शुक्रवार, 18 मई 2018

नौ बातें जो तय करती हैं, आप कितने वसंत देखेंगे


"ज़िंदगी बड़ी होनी चाहिए, जहांपनाह...लंबी नहीं..."

'आनंद' फ़िल्म का ये डायलॉग याद है न? भयंकर बीमारी के शिकार राजेश खन्ना दार्शनिक वाले अंदाज़ में ये बताते हैं कि उम्र लंबी ही हो, ये ज़रूरी नहीं.

ज़िंदगी शानदार, ख़ुशियों से लबरेज़ होनी चाहिए, भले ही उसके बरस कम हों. ख़ैर, फ़िल्मी बातें छोड़ कर हक़ीक़त का रुख़ करते हैं...

आज दुनिया में लोग पहले मुक़ाबले ज़्यादा लंबी उम्र जी रहे हैं. और इसे दुनिया की सुधरती सेहत और बेहतर होते हालात की मिसाल कहा जा रहा है.

दुनिया के 195 देशों में महिलाएं, मर्दों के मुक़ाबले ज़्यादा उम्र तक जीती हैं. रूस में महिलाओं की औसत उम्र पुरुषों के मुक़ाबले 11 बरस ज़्यादा है.

अफ्रीकी देश इथियोपिया में 1990 के मुक़ाबले आज लोग 19 बरस ज़्यादा लंबी ज़िंदगी जी रहे हैं.

वहीं, दुनिया के सबसे कम औसत उम्र वाले देश के मुक़ाबले सबसे ज़्यादा औसत उम्र वाले देश के लोगों में आयु का फ़ासला 34 बरस का है.

ग्लोबल बर्डेन ऑफ़ डिज़ीज़ प्रोजेक्ट और इंस्टीट्यूट ऑफ़ हेल्थ मीट्रिक्स ऐंड इवैल्युएशन के आंकड़े इस्तेमाल किए.

हमारी पड़ताल से सामने आए कुछ नतीजे इस तरह हैं.

1. अब इंसान ज़्यादा लंबी ज़िंदगी जी रहा है
दुनिया भर की औसत उम्र 1990 के दशक के मुक़ाबले सात बरस तक बढ़ गई है. मतलब ये कि हर साढ़े तीन साल में दुनिया में इंसानों की औसत उम्र एक साल बढ़ जाती है.

आज लोग लंबी ज़िंदगी इसलिए जी रहे हैं क्योंकि अमीर देशों में दिल की बीमारी से मृत्यु दर घटी है. वहीं गरीब देशों में बच्चों के मरने की तादाद भी कम हुई है.

सेहत की सुविधाएं बेहतर हुई हैं. साफ़-सफ़ाई बेहतर हुई है और बीमारियों के इलाज में नई-नई दवाएं और तकनीक ईजाद हुई है.

इसकी वजह से इंसानों की औसत उम्र बढ़ गई है. आज स्वस्थ जीवन के बरस भी ज़्यादा हो गए हैं.

मतलब ये कि आज आम इंसान औसतन ज़्यादा वक़्त तक सेहतमंद ज़िंदगी जीता है. इसमें 6.3 साल का इज़ाफ़ा हुआ है. हालांकि ये औसत अब घट रहा है.

2. पश्चिमी यूरोप के लोगों की उम्र सबसे ज़्यादा है
औसत उम्र के मामले में टॉप के 20 देशों में से 14 यूरोप के हैं. लेकिन इस लिस्ट में पूर्वी एशिया के देश टॉप पर हैं.

आज जापान और सिंगापुर के लोगों की औसत उम्र 84 साल तक हो गई है. वहीं, इंग्लैंड ने ज़्यादा औसत आए वाले टॉप 20 देशों में बमुश्किल जगह बनाई है.

इंग्लैंड में लोगों की औसत उम्र 81 बरस है. वहीं उत्तरी आयरलैंड औसत उम्र की पायदान में 32वें और वेल्श 34वें नंबर पर आता है.

दोनों इलाक़ों के लोगों की औसत उम्र 80 बरस है. 198 देशों में स्कॉटलैंड 79 बरस की औसत उम्र के साथ 42वें नंबर पर है.

3. औसत उम्र की निचली पायदान पर अफ्रीकी देशों की भरमार
नागरिकों की औसत उम्र के मामले में सबसे नीचे के 20 देशों में से 18 अफ्रीकी महाद्वीप के हैं.

भयंकर गृह युद्ध के शिकार लेसोथो और सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक देशों में 2016 में पैदा हुए बच्चों के सिर्फ़ 50 बरस की उम्र तक जीने की संभावना है.

ये टॉप के दो देशों जापान और सिंगापुर के मुक़ाबले 34 साल कम है.

कई दशकों से युद्ध, सूखे और अराजकता का शिकार अफ़ग़ानिस्तान इकलौता एशियाई देश है जो नीचे से टॉप 20 देशों में आता है.

आज अफ़ग़ानिस्तान के लोगों की औसत उम्र 58 साल है.

4. महिलाओं की उम्र मर्दों से ज़्यादा
198 में से 195 देशों में महिलाओं की औसत उम्र मर्दों से ज़्यादा है. इन देशों की महिलाओं की ज़िंदगी, पुरुषों के मुक़ाबले 6 बरस ज़्यादा होती है.

कई देशों में ये फ़ासला 11 साल तक का है. औरतों और मर्दों की औसत उम्र का ये फ़ासला सबसे ज़्यादा पूर्वी यूरोपीय देशों और रूस में देखने को मिलता है.

यहां पर महिलाओं के मुक़ाबले मर्दों की कम उम्र की वजह शराबनोशी और काम के ख़राब हालात बताई जाती है.

दुनिया में सिर्फ़ 3 देश ऐसे हैं, जहां मर्द, महिलाओं के मुक़ाबले लंबी उम्र जीते हैं. ये देश हैं कांगो गणराज्य, कुवैत औऱ मॉरिटॉनिया.

5. इथियोपिया में लोगों की औसत उम्र 19 साल बढ़ गई
1990 के दशक से 96 फ़ीसद देशों में लोगों की औसत उम्र बढ़ी है. उस दौर में 11 देशों में लोगों की औसत ज़िंदगी 50 साल से कम ही हुआ करती थी.

लेकिन 2016 में सभी देशों ने 50 साल की औसत उम्र का आंकड़ा छू लिया था.

जिन 10 देशों के नागरिकों की औसत उम्र में सबसे बड़ा बदलाव आया, उनमें से 6 अफ्रीका के सब-सहारा इलाक़े के हैं.

साल 1990 में आए भयंकर अकाल से अब तक उबरने की कोशिश कर रहे इथियोपिया की उस वक़्त औसत उम्र 47 ही थी.

लेकिन 2016 में वहां पैदा हुए बच्चों के आज 19 साल ज़्यादा लंबी ज़िंदगी जीने की संभावनाएं हैं.

इसकी वजह है कि इथियोपिया ने रोटावायरस और हैजा के अलावा सांस की कई बीमारियों पर काफ़ी हद तक काबू पा लिया है.

6. लेकिन, 8 देशों के लोगों की औसत उम्र घट गई
यूं तो दुनिया भर में लोगो की ज़िंदगी लंबी हो रही है. लेकिन 8 देश ऐसे भी हैं, जिनके नागरिकों की औसत उम्र घट भी गई.

इनमें से 4 तो अफ्रीका के सहारा इलाक़े के ही हैं, जहां 1990 से लोगों की औसत उम्र घट गई. सबसे ज़्यादा कमी लेसोथो के नागरिकों की ज़िंदगी में आई है.

संयुक्त राष्ट्र संघ के मुताबिक़ लेसोथो की 25 फ़ीसदी आबादी एचआईवी वायरस से संक्रमित है. ये दुनिया में एड्स से बीमार देशो में दूसरे नंबर पर है.

वहीं पड़ोस के दक्षिण अफ्रीका में 2016 में पैदा हुए बच्चों की औसत उम्र 62 बरस है. ये 1990 के मुक़ाबले दो साल कम है.

इसी दौरान दक्षिण अफ्रीका में एचआईवी के शिकार लोगों की तादाद में बहुत इज़ाफ़ा हुआ.

7. सरहद बदलते ही बढ़ा उम्र का फ़ासला
इन आंकड़ों से एक और चौंकाने वाली बात सामने आई है. वो ये कि आस-पास के देशों में ही लोगों की औसत उम्र में 20 साल तक का फ़र्क़ देखने को मिलता है.

जैसे कि चीन और अफ़ग़ानिस्तान. दोनों देशों के नागरिकों की औसत उम्र में 18 साल का फ़र्क़ है.

वहीं, आतंकवाद और गृह युद्ध के शिकार माली में लोगों की औसत उम्र 62 साल है.

पड़ोसी अल्जीरिया में लोग 15 साल लंबी ज़िंदगी जीने की उम्मीद कर सकते हैं, जहां नागरिकों की औसत उम्र 77 बरस है.

8. युद्ध अपने साथ लाता है तबाही
2010 में सीरिया औसत उम्र की पायदान में 65वें नंबर पर हुआ करता था. यानी वो टॉप के तीन देशों में हुआ करता था.

मगर पिछले क़रीब एक दशक से जारी गृह युद्ध की वजह से आज सीरिया लोगों की औसत उम्र के मामले में 142वें नंबर पर आ गया है.

वहीं 1994 में नरसंहार झेलने वाले रवांडा के लोगों की औसत उम्र 11 बरस हुआ करती थी.

9. अकाल और क़ुदरती आपदाएं भी लाती हैं तबाही
उत्तर कोरिया ने 1994 से 1998 के बीच कई अकाल झेले.

इसकी वजह से 2000 के शुरुआती साल में यहां के लोगो की औसत उम्र काफ़ी घट गई थी.

इसी तरह, 2010 में आए भूकंप की वजह से हैती में 2 लाख से ज़्यादा लोग मारे गए थे.

राहत की बात ये है कि बाद के कुछ सालों से यहां के लोगों की औसत उम्र बढ़ी है.

आतंकियों को मिला अभयदान

...तो सरकार ने रमज़ान में आतंकियों को अभयदान दे दिया. आतंक का कोई धर्म नहीं होता, फिर भी महबूबा मुफ्ती ने सरकार को आतंकियों के लिए त्यौहार मनाने की छुट्टी मांगी और सरकार ने खुशी-खुशी वो छुट्टी मंज़ूर कर भी दी. ये जानते हुए भी कि देश की सेना, इस छुट्टी के सख्त खिलाफ़ है.

यानी ये तय हो गया कि राजनीति की बलिवेदी पर सैनिकों की आहूति दी जाती रहेगी. क्योंकि कथित सीज़फायर का ऐलान होने के डेढ़ घंटे के भीतर शोपियां में पहला एनकाउंटर भी शुरू हो गया. बेशक सीज़फायर में सेना ने ये शर्त रख दी थी कि अगर दूसरी तरफ़ से गोली नहीं चली तो हम भी गोली नहीं चलाएंगे. लेकिन जहां फौजी अफसरों को अपनी जान बचाने के लिए पत्थरबाज़ों पर गोली चलाने के बाद सुप्रीम कोर्ट तक जाना पड़ता हो कि उन पर FIR न की जाए, वहां पहली गोली किसने चलाई ये किसकी गवाही से तय होगा? महबूबा मुफ्ती की? पत्थरबाज़ों की? अलगाववादियों की? या सेना के जवान की?

वैसे सरकार के सूत्रों का तर्क है कि इसे ‘सीज़फायर’ न कहा जाए बल्कि इसे ‘सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन’ कहा जाए. इस दौरान सीमापार से आने वाले घुसपैठियों पर कार्रवाई में कोई रोक नहीं होगी. सरहद पार से या घरेलू आतंकी भी इस दौरान कोई आतंकी हमला करते हैं – तो ऑपरेशन फिर से शुरू कर दिया जाएगा.

क्यों न सेना को भी एक महीने की छुट्टी दे दी जाए?

लेकिन सवाल ये है कि इतनी ढील भी क्यों? जब सेना ये कह रही है कि हम आतंकवादियों की कमर लगभग तोड़ चुके हैं, बुरहान वानी के बाद जिस-जिस ने कमांडर की ज़िम्मेदारी ली, सेना ने उसे निपटाने में देर नहीं लगाई. आतंकवादी इस समय पैसे और हथियारों की कमी से इस कदर जूझ रहे हैं कि हथियार लूटने जैसी हरकतें तक करने से नहीं चूक रहे – ऐसे में उन्हें संघर्ष विराम कर के अभयदान देने और खोई हुई ताकत फिर से जुटाने का मौका क्यों देना?

साल 2000 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान रमज़ान महीने में ऐसा ही सीज़फायर किया गया था. अगर उस समय के आंकड़ों की तुलना करें, तो सीज़फायर से पहले के 2 महीनों में, सितंबर से नवंबर तक, 119 जवान मारे गए थे, 151 नागरिक और 341 आतंकवादी. जबकि रमज़ान सीज़फायर में (4 महीने के 4 चरणों में) 197 आतंकवादी मारे गए, 348 नागरिकों की मौत हुई और 293 आतंकी मार गिराए गए. इस तुलना से ये बात साफ़ है कि आतंकवादियों को न किसी सीज़फायर की घोषणा से फर्क पड़ता है न ही रमज़ान से.

और केंद्र के कथित सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन के ऐलान के बाद, आतंकी संगठनों ने अपनी मंशा साफ़ बता भी दी है. लश्कर ने सरकार के सीज़फायर ऑफर को ठुकराने में दो मिनट नहीं लगाए. लगाते भी क्यों, जिस ISIS के झंडे को आतंकी संगठन कश्मीर में ले कर चल रहे हैं – वो ISIS तो रमज़ान के महीने में जिहाद को ज़रूरी बताता है, उसके मुताबिक़ तो जिहाद से बड़ी कोई पूजा नहीं है. फिर हम क्यों अपने सैनिकों को इन आतंकवादियों पर रहम करने के लिए मजबूर करें?

हो सकता है ये सरकार की कोई कूटनीति हो. लेकिन दोनों तरफ युद्ध को तैयार खड़ी सेनाओं को कूटनीति ही रोक पाती तो भगवान कृष्ण ने शायद महाभारत का युद्ध रोक लिया होता. आतंक की तरफ़ जा रहे कश्मीरी युवाओं का दिल जीतने के लिए अगर सरकार ने ये कदम उठाया है तो इसके लिए सैनिकों को बलि पर चढ़ाने की क्या ज़रूरत थी? महबूबा मुफ्ती तो इस सीज़फायर की आड़ में अपने ‘वोट बैंक’ को खुश कर लेंगी, लेकिन बीजेपी के राष्ट्रवाद का क्या होगा जो गोलियां गिनने में नहीं, चलाने में यकीन रखने का दम भरता है?

क्या महबूबा मुफ्ती इस बात की गारंटी लेंगी कि अमरनाथ यात्रा पर कोई हमला नहीं होगा? क्या वो इस बात की गारंटी लेंगी कि सुरक्षा बलों को निशाना नहीं बनाया जाएगा? कोई इस बात की गारंटी देगा कि इस एक महीने में कश्मीर जाने वाला कोई पर्यटक पत्थरबाज़ों का शिकार नहीं होगा? अगर इन सवालों के जवाब हां में मिलते हों तो ठीक है, दे दीजिए सेना के जवानों को भी एक महीने की छुट्टी! अगर आतंकवादियों को पवित्र महीने में परिवार के साथ छुट्टी बिताने का हक़ है, तो सेना का जवान भी जाने कि परिवार के साथ त्यौहार मनाने का सुख क्या होता है !
वाट्स एप से प्राप्त

शनिवार, 12 मई 2018

घड़ी थकती है, पर माँ नहीं

बर्तनों की आवाज़ देर रात तक आ रही थी,
रसोई का नल चल रहा है,
माँ रसोई में है....

तीनों बहुऐं अपने-अपने कमरे में सोने जा चुकी,
माँ रसोई में है...

माँ का काम बकाया रह गया था,पर काम तो सबका था;
पर माँ तो अब भी सबका काम अपना ही मानती है..

दूध गर्म करके,
ठण्ड़ा करके,
जावण देना है,
ताकि सुबह बेटों को ताजा दही मिल सके;

सिंक में रखे बर्तन माँ को कचोटते हैं,
चाहे तारीख बदल जाये,सिंक साफ होना चाहिये....

बर्तनों की आवाज़ से
बहू-बेटों की नींद खराब हो रही है;
बड़ी बहू ने बड़े बेटे से कहा;
"तुम्हारी माँ को नींद नहीं आती क्या? ना खुद सोती है और ना ही हमें सोने देती है"

मंझली ने मंझले बेटे से कहा; "अब देखना सुबह चार बजे फिर खटर-पटर चालू हो जायेगी, तुम्हारी माँ को चैन नहीं है क्या?"

छोटी ने छोटे बेटे से कहा; "प्लीज़ जाकर ये ढ़ोंग बन्द करवाओ कि रात को सिंक खाली रहना चाहिये"

माँ अब तक बर्तन माँज चुकी थी

झुकी कमर,
कठोर हथेलियां,
लटकी सी त्वचा,
जोड़ों में तकलीफ,
आँख में पका मोतियाबिन्द,
माथे पर टपकता पसीना,
पैरों में उम्र की लड़खडाहट
मगर,
दूध का गर्म पतीला
वो आज भी अपने पल्लू से उठा लेती है,
और...
उसकी अंगुलियां जलती नहीं है,
क्योंकि वो माँ है ।

दूध ठण्ड़ा हो चुका,
जावण भी लग चुका,
घड़ी की सूइयां थक गई,
मगर...
माँ ने फ्रिज में से भिण्ड़ी निकाल ली और काटने लगी;
उसको नींद नहीं आती है, क्योंकि वो माँ है!

कभी-कभी सोचता हूं कि माँ जैसे विषय पर लिखना,बोलना,बताना,जताना क़ानूनन बन्द होना चाहिये;
क्योंकि यह विषय निर्विवाद है,
क्योंकि यह रिश्ता स्वयं कसौटी है!

रात के बारह बजे सुबह की भिण्ड़ी कट गई,
अचानक याद आया कि गोली तो ली ही नहीं;
बिस्तर पर तकिये के नीचे रखी थैली निकाली,
मूनलाईट की रोशनी में
गोली के रंग के हिसाब से मुंह में रखी और गटक कर पानी पी लिया...

बगल में एक नींद ले चुके बाबूजी ने कहा;"आ गई"
"हाँ,आज तो कोई काम ही नहीं था"
-माँ ने जवाब दिया,

और

लेट गई,कल की चिन्ता में
पता नहीं नींद आती होगी या नहीं पर सुबह वो थकान रहित होती हैं,
क्योंकि वो माँ है!

सुबह का अलार्म बाद में बजता है,
माँ की नींद पहले खुलती है;
याद नहीं कि कभी भरी सर्दियों में भी,
माँ गर्म पानी से नहायी हो
उन्हे सर्दी नहीं लगती,
क्योंकि वो माँ है!

अखबार पढ़ती नहीं,मगर उठा कर लाती है;
चाय पीती नहीं,मगर बना कर लाती है;
जल्दी खाना खाती नहीं,मगर बना देती है,
क्योंकि वो माँ है!

माँ पर बात जीवनभर खत्म ना होगी,

शुक्रवार, 11 मई 2018

“मेरी ढाई शंका”!!

एक चर्चित इस्लामिक स्टाल पर कुछेक लोगों की भीड़ देखकर मैं भी पहुँच गया। पता चला 'कुरान-ए-शरीफ़' की प्रति लोगों को मुफ़्त बाँटी जा रही है। शांति, प्रेम और आपसी मेलजोल को इस्लाम का संदेश बताया जा रहा था।

खैर जिज्ञासावश मैंने भी मुफ़्त में कुरान पाने को उनका दिया आवेदन फॉर्म भरने की ठानी जिसमें वो नाम-पता और मोबाइल नम्बर लिखवा रहे थे ताकि बाद में लोगों से सम्पर्क साधा जा सके।

एकाएक एक सज्जन अपनी धर्मपत्नी जी के साथ स्टाल में पधारे सामान्य अभिवादन से पश्चात उन्होंने मुस्लिम विद्वान् के सामने अपना विचार रखा - मैं अपनी धर्मपत्नी के साथ इस्लाम स्वीकार करना चाहता हूँ।

यह सुन मुस्लिम विद्वान के चेहरे पर प्रसन्नत्ता की अनूठी आभा दिखाई दी।
मुस्लिम धर्मगुरु ने अपने दोनों हाथ खोलकर कहा - आपका स्वागत है।
लेकिन उन सज्जन ने कहा - इस्लाम स्वीकार करने से पहले मेरी 'ढाई' शंका है। आपको उनका निवारण करना होगा। यदि आप उनका निवारण कर पाए तो ही मैं इस्लाम स्वीकार कर सकता हूँ!!

मुस्लिम विद्वान ने शंकित से भाव से उनकी ओर देखते हुए प्रश्न किया - महोदय, शंका या तो 'दो' हों या 'तीन'! ये 'ढाई' शंका का क्या तुक है?
सज्जन ने अपने मुस्कुराते हुए कहा - जब मैं शंका रखूँगा आप खुद समझ जायेंगे। यदि आप तैयार हो तो मैं अपनी पहली शंका आपके सामने रखूँ?
मुस्लिम विद्वान् ने कहा - जी, रखिये...

सज्जन - मेरी पहली शंका है कि सभी इस्लामिक बिरादरी के मुल्कों में जहाँ मुस्लिमों की संख्या 50 फीसदी से ज़्यादा है, मसलन 'मुस्लिम समुदाय' बहुसंख्यक हैं, उनमें एक भी देश में 'समाजवाद' नहीं है, 'लोकतंत्र नहीं है। वहाँ अन्य धर्मों में आस्था रखनेवाले लोग सुरक्षित नहीं हैं। जिस देश में 'मुस्लिम' बहुसंख्यक होते हैं वहाँ कट्टर इस्लामिक शासन की माँग होने लगती है। मतलब उदारवाद नहीं रहता, लोकतंत्र नहीं रहता। लोगों से उनकी अभिवयक्ति की स्वतंत्रता छीन-सी ली जाती है। आप इसका कारण स्पष्ट करें, ऐसा क्यों? मैं इस्लाम स्वीकार कर लूँगा!!

मुस्लिम विद्वान के चेहरे पर एक शंका ने हजारों शंकाए खड़ी कर दीं। फिर भी उन्होंने अपनी शंकाओं को छिपाते हुए कहा - दूसरी शंका प्रकट करें...

सज्जन – मेरी दूसरी शंका है, पूरे विश्व में यदि वैश्विक आतंक पर नज़र डालें तो इस्लामिक आतंक की भागीदारी 95% के लगभग है। अधिकतर मारनेवाले आतंकी 'मुस्लिम' ही क्यों होते है? अब ऐसे में यदि मैंने इस्लाम स्वीकार किया तो आप मुझे कौन-सा मुसलमान बनायेंगे? हर रोज़ जो या तो कभी मस्ज़िद के धमाके में मर जाता, तो कभी ज़रा-सी चूक होने पर पर इस्लामिक कानून के तहत दंड भोगनेवाला या फिर वो मुसलमान जो हर रोज़ बम-धमाके कर मानवता की हत्या कर देता है! इस्लाम के नाम पर मासूमों का खून बहानेवाला या सीरिया की तरह औरतों को अगवाकर बाज़ार में बेचनेवाला! मतलब में मरनेवाला मुसलमान बनूँगा या मारनेवाला?

यह सुनकर दूसरी शंका ने मानो उन विद्वान पर हज़ारों मन बोझ डाल दिया हो। दबी-सी आवाज़ में उन्होंने कहा - बाकी बची आधी शंका भी बोलो?..
.
सज्जन ने मंद-सी मुस्कान के साथ कहा - वो आधी शंका मेरी धर्मपत्नी जी की है... इनकी शंका 'आधी' इसलिए है कि इस्लाम नारी समाज को पूर्ण दर्जा नहीं देता। हमेशा उसे पुरुष की तुलना में आधी ही समझता है तो इसकी शंका को भी 'आधा' ही आँका जाये!

मुस्लिम विद्वान ने कुछ लज्जित से स्वर में कहा - जी मोहतरमा, फरमाइए!...

सज्जन की धर्मपत्नी जी ने बड़े सहज भाव से कहा - ये इस्लाम कबूल कर लें, मुझे इससे कोई आपत्ति नहीं किन्तु मेरी इनके साथ शादी हुए करीब 35 वर्ष हो गये। यदि कल इस्लामिक रवायतों-उसूलों के अनुसार किसी बात पर इन्हें गुस्सा आ गया और मुझे 'तलाक-तलाक-तलाक' कह दिया तो बताइए मैं इस अवस्था में कहाँ जाऊँगी? यदि तलाक भी न दिया और कल इन्हें कोई पसंद आ गयी और ये उससे निकाह करके घर ले आये तो बताइए उस अवस्था में मेरा, मेरे का बच्चों का, मेरे गृहस्थ जीवन क्या होगा? तो ये मेरी 'आधी' शंका है।

इस प्रश्न के वार से मुस्लिम विद्वान को निरुत्तर कर दिया। उसने इन जवाबों से बचने के लिए कहा - आप अपना परिचय दे सकते हैं...
सज्जन ने कहा - मेरी शंका ही मेरा परिचय है। यदि आपके पास इन प्रश्नों का उत्तर होगा, हमारी 'ढाई शंका' का निवारण आपके पास होगा तो आप मुझे बताना।

सज्जन तो वहाँ से चले गये पर मौलाना साहब सिर पकड़कर बैठे रहे। किन्तु इस सारे वार्तालाप से मेरे मन में ज़रूर एक शंका खड़ी हो गयी कि आखिर ये सज्जन कौन हैं...?
भारतीय लोग अग्रेषित करे , , इंडियन प्रजाति आगे बढ़े।(जैसा प्राप्त हुआ वैसा ही भेजा गया) ।

Live life Naturally!!

पतला होना ही स्वास्थ्य की निशानी नही है क्योंकि बहुत से मोटे लोग उम्र पूरी करके जाते हैं और पतले लोग समय से पहले !

अपने को बढ़ती उम्र के साथ स्वीकारना एक तनावमुक्त जीवन देता है।

हर उम्र एक अलग तरह की खूबसूरती लेकर आती है उसका आनंद लीजिये।

बाल रंगने है तो रंगिये,
वज़न कम रखना है तो रखिये,
मनचाहे कपड़े पहनने है तो पहनिए,
बच्चों की तरह खिलखिलाइये,
अच्छा सोचिये,
अच्छा माहौल रखिये,
शीशे में दिखते हुए अपने अस्तित्व को स्वीकारिये।

कोई भी क्रीम आपको गोरा नही बनाती,
कोई शैम्पू बाल झड़ने नही रोकता,
कोई तेल बाल नही उगाता,
कोई साबुन आपको बच्चों जैसी स्किन नही देता।
चाहे वो प्रॉक्टर गैम्बल हो या पतंजलि .....सब सामान बेचने के लिए झूठ बोलते हैं।

ये सब कुदरती होता है।
उम्र बढ़ने पर त्वचा से लेकर बॉलों तक मे बदलाव आता है।
पुरानी मशीन को maintain करके बढ़िया चला तो सकते हैं, पर उसे नई नही कर सकते।

ना किसी टूथपेस्ट में नमक होता है ना किसी मे नीम।
किसी क्रीम में केसर नही होती, क्योंकि 2 ग्राम केसर भी 500 रुपए से कम की नही होती !

कोई बात नही अगर आपकी नाक मोटी है तो,
कोई बात नही आपकी आंखें छोटी हैं तो,
कोई बात नही अगर आप गोरे नही हैं
या आपके होंठों की shape perfect नही हैं....

फिर भी हम सुंदर हैं,
अपनी सुंदरता को पहचानिए।

दूसरों से कमेंट या वाह वाही लूटने के लिए सुंदर दिखने से ज्यादा ज़रूरी है, अपनी सुंदरता को महसूस करना।

हर बच्चा सुंदर इसलिये दिखता है कि वो छल कपट से परे मासूम होता है और बडे होने पर जब हम छल व कपट से जीवन जीने लगते है तो वो मासूमियत खो देते हैं
...और उस सुंदरता को पैसे खर्च करके खरीदने का प्रयास करते हैं।

मन की खूबसूरती पर ध्यान दो।

पेट निकल गया तो कोई बात नही उसके लिए शर्माना ज़रूरी नही ।
आपका शरीर आपकी उम्र के साथ बदलता है तो वज़न भी उसी हिसाब से घटता बढ़ता है उसे समझिये।

सारा इंटरनेट और सोशल मीडिया तरह तरह के उपदेशों से भरा रहता है,
यह खाओ,वो मत खाओ
ठंडा खाओ , गर्म पीओ,
कपाल भाती करो, 
सवेरे नीम्बू पीओ ,
रात को दूध पीओ
ज़ोर से सांस लो, लंबी सांस लो
दाहिने से सोइये ,
बाहिने से उठिए,
हरी सब्जी खाओ,
दाल में प्रोटीन है,
दाल से क्रिएटिनिन बढ़ जायेगा।

अगर पूरे एक दिन सारे उपदेशों को पढ़ने लगें तो पता चलेगा
ये ज़िन्दगी बेकार है ना कुछ खाने को बचेगा ना कुछ जीने को !!
आप डिप्रेस्ड हो जायेंगे।

ये सारा ऑर्गेनिक ,एलोवेरा, करेला, मेथी ,पतंजलि में फंसकर दिमाग का दही हो जाता है।
स्वस्थ होना तो दूर स्ट्रेस हो जाता है।

अरे! अपन मरने के लिये जन्म लेते हैं,
कभी ना कभी तो मरना है अभी तक बाज़ार में अमृत बिकना शुरू नही हुआ।

हर चीज़ सही मात्रा में खाइये,
हर वो चीज़ थोड़ी थोड़ी जो आपको अच्छी लगती है।

भोजन का संबंध मन से होता है
और मन अच्छे भोजन से ही खुश रहता है।
मन को मारकर खुश नही रहा जा सकता।
थोड़ा बहुत शारीरिक कार्य करते रहिए,
टहलने जाइये,
लाइट कसरत करिये 
व्यस्त रहिये, 
खुश रहिये ,
शरीर से ज्यादा मन को सुंदर रखिये।


Live life Naturally!! 

Your body is a gift of God,
Just love your body, but dont be obsessed with it.

सोमवार, 7 मई 2018

रिश्ते बनाओ, प्यार पाओ

बात बहुत पुरानी है। आठ-दस साल पहले की है  ।
 मै्अपने एक मित्र का पासपोर्ट बनवाने के लिए दिल्ली के पासपोर्ट ऑफिस गया था। उन दिनों इंटरनेट पर फार्म भरने की सुविधा नहीं थी। पासपोर्ट दफ्तर में दलालों का बोलबाला था और खुलेआम दलाल पैसे लेकर पासपोर्ट के फार्म बेचने से लेकर उसे भरवाने, जमा करवाने और पासपोर्ट बनवाने का काम करते थे।  मेरे मित्र को किसी कारण से पासपोर्ट की जल्दी थी, लेकिन दलालों के दलदल में फंसना नहीं चाहते थे।  हम पासपोर्ट दफ्तर पहुंच गए, लाइन में लग कर हमने पासपोर्ट का तत्काल फार्म भी ले लिया। पूरा फार्म भर लिया। इस चक्कर में कई घंटे निकल चुके थे, और अब हमें िकसी तरह पासपोर्ट की फीस जमा करानी थी।

हम लाइन में खड़े हुए लेकिन जैसे ही हमारा नंबर आया बाबू ने खिड़की बंद कर दी और कहा कि समय खत्म हो चुका है अब कल आइएगा। मैंने उससे मिन्नतें की, उससे कहा कि आज पूरा दिन हमने खर्च किया है और बस अब केवल फीस जमा कराने की बात रह गई है, कृपया फीस ले लीजिए। बाबू बिगड़ गया। कहने लगा, "आपने पूरा दिन खर्च कर दिया तो उसके लिए वो जिम्मेदार है क्या? अरे सरकार ज्यादा लोगों को बहाल करे। मैं तो सुबह से अपना काम ही कर रहा हूं।" मैने बहुत अनुरोध किया पर वो नहीं माना। उसने कहा कि बस दो बजे तक का समय होता है, दो बज गए। अब कुछ नहीं हो सकता।

मैं समझ रहा था कि सुबह से दलालों का काम वो कर रहा था, लेकिन जैसे ही बिना दलाल वाला काम आया उसने बहाने शुरू कर दिए हैं। पर हम भी अड़े हुए थे कि बिना अपने पद का इस्तेमाल किए और बिना उपर से पैसे खिलाए इस काम को अंजाम देना है।  मैं ये भी समझ गया था कि अब कल अगर आए तो कल का भी पूरा दिन निकल ही जाएगा, क्योंकि दलाल हर खिड़की को घेर कर खड़े रहते हैं, और आम आदमी वहां तक पहुंचने में बिलबिला उठता है। खैर, मेरा मित्र बहुत मायूस हुआ और उसने कहा कि चलो अब कल आएंगे।

मैंने उसे रोका। कहा कि रुको एक और कोशिश करता हूं।  बाबू अपना थैला लेकर उठ चुका था। मैंने कुछ कहा नहीं, चुपचाप उसके-पीछे हो लिया। वो उसी दफ्तर में तीसरी या चौथी मंजिल पर बनी एक कैंटीन में गया, वहां उसने अपने थैले से लंच बॉक्स निकाला और धीरे-धीरे अकेला खाने लगा।  मैं उसके सामने की बेंच पर जाकर बैठ गया। उसने मेरी ओर देखा और बुरा सा मुंह बनाया। मैं उसकी ओर देख कर मुस्कुराया। उससे मैंने पूछा कि रोज घर से खाना लाते हो?

उसने अनमने से कहा कि हां, रोज घर से लाता हूं।  मैंने कहा कि तुम्हारे पास तो बहुत काम है, रोज बहुत से नए-नए लोगों से मिलते होगे?  वो पता नहीं क्या समझा और कहने लगा कि हां मैं तो एक से एक बड़े अधिकारियों से मिलता हूं। कई आईएएस, आईपीएस, विधायक और न जाने कौन-कौन रोज यहां आते हैं। मेरी कुर्सी के सामने बड़े-बड़े लोग इंतजार करते हैं।  मैंने बहुत गौर से देखा, ऐसा कहते हुए उसके चेहरे पर अहं का भाव था।

मैं चुपचाप उसे सुनता रहा। फिर मैंने उससे पूछा कि एक रोटी तुम्हारी प्लेट से मैं भी खा लूं? वो समझ नहीं पाया कि मैं क्या कह रहा हूं। उसने बस हां में सिर हिला दिया।  मैंने एक रोटी उसकी प्लेट से उठा ली, और सब्जी के साथ खाने लगा।  वो चुपचाप मुझे देखता रहा। मैंने उसके खाने की तारीफ की, और कहा कि तुम्हारी पत्नी बहुत ही स्वादिष्ट खाना पकाती है।
वो चुप रहा।  मैंने फिर उसे कुरेदा। तुम बहुत महत्वपूर्ण सीट पर बैठे हो। बड़े-बड़े लोग तुम्हारे पास आते हैं। तो क्या तुम अपनी कुर्सी की इज्जत करते हो? अब वो चौंका। उसने मेरी ओर देख कर पूछा कि इज्जत? मतलब?
मैंने कहा कि तुम बहुत भाग्यशाली हो, तुम्हें इतनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिली है, तुम न जाने कितने बड़े-बड़े अफसरों से डील करते हो, लेकिन तुम अपने पद की इज्जत नहीं करते।  उसने मुझसे पूछा कि ऐसा कैसे कहा आपने? मैंने कहा कि जो काम दिया गया है उसकी इज्जत करते तो तुम इस तरह रुखे व्यवहार वाले नहीं होते।

देखो तुम्हारा कोई दोस्त भी नहीं है। तुम दफ्तर की कैंटीन में अकेले खाना खाते हो, अपनी कुर्सी पर भी मायूस होकर बैठे रहते हो, लोगों का होता हुआ काम पूरा करने की जगह अटकाने की कोशिश करते हो। मान लो कोई एकदम दो बजे ही तुम्हारे काउंटर पर पहुंचा तो तुमने इस बात का लिहाज तक नहीं किया कि वो सुबह से लाइऩ में खड़ा रहा होगा, और तुमने फटाक से खिड़की बंद कर दी। जब मैंने तुमसे अनुरोध किया तो तुमने कहा कि सरकार से कहो कि ज्यादा लोगों को बहाल करे।  मान लो मैं सरकार से कह कर और लोग बहाल करा लूं, तो तुम्हारी अहमियत घट नहीं जाएगी? हो सकता है तुमसे ये काम ही ले लिया जाए। फिर तुम कैसे आईएएस, आईपीए और विधायकों से मिलोगे?

भगवान ने तुम्हें मौका दिया है रिश्ते बनाने के लिए। लेकिन अपना दुर्भाग्य देखो, तुम इसका लाभ उठाने की जगह रिश्ते बिगाड़ रहे हो।  मेरा क्या है, कल भी आ जाउंगा, परसों भी आ जाउंगा। ऐसा तो है नहीं कि आज नहीं काम हुआ तो कभी नहीं होगा। तुम नहीं करोगे कोई और बाबू कल करेगा।  पर तुम्हारे पास तो मौका था किसी को अपना अहसानमंद बनाने का। तुम उससे चूक गए।
वो खाना छोड़ कर मेरी बातें सुनने लगा था।  मैंने कहा कि पैसे तो बहुत कमा लोगे, लेकिन रिश्ते नहीं कमाए तो सब बेकार है। क्या करोगे पैसों का? अपना व्यवहार ठीक नहीं रखोगे तो तुम्हारे घर वाले भी तुमसे दुखी रहेंगे। यार दोस्त तो नहीं हैं, ये तो मैं देख ही चुका हूं। मुझे देखो, अपने दफ्तर में कभी अकेला खाना नहीं खाता।  यहां भी भूख लगी तो तुम्हारे साथ खाना खाने आ गया। अरे अकेला खाना भी कोई ज़िंदगी है?
मेरी बात सुन कर वो रुंआसा हो गया। उसने कहा कि आपने बात सही कही है साहब। मैं अकेला हूं। पत्नी झगड़ा कर मायके चली गई है। बच्चे भी मुझे पसंद नहीं करते। मां है, वो भी कुछ ज्यादा बात नहीं करती। सुबह चार-पांच रोटी बना कर दे देती है, और मैं तनहा खाना खाता हूं। रात में घर जाने का भी मन नहीं करता। समझ में नहींं आता कि गड़बड़ी कहां है?  मैंने हौले से कहा कि खुद को लोगों से जोड़ो। किसी की मदद कर सकते तो तो करो। देखो मैं यहां अपने दोस्त के पासपोर्ट के लिए आया हूं। मेरे पास तो पासपोर्ट है।
मैंने दोस्त की खातिर तुम्हारी मिन्नतें कीं। निस्वार्थ भाव से। इसलिए मेरे पास दोस्त हैं, तुम्हारे पास नहीं हैं।
वो उठा और उसने मुझसे कहा कि आप मेरी खिड़की पर पहुंचो। मैं आज ही फार्म जमा करुंगा।  मैं नीचे गया, उसने फार्म जमा कर लिया, फीस ले ली। और हफ्ते भर में पासपोर्ट बन गया।
 बाबू ने मुझसे मेरा नंबर मांगा, मैंने अपना मोबाइल नंबर उसे दे दिया और चला आया। दिवाली पर मेरे पास बहुत से फोन आए। मैंने करीब-करीब सारे नंबर उठाए। सबको हैप्पी दिवाली बोला।  उसी में एक नंबर से फोन आया, "रविंद्र कुमार चौधरी बोल रहा हूं साहब।" मैं एकदम नहीं पहचान सका। उसने कहा कि कई साल पहले आप हमारे पास अपने किसी दोस्त के पासपोर्ट के लिए आए थे, और आपने मेरे साथ रोटी भी खाई थी।
आपने कहा था कि पैसे की जगह रिश्ते बनाओ।  मुझे एकदम याद आ गया। मैंने कहा हां जी चौधरी साहब कैसे हैं? उसने खुश होकर कहा, "साहब आप उस दिन चले गए, फिर मैं बहुत सोचता रहा। मुझे लगा कि पैसे तो सचमुच बहुत लोग दे जाते हैं, लेकिन साथ खाना खाने वाला कोई नहीं मिलता। सब अपने में व्यस्त हैं। मैं

साहब अगले ही दिन पत्नी के मायके गया, बहुत मिन्नतें कर उसे घर लाया। वो मान ही नहीं रही थी। वो खाना खाने बैठी तो मैंने उसकी प्लेट से एक रोटी उठा ली,  कहा कि साथ खिलाओगी? वो हैरान थी।  रोने लगी। मेरे साथ चली आई। बच्चे भी साथ चले आए। साहब अब मैं पैसे नहीं कमाता। रिश्ते कमाता हूं। जो आता है उसका काम कर देता हूं।  साहब आज आपको हैप्पी दिवाली बोलने के लिए फोन किया है।अगले महीने बिटिया की शादी है। आपको आना है। अपना पता भेज दीजिएगा। मैं और मेरी पत्नी आपके पास आएंगे। मेरी पत्नी ने मुझसे पूछा था कि ये पासपोर्ट दफ्तर में रिश्ते कमाना कहां से सीखे?
तो मैंने पूरी कहानी बताई थी। आप किसी से नहीं मिले लेकिन मेरे घर में आपने रिश्ता जोड़ लिया है।  सब आपको जानते है बहुत दिनों से फोन करने की सोचता था, लेकिन हिम्मत नहीं होती थी।  आज दिवाली का मौका निकाल कर कर रहा हूं। शादी में आपको आना है। बिटिया को आशीर्वाद देने। रिश्ता जोड़ा है आपने। मुझे यकीन है आप आएंगे।  वो बोलता जा रहा था, मैं सुनता जा रहा था। सोचा नहीं था कि सचमुच उसकी ज़िंदगी में भी पैसों पर रिश्ता भारी पड़ेगा।  लेकिन मेरा कहा सच साबित हुआ। आदमी भावनाओं से संचालित होता है। कारणों से नहीं। कारण से तो मशीनें चला करती हैं। पैसा इन्सान के लिए बनाया गया है, इन्सान पैैसै के लिए नहीं बनाया गया है।
लेखक का नाम नहीं मिला, मिल जाएगा, तो जोड़ दूँगा।

शुक्र है मेरे मालिक तेरा लाख-लाख ....

क पुरानी सी इमारत में था वैद्यजी का मकान था । पिछले हिस्से में रहते थे और अगले हिस्से में दवाख़ाना खोल रखा था । उनकी पत्नी की आदत थी कि दवाख़ाना खोलने से पहले उस दिन के लिए आवश्यक सामान एक चिठ्ठी में लिख कर दे देती थी । वैद्यजी गद्दी पर बैठकर पहले भगवान का नाम लेते फिर वह चिठ्ठी खोलते । पत्नी ने जो बातें लिखी होतीं, उनके भाव देखते , फिर उनका हिसाब करते । फिर परमात्मा से प्रार्थना करते कि हे भगवान ! मैं केवल तेरे ही आदेश के अनुसार तेरी भक्ति छोड़कर यहाँ दुनियादारी के चक्कर में आ बैठा हूँ । वैद्यजी कभी अपने मुँह से किसी रोगी से फ़ीस नहीं माँगते थे । कोई देता था, कोई नहीं देता था किन्तु एक बात निश्चित थी कि ज्यों ही उस दिन के आवश्यक सामान ख़रीदने योग्य पैसे पूरे हो जाते थे, उसके बाद वह किसी से भी दवा के पैसे नहीं लेते थे चाहे रोगी कितना ही धनवान क्यों न हो ।
एक दिन वैद्यजी ने दवाख़ाना खोला । गद्दी पर बैठकर परमात्मा का स्मरण करके पैसे का हिसाब लगाने के लिए आवश्यक सामान वाली चिट्ठी खोली तो वह चिठ्ठी को एकटक देखते ही रह गए। एक बार तो उनका मन भटक गया। उन्हें अपनी आँखों के सामने तारे चमकते हुए नज़र आए किन्तु शीघ्र ही उन्होंने अपनी तंत्रिकाओं पर नियंत्रण पा लिया। आटे-दाल-चावल आदि के बाद पत्नी ने लिखा था, "बेटी का विवाह 20 तारीख़ को है, उसके दहेज का सामान ।" कुछ देर सोचते रहे फिर बाकी चीजों की क़ीमत लिखने के बाद दहेज के सामने लिखा, ''यह काम परमात्मा का है, परमात्मा जाने''
एक-दो रोगी आए थे । उन्हें वैद्यजी दवाई दे रहे थे । इसी दौरान एक बड़ी सी कार उनके दवाखाने के सामने आकर रुकी । वैद्यजी ने कोई खास तवज्जो नहीं दी क्योंकि कई कारों वाले उनके पास आते रहते थे ।
दोनों मरीज दवाई लेकर चले गए । वह सूटेड-बूटेड साहब कार से बाहर निकले और नमस्ते करके बेंच पर बैठ गए। वैद्यजी ने कहा कि अगर आपको अपने लिए दवा लेनी है तो इधर स्टूल पर आएँ ताकि आपकी नाड़ी देख लूँ और अगर किसी रोगी की दवाई लेकर जाना है तो बीमारी की स्थिति का वर्णन करें। वह साहब कहने लगे "वैद्यजी ! आपने मुझे पहचाना नहीं । मेरा नाम कृष्णलाल है लेकिन आप मुझे पहचान भी कैसे सकते हैं ? क्योंकि मैं 15-16 साल बाद आपके दवाखाने पर आया हूँ । आप को पिछली मुलाकात का हाल सुनाता हूँ, फिर आपको सारी बात याद आ जाएगी। जब मैं पहली बार यहाँ आया था तो मैं खुद नहीं आया था अपितु ईश्वर मुझे आप के पास ले आया था क्योंकि ईश्वर ने मुझ पर कृपा की थी और वह मेरा घर आबाद करना चाहता था। हुआ इस तरह था कि मैं कार से अपने पैतृक घर जा रहा था । बिल्कुल आपके दवाखाने के सामने हमारी कार पंक्चर हो गई । ड्राईवर कार का पहिया उतार कर पंक्चर लगवाने चला गया । आपने देखा कि गर्मी में मैं कार के पास खड़ा था तो आप मेरे पास आए और दवाखाने की ओर इशारा किया और कहा कि इधर आकर कुर्सी पर बैठ जाएँ। अंधा क्या चाहे दो आँखें और कुर्सी पर आकर बैठ गया । ड्राइवर ने कुछ ज्यादा ही देर लगा दी थी । एक छोटी-सी बच्ची भी यहाँ आपकी मेज़ के पास खड़ी थी और बार-बार कह रही थी, ''चलो न बाबा, मुझे भूख लगी है । आप उससे कह रहे थे कि बेटी थोड़ा धीरज धरो, चलते हैं ।

मैं यह सोच कर कि इतनी देर से आप के पास बैठा था और मेरे ही कारण आप खाना खाने भी नहीं जा रहे थे ।

मुझे कोई दवाई खरीद लेनी चाहिए ताकि आप मेरे बैठने का भार महसूस न करें । मैंने कहा वैद्यजी मैं पिछले 5-6 साल से इंग्लैंड में रहकर कारोबार कर रहा हूँ । इंग्लैंड जाने से पहले मेरी शादी हो गई थी लेकिन अब तक बच्चे के सुख से वंचित हूँ । यहाँ भी इलाज कराया और वहाँ इंग्लैंड में भी लेकिन किस्मत ने निराशा के सिवा और कुछ नहीं दिया" आपने कहा था, "मेरे भाई ! भगवान से निराश न होओ । याद रखो कि उसके कोष में किसी चीज़ की कोई कमी नहीं है । आस-औलाद, धन-इज्जत, सुख-दुःख, जीवन-मृत्यु सब कुछ उसी के हाथ में है। यह किसी वैद्य या डॉक्टर के हाथ में नहीं होता और न ही किसी दवा में होता है। जो कुछ होना होता है वह सब भगवान के आदेश से होता है। औलाद देनी है तो उसी ने देनी है ।

मुझे याद है आप बातें करते जा रहे थे और साथ-साथ पुड़िया भी बनाते जा रहे थे । सभी दवा आपने दो भागों में विभाजित कर दो अलग-अलग लिफ़ाफ़ों में डाली थीं और फिर मुझसे पूछकर आप ने एक लिफ़ाफ़े पर मेरा और दूसरे पर मेरी पत्नी का नाम लिखकर दवा उपयोग करने का तरीका बताया था । मैंने तब बेदिली से वह दवाई ले ली थी क्योंकि मैं सिर्फ कुछ पैसे आप को देना चाहता था । लेकिन जब दवा लेने के बाद मैंने पैसे पूछे तो आपने कहा था, बस ठीक है । मैंने जोर डाला, तो आपने कहा कि आज का खाता बंद हो गया है । मैंने कहा मुझे आपकी बात समझ नहीं आई। इसी दौरान वहां एक और आदमी आया उसने हमारी चर्चा सुनकर मुझे बताया कि खाता बंद होने का मतलब यह है कि आज के घरेलू खर्च के लिए जितनी राशि वैद्यजी ने भगवान से माँगी थी वह ईश्वर ने उन्हें दे दी है। अधिक पैसे वे नहीं ले सकते । मैं कुछ हैरान हुआ और कुछ दिल में लज्जित भी कि मेरे विचार कितने निम्न थे और यह सरलचित्त वैद्य कितना महान है। मैंने जब घर जा कर पत्नी को औषधि दिखाई और सारी बात बताई तो उसके मुँह से निकला वो इंसान नहीं कोई देवता है और उसकी दी हुई दवा ही हमारे मन की मुराद पूरी करने का कारण बनेंगी। आज मेरे घर में दो फूल खिले हुए हैं । हम दोनों पति-पत्नी हर समय आपके लिए प्रार्थना करते रहते हैं। इतने साल तक कारोबार ने फ़ुरसत ही न दी कि स्वयं आकर आपसे धन्यवाद के दो शब्द ही कह जाता। इतने बरसों बाद आज भारत आया हूँ और कार केवल यहीं रोकी है ।

वैद्यजी हमारा सारा परिवार इंग्लैंड में सेटल हो चुका है । केवल मेरी एक विधवा बहन अपनी बेटी के साथ भारत में रहती है। हमारी भान्जी की शादी इस महीने की 21 तारीख को होनी है । न जाने क्यों जब-जब मैं अपनी भान्जी के भात के लिए कोई सामान खरीदता था तो मेरी आँखों के सामने आपकी वह छोटी-सी बेटी भी आ जाती थी और हर सामान मैं दोहरा खरीद लेता था । मैं आपके विचारों को जानता था कि संभवतः आप वह सामान न लें किन्तु मुझे लगता था कि मेरी अपनी सगी भान्जी के साथ जो चेहरा मुझे बार-बार दिख रहा है वह भी मेरी भान्जी ही है। मुझे लगता था कि ईश्वर ने इस भान्जी के विवाह में भी मुझे भात भरने की ज़िम्मेदारी दी है ।

वैद्यजी की आँखें आश्चर्य से खुली की खुली रह गईं और बहुत धीमी आवाज़ में बोले, ''कृष्णलाल जी, आप जो कुछ कह रहे हैं मुझे समझ नहीं आ रहा कि ईश्वर की यह क्या माया है । आप मेरी श्रीमती के हाथ की लिखी हुई यह चिठ्ठी देखिये" और वैद्यजी ने चिट्ठी खोलकर कृष्णलाल जी को पकड़ा दी । वहाँ उपस्थित सभी यह देखकर हैरान रह गए कि ''दहेज का सामान'' के सामने लिखा हुआ था ''यह काम परमात्मा का है, परमात्मा जाने''

काँपती-सी आवाज़ में वैद्यजी बोले, "कृष्णलाल जी, विश्वास कीजिये कि आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ कि पत्नी ने चिठ्ठी पर आवश्यकता लिखी हो और भगवान ने उसी दिन उसकी व्यवस्था न कर दी हो। आपकी बातें सुनकर तो लगता है कि भगवान को पता होता है कि किस दिन मेरी श्रीमती क्या लिखने वाली हैं अन्यथा आपसे इतने दिन पहले ही सामान ख़रीदना आरम्भ न करवा दिया होता परमात्मा ने। वाह भगवान वाह! तू महान है तू दयावान है। मैं हैरान हूँ कि वह कैसे अपने रंग दिखाता है।"
वैद्यजी ने आगे कहा, "जब से होश सँभाला है, एक ही पाठ पढ़ा है कि सुबह परमात्मा का आभार करो, शाम को अच्छा दिन गुज़रने का आभार करो, खाते समय उसका आभार करो, सोते समय उसका आभार करो ।

शुक्र है मेरे मालिक तेरा लाख-लाख ....

गुरुवार, 3 मई 2018

मेरा यार शरद बिल्लौरे

दिवंगत कवि शरद बिल्लौरे का आज स्मृति दिवस है । रीजनल कॉलेज ऑफ एजुकेशन से बी ए ऑनर्स करने के बाद अरुणाचल प्रदेश में उनकी नौकरी लगी जहाँ से लौटते हुए रेल में उन्हें लू लगी और 3 मई 1980 को कटनी स्टेशन पर उनकी मृत्यु हो गई । असीम सम्भावनाओं से भरे कवि शरद बिल्लौरे आज होते तो देश के प्रमुख कवियों में उनका नाम होता । शरद मेरे मित्र थे, मैं उन्हें हमेशा याद करता रहूँगा और जब तक मैं जीवित हूँ उनकी कविताएँ इस पीढ़ी के लिए प्रस्तुत करता रहूँगा ।


प्रस्तुत कविता में महाभारत की कथा में उल्लिखित राजा शिवि का प्रतीक है । अपने त्याग के लिए प्रसिद्ध राजा शिवि की परीक्षा लेने हेतु इंद्र ने बाज का और अग्नि ने कबूतर का रूप धारण किया। बाज से कबूतर की प्राणरक्षा हेतु राजा शिवि ने उसे कबूतर की तौल के बराबर अपनी देह का मांस देने का वचन दिया लेकिन जब एक एक अंग काटकर रख देने के बाद भी इंद्र के छल की वजह से कबूतर  वाला पलड़ा नहीं झुका तो अंततः राजा शिवि समूचे खुद ही पलड़े पर बैठ गए । इंद्र और अग्नि प्रसन्न हुए और अपने मूल रूप में आकर उन्हें प्राणदान दिया ।


शरद बिल्लौरे ने इस कविता में राजा शिवि के रूप में भारत के आम आदमी को प्रस्तुत किया है ,जो अपना सब कुछ सत्ता को दे चुका है फिर भी सत्ता उससे छल कर रही है और उसका अस्तित्व ही समाप्त कर देना चाहती है । चालीस साल पहले लिखी यह कविता पढिये और सोचिये क्या स्थितियाँ पहले से अधिक बदतर नहीं हुई हैं ?


■ तय तो यही हुआ था ■
सबसे पहले बायाँ हाथ कटा
फिर दोनों पैर लहूलुहान होते हुए
टुकड़ों में कटते चले गये
खून दर्द के धक्के खा खा कर
नसों से बाहर निकल आया था


तय तो यही हुआ था कि मैं
कबूतर की तौल के बराबर
अपने शरीर का माँस काटकर
बाज को सौंप दूँ और वह कबूतर को छोड़ दे


सचमुच बड़ा असहनीय दर्द था
शरीर का एक बड़ा हिस्सा तराजू पर था
और कबूतर वाला पलड़ा फिर नीचे था
हार कर मैं
समूचा ही तराजू पर चढ़ गया


आसमान से फूल नहीं बरसे
कबूतर ने कोई दूसरा रूप नहीं लिया
और मैंने देखा
बाज की दाढ़ में
आदमी का ख़ून लग चुका है  ।


ये पहाड़ वसीयत हैं

ये पहाड़ वसीयत हैं
हम आदिवासियों के नाम
हज़ार बार
हमारे पुरखों ने लिखी है
हमारी सम्पन्नता की आदिम गंध हैं ये पहाड़।
आकाश और धरती के बीच हुए समझौते पर
हरी स्याही से किए हुए हस्ताक्षर हैं
बुरे दिनों में धरती के काम आ सकें
बूढ़े समय की ऎसी दौलत हैं ये पहाड़।
ये पहाड़ उस शाश्वत गीत की लाइनें हैं
जिसे रात काटने के लिए नदियाँ लगातार गाती हैं।
हरे ऊन का स्वेटर
जिसे पहन कर हमारे बच्चे
कड़कती ठण्ड में भी
आख़िरकार बड़े होते ही हैं।
एक ऎसा बूढ़ा जिसके पास अनगिनत किस्से हैं।
संसार के काले खेत में
धान का एक पौधा।
एक चिड़िया
अपने प्रसव काल में।
एक पूरे मौसम की बरसात हैं ये पहाड़।
एक देवदूत
जो धरती के गर्भ से निकला है।
दुनिया भर के पत्थर-हृदय लोगों के लिए
हज़ार भाषाओं में लिखी प्यार की इबारत है।
पहाड़ हमारा पिता है
अपने बच्चों को बेहद प्यार करता हुआ।


तुम्हें पता है
बादल इसकी गोद में अपना रोना रोते हैं।
परियाँ आती हैं स्वर्ग से त्रस्त
और यहाँ आकर उन्हें राहत मिलती है।


हम घुमावदार सड़कों से
उनका शृंगार करेंगे
और उनके गर्भ से
किंवदन्तियों की तरह खनिज फूट निकलेगा।


कविता : शरद बिल्लौरे
प्रस्तुति : शरद कोकास