खुद की नहीं बल्कि उसकी डायपिजस जुड़वा बहन की हैं. अब आप शायद इस बात को समझ ना पा रहे हों और यह आपको कुछ अटपटा लग रहा हो, लेकिन यह सच है.

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मायरटल के साथ जुड़ी वो दो अलग टांगें उसके जुड़वा बहन की है जो इस दुनिया में आ नहीं आई. डॉक्टरों का कहना है कि कई बार जो जुड़े हुए जुड़वा बच्चे होते हैं उनमें से एक के शरीर का तो पूरा आकार बन जाता है लेकिन दूसरे के शरीर के कुछ हिस्से पहले वाले बच्चे के साथ जुड़ जाते हैं. इसका मतलब है कि मायरटल की एक जुड़वा बहन थी जो कि उसके पैदा होने से पहले उनकी मां के गर्भ में थी. लेकिन जन्म केवल मायरटल का हुआ जो जन्म के साथ अकेली नहीं आई बल्कि अपनी जुड़वा बहन के पैर साथ लेकर आई.

अजब-गजब है ये दुनिया

यह अजीब और विचित्र ही तो है कि आप अपने जन्म के साथ किसी दूसरे के शरीर के अंगों को साथ लेकर आए हो. डॉक्टरों के अनुसार मायरटल अपने अजन्मी बहन के अंग पर काबू तो पा सकती थी, लेकिन चलते समय उनका उपयोग करना उसके लिए काफी चुनौतीपूर्वक था. यह भी कहा गया कि उन दो टांगों से जुड़े उन दो पैरों में केवल 3-3 उंगलियां ही थी.  मायरटल की इस विचित्र बात ने उसे दुनिया भर में मशहूर भी बनाया. जब वो केवल 13 साल की थी तब उसके जीवन पर एक जीवनी लिखी गई, ‘बायोग्राफी ऑफ मायरटल कॉर्बिन’.

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मायरटल ने भी की शादी

मायरटल की एक बहन भी थी जिसका नाम विल्ले एन था. उसकी शादी लॉक बिकनैल नाम के लड़के से वर्ष 1885 में हुई थी. लॉक का एक भाई था डॉक्टर जेम्स क्लिंटन बिकनैल जिसने अपने भाई की शादी के कुछ समय बाद ही मायरटल के आगे शादी का प्रस्ताव रख दिया.

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मायरटल और जेम्स की शादी एक सच्चे प्यार को बयां करती है. यहां एक और बात काफी अहम है और वो यह कि ना केवल मायरटल बल्कि उसकी अजन्मी बहन भी यौन संबंध बना सकती है. यानि कि मायरटल के शरीर में एक नहीं बल्कि दो योनि मौजूद थी.

कहा जाता है कि मायरटल ने आठ बच्चों को जन्म दिया था जिनमें से तीन का बचपन में ही निधन हो गया था. मायरटल के बच्चों के संदर्भ में यह भी कहा गया है कि उसके तीन में से दो बच्चे उसकी योनि से पैदा हुए थे और बाकी दो दूसरी योनि से. अब यह तथ्य सच है या नहीं लेकिन चिकित्सकीय रूप से देखा जाए तो ऐसा होना संभव माना गया है.

सोमवार, 7 जुलाई 2014

रिमझिम के तराने लेकर आई बरसात

प्रेम कुमार
फिल्मों में बरसात या उसमें फिल्माए गाने फिल्म का अहम हिस्सा रहे है और इनका इस्तेमाल फिल्मकार अपनी फिल्म को हिट बनाने के लिए अक्सर करते आए हैं। फिल्म इंडस्ट्री का इतिहास देखा जाए तो सबसे पहले संभवतघ् वर्ष 1941 में प्रदíशत फिल्म खजांची में बरसात पर आधारित ‘सावन के नजारे हैं अहा अहा’ गीत फिल्माया गया था। हालांकि इसके बाद भी बरसात पर आधारित कुछ गीत फिल्माए गए, लेकिन वर्ष 1949 में प्रदíशत फिल्म बरसात में फिल्म अभिनेत्री निम्मी पर ‘बरसात में हमसे मिले तुम सजन ’ गाना बारिश में फिल्माया गया, जो बरसात पर आधारित पहला सुपरहिट गीत बना। यूं तो फिल्म इंडस्ट्री में ना जाने कितनी फिल्में बनी होंगी, जिसमें बारिश के दृश्य या गाने फिल्माए गए होंगे, लेकिन वर्ष 1955 में प्रदíशत फिल्म श्री 420 की बात कुछ और ही है। तो यूं तो फिल्म श्री 420 कई कारणों से याद की जाती है, लेकिन फिल्म में राजकपूर और नरगिस बारिश में पर फिल्माया गाना ‘प्यार हुआ इकरार हुआ’ का फिल्मांकन इतने सजीव तरीके से पेश किया गया कि इसकी याद दर्शकों के दिल में आज भी ताजातरीन है। बरसात पर आधारित गीतों में वर्ष 1958 में प्रदíशत फिल्म चलती का नाम गाड़ी का नाम भी उल्लेखनीय है। तीन भाइयों की कहानी पर आधारित फिल्म की कहानी में बारिश से कोई मेल नही था, लेकिन एक दृश्य में जब अभिनेत्री मधुबाला बारिश से भींगने से बचने के लिए अभिनेता किशोर कुमार के गैरेज में शरण लेती है, तो उसे देख किशोर कुमार प्यार करने लगते हैं और उसे खुश करने के लिए ‘एक लड़की भीगी भागी सी’ गीत गाते हैं तो यह फिल्म की जान बन जाती है और यह गीत आज भी सिने प्रेमी नही भूल पाए है।
नृत्य और संगीत की बात हो और अभिनेता शम्मी कपूर का जिक्र ना आए ऐसा संभव नही है। इसी क्रम में वर्ष 1962 में प्रदíशत फिल्म ‘दिल तेरा दीवाना’ में शंकर जयकिशन के संगीतबद्ध गीत ‘दिल तेरा दीवाना है सनम’ का जिक्र करना लाजमी है जो बरसात में ही फिल्माए गए थे। संभवत दिल तेरा दीवाना है सनम बरसात में फिल्माए गीत में पहले गानों में एक है, जब उसका फिल्मांकन स्टूडियो के सेट में न होकर आउट डोर लोकेशन में किया गया। इस गीत में शम्मीकपूर अपनी विशेष नृत्य शैली से अभिनेत्नी माला सिन्हा को रिझाने का प्रयास करते हैं। वर्ष 1980 में एक फिल्म प्रदíशत हुई थी ‘नमक हलाल’ यूं तो इस फिल्म के सारे गीत हिट हुए थे, लेकिन फिल्म में एक गाना ऐसा भी था जो बारिश में फिल्माया गया था, जिसे दर्शक आज भी नही भूल पाए हैं। अभिनेता अमिताभ बच्चन पर फिल्माया गाना ‘आज रपट जाए तो हमें ना उठइयो’ गाने के माध्यम से अमिताभ बच्चन बारिश की फुहारों के बीच स्मिता पाटिल से अपने प्यार का इजहार कुछ इस तरीके से करते है कि दर्शक हंसते हंसते लोटपोट हो जाते हैं। ¨कग ऑफ रोमांस दिवंगत यश चोपड़ा अक्सर अपनी फिल्मों में बारिश के गीत का फिल्मांकन करते आए हैं। इनमें फिल्म चांदनी के गीत ‘लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है’ और दिल्वाले दुल्हनिया ले जाएंगे के गीत ‘मेरे ख्वाबो में जो आए’ सिने दर्शका के बीच आज भी लोकप्रिय है। इसके अलावा ये दिल्लगी में देखो जरा देखा बरखा की झड़ी और दिल तो पागल है में कोई लड़की है जब वो गाती है गीत भी बारिश में ही फिल्माए है। देखा जाए तो फिल्मों में बारिश का इस्तेमाल फिल्मकार नायक और नायिका के प्रेम के इजहार के रूप में करते हैं, लेकिन कुछ मौके पर बारिश की मांग किसी शुभ काम के लिए की जाती है। ऐसे ही गानों में फिल्म गाइड का गाना अल्लाह मेघ दे और लगान का गाना काले मेघा काले मेघा खास तौर पर उल्लेखनीय है1
इन सबके साथ ही बरसात के गाने के माध्यम से विरह की आग प्रेमियो को किस प्रकार जलाती है उसे पेश किया जाता रहा है। ऐसे गानो में फिल्म जख्मी का गीत जलता है जिया मेरा भीगी भीगी रातो में और दो बदन का गीत जब चली ठंडी हवा जब उठे काली घटा मुझको ऐ जाने वफा तुम याद आए । इसके अलावा बरसात के गीत के माध्यम से मस्ती को भी दिखाया गया है। फिल्म छलिया का गीत डम डम डिगा डिगा मौसम भीगा भीगा या गोपी किशन का गीत छतरी ना खोल बरसात में प्रमुख है। इन सबके साथ ही फिल्मकारो ने बरसात को ध्यान में रखते हुए कई फिल्मो का निर्माण किया। इन फिल्मों में बरसात बरसात की एक रात आया सावन झूम के सावन को आने दो, सावन भादों, मानसून वेडिग, सोलहवा सावन, बिन बादल बरसात, बादल जैसी कई फिल्में शामिल हैं। इसी तरह कई फिल्मकार ने अपनी फिल्मों में बारिश के गाने फिल्माए हैं, जो आज भी श्रोताओं की जुबान पर चढ़े हुए हैं। ऐसे ही गानों में शामिल लंबी फेहरिस्त में कुछ है बरसात में हमसे मिले तुम सजन, ये रात भीगी भीगी, बरखा रानी जरा जमके बरसो, ¨जदगी भर नही भूलेगी वो बरसात की रात, काली घटा छाए मोरा, हरियाला सावन ढोल बजाता आया, रिमझिम के तराने लेके आई बरसात, ओ सजना बरखा बहार आयी सावन का महीना पवन करे शोर मेघा छाई आधी रात रिमझिम के गीत सावन गाए भीगी भीगी रातो में  रिमझिम गिरे सावन काटे नही कटते दिन ये रात टिप टिप टिपटिप बारिश शुरू हो गयी रिमझिम रिमझिम, मेरे ख्वाबों में जो आए, टिप टिप बरसा पानी, दिल ये बेचैन रे, जो हाल दिल का, सांसों को सांसों से, बरसो रे मेघा आदि शामिल है।

शुक्रवार, 4 जुलाई 2014

भाषा है समरसता की सेतु : स्‍वभाषा पर एक दृष्‍टिकोण

विजयलक्ष्‍मी जैन
अभी हर भारतीय अपनी भाषा में अंग्रेजी मिलाकर खिचड़ी पका रहा है। यही खिचड़ी अगर हम अपनी देशी भाषाओं को एक दूसरे में मिलाकर पकाएं तो क्‍या हर्ज है? क्‍या यह खिचड़ी अधिक स्‍वादिष्‍ट और समग्र भारत को स्‍वीकार्य नहीं होगी?
भाषा सांस्‍कृतिक, वैचारिक और भावनात्‍मक समरसता की सेतु है। जब कोई दो भिन्‍न भाषा-भाषी नितान्‍त अजनबी लोग मिलते हैं तो वे आपसी संवाद के लिए क्‍या किसी तीसरी भाषा का उपयोग करते हैं? कदापि नहीं। वे दोनों अपनी-अपनी भाषा में बोलते हैं और सामने वाला उसकी बात समझ जाए इस हेतु भाषा को अर्थ देने वाली शारीरिक मुद्राओं का, संकेतों का प्रयोग करते है। इन संकेतों के माध्‍यम से धीरे-धीरे दोनों एक दूसरे की भाषा की ध्‍वनियों को, उच्‍चारणों को, शब्‍दों को सीख जाते हैं। जैसे-जैसे वे एक दूसरे की भाषा को सीखते जाते हैं, संकेतों का, शारीरिक मुद्राओं का प्रयोग अपने आप ही घटता चला जाता है क्‍योंकि जब वे दोनों एक दूसरे की भाषा को समझने लगते हैं तो संकेतों की, शारीरिक मुद्राओं की आवश्‍यकता नहीं रह जाती, भाषा ही संवाद का मुख्‍य माध्‍यम हो जाती है। अब उनके लिए एक दूसरे से संवाद करना आसान हो जाता है। इस भाषाई सेतु के माध्‍यम से धीरे-धीरे उनके बीच अजनबीपन समाप्‍त हो जाता है, एक अपनापन घटित होता है जो उन्‍हें एक दूसरे के विचार और संस्‍कृति के प्रति उत्‍सुक और ग्रहणशील बनाता है। यह विकास की स्‍वाभाविक प्रक्रिया है जिससे गुजर कर दोनों समृद्‍ध होते हैं।
आजादी के बाद हमने विकास की इस स्‍वाभाविक प्रक्रिया से अपने देश की जनता को गुजरने दिया होता तो आज हम भी चीन की तरह वैचारिक, सांस्‍कृतिक और भावनात्‍मक रूप से एक दूसरे के अधिक निकट होते, एक राष्‍ट्र के रूप में अधिक सुसंगठित होते और बहुत संभव था कि सड़सठ वर्षों के भाषाई आदान प्रदान के फलस्‍वरूप हमारी अपनी भाषाओं में से ही कोई भाषा ऐसे विकसित हो गई होती जो राष्‍ट्र भाषा के रूप में उत्तर-दक्षिण, पूर्व-पश्‍चिम समग्र भारत को स्‍वीकार होती। कहना न होगा कि तब भारत के उत्तर-दक्षिण, पूर्व-पश्‍चिम मानसिक तौर पर भी इस तरह बंटे हुए न होते जैसे आज हैं। हम एक दूसरे को संदेह से देखने की अपेक्षा, परस्‍पर घृणा करने की अपेक्षा, डरने की अपेक्षा एक स्‍वाभाविक अपनत्‍व से बंध चुके होते। तब हम मद्रासी, गुजराती, तमिल या बंगाली, हिन्‍दू- मुस्‍लिम-सिक्‍ख-ईसाई न होकर भारतीय हो गए होते क्‍योंकि यही स्‍वाभाविक था। यदि ऐसा होता तो देश में कोई विशिष्‍ट वर्ग नहीं होता, खास और आम का भेद न होता।

दुर्भाग्‍य से ऐसा नहीं हुआ। आजादी के बाद न जाने किस दबाव में विकास की इस स्‍वाभाविक प्रक्रिया को न अपनाकर अपने आपसी संवाद के लिए हम पर तीसरी भाषा थोप दी गई है जो हमारी अपनी जमीन की उपज न होकर विदेश से आयातित है। विगत सड़सठ वर्षों से पूरा देश एक विदेशी भाषा को सीखने की जद्‍दोजहद से गुजर रहा है। यह संघर्ष स्‍वाभाविक न होकर थोपा हुआ है। परिणाम स्‍वरूप सीखने की प्रक्रिया आनन्‍द का स्रोत बनने की बजाए असहनीय तनाव का कारण बन गई है। इस तनाव ने देश के बहुत बड़े प्रतिभावान वर्ग को इतनी गहरी हीनभावना से भर दिया है कि जबतक वह इस विदेशी भाषा में दक्ष नहीं हो जाता, पढ़ालिखा होते हुए भी स्‍वयं को ही पढ़ालिखा मान नहीं पाता। वह स्‍वयं को अपने देश में ही दोयम दर्जे का नागरिक मानता है। प्रतिभावान होकर भी कुंठित रहता है। वह अपने लिए काम नहीं करता, अपने लिए कोई मांग नहीं करता, अपने लिए जीता नहीं है, वह अपने ही देश में उन मुट्‍ठीभर अंग्रेजीदां लोगों के लिए जीता है जिन्‍हें सौभाग्‍य से जन्‍मजात ही अंग्रेजी सीखने के अवसर सुलभ थे, उनकी ही मांगों की पूर्ति के लिए कड़ी मेहनत कर सारा उत्‍पादन करता है, उन ही के लिए काम करता है और बदले में जो कुछ रूखा-सूखा मिल जाए उसे ही स्‍वीकार कर धन्‍य हो जाता है।

नैतिकता के एक बहुत सामान्‍य से नियम के अनुसार दो के संवाद में तीसरे की दखलंदाजी अभद्रता मानी जाती है। इसी तरह हमारे देश की दो भाषाओं के बीच में एक विदेशी भाषा का क्‍या काम? इस तीसरी भाषा को अपने देशी संवाद का माध्‍यम बनाने के दुष्‍परिणाम अब बहुत स्‍पष्‍टतापूर्वक सामने आ चुके हैं। इससे जो सबसे बड़ा नुकसान हुआ है वह है सड़सठ वर्षों की आजादी के बावजूद देश व्‍यापी समरसता का विकास न होना। अत: उच्‍च शिक्षित भारतीयों के आपसी संवाद का दर्पयुक्‍त माध्‍यम बनती जा रही विदेशी भाषा को हटाने की नहीं, आवश्‍यकता है उसे एक कदम पीछे धकेल कर देशी भाषाओं को दो कदम आगे बढ़ाने की। यह बात हम भारतवासी जिस दिन समझ लेंगे, उसी दिन हम सच में स्‍वतंत्र होंगे, उसी दिन हम सच में एक राष्‍ट्र होंगे। इस समझ को पाने में पहले ही अत्‍यधिक विलम्‍ब हो चुका है। कहीं ऐसा न हो कि सड़सठ वर्षों में हो चुके नुकसान की भरपाई के अवसर भी शेष न रहें। अब जागना जरूरी है। जागो भारत जागो।               
 

हमारे मात्र यह चार कदम बहुत बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं:-
पहला कदम: हस्‍ताक्षर देशी भाषा में करें।                                 

दूसरा  कदम: अपनी दुकानों, प्रतिष्‍ठानों के नामपट देशी भाषा में लगाएं।              

तीसरा कदम: मोबाइल, एटीएम, कम्‍प्‍यूटर, इंटरनेट देशी भाषा में उपयोग करें।

चौथा कदम: अपने प्रियजनों से शुद्ध हिन्दी मेँ बातचीत करें।     

क्‍या हम अपने देश की खातिर इतना भी नहीं कर सकते?

मंगलवार, 1 जुलाई 2014

भटके मानसून पर कुछ शब्द चित्र

गर्मी जाने का नाम नहीं ले रही है और मानसून रास्ता भटक गया है, हमेशा की तरह। ग वर्षा ऋतु के रास्ते में ग्रीष्म ऋतु अवरोधक बनी हुई है। बारिश की राह तकते-तकते आंखें भी थकने लगी हैं। पूरा देश अच्छे दिनों की प्रतीक्षा कर रहा है, पर पेट्रोल-डीजल, प्याज उसे आने ही नहीं दे रहे हैं। ऐसे में शब्द चित्र बनते हैं कुछ इस तरह...
दो डॉक्टर खाली बैठे हैं, एक डॉक्टर दूसरे से कहता है:-

देखो, खाली बैठे-बैठे मारने के लिए मक्खियां तक नहीं हैं, बारिश आए तो हमारी मंदी दूर हो जाए।


मौसम विभाग के एक सीनियर अधिकारी को एक मामूली से चपरासी ने सलाह दी..,
सर, इससे तो अच्छा है, विभाग में एक-दो ज्योतिष की भर्ती कर लो, कम से कम उनके गॉसिप सच्चे हो जाएं।

एक बड़े मॉल में मैनेजर की केबिन में असिस्टेंट हाथ में लम्बा कागज लेकर रिपोर्ट दे रहा है, सर ‘समर डिस्काउंट’ में जितना ‘सेल’ हुआ, उससे कई गुना तो एसी का बिल आ गया है?
एक एयरकंडीशंड डाइनिंग हॉल-कम-रेस्टारेंट के बाहर एक बोर्ड लगा है..
दोपहर 2 से 5 बजे तक एसी बंद रहेगा। केवल छाछ पीने आने वाले ग्राहक इस पर विशेष ध्यान दें। बाय अॅार्डर
मौसम विभाग के एक अधिकारी गुस्से से अपने मातहत से पूछ रहे हैं:- हमने 15 दिन पहले ऑफिस में भीगी हुई छतरियों को रखने के लिए स्टैंड का ऑर्डर दिया था, वह अभी तक कैसे नहीं बन पाया?
असिस्टेंट- सर, उसे मालूम होगा कि आखिर बारिश कब हो रही है।