मंगलवार, 27 दिसंबर 2022

गोल्लर कस हुकरत हे फेर कोरोना


शेर खून पीता है, खून ही उसका आहार है, मांस, हड्डी को छोड़ देता है क्योंकि उसे खून पसंद है। वह इसी तलाश में रहता है कहीं कोई जानवर मिल जाए। कोरेाना ऐसा ही एक हिंसक जानवर की तरह ही है। वह रोग ही नहीं महारौग है, राक्षस है। एक बार विश्व में तबाही मचाया, भारत भी इसकी चपेट में आया। हमारा देश उबर तो गया किसी तरह इस रोग से, लेकिन जिसे एक बार खून की लत लग जाती है वह अपने शिकार के लिए फिर निकल पड़ता है। चीन को अभी अपना ग्रास बना रहा है, धीरे-धीरे भारत में दस्तक देने की तैयारी कर रहा है। इस संदर्भ में पेश है यह छत्तीसगढ़ी आलेख... ।

सब छेहेल्ला मारत हें, गोल्लर असन हुकरत हें, एक दूसर ऊपर चढ़े लेवत हे। काला का कहिबे, कोन ला का कहिबे। सब मतंग होगे हे। अतेक जल्दी भुलागे सब कोरोना के कहर ला। दुख के दिन अतेक जल्दी नइ बिसराय जाय, फेर आज देखब मं एकर उल्टा होवत हे। 

कोनो नइ उबार सके रिहिन हे कोरोना के कहर ले सरकार के छोड़े। मौका रहिते हमर भारत सरकार अतेक सजगता दिखाइस ते कोरोना ला पूछी टांग के भागे ले परिस फेर अपन चिनहारी वइसने छोड़ के चल दे हे जइसे अंग्रेज मन छोड़ के गे हें। जइसे अंगरेजी ल ये देश के मन पोटार के धरे बइठे हें वइसने कोरोना घला अभी निरमामुल भागे नइहे। जहां-तहां अपन रूप ला देखावत हे। सरकार सावचेत होगे हे, स्वास्थ्य कर्मी मन के कान घला खड़ा होगे हे। फेर भला होवय ये देश के जनता मन ला, कब ओमन चेतही, समझही तेला उही मन जानय। 

परोसी के घर मं आगी लग गे हे,  लेसावत हे घर-दुआर, मनखे अउ पूंजी पसरा। ये तो जाने बात हे के जब परोसी के घर मं आगी लगे हे तब ओकर लपट जउन उठत हे तउन तो तीरतार के घर मन ला अपने लपेट मं लेबे करही। चीन मं कोरोना अपन उग्र रूप देखावत हे। जइसन खबर सबो कोती ले छन-छन के आवत हे तेकर मुताबिक चीन अउ दुनिया भर के देश म ओमिक्रान वेरिएंट के नया स्ट्रेन बीएफ-7 सबो जघा कहर बरसावत हे। अउ भारत समेत छत्तीसगढ़ मं घला पहुंचगे हे। रायपुर मं जउन मरीज मिले हे तेकर जीनोम सिक्वेसिंग के सेम्पल जांचे बर भुनेश्वर (उड़ीसा) भेज देगे हे। 

याने के दुश्मन फेर घूम-फिर के छत्तीसगढ़ आगे हे अउ अपन रुदबा देखावत हे, अउ इहां के जनता ल देख कतेक अंधरा बने बइठे हे। पूरा देश के अर्थव्यवस्था ला जउन राक्षस चउपट करे रिहिसे, लाश के ढेर बिछा दे रिहिसे ओहर फेर ताल ठोंकत आवत हे अउ हमर देश के जनता मगन हे गीता, भागवत, रामायन मं, नाचत-मटकत हे, राधे-राधे, राम-राम, कृष्ण-कृष्ण के संकीर्तन करत हे। राजनेता मन सत्ता के दउड़ मं, कुरसी हथियाय खातिर उठापटक मं लगे हे, उद्योगपति, व्यापारी निनानबे के चक्कर मं हें, किसान, मजदूर, अधिकारी, करमचारी अपन-अपन गुना-भाग मं लगे हे। सब ओ दुख ला अतेक जल्दी भुलागे कोरोना के जउन सबके रांड़ बेच दे रिहिस, करलई अउ रोवई-गवई के सिवा कांही नइ छोड़े रिहिसे। काकर बेटा, बेटी, दाई-ददा, भाई-भउजी, काकी-कका, फूफा-फूफी सब ला हलाकन करके गे रिहिसे। अतेक जल्दी सब कइसे भुलागे। 

कोनो कथावचक, मंदिर, मसजिद, गिरिजा, गुरुद्वारे के साधु-संत, मठाधीश, शंकराचार्य तब आगू नइ आय रिहिन हे। सब मुंह लुका के खुसरगे रिहिन हे अपन-अपन ठीहा मं। कहां गे रिहिसे ओकर मन के ज्ञान-विज्ञान, योग-तपस्या के बल? ऐ सब ढोंगी पाखंडी हे, एकर मन के सत होतिन ते आतिन आगू मं, करतिन कोरोना ले मुकाबला। हजारों, लाखों चेला-चपाटी बनाय बइठे हें, पइसा बटोरे बर। कोरोना ह न एकर मन के यज्ञ, तप ला घेपिस अउ न ज्ञान-धियान ला। सब ला अपन आंधी मं गहूं कस कीरा रमंज के स्वाहा-स्वाहा कर डरिस। 

सब अंधरा होगे हे, अंधरौटी छा गे हे, बइरी आगू मं आवत हे दल-बल के साथ भयानक राक्षस के रूप धरके फेर चेते नइ चढ़त हे। नइते बरसात के पहिली जइसे आंधी-तूफान आथे तब किसान जान जथे के बरसात के मौसम अवइया हे, अपन खेती-किसानी के तइयारी मं जुट जथे। बइद मन माथा अउ चेहरा देखके, नाड़ी टमर के रोग के लक्षण जान जथे फेर हमर देश के नेता, पुरोहित, पंडित, उद्योगपति, व्यापारी पता नहीं कोन से नींद मं सुते हें के परोसी के घर मं आग लग गेहे तभो ले ओकर आंच ओकर मन करा नइ पहुंचे हे। कुंभकरनी नींद में सुते हे। समय रहिते नइ जागही, सावचेत होही तब तो भगवाने मालिक हे ओकर मन के। भोरहा मं रइहौ, आगी तो परोसी के घर मं लगे हे, हमला का फिकर हे सोचिह तब तो लेना के देना पर जही। एक झकोरा आवत देरी हे, फेर सर्वनाश होय मं देरी नइहे।

परमानंद वर्मा