सोमवार, 25 अप्रैल 2016

जब पौधे ने डंक मारा

डॉ. रवि उपाध्याय
आप यह सुन कर आश्चर्य चकित हो जाएंगे कि पौधा भी डंक मार सकता है। बिच्छू या कीड़े के डंक के बारे  तो सुना था मगर पौधे का डंक तो गप सी प्रतीत होती है। पर यह सच है। मैं अपना स्वयं का अनुभव बता रहा हूं। एक बार नर्मदा के किनारे टहलते हुए अचानक मेरी दृष्टि एक सुन्दर-सी बेल पर पड़ी। वनस्पति विज्ञान का शिक्षक होने के कारण मन में आया कि तुरंत उसकी एक डाल तोड़कर हर्बेरियम बनाया जाए ताकि उसकी पहचान की जा सके। जैसे ही मैंने हाथ बढ़ाकर उसे पकड़नाचाहा, हथेली में इतनी ज़ोर का डंक लगा जैसे कई सारी मधुमक्खियों ने एक साथ या किसी बिच्छू ने डंक मार दिया हो। एक घंटे तक मैं तेज़ दर्द और जलन से परेशान रहा। हाथ पूरा लाल हो चुका था और कई बार पानी में डुबाने के बाद भी जलन कम होने का नाम नहीं ले रही थी। इससे भी ज़्यादा हैरानी की बात यह थी कि मुझे आसपास कोई कीड़ा, मधुमक्खी या बिच्छू नज़र नहीं आ रहा था। फिर डंक किस कीड़े ने मारा? बचपन में कभी अपने नानाजी से
सुना था कि कोई बिच्छू घास होती है जिसे छूने पर डंक जैसा लगता है। तब सोचा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि डंक पौधे को छूने से ही लगा हो। इसे जानने के लिए हिम्मत करके एक बार फिर उस पौधे को छूकर देखा और फिर वही एहसास हुआ। यह पक्का हो गया कि डंक किसी कीड़े या बिच्छू ने नहीं बल्कि उसी बेल को छूने से लगा है। अब बारी थी और अधिक जानकारी प्राप्त करने की। स्थानीय लोगों से पूछने पर पता चला कि इसे वे डोंगीय के नाम से जानते हैं जो बारिश के बाद झाड़ियों में उग आता है। उसे छूने पर जलन मचती है और पशु उससे दूर रहते हैं। जब इसका वैज्ञानिक अध्ययन किया तो पता चला कि यह बेल यूफोर्बिएसी कुल की है जिसका वानस्पतिक नाम ट्रेगिया इनवॉलुक्रेटा है।
इस प्रकार के कई और डंक मारने वाले पौधे विश्व में पाए जाते हैं। जैसे डेलकाम्पिया, ट्रेगिया वॉलुबिलिस, उर्टिका उरेन्स, जेट्रोफा उरेन्स, स्टर्कुलेरिया उरेन्स, लैपोर्टिया उरेन्स आदि। ये पौधे अर्टिकेसी, बोराजिनेसी, लोआसेसी, यूफोर्बिएसी, स्टर्कुलिएसी कुलों के अंतर्गत आते हैं। लैटिन भाषा में उरेन्स शब्द का अर्थ होता है जलन। प्राय: जिन पौधों से जलन होती है उनकी प्रजाति के नाम उरेन्स रख दिए जाते हैं। इन पौधों के ऊपर नुकीले महीन ग्रंथि युक्त रोम पाए जाते हैं। इन रोमों के आधार ठोस कैल्शियम ऑक्सलेट के बने होते हैं, जिसमें ग्रंथि युक्त कोशिकाएं सुरक्षित रहती हैं। इनका अगला भाग लम्बा, इंजेक्शन की सूई के समान होता है जो छूने अथवा दबाने पर टूट जाता है और इनकी ग्रंथियों में उपस्थित रसायन हमारे शरीर में प्रविष्ट हो जाते हैं। इन्हीं रसायनों के कारण जलन, दर्द और सूजन होती है। इनमें हिस्टामिन, टार्टरिक अम्ल, फॉर्मिक अम्ल और ऑक्सेलिक अम्ल होते हैं। ये रसायन हमारे तंत्रिका तंत्र पर प्रभाव डालते हैं, तथा त्वचा के संपर्क में आने पर सूजन, खुजली और जलन उत्पन्न करते हैं। इसे तकनीकी भाषा में अर्टिकेरिया कहते हैं। जिस स्थान पर ये रसायन त्वचा में प्रवेश करते हैं उसके आसपास की रक्त केशिकाओं से रक्त निकल कर त्वचा के नीचे जमा होने लगता है। इसके कारण सूजन हो जाती है और उस स्थान का तापमान बढ़ जाता है और जलन भी बढ़ जाती है।
सवाल यह उठता है कि ये पौधे डंक क्यों मारते हैं? दरअसल यह इन पौधों की स्वयं की रक्षा का तरीका है। इन पौधों के बीजों में अत्यधिक मात्रा में प्रोटीन और विटामिन होते हैं। इस कारण पशु-पक्षी इन्हें पसंद करते हैं। परन्तु इन पर उपस्थित ग्रंथि युक्त नुकीले रोमों के कारण इनसे दूर ही रहते हैं। मगर यदि पशु-पक्षी इन्हें खाएंगे नहीं तो इनके बीजों का बिखराव कैसे संभव होगा? इन पौधों के बीज बहुत हल्के होते हैं। ये हवा के द्वारा दूर-दूर तक बिखर जाते हैं। इन पर उपस्थित रोम के कारण कीट भी दूर रहते हैं। इसलिए इन पौधों को अपने परागण के लिए भी हवा पर ही निर्भर रहना पड़ता है। इसी लिए इनके फूल हरे अथवा हल्के रंग के होते हैं क्योंकि कीटों को तो आकर्षित करना नहीं है। (स्रोत फीचर्स)

सोमवार, 11 अप्रैल 2016

शुभ कार्यों में आम्र पल्लव का प्रयोग क्यों?

भारत में वृक्षों को काफी महत्ता दी जाती हैधर्म चाहे कोई भी हो लेकिन विभिन्न रिवाज़ों में प्रकृति को एक खूबसूरत रूप देने वाले वृक्षों की अहम भूमिका है। हिन्दू धर्म में भी वृक्षों का काफी सम्मान किया जाता हैउन्हें पूजा जाता है और उन्हें अन्न देवता माना जाता है। साथ ही कई धार्मिक कार्यों में खास वृक्षों के फलों और पत्तियों का इस्तेमाल किया जाता है। यह तो सभी जानते हैं कि हिन्दू मान्यताओं में तुलसी के पौधे को कितना पवित्र माना जाता है। इसे पौधा ना कहकर ‘मां तुलसीकी उपाधि दी जाती है। इसी तरह से पीपल का वृक्ष, बरगद का वृक्ष, इत्यादि खास महत्व रखते हैं। इन सभी के अलावा आम के वृक्ष को भी हिन्दू मान्यताओं के अनुसार खास माना गया है। शायद आपने कभी गौर भी किया हो कि हिन्दू परिवारों में जब कोई शुभ कार्य हो तो सजावट के तौर पर घर के प्रवेश द्वार के ऊपर आम के वृक्ष की पत्तियां (आम्र पल्लव) लगाई जाती हैं। 
लेकिन क्यों लगाते हैं यह पत्तियां? क्या यह महज सजावट के लिए है या इसके पीछे कोई धार्मिक कारण है? भारत में आम के पेड़ काफी लोकप्रिय होते हैं, इनसे मिलने वाले फल भारतीयों के पसंदीदा हैं। भारत में आम को फलों का राजा भी माना गया है लेकिन इस वृक्ष की पत्तियों में ऐसा क्या खास है जो इनका शुभ कार्यों में इस्तेमाल किया जाता है। 

केवल घर के दरवाजे पर ही नहीं, जब पूजा का कलश तैयार किया जाता है तब उसके ऊपर भी आम के वृक्ष की पत्तियों को लगाया जाता है। इतना ही नहीं, हिन्दू रीति अनुसार जब किसी की शादी होती है तब भी शादी के मंडप को आम के वृक्ष की पत्तियों से सजाया जाता है। 
नवजात बच्चे के पालने को भी आम के वृक्ष की पत्तियों से सजाया जाता है, इसके अलावा भी ऐसे कई धार्मिक कर्म-कांड एवं मांगलिक कार्य हैं जहां आम के वृक्ष की पत्तियों का बड़ी मात्रा में इस्तेमाल किया जाता है, जानिए इसका कारण........  
दरअसल हमारी भारतीय संस्कृति में आम के पेड़ की लकड़िय़ों का उपयोग समिधा के रूप में वैदिक काल से ही किया जा रहा है। माना जाता है कि आम की लकड़ी, घी, हवन सामग्री आदि के हवन में उपयोग से वतावरण में सकारात्मकता बढ़ती है। यदि हवन सामग्री में आम के वृक्ष की पत्तियों का इस्तेमाल हो तो आसपास की नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और हवन के धुएं से घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। 
लेकिन हवन के अलावा घर के मुख्यद्वार पर आम की पत्तियां क्यों लगाई जाती हैं? इसके पीछे क्या कारण है? दरअसल यह कारण भी घर में बनी हुई सकारात्मक ऊर्जा से जुड़ा है। 
घर के प्रवेश पर आम की पत्तियां लटकाने से घर में प्रवेश करने वाले हर व्यक्ति के साथ सकारात्मक ऊर्जा घर में आती है। बाहर से आने वाली हवा जब भी इन पत्तियों का स्पर्श कर घर में प्रवेश करती है तो वह खुद में सकारात्मक कणों को लाती है।  ऐसी वायु से घर में सुख व समृद्धि बढ़ती है, और ऐसे घर को कलह कभी भी जकड़ नहीं सकती। इसके अलावा ऐसा भी माना जाता है कि प्रवेश द्वार पर आम की पत्तियां लटकाने से बिना विघ्न सारे मांगलिक कार्य पूरे हो जाते हैं। इसलिए तो कोई भी शुभ कार्य करते समय सबसे पहले घर के दरवाजे पर आम के पत्तों को लटकाया जाता है। 
इन्हीं मान्यताओं के आधार पर सदियों से मांगलिक कार्यों में आम के पेड़ की पत्तियों का इस्तेमाल हुआ है और आज भी यह मान्यता हिन्दू परिवारों में वैसे ही बनी हुई है।

रविवार, 3 अप्रैल 2016

बहुत गहरे राज छिपे हैं मानव के फिंगर प्रिंट में

क्सर हम व्यक्ति के पहनावे, उसकी बोलचाल और उसके पढ़ाई के स्तर से यह अंदाजा लगा लेते हैं कि संबंधित व्यक्ति की पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या हो सकती है। अगर कोई अच्छे कपड़े पहनता है, सभ्य भाषा का प्रयोग करता है और पढ़ाई-लिखाई की डिग्रियां भी रखता है तो हम यह मान लेते हैं कि उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि सामान्य या उससे अधिक है, अन्यथा हम उसे निम्न स्तरीय परिवार से ताल्लुक रखता व्यक्ति समझते हैं।
इसके अलावा व्यक्ति किस समाज या देश से संबंध रखता है ये बात भी उसके कपड़े, खान-पान और चेहरे-मोहरे को देखकर ही पता लगाई जाती है।
खैर ये बहुत सामान्य है और कुछ हद तक सही भी। लेकिन क्या आप जानते हैं व्यक्ति के फिंगर प्रिंट्स भी ये बताते हैं कि उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि कैसी है।
अमरीकन जर्नल ऑफ फिजिकल एंथ्रोपोलोजी में प्रकाशित एक लेख में यह दावा किया गया है कि व्यक्ति की पारिवारिक पृष्ठभूमि को जानने के लिए उसके फिंगरप्रिंट्स ही काफी हैं।
अमरीका में नॉर्थ कैरोलिना यूनिवर्सिटी (अमेरिका) के एंथ्रोपोलोजी विभाग के वरिष्ठ प्राध्यापक और इस शोध के मुख्य शोधकर्ता एन. रॉस के अनुसार यूं तो पिछले काफी समय से अध्ययनकर्ता इस विषय पर शोध करते रहे हैं लेकिन ये विस्तृत जांच वाला अपनी तरह का पहला शोध है और इसके नतीजे भी बहुत दिलचस्प हैं।
इस अध्ययन को संपन्न करने के लिए शोधकर्ताओं ने करीब 243 वंशों के व्यक्तियों को अपने साथ जोड़ा और उनके सीधे हाथ की तर्जनी अंगुली के पहले और दूसरे पोरों का विस्तृत अध्ययन किया। लिंग या पारिवारिक पृष्ठभूमि, अंगुलियों के निशान से किस तरह झलकती है, यह इस अध्ययन का विषय था। 
जांचकर्ताओं को अंगुलियों के निशान से यह तो नहीं दिखा कि अंगुलियों के निशान लिंग भेद की बात स्पष्ट करते हैं लेकिन वंशावलियों के अंतर को साफ देखा गया। अर्थात अमेरिकी, अफ्रीकी और यूरोपीय-अमेरिकी लोगों के अंगुली के प्रिंट्स में अच्छा खासा अंतर नजर आया।
मुख्य शोधकर्ता रॉस का कहना है यह तो शोध की बस एक शुरुआत है, अभी तो इस दिशा में बहुत काम होना बाकी है, जिसमें हो