रविवार, 23 दिसंबर 2012

पंछी ताल नहाने आया

बहुत दिनों से
गायब कोई पंछी
ताल नहाने आया |
चोंच लड़ाकर
गीत सुनाकर
फिर -फिर हमें रिझाने आया |

बरसों से
सूखी टहनी पर
फूल खिले ,लौटी हरियाली ,
ये उदास
सुबहें फिर खनकीं
लगी पहनने झुमके ,बाली ,
शायद मुझसे
ही मिलना था
लेकिन किसी बहाने आया |

धूल फांकती
खुली खिड़कियाँ
नये -नये कैलेण्डर आये ,
देवदास के
पागल मन को
केवल पारो की छवि भाये ,
होठों में
उँगलियाँ फंसाकर
सीटी मौन बजाने आया |

सर्द हुए
रिश्तों में खुशबू  लौटी
फिर गरमाहट आई ,
अलबम खुले
और चित्रों को
दबे पांव की आहट भाई ,
कोई पथराई
आँखों को
फिर से ख़्वाब दिखाने आया |

दुःख तो
बस तेरे हिस्से का
सबको साथी गीत सुनाना ,
कोरे पन्नों
पर लिख देना
प्यार -मोहब्बत का अफ़साना ,
मैं तो रूठ गया था
ख़ुद से
मुझको कौन मनाने आया |


जयकृष्‍णा राय तुषार