मंगलवार, 18 मार्च 2014

होली के पॉजिटिव इफेक्ट्स

''खा के गुजिया, पीके भंग/ लगा के थोड़ा सा रंग/ बजा के ढोलक और मृदंग/ खेलें होली हम सब संग.''
फागुन महीने के आते ही कानों में 'होली हैऽऽ' की गूंज, मृदंग की आहट और ढोलकों की धाप सुनाई देने लगती है. सभी होली पूर्णिमा का बेसब्री से इंतजार करने लगते हैं. होली चांदनी के शुभ्र वातावरण में रंगों से श्रृंगार करती है.
होली एक स्वास्थ्यवर्धक त्यौहार है, इससे हमारे तन-मन पर सकारात्मक प्रभाव पड.ता है. हमारे पूर्वजों ने रंग, संगीत और नृत्य के सामंजस्य के साथ इस त्यौहार को स्वास्थ्यवर्धक बनाया. फरवरी-मार्च (पूस और माघ) के महीने में मनुष्य आलसी और ऊर्जाविहीन महसूस करता है. यह समय ठंड और गर्मी के समन्वय का है. ठंड धीरे-धीरे जाने लगती है और गर्मी के मौसम का आगमन होता है. इस समय उत्साह और ऊर्जा को पुन: संगठित करने के लिए जोरदार संगीत व नृत्य की आवश्यकता होती है. फागुन में फगवा लोकनृत्य किया जाता है. इसमें लय, गति, भाव-भंगिमा, मुद्राओं तथा विभिन्न रंगों का विशेष ध्यान रखा जाता है. सभी स्त्री-पुरुष विशेष रंगों के परिधान पहनते हैं.
एक्युप्रेशर : यह नृत्य नंगे पैरों से किया जाता है. इसे करते समय ढोल की थाप पर पैरों को थिरकाया जाता है. इससे तलवे में एक्युप्रेशर के कारण हममें एक ऊर्जा का संचार होता है, भाव-भंगिमाओं के कारण मानसिक तनाव कम होता है तथा वात्सल्य, प्रेम व शांति की अनुभूति होती है.
इस समय तेज संगीत, ढोल, मृदंग के कारण तरंगें पैदा होती हैं. उनका सीधा असर हमारी ग्रंथियों पर होता है. उससे अति सूक्ष्म रासायनिक स्राव से शरीर में ऊर्जा और उत्साह का संचार होने लगता है. नृत्य करते समय पैरों की थिरकन, भाव-भंगिमाओं से कई अतिसूक्ष्म रासायनिक द्रव्यों के स्राव होते हैं जिससे हमारे रक्त प्रवाह, श्‍वसन प्रक्रिया, मांसपेशियों, मस्तिष्क में सकारात्मक असर होता है और हम शारीरिक-मानसिक रूप से तनाव रहित महसूस करते हैं.
विशेष संगीत लहरी का उत्पन्न करने के लिए होली नृत्य में ढोल, जाज, चिमटा, करताल, थाली व घुंघरू का प्रयोग किया जाता है. ऊंचे स्वरों में चौपाई व चंबुला गाई जाती है. रंग अबीर, गुलाल व ताकत के साथ रंगों की बौछार आपस में की जाती है.
होली में शेखावती में चेंग नृत्य किया जाता है. इसमें 10-15 व्यक्ति एक गोला बनाकर जोर-जोर से चांग वाद्य, ढोलक बजाकर उच्च स्वरों में गा-गाकर नाचते हैं. फतेहपुर-सीकर में भी यह लोकनृत्य किया जाता है.
होली में नृत्य व संगीत का इतना महत्व है कि यह लोक नृत्य, लोक संगीत के रूप में समाज में किया जाता है, जिससे एक सकारात्मक ऊर्जा का बहाव हमारे बीच में हो और ज्यादा से ज्यादा व्यक्तियों को इसका लाभ मिले. इस नृत्य में ज्यादा अनुभव व सहयोग की जरूरत नहीं रहती है. यह समय फसलों के पकने का भी है जिससे सभी किसान अपने हर्ष और उल्लास का भी प्रदर्शन करते हैं.
प्रकृति में भी इस समय टेसू (पलाश) व अरंडी के वृक्षों की अधिकता होती है. जंगलों में पलाश के नारंगी व लाल फूलों की अलग ही छटा बिखर जाती है. इन फूलों की लालिमा को देखकर ऐसा प्रतीत होत है मानो जंगल में आग लगी हो. इन फूलों की सुगंध व वातावरण में इनका छिड.काव मक्खी-मच्छरों, विषाणुओं को भगाने में सक्षम होता है.

मंगलवार, 11 मार्च 2014

इटली में वरुण देव का मंदिर

यह है इटली के प्राचीन शहर पेस्तम स्थित टेंपल ऑफ नेप्च्यून(वरुण देवता का मंदिर). 450 वर्ष ईसा पूर्व निर्मित इस मंदिर में छत और दीवारें नहीं हैं. इस मंदिर की विशेषता यह है कि इसकी चौड़ाई इसकी लंबाई से ठीक आधी है और इसकी ऊंचाई इसकी चौड़ाई से ठीक आधी है. इस मंदिर में एक भीतरी कमरा भी है जहां शायद कभी वरुण देव की कोई प्रतिमा रही होगी.

शनिवार, 8 मार्च 2014

शंख बजाओ, सुख.शांति पाओ



हिन्दू धर्म में शंख को बहुत ही पवित्र और शुभ फलदायी माना गया है। इसलिए पूजा-पाठ में शंख बजाने का नियम है। अगर धार्मिक बातों को दरकिनार भी कर दें तो भी शंख बजाने के ऐसे फायदे हैं जिसे जान लेंगे तो हर दिन सुबह शाम शंख बजाए बिना नहीं सो पाएंगे। जो दंपत्ति संतान सुख की चाहत रखते हैं। लेकिन किसी कारण से संतान सुख में बाधा आ रही है उन्हें नियमित दक्षिणवर्ती शंख में दूध भरकर शालिग्राम को स्नान करना चाहिए। पत्नी को प्रसाद स्वरुप यह दूध पिलाएं। माना जाता है कि इससे संतान प्राप्ति में आने वाली समस्या दूर होती है। व्यक्ति को संतान सुख प्राप्त होता है। अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चो बोलने में तेज हो। वाणी संबंधी किसी भी तरह की परेशानी आपके बच्चे को नहीं हो तब गर्भावस्था के दौरान स्त्री को शंख में पानी भरकर पिलाएं। जो बच्चे हकलाकर बोलते हैं या तोतला बोलते हैं। उनकी वाणी संबंधी परेशानी दूर करने के लिए भी बच्चे को शंख में पानी भरकर पिलाना फायदेमंद होता है।
शंख बजाने से स्वास्थ्य पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। खासतौर पर यह फेफड़ों से संबंधित रोग के लिए बहुत ही असरदार माना गया है। आयुर्वेद के अनुसार शंख बजाने से दमा, कास प्लीहा, यकृत और इंफ्लूएंजा नामक रोग दूर रहता है। इससे किडनी एवं जननांगों पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ता है। शास्त्रों में कहा गया है कि शंखघोष से निकलने वाला ओम का नाद मानसिक रोगों को दूर करता है। इससे कुंडलिनी जागरण की शक्ति भी विकसित होती है। माना जाता है कि शंखनाद से शरीर एवं आस-पास के वातावरण शुद्घ होता है और सतोगुण की वृद्घि होती है। इससे कई प्रसुप्त तंत्र जागृत होता है जो मनुष्य के विकास में सहायक होता है।
शंख बजाना शुभ माना जाता है लेकिन कुछ समय ऐसे हैं जब शंख नहीं बजाना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार रात में संध्या आरती के बाद शंख नहीं बजाना चाहिए। इससे लक्ष्मी नाराज होती है और आर्थिक नुकसान होता है। जबकि चिकित्सा की दृष्टि से कहा गया है कि महिलाओं को गर्भावस्था के दौरन शंख नहीं बजाना चाहिए। इससे गर्भ पर दबाव पड़ता है। जैसी चाहत हो उस अनुसार सही शंख चुनें
शंख के बारे में अगर आप यह सोचते हैं कि यह सिर्फ भगवान की पूजा के काम आता है तो इस धारणा को मन से निकाल दीजिए। शंख में ऐसी चमत्मकारी शक्तियां मौजूद होती हैं जो आपकी हर चाहत को पूरी कर सकता है। लेकिन शर्त यह है कि आप चाहते क्या हैं और क्या आपने सही शंख का चुनाव किया है।
यानी आपकी जैसी चाहत हो उस अनुसार सही शंख चुनें। शास्त्रों में बताया गया है कि हर शंख की अपनी खूबी होती है। इसके अनुसार इनके नाम भी अलग-अलग हैं।
 आइए कुछ ऐसे ही चमत्कारी शंख की बात करते हैं। मान्यता है कि देवी लक्ष्मी के हाथों मे शोभा पाने वाला शंख दक्षिणावर्ती है इसलिए इसे देवी लक्ष्मी का शंख भी कहा जाता है। इस शंख का मुंह दाहिने ओर होता है। आम तौर जो शंख मिलते हैं उनका मुंह बाईं ओर होता है। इस शंख को कष्टनिवारक शंख कहा गया है। घर में सुख शांति और समृद्धि के लिए इस शंख को देवी लक्ष्मी की तस्वीर या मूर्ति के सामने लाल वस्त्र पर रखकर इसकी पूजा करनी चाहिए। इससे घर में लक्ष्मी का वास होता है, दिनानुदिन उन्नति होती है। प्यार में आ रही हो परेशानी या जीवनसाथी से अनबन रहती है तो आपके लिए हीरा शंख फायदेमंद हो सकता है। माना जाता है इस शंख से शुक्र ग्रह से संबंधित दोष दूर होता है और प्रेम में आने वाली सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती है। अभिमंत्रित करके इस शंख को शयन कक्ष में रखने से शुक्र ग्रह अनुकूल रहता है। दांपत्य जीवन में प्रेम बढ़ता है और भौतिक सुख-समृद्घि में इजाफा होता है। गरीबी दूर करने वाला विष्णु शंख
इस शंख की आकृति अर्धचन्द्राकार होने के कारण इसे चंद्र शंख भी कहते हैं। जिसके पास यह शंख होता है वह कभी गरीब नहीं होता है। ऐसे व्यक्ति की सुख समृद्धि बढ़ती जाती है। जिस व्यक्ति को हृदय रोग या सांस संबंधी परेशानी की संभावना हो उन्हें अपने घर में मोती शंख रखना चाहिए। माना जाता है कि इस शंख में गंगाजल भरकर पीने से हृदय स्वस्थ रहता है। सांस संबंधी परेशानियों से बचाव होता है।  प्रकृति में एक ऐसा शंख मिलता है जिसकी आकृति गणेश जी के समान होती है। इसे गणेश शंख कहा जाता है। माना जाता है कि यह शंख विद्या प्राप्ति में सहायक होता है। यह सौभाग्य एवं पारिवारि उन्नति के लिए भी उत्तम माना गया है। व्यापारियों को अपने व्यापार स्थल में अथवा पूजा स्थल में इस शंख को विधिवत स्थापित करना चाहिए। इससे आर्थिक लाभ बढ़ता है। कारोबार में उन्नति होती है।