बुधवार, 18 मई 2022

दादी और पोती

"अम्मा मैं सुषमा और डॉली के साथ मॉल जा रहा हूं, तुम घर का ख्याल रखना" ठीक है बेटा.  तुम जाओ वैसे भी मेरे पैर में दर्द हो रहा है मैं मॉल में नही जाना चाहती तुम लोग जाओ" दादी आपको भी मॉल चलना पड़ेगा" 10 साल की पोती डॉली बोली ...

" तुम्हारी दादी मॉल में सीढियां नही चढ़ सकती, उन्हें escalator चढ़ना भी नही आता.  और वहां कोई मंदिर नही है इसलिए दादी का मॉल जाने में कोई interest नही है वो सिर्फ मंदिर जाने में interested रहती हैं"।  बहू सुषमा अपनी बेटी डॉली से बोली।

इस बात से दादी सहमत हो गई पर उनकी पोती डॉली जिद पर अड़ गई की वो भी मॉल नही जाएगी अगर दादी नही चली, यद्यपि दादी कह चुकी थीं कि वो मॉल जाने में interested नही है।

अंत मे 10 साल की पोती के सामने दादी की नही चली और वो भी साथ जाने को तैयार हो गई, जिस पर पोती डॉली बहुत खुश हो गई।

पिता ने सबको तैयार हों जाने को कहा। इससे पहले की मम्मी पापा तैयार होते सबसे बुजुर्ग दादी और सबसे छोटी लड़की तैयार हो गए।

पोती दादी को बालकनी में ले गई और  पोती ने एक फिट की दूरी से दो लकीर चाक से बना दी 

पोती ने दादी से कहा कि ये एक गेम है और आपको एक पक्षी की acting करनी है

 आपको एक पैर इन दो लाइन्स के बीच मे रखना है और दूसरा पैर 3 ऊंच ऊपर उठाना है

ये क्या है बेटी?, दादी ने पूछा, ये bird game है मैं आपको सिखाती हूँ।

जब तक पापा कार लाये तब तक दादी पोती ने काफी देर ये गेम खेला।

वो मॉल पहुंचे और जैसे ही वो escalator के पास पहुंचे, मम्मी पापा परेशान हो गए कि दादी कैसे escalator में चलेंगी। 

पर मम्मी पापा आश्चर्यचकित रह गए जब उन्होंने देखा कि दादी आराम से escalator में सीढ़ियां चढ़ रही थी और बल्कि पोती दादी escalator में बार बार ऊपर नीचे जाकर खूब मज़े ले रहे थे (दरअसल पोती ने दादी से कह दिया था कि यहां पर दादी को वोही Bird Game खेलना है दादी ने अपना दायां पैर उठाना है और एक चलती हुई सीढी पर रखना है और फिर बायां पैर 3 इंच उठाकर चलती हुई अगली सीढ़ी पर रखना है)

इस तरह दादी आसानी से escalator पर चढ़ पा रही थी और दादी पोती खूब बार escalator में ऊपर नीचे जाकर मज़े भी ले रही थीं 

उसके बाद वो पिक्चर हॉल गए जहां अंदर ठंडा था तो पोती ने चेहरे पर एक शरारतपूर्ण मुस्कान के साथ अपने बैग से एक शाल निकालकर दादी को उढ़ा दिया की वो पहले से तैयारी के साथ आई थी

Movie के बाद सब रेस्टारेंट में खाना खाने गए. बेटे ने अपनी माँ (डॉली की दादी) से पूछा कि आपके लिए कौन सी डिश order करनी है 

पर डॉली ने पापा के हाथ से menu झपटकर जबरन अपनी दादी के हाथ मे  दे दिया कि आपको पढ़ना आता है आप ही पढ़ कर deside कीजिये कि क्या खाना order करना है दादी ने मुस्कुराते हुए items फाइनल किये की क्या order करना है

खाने के बाद दादी और पोती ने video games खेले जो घर मे वो पहले ही खेलते थे

घर के लिए निकलने के पहले दादी वॉशरूम गई तो उनकी अनुपस्तिथि का फायदा उठा कर पापा ने बेटी से पूछ लिया कि तुम्हे दादी के बारे में इतना कैसे पता है जो बेटा होते हुए मुझे पता नही है?

तपाक से जवाब आया कि पापा जब आप छोटे से थे तो आपको घर मे नही छोड़ते थे और आपको घर से बाहर ले जाने के पहले आपकी मां कितनी तैयारी करती थीं? दूध की बोतलें, diapers, आपके कपड़े, खाने पीने का समान??    

आप क्यों सोचते हैं कि आपकी मां को सिर्फ मंदिर जाने में रुचि है उनकी भी वोही साधारण इच्छाएं होती हैं कि मॉल में जाएं सबके साथ खूब मज़ा करे खाएं पियें, पर बुजुर्गों को लगता है कि वो साथ जाकर आपके मज़े को किरकिरा करेंगे, इसलिए वो खुद पीछे हट जाते हैं और अपने दिल की बात ज़ुबा पर नही ला पाते।

पिता का मुंह खुला का खुला रह गया हालांकि वो खुश थे कि उनकी 10 साल की बिटिया ने उन्हें कितना नया और सुंदर पाठ पढ़ाया

(वाट्स एप से साभार)

गुरुवार, 5 मई 2022

" अकेला चना भी भाड़ फोड़ सकता है "

वर्ष 1979 में जाधव 10 वीं की परीक्षा देने के बाद अपने गाँव में ब्रह्मपुत्र नदी के बाढ़ का पानी उतरने पर इसके बरसाती भीगे रेतीले तट पर घूम रहे थे।

तभी उनकी नजर लगभग 100 मृत सांपों के विशाल गुच्छे पर पड़ी। आगे बढ़ते गए तो पूरा नदी का किनारा मरे हुए जीव जन्तुओं से अटा पड़ा एक मरघट सा था। मृत जानवरों के शव के कारण पैर रखने की जगह नही थी। इस दर्दनाक सामूहिक निर्दोष मौत के दृश्य ने जाधव के किशोर मन को झकझोर दिया।
हज़ारो की संख्या में निर्जीव जीव जन्तुओ की निस्तेज फटी मुर्दा आँखों ने जाधव को कई रात सोने न दिया। गाँव के ही एक आदमी ने चर्चा के दौरान विचलित जाधव से कहा जब पेड़ पौधे ही नही उग रहे हैं, तो नदी के रेतीले तटों पर जानवरों को बाढ़ से बचने का आश्रय कहाँ मिले? जंगलों के बिना इन्हें भोजन कैसे मिले? बात जाधव के मन में पत्थर की लकीर बन गयी कि जानवरों को बचाने पेड़ पौधे लगाने होंगे।
50 बीज और 25 बांस के पेड़ लिए 16 साल का जाधव पहुंच गया नदी के रेतीले किनारे पर रोपने। ये आज से 35 साल पुरानी बात है। उस दिन का दिन था और आज का दिन, क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि इन 35 सालों में जाधव ने 1360 एकड़ का जंगल बिना किसी सरकारी मदद के लगा डाला।
क्या आप भरोसा करेंगे कि एक अकेले आदमी के लगाये जंगल में 5 बंगाल टाइगर,100 से ज्यादा हिरन, जंगली सुअर, 150 जंगली हाथियों का झुण्ड, गेंडे और अनेक जंगली पशु घूम रहे हैं, अरे हाँ सांप भी जिसने इस अद्भुत नायक को जन्म दिया।
जंगलों का क्षेत्रफल बढ़ाने सुबह 9 बजे से पांच किलोमीटर साइकल से जाने के बाद, नदी पार करते और दूसरी तरफ वृक्षारोपण कर फिर सांझ ढले नदी पार कर साइकल से 5 किलोमीटर तय कर घर पहुँचते। इनके लगाये पेड़ो में कटहल, गुलमोहर, अन्नानाश, बांस, साल, सागौन, सीताफल, आम, बरगद, शहतूत, जामुन, आडू और कई औषधीय पौधे हैं। लेकिन सबसे आश्चर्यजनक और दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह है कि इस असम्भव को सत्य कर दिखाने वाले साधक से महज़ पांच साल पहले तक देश अनजान था।
यह लौहपुरुष अपने धुन में अकेला आसाम के जंगलो में साइकिल में पौधो से भरा एक थैला लिए अपने बनाए जंगल में गुमनाम सफर कर रहा था। सबसे पहले वर्ष 2010 में देश की नजर में आये जब वाइल्ड फोटोग्राफर “जीतू कलिता” ने इन पर डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाई “The Molai Forest” यह फिल्म देश के नामी विश्वविद्यालयों में दिखाई गयी। दूसरी फिल्म आरती श्रीवास्तव की “Foresting Life” जिसमें जाधव की जिन्दगी के अनछुए पहलुओं और परेशानियों को दिखाया। तीसरी फिल्म “Forest Man” जो विदेशी फिल्म महोत्सव में भी काफी सराही गई।
एक अकेले व्यक्ति ने वन विभाग की मदद के बिना, किसी सरकारी आर्थिक सहायता के बगैर इतने पिछड़े इलाके से कि जिसके पास पहचान पत्र के रूप में “राशन कार्ड” तक नहीं है, ने हज़ारो एकड़ में फैला पूरा जंगल खड़ा कर दिया। जानने वाले सकते में आ गए उनके नाम पर आसाम के इन जंगलो को “मिशिंग जंगल” कहते हैं (जाधव आसाम की मिशिंग जनजाति से हैं)। जीवन यापन करने के लिए इन्होने गाय पाल रखी हैं। शेरों द्वारा आजीविका के साधन उनके पालतू पशुओं को खा जाने के बाद भी जंगली जानवरों के प्रति इनकी करुणा कम न हुई। शेरों ने मेरा नुकसान किया क्योंकि वो अपनी भूख मिटाने के लिए खेती करना नहीं जानते।
आप जंगल नष्ट करोगे वो आपको नष्ट करेंगे। एक साल पहले महामहिम “राष्ट्रपति” द्वारा देश के चतुर्थ सर्वोच्च नागरिक सम्मान “पद्मश्री” से अलंकृत होने वाले जाधव आज भी आसाम में बांस के बने एक कमरे के छोटे से कच्चे झोपड़े में अपनी पुरानी में दिनचर्या लीन हैं। तमाम सरकारी प्रयासों, वृक्षारोपण के नाम पर लाखो रुपये के पौधों की खरीदी करके भी ये पर्यावरण, वन-विभाग वो मुकाम हासिल न कर पाये जो एक अकेले की इच्छाशक्ति ने कर दिखाया। साइकिल पर जंगली पगडंडियों में पौधों से भरे झोले और कुदाल के साथ हरी-भरी प्रकृति की अनवरत साधना में ये निस्वार्थ पुजारी।
कभी कभी “अकेला चना भी भाड़ फोड़ सकता है।”
(सुदीप शुक्ला की वॉल से साभार)

बुधवार, 4 मई 2022

प्रेरक कहानियाँ

 दो पुरानी कहानियां पढ कर सोंचे कि आप इन परिस्थितियों में कैसे निर्णय लेंगे.....

कहानी न० १: एक कंपनी की हर दीपावली की पूर्व संध्या पर एक पार्टी और लॉटरी आयोजित करने की परंपरा थी..!

लॉटरी ड्रा के नियम इस प्रकार थे: प्रत्येक कर्मचारी एक फंड के रूप में सौ रुपये का भुगतान करता है..! कंपनी में तीन सौ लोग थे,यानी कुल तीस हजार रुपये जुटाए जा सकते हैं..! विजेता सारा पैसा ले जाता है..!

लॉटरी ड्रा के दिन कार्यालय चहल-पहल से भर गया..! सभी ने कागज की पर्चियों पर नाम लिखकर लॉटरी बॉक्स में डाल दिया..!

हालांकि एक युवक लिखने से झिझक रहा था..! उसने सोचा कि कंपनी की सफाई वाली महिला के कमजोर और बीमार बेटे का नए साल की सुबह के तुरंत बाद ऑपरेशन होने वाला था, लेकिन उसके पास ऑपरेशन के लिए आवश्यक पैसे नहीं थे, जिससे वह काफी परेशान थी..!

भले ही वह जानता था कि जीतने की संभावना कम है, केवल 0.33 प्रतिशत संभावना, उसने नोट पर सफाई वाली महिला का नाम लिखा..!

उत्साहपूर्ण क्षण आया। बॉस ने लॉटरी बॉक्स को हिलाते हुए उस में से एक पर्ची निकाला..! वह आदमी भी अपने दिल में प्रार्थना करता रहा: इस उम्मीद से कि सफाई वाली महिला पुरस्कार जीत सकती है..! तब बॉस ने ध्यान से विजेता के नाम की घोषणा की, और लो - चमत्कार हुआ!

विजेता सफाई वाली महिला निकली..! कार्यालय में खुशी की लहर दौड़ गई और वह महिला पुरस्कार लेने के लिए तेजी से मंच पर पहुंची..! वह फूट-फूट कर रोने लगी और कहा, "मैं बहुत भाग्यशाली और धन्य हूँ! इस पैसे से, मेरे बेटे को अब आशा है!"

इस "चमत्कार" के बारे में सोचते हुए, वह आदमी लॉटरी बॉक्स की ओर बढ़ा..! उसने कागज का एक टुकड़ा निकाला और यूँ ही उसे खोला..!

उस पर भी सफाई वाली महिला का नाम था..! वह आदमी बहुत हैरान हुआ..! उसने एक के बाद एक कागज के कई टुकड़े निकाले..!

हालाँकि उन पर लिखावट अलग-अलग थी, नाम सभी एक ही थे..! वे सभी सफाई वाली महिला के नाम थे..! आदमी की आँखों में आँसू भर आए और वह स्पष्ट रूप से समझ गया कि यह क्या चमत्कार है, लेकिन चमत्कारी  आसमान से नहीं गिरते, लोगों को इसे खुद बनाना पड़ता है...!

कहानी क्रमांक दो 

एक दिन दोपहर को एक दोस्त के साथ सबजी बाज़ार टहलने गया..! अचानक, फटे कपड़ों में एक बूढ़ा आदमी हाथ में हरी सब्जियों का थैलियां लेकर हमारे पास आया..! उस दिन सब्जियों की बिक्री बहुत कम थी,पत्ते निर्जलित और पीले रंग के लग रहे थे और उनमें छेद हो गए थे जैसे कि कीड़ों ने काट लिया हो..! लेकिन मेरे दोस्त ने बिना कुछ कहे तीन थैली खरीद लिए..! बूढ़े ने भी लज्जित होकर समझाया: "मैंने ये सब्जियां खुद उगाईं..! कुछ समय पहले बारिश हुई थी, और सब्जियां भीग गई थीं..! वे बदसूरत दिखती हैं..! मुझे खेद है.."

बूढ़े आदमी के जाने के बाद,मैंने अपने दोस्त से पूछा: "क्या तुम सच में घर जाकर इन्हें पकाओगे..?"

वह मुझे ना कहना नहीं चाहता था.."ये सब्जियां अब नहीं खाई जा सकतीं"

"तो फिर इसे खरीदने की परेशानी क्यों उठाई?" मैंने पूछा..

उन्होंने उत्तर दिया, "क्योंकि उन सब्जियों को खरीदना किसी के लिए भी असंभव है..! अगर मैं इसे नहीं खरीदता,तो शायद बूढ़े के पास आज के लिए कोई आय नहीं होगी"

मैंने अपने मित्र की विचारशीलता और चिंता की मन ही मन प्रशंसा की..! आगे चलकर मैंने भी बूढ़े व्यक्ति को पकड़ लिया और उससे कुछ सब्जियां खरीदीं..!

बुढ़े ने बहुत खुशी से कहा, "मैंने इसे पूरे दिन बेचने की कोशिश की, लेकिन कोई भी खरीदने के लिए तैयार नहीं था..! मुझे बहुत खुशी है कि आप दोनों मुझसे खरीदे। बहुत-बहुत धन्यवाद"

मुट्ठी भर हरी सब्जियां जो मैं बिल्कुल भी नहीं खा सकता, ने मुझे एक मूल्यवान सबक सिखाया..!

जब हम निचले स्तर पर होते हैं, तो हम सभी आशा करते हैं कि हमारे साथ चमत्कार होंगे, लेकिन जब हम सक्षम होते हैं, तो क्या हम चमत्कार करने वाले बनने को तैयार होते हैं...?

इन दो कहानियों को पढ़ने के बाद आपके पास दो विकल्प हैं:-👇

1) आप इस सकारात्मक संदेश का प्रचार कर सकते हैं,और दुनिया में अधिक प्यार फैला सकते हैं..!

2) आप इसे पूरी तरह से अनदेखा भी कर सकते हैं जैसे कि आपने इसे कभी नहीं देखा.