शुक्रवार, 27 अप्रैल 2018

मोबाइल पर प्रेरक कथा

मैं बिस्तर में से उठा...
अचानक छाती में दर्द होने लगा...
मुझे... हार्ट की तकलीफ तो नहीं है. ..? ऐसे विचारों के साथ. ..मैं आगे वाले बैठक के कमरे में गया. ..मैंने नज़र की... कि मेरा परिवार मोबाइल में व्यस्त था...

मैने... पत्नी को देखकर कहा...
काव्या थोडा छाती में रोज से आज ज़्यादा दर्द है...
डोक्टर को बताकर आता हूं. ..
हा, मगर संभलकर जाना... काम हो तो फोन करना  (मोबाइल में मुंह रखकर काव्या बोली...

मैं...एक्टिवा  की चाबी लेकर पार्किंग में पंहुचा...
पसीना,  मुझे बहुत होता था...
एक्टिवा स्टार्ट नहीं हो रही थी...
ऐसे वक्त्त... हमारे घर का काम करने वाला ध्रुवजी (रामो) सायकल लेकर आया... सायकल को ताला मारते मेरे सामने देखा...

क्यों साब. ..एक्टिवा चालू नहीं हो रहा है...मैंने कहा नहीं...

आपकी तबीयत ठीक नहीं लगती साब... इतना पसीना क्यों दिखता है ?

साब... स्कूटर को किक इस हालत में नहीं मारते....
मैं किक मारके चालू कर देता हूं...
ध्रुवजी ने एक ही किक मारकर एक्टिवा चालू कर दी, साथ ही पूछा..साब अकेले जा रहे हो ?
मैंने कहा... हां
ऐसी हालत में अकेले नहीं जाते...
चलिए मेरे पीछे बैठ जाओ...
मैंने कहा तुम्हे एक्टिवा चलाना  आता है  ?
साब... गाड़ी का भी लाइसेंस है, चिंता छोड़कर बैठ जाओ...

पास ही एक अस्पताल में हम पंहुचे, ध्रुवजी  दौड़कर अंदर गया, और व्हील चेयर लेकर बाहर आया...
साब... अब चलना नहीं, इस कुर्सी पर बैठ जाओ..

ध्रुवजी के मोबाइल पर लगातार घंटियां बजती रही...
मैं समझ गया था... फ्लैट में से सबके फोन आते होंगे...कि अब तक क्यों नहीं आया  ?
ध्रुवजी ने आखिर थककर किसी को कह दिया कि... आज नहीँ आ सकता....

ध्रुवजी डोक्टर के जैसे व्यवहार करता था...उसे बगैर पूछे ही मालूम हो गया था कि, साब को हार्ट की तकलीफ होगी... लिफ्ट में से व्हील चेयर ICU तरफ ध्रुवजी लेकर गया....

डॉक्टरों की टीम तो तैयार ही थी... मेरी तकलीफ सुनकर...सब टेस्ट शीघ्र कर लिए गए... डोक्टर ने कहा, आप समय पर पहुंच गए हो....
इस में भी आपने व्हील चेयर का उपयोग किया...वह आपके लिए बहुत फायदेमंद रहा...
अब... कोई भी प्रकार की राह देखना... वह आपके लिए हानिकारक होगा...इस लिए बिना देर किए हमें हार्ट का ऑपरेशन करके आप ब्लोकेज जल्द ही दूर करने होंगे...
इस फार्म पर आप के स्वजन के हस्ताक्षर की ज़रूरत है...
डोक्टर ध्रुवजी के सामने देखा...

मैंने कहा , बेटे, दस्तखत करना आता है  ?
साब इतनी बड़ी जवाबदारी मुझ पर न रखो...

बेटे... तुम्हारी कोई जवाबदारी नहीं है... तुम्हारे साथ भले ही खून का संबंध नहीं है... फिर भी बगैर कहे तुम ने तुम्हारी जवाबदारी पूरी की, वह जवाबदारी हकीकत में मेरे परिवार की थी...
एक और जवाबदारी पूरी कर,  बेटा मैं नीचे लिखकर दस्तखत कर के दूंगा कि मुझे कुछ भी होगा तो जवाबदारी मेरी है, ध्रुवजी ने सिर्फ मेरे कहने पर ही हस्ताक्षर  किए हैं, बस अब. ..

और हां, घर फोन लगा कर खबर कर दो...

बस, उसी समय मेरे सामने,  मेरी पत्नी काव्या का मोबाइल ध्रुवजी के मोबाइल पर आया.
ध्रुवजी, शांति  से काव्या को सुनने लगा...

थोड़ी देर के बाद ध्रुवजी बोला,
मैडम, आपको पगार काटने का हो तो काटना, निकालने का हो तो निकाल दो , मगर अभी अस्पताल ऑपरेशन के पहले पंहुच जाओ.
हा मैडम, मैं साब को अस्पताल लेकर आया हूं.
डोक्टर ने ऑपरेशन की तैयारी कर ली है, और राह देखने की कोई जरूरत नहीं है...

मैंने कहा, बेटा घर से फोन था...?
हा साब.
मैं मन में सोचा, काव्या तुम किसकी पगार काटने की बात कर रही है, और किस को निकालने की बात कर रही हो ?
आंखों में आंसू के साथ ध्रुवजी के कंधे पर हाथ रख कर, मैं बोला,  बेटा चिंता नहीं कर...

मैं एक संस्था में सेवाएं देता हूं, वे बुज़ुर्ग लोगों को सहारा देते हैं, वहां तुम जैसे ही व्यक्तियों की ज़रूरत है.
तुम्हारा काम बरतन कपड़े धोने का नहीं है, तुम्हारा काम तो समाज सेवा का है...
बेटा. ..पगार मिलेगा, इसलिए चिंता ना कर.

ऑपरेशन बाद, मैं हौश में आया... मेरे सामने मेरा पूरा परिवार नतमस्तक खड़ा था, मैं आंखों में आंसू के साथ बोला, ध्रुवजी कंहां है  ?

काव्या बोली-: वो अभी ही छुट्टी लेकर गांव गया, कह रहा था, उसके पिताजी हार्ट अटैक में गुज़र गया है... 15 दिन के बाद फिर से आएगा.

अब मुझे समझ में आया कि उसको मुझमें उसका बाप दिखता होगा. ..


हे प्रभु, मुझे बचाकर आपने उसके बाप को उठा लिया !

पूरा परिवार हाथ जोड़कर , मूक नतमस्तक माफी मांग रहा था...

एक मोबाइल की लत (व्यसन)...
अपनी व्यक्ति को अपने दिल से कितना दूर लेके जाता है... वह परिवार देख रहा था....

डॉक्टर ने आकर कहा, सब से पहले ध्रुवजी भाई आप के क्या लगते हैं ?

मैंने कहा डॉक्टर साहेब,  कुछ संबंधों के नाम या गहराई तक न जाएं तो ही ठीक रहता है, इससे उस संबंध की गरिमा बनी रहेगी.
बस मैं इतना ही कहूंगा कि, वो (ध्रुवजी) आपात स्थिति में मेरे लिए फरिश्ता बन कर आया था.

पिन्टू बोला :- हमको माफ करो पप्पा... जो फर्ज़ हमारा था,  उसे ध्रुवजी ने पूरा किया, वह हमारे लिए शर्मनाक है, अब से ऐसी भूल  कभी भी नहीं होगी. ..

बेटा,जवाबदारी और नसीहत(सलाह) लोगों को देने के लिए ही होती है. ..
जब लेने की घड़ी आये, तब लोग ऊपर नीचे हो जातें है.


      अब रही मोबाइल की बात...
बेटे, एक निर्जीव खिलौने ने, जीवित खिलौने को गुलाम कर दिया है, समय आ गया है, कि उसका मर्यादित उपयोग करना,

नहीं तो

परिवार समाज और राष्ट्र को उसके गंभीर परिणाम भुगतने पडेंगे और उसकी कीमत चुकाने तैयार रहना पड़ेगा.

परिवार के सदस्यों को समर्पित 

लेखक अज्ञात

मंगलवार, 24 अप्रैल 2018

उठो द्रोपदी, वस्त्र संभालो, अब गोविंद न आएंगे...


घोड़े'शुभ्रक' को शत-शत नमन

कुतुबुद्दीन घोड़े से गिर कर मरा, यह तो सब जानते हैं, लेकिन कैसे?

यह आज हम आपको बताएंगे..

वो वीर महाराणा प्रताप जी का 'चेतक' सबको याद है,
लेकिन 'शुभ्रक' नहीं!
तो मित्रो आज सुनिए कहानी 'शुभ्रक' की......

कुतुबुद्दीन ऐबक ने राजपूताना में जम कर कहर बरपाया, और उदयपुर के 'राजकुंवर कर्णसिंह' को बंदी बनाकर लाहौर ले गया।
कुंवर का 'शुभ्रक' नामक एक स्वामिभक्त घोड़ा था,
जो कुतुबुद्दीन को पसंद आ गया और वो उसे भी साथ ले गया।

एक दिन कैद से भागने के प्रयास में कुँवर सा को सजा-ए-मौत सुनाई गई.. और सजा देने के लिए 'जन्नत बाग' में लाया गया। यह तय हुआ कि राजकुंवर का सिर काटकर उससे 'पोलो' (उस समय उस खेल का नाम और खेलने का तरीका कुछ और ही था) खेला जाएगा..
.
कुतुबुद्दीन ख़ुद कुँवर सा के ही घोड़े 'शुभ्रक' पर सवार होकर अपनी खिलाड़ी टोली के साथ 'जन्नत बाग' में आया।

'शुभ्रक' ने जैसे ही कैदी अवस्था में राजकुंवर को देखा, उसकी आंखों से आंसू टपकने लगे। जैसे ही सिर कलम करने के लिए कुँवर सा की जंजीरों को खोला गया, तो 'शुभ्रक' से रहा नहीं गया.. उसने उछलकर कुतुबुद्दीन को घोड़े से गिरा दिया और उसकी छाती पर अपने मजबूत पैरों से कई वार किए, जिससे कुतुबुद्दीन के प्राण पखेरू उड़ गए! इस्लामिक सैनिक अचंभित होकर देखते रह गए..
.
मौके का फायदा उठाकर कुंवर सा सैनिकों से छूटे और 'शुभ्रक' पर सवार हो गए। 'शुभ्रक' ने हवा से बाजी लगा दी.. लाहौर से उदयपुर बिना रुके दौडा और उदयपुर में महल के सामने आकर ही रुका!

राजकुंवर घोड़े से उतरे और अपने प्रिय अश्व को पुचकारने के लिए हाथ बढ़ाया, तो पाया कि वह तो प्रतिमा बना खडा था.. उसमें प्राण नहीं बचे थे।
सिर पर हाथ रखते ही 'शुभ्रक' का निष्प्राण शरीर लुढक गया..

भारत के इतिहास में यह तथ्य कहीं नहीं पढ़ाया जाता क्योंकि वामपंथी और मुल्लापरस्त लेखक अपने नाजायज बाप की ऐसी दुर्गति वाली मौत बताने से हिचकिचाते हैं! जबकि फारसी की कई प्राचीन पुस्तकों में कुतुबुद्दीन की मौत इसी तरह लिखी बताई गई है।

नमन स्वामीभक्त 'शुभ्रक' को.. 🙏

रिश्ते


पिताजी जोऱ से चिल्लाते हैं ।
प्रिंस दौड़कर आता है, और
पूछता है...
क्या बात है पिताजी?
पिताजी- तूझे पता नहीं है, आज तेरी बहन रश्मि आ रही है? 
वह इस बार हम सभी के साथ अपना जन्मदिन मनायेगी..
अब जल्दी से जा और अपनी बहन को लेके आ,
हाँ और सुन...तू अपनी नई गाड़ी लेकर जा जो तूने कल खरीदी है...
उसे अच्छा लगेगा,
प्रिंस - लेकिन मेरी गाड़ी तो मेरा दोस्त ले गया है सुबह ही...
और आपकी गाड़ी भी ड्राइवर ये कहकर ले गया कि गाड़ी की ब्रेक चेक करवानी है।
पिताजी - ठीक है तो तू स्टेशन तो जा किसी की गाड़ी लेकर
या किराया करके?
उसे बहुत खुशी मिलेगी ।
प्रिंस - अरे वह बच्ची है क्या जो आ नहीं सकेगी?
आ जायेगी आप चिंता क्यों करते हो कोई टैक्सी या आटो लेकर-----
पिताजी - तूझे शर्म नहीं आती ऐसा बोलते हुए?  घर मे गाड़ियाँ होते हुए भी घर की बेटी किसी टैक्सी या आटो से आयेगी?
प्रिंस - ठीक है आप जाओ मुझे बहुत काम है मैं जा नहीं सकता ।
पिताजी - तूझे अपनी बहन की थोड़ी भी फिकर नहीं? शादी हो गई तो क्या बहन पराया हो गई ?
क्या उसे हम सबका प्यार पाने का हक नहीं?
 तेरा जितना अधिकार है इस घर में,
उतना ही तेरी बहन का भी है। कोई भी बेटी या बहन मायके छोड़ने के बाद पराया नहीं होती।
प्रिंस - मगर मेरे लिए वह पराया हो चुकी है और इस घर पर सिर्फ मेरा अधिकार है।
तडाक ...!
अचानक पिताजी का हाथ उठ जाता है प्रिंस पर,
 और तभी माँ आ जाती है ।
मम्मी - आप कुछ शरम तो करो, ऐसे जवान बेटे पर हाथ बिलकुल नहीं उठाते।
पिताजी - तुमने सुना नहीं इसने क्या कहा, ?
अपनी बहन को पराया कहता है ये वही बहन है जो इससे एक पल भी जुदा नहीं होती थी--
हर पल इसका ख्याल रखती थी। पाकेट मनी से भी बचाकर इसके लिए कुछ न कुछ खरीद देती थी। बिदाई के वक्त भी हमसे ज्यादा अपने भाई से गले लगकर रोई थी।
और ये आज उसी बहन को पराया कहता है।
प्रिंस -(मुस्कराकर)  बुआ का भी तो आज ही जन्मदिन है पापा...वह कई बार इस घर में आई है मगर हर बार अॉटो से आई है..आपने कभी भी अपनी गाड़ी लेकर उन्हें लेने नहीं गए...
माना वह आज वह तंगी मे है मगर कल वह भी बहुत अमीर थी । आपको मुझको इस घर को उन्होंने दिल खोलकर सहायता और सहयोग किया है। बुआ भी इसी घर से बिदा हुई थी फिर रश्मि दी और बुआ मे फर्क कैसा। रश्मि मेरी बहन है तो बुआ भी तो आपकी बहन है।
पापा... आप मेरे मार्गदर्शक हो आप मेरे हीरो हो मगर बस इसी बात से मैं हर पल अकेले में रोता हूँ।  तभी बाहर गाड़ी रूकने की आवाज आती है....
तब तक पापा भी प्रिंस की बातों से पश्चाताप की
आग मे जलकर रोने लगे और इधर प्रिंस भी~~
कि रश्मि दौड़कर पापा मम्मी से गले मिलती है..
लेकिन उनकी हालत देखकर पूछती है कि क्या हुआ पापा?
पापा - तेरा भाई आज मेरा भी पापा बन गया है ।
रश्मि - ए पागल...!!
नई गाड़ी न?
बहुत ही अच्छी है मैंने ड्राइवर को पीछे बिठाकर खुद चलाके आई हूँ और कलर भी मेरी पसंद का है।
प्रिंस - happy birthday to you दी...वह गाड़ी आपकी है और हमारे तरफ से आपको birthday gift..!!
बहन सुनते ही खुशी से उछल पड़ती है कि तभी बुआ भी अंदर आती है ।
बुआ - क्या भैया आप भी न, ???
न फोन न कोई खबर,
अचानक भेज दी गाड़ी आपने, भागकर आई हूँ खुशी से~
ऐसा लगा कि पापा आज भी जिंदा हैं ..
इधर पिताजी अपनी पलकों मे आँसू लिये प्रिंस की ओर देखते हैं ~
और प्रिंस पापा को चुप रहने का इशारा करता है।
इधर बुआ कहती जाती है कि मैं कितनी भाग्यशाली हूँ~~
 कि मुझे बाप जैसा भैया मिला,
ईश्वर करे मुझे हर जन्म मे आप ही भैया मिले...
पापा
मम्मी को पता चल गया था कि..
ये सब प्रिंस की करतूत है,
मगर आज फिर एक बार रिश्तों को मजबूती से जुड़ते देखकर वह अंदर से खुशी से टूटकर रोने लगे। उन्हें अब पूरा यकीन था कि...मेरे जाने के बाद भी मेरा प्रिंस रिश्तों को सदा हिफाजत से रखेगा~
बेटी और बहन
ये दो बेहद अनमोल शब्द हैं
जिनकी उम्र बहुत कम होती है । क्योंकि शादी के बाद बेटी और बहन किसी की पत्नी तो किसी की भाभी और किसी की बहू बनकर रह जाती है।
शायद लड़कियाँ इसी लिए मायके आती होंगी कि...
उन्हें फिर से बेटी और बहन शब्द सुनने को बहुत मन करता होगा~~
*रिश्ते कागज से नहीं दिल से और सच्चाई से निभाए जाये है।
झूठ और फरेब से नहीं* ✍

लेखक अज्ञात, वाट्स एप से प्राप्त।

शनिवार, 21 अप्रैल 2018

कहाँ चायवाला, कहाँ शहजादा !!!

आज चायवाले का कार्यक्रम इंग्लैंड में चल रहा है | चायवाले के स्थान पर शाहजादा होता तो कार्यक्रम छोड़कर बैंकाक भाग जाता,
लेकिन उसे जबरन पकड़कर कार्यक्रम में बिठाया भी जाता तो क्या वह चायवाले जैसा बोल पाता ?

चायवाले की कुण्डली में भी ईश्वर जब राजयोग डाल देते हैं तो बड़े-बड़े शाहों और शाहजादों की गद्दियाँ उखड़ जाती हैं, वाणी में जादू आ जाता है, देसी ही नहीं बल्कि विदेशी धनकुबेरों की तिजोरियाँ भी भारत की सेवा में खुलने लगती है ! आज की तारीख में भारत ही नहीं, पूरे संसार में चायवाले की टक्कर का कोई नेता राजनीति में सक्रीय नहीं है |

चायवाला भी है तो मनुष्य ही, अतः गुण हैं तो दोष भी हैं | किन्तु जब मैं अंग्रेजी साहित्य की स्नातक प्रतिष्ठा का छात्र था तो एक पुस्तक में मैंने पढ़ा था कि किसी साहित्यकार का मूल्यांकन करते समय यह याद रखना कि उसमें जो दोष हैं वे सामाजिक वातावरण की देन हैं, और जो गुण हैं वे उसकी अपनी देन हैं | यही कारण था कि अंग्रेजी साहित्य की परीक्षाओं में सारे प्रश्नों की भाषा एक जैसी होती थी -- अमुक साहित्यकार के अमुक ग्रन्थ को "critically appreciate" करो, अर्थात "आलोचनात्मक प्रशंसा" करो | हीरे का मूल्यांकन करते समय हमें हीरे के मूल्य पर ध्यान देना चाहिए, उसमें कितनी गन्दगी है केवल उसपर ही ध्यान देंगे तो हीरे का मूल्य पता नहीं चलेगा | गन्दगी को छाँटकर किनारे करते हुए असली वस्तु का मूल्य आँकना है |

चायवाला भी अम्बेडकर का महिमामण्डन करे तो इसका कारण युग का दोष है, समाज की विवशता है | वरना मायावती जैसे लोग दलितों को बौद्ध बनाने की योजना में सफल हो जायेंगे | चायवाला यदि महबूबा का समर्थन करे तो इसमें कश्मीर में लोकतान्त्रिक व्यवस्था को बनाए रखने की ईच्छा है, क्योंकि भारत के हित में यह नहीं है कि कश्मीर में सैन्य शासन थोपकर जगहंसाई कराये| संसार में भारत की प्रतिष्ठा बढानी है, क्योंकि भारत का विपक्ष और मीडिया तो पूरे संसार में प्रचार करती रहती है कि भारत  "बलात्कारी और अत्याचारी हिन्दुत्ववादियों" से त्रस्त देश है ! संसार के किसी अन्य देश में ऐसा विपक्ष और ऐसी मीडिया नहीं मिलेगी जो अपने ही देश की छवि बिगाड़े |

चायवाले को अपने लिए आलीशान महल और ऐशो-आराम का शौक नहीं है, असम की अपरिचित महिला को अपना आरक्षित बर्थ देकर नीचे तौलिया बिछाकर सोने वाला आदमी है यह, इसे "विकास" का भूत लगा है तो एक अरब गरीबों को गरीबी के नरक से निकालने के लिए |

मैंने कई बार चायवाले के विरोध में भी लिखा है, किन्तु हर बार मैंने यह भी लिखा है कि वोट इसी को देना है, क्योंकि सारे विकल्प देश को नष्ट करने वाले ही हैं |

"भारतीय ज्योतिष" के नाम पर धन्धा करने वाले कितने मूर्ख होते हैं इसका एक प्रमाण यह है कि एक मामूली चायवाले की कुण्डली में राजयोग कैसे आ गया यह नहीं समझ पाने के कारण जन्मकाल को दो घंटा बदल दिया ताकि लग्न में स्वगृही मंगल को रखकर पञ्च-महापुरुष योग की कल्पना कर सकें, किन्तु ऐसे मूर्खों ने जानबूझकर यह अनदेखा कर दिया कि स्वगृही मंगल के साथ नीच का चन्द्रमा भी बैठा है | नीच का ग्रह यदि उच्च के ग्रह के साथ बैठ जाय तो उच्चत्व को भी भंग कर देता है, जबकि स्वगृही ग्रह तो उच्च से बल में आधा ही होता है | तब मंगल में राजयोग कहाँ रहा ? राजयोग तो नीच के चन्द्रमा में है जिसकी दशा 2013 के अन्त में आरम्भ हुई और दस वर्षों तक चलेगी | नीच का ग्रह कमजोर होता है जिस कारण यदि अन्य राजयोग चन्द्रमा से सम्बन्ध रखते हों तो नीचत्व भंग हो जाता है | एक नीचत्व को एक राजयोग भंग कर देगा और वह राजयोग भी भंग हो जाएगा , उसके बाद अन्य कई राजयोग भी हों तो सब मिलकर प्रचण्ड चक्रवर्ती योग का फल देते हैं | मोदी जी की कुण्डली में राजयोग कैसे बना इसका वर्णन मैंने विस्तार से किया है -

 http://vedicastrology.wikidot.com/narendra-modi

यह कुण्डली बनाने में मैंने जन्मकाल में रत्तीभर भी परिवर्तन नहीं किया, मोदी जी के सगे भाई ने जो जन्मकाल बताया वही मैंने प्रयुक्त किया है, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में तत्कालीन ज्योतिष विभागाध्यक्ष चन्द्रमौली उपाध्याय जी इस तथ्य के गवाह हैं | कुण्डली के दूसरे भाव में राजयोग है, जो वाणी और धन का भाव है | अतः वाणी में जादू है और भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के पूँजी-निवेश को चायवाले का यह धनयोग भारत की ओर खींच रहा है |

राजनैतिक विवशताओं के कारण मोदी भाषण जो भी दे, कार्य जो कुछ कर रहे हैं वह शीघ्र ही सरकारी नौकरी को लोगों के आकर्षण का केन्द्र नहीं रहने देगा, लोग स्वयं आरक्षण को भूल जायेंगे, क्योंकि सरकारी उद्यमों का निजीकरण तथा निजी उद्यमों को प्रोत्साहन देने का फल यह होगा कि लोग आत्मनिर्भर होना सीखेंगे, न कि सरकार के भरोसे बैठे रहना -- जैसा कि शहजादे के शाही वंश ने सिखाया था | सरकारी नौकरियाँ ही घटती जायेंगी तो आरक्षण किस काम का ?

पश्चिम की विकसित तकनीक और फालतू पूँजी का भारत के श्रम से संयोग कराने का फल क्या निकलेगा यह आगामी कुछ वर्षों में स्पष्ट हो जाएगा | चीन ने भी यही रास्ता चुना था, किन्तु चीन को इससे क्षति भी पँहुची है क्योंकि चीन में विकसित पूँजीपति वर्ग नहीं था जिस कारण चीन पर विदेशी पूँजी का उपनिवेशवाद छा चुका है और अब चीन से बहुत बड़ी राशि मुनाफे के रूप में विदेश भागने लगी है, अतः पश्चिमी देशों और चीन के बीच तनाव बढ़ने लगा है और अब पश्चिम भारत की ओर देखने लगा है | किन्तु भारत में पहले से ही विकसित पूँजीपति वर्ग है जो ब्रिटेन और फ्रांस की सबसे बड़ी कम्पनियों को भी खरीद रहा है | अतः भारत में विदेशी पूँजी आने से भारत का वह हाल नहीं होगा जो चीन का हुआ है | पश्चिम विकास के शिखर पर पँहुच चुका है, उधर  श्रम बहुत मँहगा हो गया है जिस कारण पूँजी निवेश करने पर मुनाफ़ा अल्प होता है | चीन का भी घड़ा भर गया | अतः अब पूरे विश्व की पूँजी के लिए भारत ही सर्वोत्तम गन्तव्य है | इस पूँजी के साथ विकसित तकनीक भी आ रही है | इस विकसित तकनीक के मुकाबले भारतीय सेठों को प्रतियोगिता के लिए विवश होना पड़ रहा है, जिसका परिणाम होगा मध्ययुगीन जातिवाद और वंशवाद से भारतीय पूँजीपतियों का निकलकर मुक्त पूँजीवादी प्रतियोगिता के युग का आरम्भ जिसमें उसी का survival होगा जो fittest होगा, उसमें आरक्षण या परिवारवाद के लिए कोई स्थान नहीं | फॉरवर्ड हो या बैकवर्ड, हिन्दू हो या मुसलमान, सबको योग्यता अर्जित करनी ही पड़ेगी, वरना डायनासौर की तरह एक्स्तिन्क्ट हो जायेंगे |

चाय की दूकान से राजगद्दी तक का सफ़र हर भारतीय को यह चायवाला बलपूर्वक सिखलाकर ही दम लेगा, और जब दम लेगा तबतक सवा सौ करोड़ चायवाले तैयार हो जायेंगे अपने पांवों पर अपना-अपना सफ़र करने के लिए .....जिनको शाहजादों से सब्सिडी की भीख और आरक्षण या पैरवी की बैसाखी नहीं चाहिए |

इसे कहते हैं रामराज्य वाला असली राजयोग ! एक राजयोग होता है जनता को लूटकर अपने तख्ते-ताऊस में हीरे-जवाहरात जड़ने वाला | और एक राजयोग होता है श्रीराम की तरह स्वयं आजीवन कष्ट झेलकर जनता में अपना राजयोग बाँटने वाला | कहाँ चायवाले का राजयोग जो बुढ़ापे में भी सोलह घंटे परिश्रम कराता है , और कहाँ शाहजादा का राजयोग जो बजट सेशन छोड़कर बैंकाक में मसाज कराता है !!! मन्दिर बना देने से रामराज्य नहीं आता, रामराज्य आता है गरीबों के अँधेरे घरों में सुख के दीये जलाने से | अयोध्या के एक टुकड़े में श्रीरामजन्मभूमिमन्दिर  बनाना न्यायसंगत है, सांस्कृतिक पहचान को बचाना भी आवश्यक है, किन्तु केवल वही रामराज्य नहीं है | कलियुग में रामराज्य नहीं आ सकता, किन्तु रामराज्य की ओर लम्बी यात्रा में इस विशाल देश ने पग बढ़ा दिए हैं जिसमें मोदी से भी बेहतर राजयोग वाले और भी अनेक राजयोगी आयेंगे | कलियुग में राजयोग की परिभाषा भी लोग भूल चुके हैं | गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि इक्ष्वाकु (-वंश) के बाद दीर्घकाल से (समूचे द्वापर युग में) राजर्षियों वाला यह योग लुप्त था जो तुझे (अल्पकाल के लिए) दे रहा हूँ अर्जुन ! राजा भी हो और योगी भी, इसे कहते हैं राजयोग !!! राजयोग की परम्परा दीर्घकाल से लुप्त थी जो पुनः आरम्भ हो रही है | राजा शिवि की तरह अपना मांस खिलाकर दूसरों के प्राण बचाए, दधीचि की तरह अपनी हड्डी तक दान देकर असुरों से विश्व को बचाए, मोदी की तरह अपना व्यक्तिगत मोक्ष भूलकर समाजसेवा में जुट जाय, ऐसे राजाओं और योगियों की परम्परा केवल हिन्दुत्व ही सिखा सकता है, अन्य संस्कृतियों में ऐसी सीख ही नहीं है | केवल मन्दिर में घंटे हिलाना ही हिन्दुत्व नहीं है | मन में भक्ति हो तो बिना मन्दिर गए भी भगवान मिल सकते हैं, लेकिन दूसरों के कष्ट देखकर जिसके आँसू न निकले उसे भगवान कभी नहीं मिल सकते | मोक्ष तभी मिलता है जब मोक्ष का भी लोभ न बचे |
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विजय झा की पोस्ट

मानवता का अप्रतिम उदाहरण।

कल बाज़ार में फल खरीदने गया, तो देखा कि एक फल की रेहड़ी की छत से एक छोटा सा बोर्ड लटक रहा था, उस पर मोटे अक्षरों से लिखा हुआ था...
"घर मे कोई नहीं है, मेरी बूढ़ी माँ बीमार है, मुझे थोड़ी थोड़ी देर में उन्हें खाना, दवा और टॉयलट कराने के लिए घर जाना पड़ता है, अगर आपको जल्दी है तो अपनी मर्ज़ी से फल तौल लें, रेट साथ में लिखे हैं।
पैसे कोने पर गत्ते के नीचे रख दें, धन्यवाद!!"
अगर आपके पास पैसे नहीं हो तो मेरी तरफ से ले लेना, इजाज़त है..!!

मैंने इधर उधर देखा, पास पड़े तराजू में दो किलो सेब तोले दर्जन भर केले लिये, बैग में डाले, प्राइस लिस्ट से कीमत देखी, पैसे निकाल कर गत्ते को उठाया, वहाँ सौ-पचास और दस-दस के नोट पड़े थे, मैंने भी पैसे उसमें रख कर उसे ढंक दिया।

बैग उठाया और अपने फ्लैट पे आ गया, रात को खाना खाने के बाद मैं उधर से  निकला, तो देखा एक कमज़ोर सा आदमी, दाढ़ी आधी काली आधी सफेद, मैले से कुर्ते पजामे में रेहड़ी को धक्का लगा कर बस जाने ही वाला था, वो मुझे देखकर मुस्कुराया और बोला "साहब! फल तो खत्म हो गए।"

उसका नाम पूछा तो बोला: "सीताराम"
फिर हम सामने वाले ढाबे पर बैठ गए।
चाय आयी, वो कहने लगा, "पिछले तीन साल से मेरी माता बिस्तर पर हैं, कुछ पागल सी भी हो गईं है और अब तो फ़ालिज भी हो गया है, मेरी कोई संतान नहीं है, बीवी मर गयी है, सिर्फ मैं हूँ और मेरी माँ..!!
माँ की देखभाल करने वाला कोई नहीं है, इसलिए मुझे ही हर वक़्त माँ का ख्याल रखना पड़ता है"...

एक दिन मैंने माँ के पाँव दबाते हुए बड़ी नरमी से कहा, "..माँ!! तेरी सेवा करने को तो बड़ा जी चाहता है पर जेब खाली है और तू मुझे कमरे से बाहर निकलने नहीं देती, कहती है, तू जाता है तो जी घबराने लगता है, तू ही बता मै क्या करूँ?"
न ही मेरे पास कोई जमा पूंजी है।..

ये सुन कर माँ ने हाँफते-काँपते उठने की कोशिश की। मैंने तकिये की टेक लगवाई, उन्होंने झुर्रियों वाला चेहरा उठाया अपने कमज़ोर हाथों को ऊपर उठाया,
मन ही मन राम जी की स्तुति की फिर बोली..
"तू रेहड़ी वहीं छोड़ आया कर, हमारी किस्मत का हमें  जो कुछ भी है, इसी कमरे में बैठकर मिलेगा।"

मैंने कहा, "माँ क्या बात करती हो, वहाँ छोड़ आऊँगा तो कोई चोर उचक्का सब कुछ ले जायेगा, आजकल कौन लिहाज़ करता है? और बिना मालिक के कौन फल खरीदने आएगा?"

कहने लगीं.. "तू राम का नाम लेने के बाद बाद रेहड़ी को फलों से भरकर छोड़ कर आजा बस, ज्यादा बक-बक नहीं कर, शाम को खाली रेहड़ी ले आया कर, अगर तेरा रुपया गया तो मुझे बोलियो!"

ढाई साल हो गए हैं भाईसाहब सुबह रेहड़ी लगा आता हूँ ...शाम को ले जाता हूँ, लोग पैसे रख जाते हैं..
..फल ले जाते हैं, एक धेला भी ऊपर नीचे नहीं होता, बल्कि कुछ तो ज्यादा भी रख जाते हैं, कभी कोई माँ के लिए फूल रख जाता है, कभी कोई और चीज़!!

परसों एक बच्ची पुलाव बना कर रख गयी,
साथ में एक पर्ची भी थी "अम्मा के लिए!"

एक डॉक्टर अपना कार्ड छोड़ गए पीछे लिखा था,
'माँ की तबियत नाज़ुक हो तो मुझे कॉल कर लेना,
मैं आ जाऊँगा, कोई ख़जूर रख जाता है, रोजाना कुछ न कुछ मेरे हक के साथ मौजूद होता है।

न माँ हिलने देती है न मेरे राम कुछ कमी रहने देते हैं, माँ कहती है, तेरे फल मेरा राम अपने फरिश्तों से बिकवा देता है।

आखिर में, इतना ही कहूँगा की अपने मां -बाप की सेवा करो, और देखो दुनिया की कामयाबियाँ कैसे हमारे कदम चूमती हैं।...
💐💐🙏🙏
लेखक अज्ञात

बुधवार, 18 अप्रैल 2018

ये लौकी भगवान ने क्यों बनाई ??

इसकी दो वजह हो सकती है ! पहली बात तो ये कि वो यह चाहते हों कि औरतो के पास कम से कम एक आध तो ऐसा मारक हथियार तो हो ही जिससे वो आदमियो को परास्त कर सके !औरत लौकी बनाये बिना रह नही सकती ! लौकी नाराजगी जताने का सबसे कारगर तरीका है औरतो का ! थाली मे लौकी देखते ही बेवकूफ से बेवकूफ आदमी ये समझ जाता है कि उससे कोई बडी चूक हो चुकी है !आदमी लौकी की वजह से ही दबता है अपनी बीबी से ! कायदे से रहता है ! आदमी को तमीज सिखाने का क्रैडिट यदि किसी को दिया जा सकता है तो वो लौकी ही है !

मेरी यह समझ मे यह बात कभी आयी नही कि लौकी से कैसे निपटें ! लौकी आती है थाली में तो थाली थरथराने लगती है ! रोटियाँ मायूस होकर किसी कोने मे सिमट जाती हैं ! जीभ लटपटा जाती है ! आप अचार, चटनी, पापड या दही के भरोसे हो जाते हैं ! हर कौर के बाद पानी का गिलास तलाशते हैं आप ! आपको लगने लगता है कि आपकी तबियत खराब है, आप ICU मे भर्ती हैं ! बंदा डिप्रेशन मे चला जाता है ! दुनिया वीरान वीरान सी महसूस होती है !  कुछ अच्छा होने की कोई उम्मीद बाकी नही रह जाती ! मन गिर जाता है ! लगता है अकेले पड गये हैं !  दरअसल लौकी, लौकी नही होती, वो आपकी बीबी की इज्जत का सवाल होती है ! आप पूरी हिम्मत करके लौकी का एक एक निवाला गले से नीचे उतारते है ! बीबी सामने बैठी होती है ! जानना चाहती है लौकी कैसी बनी ! आप बीबी का मन रखने के लिये झूठ बोलना चाहते हैं पर लौकी झूठ बोलने नही देती ! लौकी की खासियत है ये ! इसे खाते हुये आदमी हरीशचन्द्र हो जाता है !

 आप चाहते हुये भी लौकी की तारीफ नही कर पाते !

मेरा ख्याल से बंदे को शादी करने के पहले यह पता लगाने की कोशिश जरूर करनी चाहिये कि उसकी होने वाली बीबी लौकी से प्यार तो नही करती ! वैसे ऐसी लडकी मिल भी जाये तो इसकी कोई गारंटी नही कि शादी होने के बाद उसका झुकाव लौकी की तरफ नही हो जायेगा !  दुनिया मे ऐसी लडकी अब तक पैदा ही नही हुई है जो बीबी की पदवी हासिल कर लेने के बाद पति को सबक सिखाने के लिये लौकी का सहारा लेने से परहेज करे ! जब तक जहर इजाद नही हुआ था तब तक आदमी दुश्मनो को मारने के लिये लौकी का ही इस्तेमाल किया करता था ! लम्बे टाईम से टिके मेहमान को दरवाजा दिखाने के लिये लौकी से बेहतर और कोई तरीका नही ! थाली में हर दूसरे वक्त लगातार लौकी के दर्शन कर ढीट से ढीट मेहमान भी समझ जाता है कि अब चला चली का वक्त आ गया है !

पर एक तारीफ तो करनी ही पडेगी इस लौकी की ! न्यायप्रिय होती है ये ! सब को एक सा दुख देती है ! स्वाभिमानी भी होती है ये ! अपने मूल स्वभाव और कर्तव्यो  से कभी नही डिगती ! लाख मसाले, तेल डाल दें आप इसमे ! ये पट्ठी टस से मस नही होती ! आप मर जायें सर पटक कर पर लौकी हमेशा लौकी ही बनी रहती है ! एक बात और जो मेरी समझ मे कभी नही आई कि  लौकी खाने से ही क्लोरेस्ट्राल क्यो कम होता है ! ये भी भगवान का मजाक ही है आदमी के साथ ! ये काम गुलाब जामुन और काजू कतली  को भी सौंप सकता था वो ! पर ऐसा किया नही उन्होने ! जानबूझ कर लौकी को ही सौंपी ये जिम्मेदारी...।


व्यंग्यकार अज्ञात

सुनो लड़कियो

सुनो लड़कियों,
जो कर सको तो इतना करना,
कि तुम्हारी अगली आने वाली नस्लों की हर बेटी को,
खिलौने के नाम पर बस किचन सेट ना मिले,
तुम उन्हें भी बंदूकों से खेलने देना।

जो कर सको तो इतना करना,
कि चाहे रोटी गोल बनाना ना सिखा सको उसको,
जूडो कराटे सिखा देना,
ताकि आँखों में आँखें डाल मुँह नोच सके वो,
वहशी हैवानों, दरिंदों का।

सुनो लड़कियों,
जब माँ बनो बरसों बाद,
तो याद करना वो सारे लम्हें,
जब माँ ने मुँह फेर लेने को कहा था,
जब दादी ने किसी से ना कहने को कहा था,
जब आँखों ही आँखों में दी घुड़की से सहमी थी तुम,
जब किसी अधेड़ ने बेशर्मी से हँसते हुए छुआ था,
उन अनगिनत लम्हों को बेबाकी से गिना देना तुम,
आने वाली नस्ल के हर ‘नर’ और बेटियों को,
ताकि बेटियाँ चुप ना रहना सीखें,
ताकि नर, बेटे बनना सीखें,
तुम इन लम्हों को यूँ ही ज़ाया मत होने देना।

और कर सको तो ये भी करना,
कि जब तुम्हारा लाडला चिराग,
थोड़ी सी चोट खाकर रोने लगे,
तो कोई ये ना कहे उसको,
‘लड़की है क्या? बात बात पर रो देता है’
सुनो तुम उसे रोना ज़रूर सिखा देना।

जो कर सको तो अपने लाडले के कॉलेज के पहले दिन ही,
समझाना उसे बिठा, बेझिझक और बेबाक
कि उसकी और उसके जैसे लाडलों की
माँओं, चाचियों और दीदियों ने क्या सहा है,
उनको किसने, कैसे, कब और कहाँ जबरदस्ती छुआ है,
तुम उसे इस नस्ल के मर्दों सा मत होने देना।

सुनो लड़कियों,
जो कर सको तो इतना करना,
कि टोक सको अपने प्रेमियों, पिताओं और भाइयों को हर गाली पर,
कि किसी से कपड़ों से उसकी तरफ़ बढ़ने से हिचकें तुम्हारे दोस्त,
कि अनसुना ना करो अपने बेटे के दोस्तों के मजाक,
कि आटा, सब्जियों और चावल की मात्रा तय करने तक ना रह जाये तुम्हारी भूमिका घर में,
जो कर सको तो इतना करना,
कि हमारी आने वाली नस्ल बेहतर बन सके,
कि आने वाली दुनिया इतनी घिनौनी ना हो,
कि बेटियों के लिए अभ्यारण्य ना बनाने पड़ें,
कि इंसानियत हर पल घुटती ना हो।
 
सुनो लड़कियों तुमसे गुजारिश है,
कि कर सको तो इस दुनिया को अपने लायक बना लेना

कवि-अज्ञात


बुधवार, 11 अप्रैल 2018

तब आप मरने लगते हैं...

नोबेल पुरस्कार विजेता ब्राजीली कवयित्री  मार्था मेरिडोस की कविता "You Start Dying Slowly" का हिन्दी अनुवाद..

1) आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:
- करते नहीं कोई यात्रा,
- पढ़ते नहीं कोई किताब,
- सुनते नहीं जीवन की ध्वनियाँ,
- करते नहीं किसी की तारीफ़।

2) आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, जब आप:
- मार डालते हैं अपना स्वाभिमान,
- नहीं करने देते मदद अपनी और न ही करते हैं मदद दूसरों की।

3) आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:
- बन जाते हैं गुलाम अपनी आदतों के,
- चलते हैं रोज़ उन्हीं रोज़ वाले रास्तों पे,
- नहीं बदलते हैं अपना दैनिक नियम व्यवहार,
- नहीं पहनते हैं अलग-अलग रंग, या
- आप नहीं बात करते उनसे जो हैं अजनबी अनजान।

4) आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:
- नहीं महसूस करना चाहते आवेगों को, और उनसे जुड़ी अशांत भावनाओं को, वे जिनसे नम होती हों आपकी आँखें, और करती हों तेज़ आपकी धड़कनों को।

5) आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:
- नहीं बदल सकते हों अपनी ज़िन्दगी को, जब हों आप असंतुष्ट अपने काम और परिणाम से,
- अग़र आप अनिश्चित के लिए नहीं छोड़ सकते हों निश्चित को,
- अगर आप नहीं करते हों पीछा किसी स्वप्न का,
- अगर आप नहीं देते हों इजाज़त खुद को, अपने जीवन में कम से कम एक बार, किसी समझदार सलाह से दूर भाग जाने की..।
तब आप धीरे-धीरे मरने  लगते हैं..!!

*इसी कविता के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ।

मंगलवार, 10 अप्रैल 2018

निरर्थक सौंदर्य

एक सभ्रांत प्रतीत होने वाली अतीव सुन्दरी ने विमान में प्रवेश किया और अपनी सीट की तलाश में नजरें घुमाईं। उसने देखा कि उसकी सीट एक ऐसे व्यक्ति के बगल में है जो जिसके दोनों ही हाथ नहीं है। महिला को उस अपाहिज व्यक्ति के पास बैठने में झिझक हुई ! उस 'सुंदर' महिला ने एयरहोस्टेस को कहा कि वह उसके लिए नियत सीट पर सुविधापूर्वक यात्रा नहीं कर पायेगी, क्योंकि साथ की सीट पर एक दोनों हाथ विहीन व्यक्ति बैठा हुआ है | उस सुन्दरी ने एयरहोस्टेस से सीट बदलने हेतु आग्रह किया |  असहज हुई एयरहोस्टेस ने पूछा, "मैम क्या मुझे कारण बता सकती है"?
'सुंदर' महिला ने जवाब दिया: "मैं ऐसे लोगों को पसंद नहीं करती। मैं ऐसे व्यक्ति के पास बैठकर यात्रा नहीं कर पाऊँगी "।  दिखने में सभ्रांत और विनम्र प्रतीत होने वाली महिला के यह उद्गार सुनकर एयर हॉस्टेज़ अचंभित हो गई । सुन्दरी ने एक बार फिर एयरहोस्टेस से जोर देकर कहा कि मैं उस सीट पर नहीं बैठ सकती और मुझे कोई दूसरी सीट दे दी जाए । एयरहोस्टेस ने खाली सीट की तलाश में चारों ओर नजर घुमाई, पर कोई भी सीट खाली नहीं दिखी । एयरहोस्टेस ने महिला से कहा कि "मैडम इस इकोनोमी क्लास में कोई सीट रिक्त नहीं है, किन्तु यात्रियों की सुविधा का ध्यान रखना हमारा दायित्व है, अतः मैं वायुयान के कप्तान से बात करती हूँ, कृपया तब तक थोडा धैर्य रखें "। ऐसा कहकर होस्टेस कप्तान से बात करने चली गई |
कुछ समय बाद उसने लौट कर महिला को बताया, "महोदया! आपको जो असुविधा हुई, उसके लिए बहुत खेद है, इस पूरे विमान में, केवल एक सीट खाली है और वह प्रथम श्रेणी में है। मैंने हमारी टीम से बात की और हमने एक असाधारण निर्णय लिया। एक यात्री को इकोनॉमी क्लास से प्रथम श्रेणी में भेजने का कार्य हमारी कंपनी के इतिहास में पहली बार हो रहा है ... "। 'सुंदर' महिला अत्यंत प्रसन्न हो गई, किन्तु इसके पहले कि वह अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करती और एक शब्द भी बोल पाती ... एयरहोस्टेस उस अपाहिज और दोनों हाथ विहीन व्यक्ति की ओर बढ़ गई और विनम्रता पूर्वक उनसे पूछा "सर, क्या आप प्रथम श्रेणी में जा सकेंगे ? क्योंकि हम नहीं चाहते कि आप एक अशिष्ट यात्री के साथ यात्रा करने की त्रासदी भुगतें । " यह सुनकर प्रत्येक यात्री ने ताली बजाकर इस निर्णय का स्वागत किया। वह अतीव सुन्दरी महिला तो अब शर्म से नजरें ही नहीं उठा पा रही थी।
तब उस अपाहिज व्यक्ति ने खड़े होकर कहा, "मैं एक भूतपूर्व सैनिक हूँ और मैंने एक ऑपरेशन के दौरान कश्मीर सीमा पर हुए बम विस्फोट में अपने दोनों हाथ खोये थे । सबसे पहले, जब मैंने इन देवी जी की चर्चा सुनी, तब मैं सोच रहा था: मैंने भी किन लोगों की सुरक्षा के लिए अपनी जान जोखिम में डाली और अपने हाथ खोये ? लेकिन जब आप सभी की प्रतिक्रिया देखी, तो अब अपने आप पर गर्व महसूस हो रहा है कि मैंने अपने देश और देशवासियों की खातिर अपने दोनों हाथ खोये । "और इतना कह कर, वह प्रथम श्रेणी में चले गए।
'सुंदर' महिला पूरी तरह से शर्मिंदा होकर सर झुकाए सीट में गड़ गई। उस अतीव  सौंदर्य का भी कोई मूल्य नहीं अगर विचारों में उदारता न हो ...
लेखक- अज्ञात

सोमवार, 2 अप्रैल 2018

औरत, तू उठा कल, कर हस्ताक्षर

औरत की बेफिक्र चाल,
धक्-सी लगती है किसी को,

औरत की हँसी,
बेपरवाह-सी लगती है किसी को,

औरत का नाचना,
बेशर्म होना-सा लगता है किसी को,

औरत का बेरोक-टोक, यहाँ -वहाँ, आना-जाना,
स्वछन्द -सा लगता है किसी को,

औरत का प्रेम करना,
निर्लज्ज होना-सा लगता है किसी को,

औरत का सवाल करना,
हुकूमत के खिलाफ-सा लगता है किसी को!!

औरत,
तू समझती है न यह जाल!!

〰➿➰➿〰

लेकिन...,

औरत...,

तू चल अपनी चाल,
कि,नदी भी बहने लगे,
तेरे साथ-साथ!

तू ठठाकर हँस,
कि, बच्चे भी खिलखिलाने लगें,
तेरे साथ-साथ!

तू नाच,
कि, पेड़ भी झूमने लगें,
तेरे साथ-साथ!

तू नाप,धरती का कोना-कोना,
कि, दुनिया का नक्शा उतर आए,
तेरी हथेली पर!

तू कर प्रेम,
कि,अब लोग प्रेम करना भूलते जा रहे हैं!

तू कर हर वो सवाल,
जो तेरी आत्मा से बाहर निकलने को,
धक्का मार रहा हो!

तू उठा कलम,
और कर हस्ताक्षर...
अपने चरित्र प्रमाण पत्र पर,

कि, तेरे चरित्र प्रमाण पत्र पर,
अब किसी और के हस्ताक्षर,
अच्छे नहीं लगते.!!

-अज्ञात

रविवार, 1 अप्रैल 2018

ऑफिस में नींद आना एक खतरनाक बीमारी

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जी नींद तो बहुत ही जरूरी चीज़ है, लेकिन यह ऑफिस के समय आ जाए तो मुसीबत बन जाती है। काम करते हुए आंखें बंद होने लगें, थकान महसूस होने लगे और अगर ऐसे मौके पर नींद लेने का मौका ना मिले, तो बस सिरदर्द शुरू हो जाता है। ऐसे में करें तो क्या करें...
अगर बॉस को पता चल गया कि हम काम छोड़कर नींद की नदी में गोते लगाने की तैयारी में हैं तो वह हमारी हमेशा के लिए काम से छुट्टी कर देंगे। ऐसी हालत अमूमन उन लोगों की होती है जो एक जगह पर बैठकर काम करते हैं। जो इधर-उधर घूमकर काम करने के आदी होते हैं, उनकी नींद चलने-फिरने से ही काफी हद तक गायब हो जाती है।
लेकिन घंटों कम्प्यूटर स्क्रीन के सामने बैठकर काम करने वालों के लिए तो नींद के साथ-साथ कम्प्यूटर की स्क्रीन भी एक बड़ी चुनौती बन जाती है। मैं किसी अन्य इंसान का क्यों, बल्कि स्वयं अपना ही उदाहरण दे सकती हूं। ऑफिस में घंटों लैपटॉप के सामने बैठने के बाद जब आंखें थक जाती हैं तो उन्हें खोल सकना भी एक कठिन टास्क बन जाता है।
और अगर साथ ही नींद भी आ रही हो तो शायद गर्मागर्म चाय भी उसे भगा नहीं सकती। ऐसे में तो मन करता है कि एक कोई ज़ोरदार धमाका हो जिससे दिमागी नसें खुल जाएं और यह नींद उड़ जाए। क्योंकि ऑफिस में आने के बाद आराम करने की अपेक्षा आप सपने में भी नहीं कर सकते, आपको कैसे भी करके काम को पूरा करना ही है।

जानें कुछ कारण

एक शोध के मुताबिक ऑफिस के दौरान भी नींद आने के कुछ विशेष कारण सामने आए हैं। पहला कारण उन लोगों से जुड़ा है जो रात के समय पूरी नींद लेने में असमर्थ रहते हैं। ऐसे में वे शायद ऑफिस आकर काम कर भी लेते हैं, लेकिन दिमाग नींद की ओर होने की वजह से वे खुली आंखों से भी बंद आंखों के समान काम करते चले जाते हैं और परिणाम यह होता है कि कोई भी काम ठीक तरीके से नहीं होता।
लेकिन जो नींद पूरी लेते हैं उनका क्या? सच में ऐसे कई लोग होते हैं जो रात में जरूरत के अनुसार आराम से 7 से 8 घंटे की नींद ले लेते हैं और सुबह फिर भी मुश्किल से उठते हैं। इतना ही नहीं, उठने के बाद नहाकर और फिर तैयार होकर ऑफिस आ तो जाते हैं, लेकिन नींद उन पर नशे की तरह चढ़ी रहती है।

काम में मन नहीं लगता

ऐसे में वे काम में मन नहीं लगा पाते। इसका एक कारण हो सकता है कि उनकी शारीरिक एवं मानसिक थकान की तुलना में जितनी नींद की उन्हें आवश्यकता है शायद वह उन्हें नहीं मिल रही। लेकिन दूसरा कारण उनमें शारीरिक रूप से कुछ कमियां होना हो सकता है। ऐसे में इन लोगों को जरूरत है तो एक डॉक्टर की।

व्यायाम है फायदेमंद

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किन्तु यदि ऐसी कोई परेशानी नहीं है और फिर भी अपने आलसी स्वभाव के कारण आपको रोज़ ऑफिस में नींद आती है, तो कुछ टिप्स जरूर आजमाएं। विशेषज्ञों की राय में ऐसे में व्यक्ति को व्यायाम करने की जरूरत है। रोज़ाना कसरत करने से वह दिमागी नसों को जागरुक कर सकता है।
ऐसे लोगों को ऐरोबिक्स करनी चाहिए, जो ना केवल शरीर में स्फूर्ति लाती है बल्कि एक ऐसी ऊर्जा प्रदान करती है, जिससे हम हमेशा तरोताजा महसूस करते हैं। फिर ऐसे में बिना वजह नींद का आना असंभव सी बात है।
लेकिन डॉक्टरों के मुताबिक बार-बार नींद आने का एक और कारण भी हो सकता है। यह है एक प्रकार की बीमारी, जिसे चिकित्सकीय दुनिया “हायपरसोम्निया” के नाम से जानती है। आम भाषा में हम इसे जरूरत से अधिक नींद आने की तकलीफ भी कह सकते हैं।

हायपरसोम्निया

हायपरसोम्निया से पीड़ित वे लोग होते हैं जो हर थोड़े समय के बाद नींद आने की शिकायत रखते हैं। जैसे कि सुबह उठने के बाद भी जब दोबारा बिस्तर पर जाने का मन करे। इसके अलावा कहीं भी बैठे-बैठे सो जाना, साथ ही भोजन करने या फिर अनचाहे समय पर नींद आना, जबकि उनकी रात की नींद जरूरत के अनुसार पूरी हुई थी।
फिर भी बार-बार नींद आने की यह परेशानी ही उस इंसान को हायपरसोम्निया से पीड़ित होना मानती है। ऐसे लोग यदि गलती से गहरी नींद में चले जाएं, तो कुछ भी हो जाए, लेकिन इन्हें उठा सकना एक मुश्किल कार्य हो जाता है। लेकिन इसका एक ही हल डॉक़्टरों को दिखाई देता है, और वो है ऐरोबिक्स करना।
इस बीमारी पर शोध कर रहे शोधकर्ताओं ने कुछ लोगों को एकत्रित करके उनके ब्लड सैम्पल लिए। यह वे लोग थे जो इस बीमारी से ग्रस्त हैं, लेकिन इससे निजात पाने के लिए ऐरोबिक्स कर रहे हैं। इस वर्ग के लोगों का जब डॉक्टरों ने ब्लड सैम्पल लिया तो उन्हें काफी आश्चर्यजनक तथ्य हासिल हुए।

एक कारण है डिप्रेशन

इस टेस्ट में डॉक्टरों ने देखा कि शोध का हिस्सा बनने वाले लोगों में से कम से कम 100 लोग ऐसे थे जो डिप्रेशन का शिकार थे। यह डिप्रेशन ही उनमें हायपरसोम्निया जैसी बीमारी को पैदा होने दे रहा है, जिसके कारण वे घंटों तक सोते रहते हैं और उठने के बाद भी दोबारा सोने की ख्वाहिश रखते हैं।
लेकिन यही लोग जब ऐरोबिक्स को अपना रहे हैं तो यह व्यायाम उनके दिमाग में पनपने वाले दो खास विकारों को खत्म कर रहा है। यानी कि डिप्रेशन जैसे हालात में ऐरोबिक्स काफी फायदेमंद साबित हो सकता है। तो यदि सच में आप इतना सोने के आदी हो गए हैं तो डॉक्टर की सलाह के साथ ऐरोबिक्स भी जरूर आज़माएं।