शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2015

एक दिन बस्तर के नाम

बस्तर की हल्बी लोक भाषा की दो पुस्तकों का लोकार्पण, फिर हल्बी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति पर केन्द्रित संगोष्ठी ने "हल्बी-हल्बी" की धूम मचा दी। 
पहली पुस्तक है, बस्तर की वाचिक परम्परा की अमूल्य धरोहर "लछमी जगार" का एक भिन्न रूप, जिसका (26,261 गीत पंक्तियों का) गायन बस्तर जिले के खोरखोसा गाँव की गुरुमायँ केलमनी और जयमनी द्वारा प्रस्तुत किया गया है। इसके हिन्दी गद्यानुवाद (हरिहर वैष्णव) तथा दूसरी पुस्तक हल्बी के अन्यतम कवि सोनसिंह पुजारी जी की हल्बीकविताओं के संग्रह "अन्धकार का देश" (अनुवाद : हरिहर वैष्णव) का प्रकाशन-लोकार्पण आज 30 अक्टूबर 2015 को बस्तर विश्वविद्यालय, धरमपुरा, जगदलपुर, बस्तर-छ.ग. में "साहित्य अकादेमी" नयी दिल्ली के सचिव श्री के. श्रीनिवासराव, "साहित्य अकादेमी" के अन्तर्गत गठित "जनजातीय एवं वाचिक साहित्य केन्द्र" नयी दिल्ली की निदेशक प्रख्यात भाषा वैज्ञानिक पद्मश्री प्रो. अन्विता अब्बी, बस्तर विश्वविश्वद्यालय के कुलपति श्री एन.डी.आर.चन्द्र, हल्बी के सुप्रसिद्ध कवि एवं बस्तर के तुलसीदास नाम से ख्यात श्री रामसिंह ठाकुर तथा नगर के प्रबुद्ध नागरिकों, साहित्यकारों, कलाकारों, बुद्धिजीवियों, पत्रकारों एवं छात्र-छात्राओं की गरिमामयी उपस्थिति में सम्पन्न हुआ। 
इस अवसर पर निम्न वक्ताओं द्वारा अपने आलेख पठन किये गये :
 
यशवंत गौतम/ हल्बी का लिखित साहित्य : दशा एवं दिशा
विक्रम सोनी/ हल्बी का भाषा वैज्ञानिक पक्ष एवं लिपि
शिवकुमार पाण्डेय/हल्बी और छत्तीसगढ़ी में अंतर्संबंध
बलदेव पात्र/हल्बी और हल्बा संस्कृति
खेम वैष्णव/हल्बी परिवेश में लोक चित्र-परम्परा
सुभाष पाण्डेय/हल्बी रंगमंच : कल, आज और कल
बलबीर सिंह कच्छ/हल्बी लोक संगीत की दशा एवं दिशा
नारायण सिंह बघेल/हल्बी परिवेश के लोक नृत्य
रुद्रनारायण पाणिग्रही/हल्बी परिवेश के त्यौहार एवं उत्सव
रूपेन्द्र कवि/मानव विज्ञान की दृष्टि में हल्बा जनजाति
इसके साथ ही, एम. ए. रहीम एवं शोभाराम नाग द्वारा हल्बी कहानियों का पाठ किया गया। 
अब कल का दिन पद्य को समर्पित होगा, जिसमें हल्बी काव्य-पाठ, लछमी जगार का गायन, गीति कथा का गायन, खेल गीत का गायन और लोक नृत्य का प्रदर्शन सम्मिलित होंगे। 
इस अत्यंत महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम का सम्पन्न होना कतई संभव नहीं था यदि प्रो. अन्विता अब्बी जी का अथक प्रयास न होता और साहित्य अकादेमी का भरपूर सहयोग और बस्तर विश्वविद्यालय के कुलपति के साथ-साथ उनके सहयोगियों का भी। इस आयोजन की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है एक युवा शोध छात्र। लखनऊ विश्वविद्यालय के अजय कुमार सिंह। अजय ही वे व्यक्ति हैं जिन्होंने बस्तर की लोक भाषाओं, विशेषत: हल्बी के विषय में प्रो. अब्बी जी को जानकारी दी और फिर उसके बाद अब्बी जी सक्रिय हो गयीं। और इस तरह यह कार्यक्रम अपने अंजाम तक पहुँच सका। इसके लिये हम बस्तरवासी चिरंजीव अजय, प्रो. अब्बी जी, साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव, अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी और बस्तर विश्वविद्यालय के कुलपति एन.डी.आर.चन्द्र के आभारी हैं।

शनिवार, 17 अक्तूबर 2015

अनोखा कांटेक्ट लैंस

टेक-चैट : कांटेक्ट लेंस जो किसी भी दृश्य को 'जूम इन' और 'जूम आउट' कर सकता है

आविष्कार : एक कांटेक्ट लेंस जो किसी भी दृश्य को बड़ा या छोटा कर सकता है
कैसा लगेगा जब कोई कहे कि आंख में लगा एक कान्टेक्ट लेंस ही अब दूरबीन का काम करने लगा है? अविश्वसनीय? लेकिन अब यह सच होने जा रहा है. अमेरिका के कुछ शोधकर्ताओं ने एक ऐसा कांटेक्ट लेंस बना लिया है जिससे ‘ज़ूम इन’ और ‘ज़ूम आउट’ यानी किसी दृश्य को बड़ा या छोटा किया जा सकता है. इसे बनाने वालों का दावा है कि यह लेंस किसी भी दृश्य को तीन गुना तक ज़ूम कर सकता है और यह दूर और पास दोनों तरह की कमजोर नजर से पीड़ित लोगों के लिए एक वरदान साबित होगा. कई परीक्षणों के बाद इसे कैलिफोर्निया के अमेरिकन एसोसिएशन फॉर एडवांसमेंट ऑफ़ साइंस के सामने रखा गया है.
टेक-चैटइस लेंस को आंखों में लगाने के बाद यदि केवल दाईं पलक झपकाई जाए तो सामने का दृश्य कई गुना बड़ा होकर दिखने लगता है. इसी तरह बाईं पलक झपकाने पर यह छोटा हो जाता है और सामने का दृश्य फिर से सामान्य दिखने लगता है. दरअसल इस लेंस की डेढ़ मिलीमीटर मोटाई में ही एलुमिनियम की एक शीशेनुमा परत भी है. यही इस लेंस को ‘ज़ूम इन’ और ‘ज़ूम आउट’ करने में मदद करती है. ‘आंख मारने’ के अंदाज़ में एक पलक झपकाने पर लेंस में लगी इस परत को एक निर्देश चला जाता है. इससे यह परत और इसके जरिये पूरा लेंस कुछ इस तरह से व्यवस्थित हो जाते है कि दृश्य बड़ा या छोटा होकर दिखने लगता है.
इस लेंस को आंखों में लगाने के बाद यदि केवल दाईं पलक झपकाई जाए तो सामने का दृश्य कई गुना बड़ा होकर दिखने लगता है. इसी तरह बाईं पलक झपकाने पर यह छोटा हो जाता है
इस लेंस को सबसे पहले अमेरिका के रक्षा विभाग की रिसर्च टीम ने अपने ड्रोन कैमरों के लिए बनाया था. लेकिन बाद में उन्हें इस लेंस से मैकुलर डीजनरेशन नामक आंखों की बीमारी के इलाज की तरकीब सूझी. इस बीमारी में आंखों के रोशनी ग्रहण करने की क्षमता कमजोर हो जाती है और पीड़ितों को धुंधला दिखायी देने लगता है. अक्सर यह बीमारी बुजुर्गों में ही पायी जाती है.
इस लेंस को बनाने वाले ऑप्टिकल इंजीनियर एरिक ट्रेम्बले के अनुसार अभी यह लेंस थोडा भारी है. लेकिन उन्हें उम्मीद है कि जल्द ही वे इसे और हल्का बना देंगे और फिर यह बाज़ार में आ जाएगा.

शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2015

टेक-चैट : वाई-फाई कूड़ेदान

अजब-गजब : कूड़ेदान जो आपको पूरी दुनिया से जोड़ने की क्षमता रखता है
स्वच्छ भारत अभियान से इतर दो भारतीय युवाओं ने गंदगी से निजात दिलाने की एक अनूठी तरकीब खोज निकाली है. इस तरकीब से एक ओर सफाई होती है तो दूसरी ओर लोगों को मुफ्त वाई-फाई का लाभ भी मिलता है. मुम्बई में रहने वाले पंकज अग्रवाल और राज देसाई ने मिलकर एक ऐसा कूड़ेदान बनाया है जो स्वयं ही लोगों को कूड़ेदान के इस्तेमाल के लिए प्रेरित करता है. दरअसल, इस कूड़ेदान को इस तरह से बनाया गया है कि जब भी कोई व्यक्ति इसमें कूड़ा डालता है तो इसके ऊपर लगी स्क्रीन पर एक कोड लिखा आता है. यह कोड ही उस इलाके में लगे वाई-फाई का पासवर्ड होता है जिसे मोबाइल या लैपटॉप में डालते ही मुफ्त वाई-फाई की सुविधा का लाभ मिलना शुरू हो जाता है.
टेक-चैटपंकज और राज दोनों स्वप्रशिक्षित प्रोग्रामर हैं. पंकज अग्रवाल बताते हैं कि नीदरलैंड और सिंगापुर की सामाजिक संरचना देखकर उन्हें लगा कि भारत में सफाई को लेकर लोगों की सोच को बदलने कि जरूरत है. उनके साथी राज देसाई के अनुसार वाई-फाई वाले कूड़ेदान का विचार उन्हें कुछ बड़े म्यूजिक फेस्ट में जाने के बाद आया. वे बताते हैं कि रात भर चलने वाले ये कार्यक्रम अक्सर शहरों से दूर होते हैं. यहां मोबाइल नेटवर्क और इन्टरनेट सुविधाएं न होने के कारण लोगों को काफी तकलीफ होती है. ऐसी जगहों पर खाने-पीने के बाद होने वाली गंदगी भी एक बड़ी समस्या होती है. ऐसे में इन दो युवाओं ने एक ऐसा प्रयोग करने की ठानी जो गंदगी मिटाने के साथ ही संपर्क साधनों की कमी भी पूरी कर सके. इसके बाद ही इन्होने वाई-फाई ट्रैश बिन इजाद किया.
दिल्ली, मुम्बई और कोलकाता के कई कार्यक्रमों में इन कूड़ेदानों का सफल उपयोग हो चुका है. इन कार्यक्रमों में यह भी देखा गया है कि लोग वाई-फाई के लिए अपना कचरा न होने पर किसी दूसरे के द्वारा की गई गंदगी को भी ढूंढ़-ढूंढ़कर कूड़ेदान में डाल रहे थे. शुरुआत में अपने पैसों से ही काम करने वाले इन युवाओं को अब मोबाइल नेटवर्क कंपनी एमटीएस की भी मदद मिल रही है. पंकज बताते है कि उनकी पहल अब सभी को सफाई के लिए प्रेरित कर रही है और साथ ही तकनीक से जुडी कई कंपनियां भी उनकी इस मुहीम में दिलचस्पी दिखा रही हैं.

कार के बिना एक दिन

बिना कारों के एक दिन हमारा ध्यान शहरी स्वास्थ्य और पर्यावरण की ओर खींचता है। पेरिस में पिछले किसी रविवार के दिन शहर को कारों से निजात मिली। इसके लिए अधिकारियों ने सिटी सेंटर के लगभग 25 प्रतिशत भाग को वाहनों के लिए बंद कर दिया और उसके आसपास के क्षेत्र में भी वाहनों की गति सीमा को 20 किलोमीटर कर दिया। कारों के बिना यह दिन पेरिस में 30 नवंबर से शुरू होने वाले राष्ट्र संघ जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (क्ग्र्घ्21) की मेज़बानी की तैयारी के रूप में किया गया था। विदेश मंत्रालय और सम्मेलन के अध्यक्ष लॉरेंट फेबियस के अनुसार इस सम्मेलन के आयोजन का उद्देश्य यह है कि “वैश्विक स्तर पर सहमति बने कि हमारे ग्रह का पर्यावरण हम सब के लिए स्वस्थ बना रहे।” इस क्ग्र्घ्21 सम्मेलन का प्राथमिक फोकस तो वैश्विक जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करना है, मगर कार्बन उत्सर्जन को कम करने से जो अन्य स्वास्थ्य सम्बंधी लाभ तत्काल मिल सकते हैं उनकी तरफ ध्यान दिलाना भी इस सम्मेलन के उद्देश्यों में है। लैन्सेट आयोग द्वारा हाल ही में जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार यदि बिजली और यातायात के क्षेत्र में कार्बन का उपयोग कम किया जाए तो हवा को साफ रखने में मदद मिलेगी जिससे सामुदायिक स्वास्थ बेहतर होगा। ऊर्जा उपयोग की कई तकनीकें, जैसे डीज़ल और पेट्रोल कारें, कोल पावर प्लांट और खाना पकाने में बायोमास (जैसे, लकड़ी और चारकोल) का उपयोग हवा में तरह-तरह के प्रदूषक पदार्थ छोड़ते हैं। इस तरह के प्रदूषण से हृदय, फेफड़ों और श्वसन से सम्बधित बीमारियां बढ़ जाती हैं। यदि हम साफ ऊर्जा तकनीकों की ओर बढ़ते हैं तो हम अपने आप स्वास्थ पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों को कम कर सकते हैं और अरबों डॉलर बचा सकते हैं। दूसरे शहरों की तरह ही पेरिस भी उच्च स्तर के वायु प्रदूषण का सामना कर रहा है। 2014 में स्थानीय प्रदूषण का स्तर बहुत अधिक था जिसके चलते वहां की सरकार ने सार्वजनिक परिवहन की फीस को अस्थाई रूप से हटा दिया था और सड़कों पर कारों को आंशिक रूप से प्रतिबंधित कर दिया था। इस कदम की वजह से वहां ट्रॉफिक 18 प्रतिशत कम हुआ और वायु प्रदूषण के स्तर में 6-30 प्रतिशत तक गिरावट दर्ज की गई। (स्रोत फीचर्स)