बुधवार, 18 जनवरी 2023

ए नंदा जाही का रे नंदा जाही का


'ए उड़ा जाही का रे

उड़ा जाही का रे

उड़ा जाही का

मनकैना चिरइया कलरा करइया

फुदुक-फुदुक फुदकाए

सोन चिरई उड़ा जाही का?

सील-लोङहा, ढेंकी-मुसर, कलम-दवात, अगतरिया-भंदई, धान कोठी, जांता,ये सब नंदागे,बइला-भइसा गाड़ा-गाड़ी नंदागे, घोड़ा नंदागे, गाय-भइस, बछिया-बछवा, पड़वा सब एक-एक कर नंदावत जात हे, नांगर नंदागे, गांव घला नंदावत हे, तीज-तिहार, परब, बोली-भाखा अउ मनखे मन घला नंदावत जात हे। माई कोठी नंदागे, दउरी-बेलन, करमा, ददरिया, सोहर, बिहाव गीत नंदागे, कुंआ-तरिया नंदागे, गुड़ी चंवरा मं गीता-रमायन होवय तउनो नंदागे। जेवर-गहना पांव ले गर, नाक-कान तक पहिने राहय तउनो सब नंदागे। पठोनी, लेठवा जवई घला सब नंदागे। पहिली के अनाज, बीजा मन घलो सब नंदागे। कोलिहा, हुर्रा, मिरगा, चिरई, चुरगुन मन घला एक-एक कर नंदावत जात हे। कतेक ल चेत करबे, कतेक ल हियाव करबे। सब धीरे-धीरे करके नंदावत हे। अब एखर आघू का होही तउन ल विधाता जानही। पाया घर के, संसार के खिसलत जात हे। अइसे झन होवय घर-दुआर भरभरा के गिर जाए, जइसे भूकम्प के आय ले होथे। जोशीमठ मं का होवत हे, देख-सुनके सब थर्रागे हे। 

लगथे समय ह तमाशा देखाय बरोबर दमचगहा सही तइयार बइठे हे। अइसन सब बात के परख कवि, शायर, गीतकार मन ल पहिले ले कइसे हो जथे। तभे तो केहे गे जिहां न जाय रवि तिहां पहुंचे कवि। जनाब मीर अली मीर साहब वइसने हिरदय वाले कवि, शायर, अउ पेशा ले गुरुजी हे। ओला ये सब के परख कइसे पहिली ले होगे ते ऊपर लिखे गीत ओहर रच डरिस- नंदा जाही का रे, नंदा जाही का? ओकर आज ये गीत हर गांव-गांव के गली खोर मं शोर मचावत हे। शहर-शहर के सबके जुबान मं आके समागे हे, जेती देखबे तेती जइसे कभू स्व. लछिमन मस्तुरिहा के गीत 'मोर संग चलव रे, मोर संग चलव गा धूम मचावत रिहिसे हे। मस्तुरिया जी के ओ गीत के कड़ी देखिन- 

'गिरे-परे हपटे मन

परे डरे मनखे मन

मोर संग चलव रे

मोर संग चलव गा।

ये गीत जउन मेर बाजत सुनिही कोनो मनखे होवय, ओकर पांव उही मेर ठिठक जथे, अउ जब तक पूरा नइ सुन लिही, आघू नइ बढय़। 

गीत, संगीत, शायरी, कविता मं ओ शक्ति होथे, ताकत होथे जउन पथरा ल पिघला देथे, पानी कस ओगरा देथे। कतको क्रोधी, तामसी अउ कठोर सुभाव के परानी होही, ओकर हिरदय पिघल जथे, आंखी कोती ले आंसू अइसे झरे ले धर लेथे जइसे कोनो पहाड़ ले झरना झरत हे। जादू हे, शक्ति हे। तभे तो जब अकबर के दरबार मं तानसेन नांव के संगीतकार रिहिसे, दीपक राग के तान छेडि़स तब कहिथे- दीया मं रखे बाती अपने आप बरगे, जलगे। का अइसे शक्ति, जादू हे गीत-संगीत मं, होवत होही तब तो अइसन हो जथे ना। 

महतारी मन जब लइका रोवत रहिथे, चुप होयके  नांव नई लेवे तब लोरी सुना - सुना के न केवल रोवत लइक ल चुप करा देथे भलुक ओ लोरी के सुर, धुन मं ओ जादुई ताकत होथे के लइका मन ल निंदरी आ जथे। अक्षर, ब्रम्ह कहिथे तउन उही तो नोहय। अब ये बात ल गियानी, धियानी, जोगी जती अउ पंडित मन बने जानही। 

कवि, शायर, गीतकार मन तो शब्द के जादूगर होथे। जंवारा, भोजली अउ गौरा-गौरी के गीत के रचना तो करथे, इही शब्द अउ अक्षर के जादूगर मन हर तो आय।  ओ गीत मन के बजते सांठ डड़इया चढ़ जथे। जंवारा माइलोगिन अउ पुरुष मन ला हाल चढ़ जथे। झूपे ले धर लेथे, चेत-सुरता नइ राहय अपन शरीर के। जीभ, हाथ मं बाना गोभवा लेथे, हाथ-पांव मं सोंटा मरवाथे। ये सब काये, गीत, संगीत के धुन ओमन ला ये दुनिया ले ओ दुनिया मं ले जाथे। अशरीरी बना देथे। अइसने जब शादी के बखत मं बेटी के बिदा होय के बेरा होथे, ओ समे जउन गीत गाथे, बाजा, बजथे तउन धुन ल सुन के बेटी ल कोन काहय, घर परिवार के जम्मो मनखे मन के आंखी कोती ले आंसू के धार अइसे बोहाय ले धरथे के ओहर थमे के नांव नइ लेवय। 

खेत-खार मं सावन-भादो के महीना मं निंदई-कोड़ई के बखत कमइलिन-कमइया जब जौंजर होथे तउन पइत ओकर मन के मुख ले निकले ददरिया अइसे छाती मं बान मारे असन लगथे, एला तो उही परेमी-परेमिका मन बता सकत हे। ओ ददरिया के नमूना देखिन- 

'आघू नांगर मं फंदाय टिकला 

मंय डोली मं उतरिहौं

त हो जाही चिखला।

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नदिया तीर के पटवा भाजी

पट-पट दीखथे रे,

आए हे बरतीया ते मन

बुढ़वा-बुढ़वा दीखथे रे।

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लाली भइगे भाजी

पिंयर भइगे भात

निकलत नइ बनय

अंजोरी होगे रात।

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नवा हे नांगर

नवा हे नाहना,

सास हवय घर मं

ससुर हे अंगना।

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बागे बगीचा दिखे ले हरियर

दुरुग वाला नइ दिखे

बदै हौं नरियर। 

बहतु ताकत होथे शब्द मं, अक्षर मं। कभू हंसा देथे तब कभू रोआ देथे। बड़े-बड़े रिसी मुनि मन इही शब्द अउ अक्षर मं अइसे-अइसे मंत्र रचे हे, गुंथे हे, ओला सिद्ध करे हें। देखिन एकाध मंत्र- 

ॐ भू-भुर्भुव: स्व:तत्स वितुर्वरेण्यम्

भर्गो देवस्य धिमहि धियो योन: प्रचोदयात।

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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

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ॐ  गं गंनपतये नम:।

ये सब सिद्ध मंत्र हे। अक्षर ल जोर के मंत्र बनइन, साधना करके सिद्ध करिन, बड़े-बड़े बिगड़े काम बन जाथे ये मंत्र मन से। 

ये कवि, गीतकार अउ शायर मन के का कहना, एकर मन के दृष्टि, वृत्ति, सोच, कल्पना, सात समुंदर पार के जिनिस मन ल पारखी नजर वाले मन कस देख डरथे। तभे तो केहे गेहे- जिहां न जाय रवि, तिहां पहुंचे कवि।

कवि, शायर, गीतकार मन शब्द ले खेलथे अउ रचना अइसे तइयार हो जथे जइसे दही ल मथे के बाद लेवना (मक्खन) बाहिर उफला (निकल) जथे। ये तो वइसने कस बात होगे जइसे परेम करे नइ जाय, हो जथे। वइसने ये रचनाकार मन के हाल हे। चलत, फिरत, खेत-खार, बारी-बियारा, नदिया-नरवा, झील-झरना, बगीचा, पहाड़, गोबर बीनत, छेना थापत कोनो दुनो परानी ल हांसत-गोठियावत कहूं देख परिन, नजर परगे, तहां ले ओकर मन के कलम दउड़ जथे, पल्ला घोड़ा, हिरन-हिरनी नइते कोनो चिरई-चिरगुन कस चाल मं उड़े ले धर लेथे। 

स्व. लक्ष्मण मस्तुरिया के गीत गायन तो चंदैनी गोंदा मं जउन पइत ले धूम मचाना शुरू करे हे तब ले आज तक सदाबहार बने हे। ओकर नांव छत्तीसगढ़ के इतिहास मं अमर होगे। बिहनिया के उवत सुरुज देवता कस छाहित रइही। ओकर सोच, दृष्टि, वृत्ति, भावना, विचार, गीत मं पोहाय हे, समाय हे। रूंआ ठाढ़ हो जथे, त कभू रोआसी  आ जथे, ओकर गीत ल सुनबे त। अइसे तो नइ काहौं के ओकर असन गीतकार गायन, कवि अउ होही ते नहीं, काबर के छत्तीसगढ़ के माटी मं तो हीरा, सोना, पन्ना, मणि-माणिक उपजारे के ताकत हे। फेर मस्तुरिया जी तो अभी तक बेजोड़ हे। ओकर प्रतिभा, काबिलियत ह ओला छत्तीसगढ़ी राजभासा आयोग के कुरसी तक पहुंचाइस। पूर्व मुख्यमंत्री स्व. अजीत जोगी तो ओकर प्रशंसक में से एक रिहिसे। 

उही कड़ी मं मीर अली मीर साहब के नांव जुड़त हे। उकरो गीत के बहुत शोर उड़त हे अउ जिहां-जिहां ओहर जाथे, कवि सम्मेलन मं भाग लेथे, तब श्रोता मन के भीड़ उमड़ जथे, ताली गूंजे ले धर लेथे। ओकर जउन गीत अभी नांव कमावत हे, ओहे- नंदा जाही का रे, नंदा जाही का। लेवौ मजा गीत के-

ए उड़ा जाही का रे

उड़ा जाही का रे

उड़ा जाही का

मनकैना चिरैया कलरा करइया

फुदुक फुदुक फुदकइया

सोन चिरया उड़ा जाही का

ए नंदा जाही का रे नंदा जाही का रे

कमरा अउ खुमरी अरई तुतारी

अ र र र र त त त छो...

होत बिहनिया पखरा के आगी

टेडग़ा हे चोंगी टेडग़ा हे पागी

नुइ झूले जस गर कस माला

धरे कसेली दउड़त हे ग्वाला

टेडग़ा लेवड़ी ल बाखा दबाए

बंशी मं धेनु चरइया नंदा जाही का...

ए नंदा जाही का रे, नंदा जाही का रे

कमरा अउ खुमरी अरई तुतारी

अ र र र र त त त छो...

मीर साहब के गीत के शैली अंदाज अउ मिजाज अपन तरह के अलग हे। ओकर पेश करे के जउन नाटकीय अंदाज हे श्रोता मन ल बहुत परभावित करथे। अउ जिहां जाथे तिहां अक्सर ये गीत ल सुने बर श्रोता मन फरमाइस करथे। गुरतुर अउ मिठास ल तो सब पसंद करथे। छत्तीसगढ़ के जनता इही मं खुश हे। मीर साहब ल ये गीत ह बहुत ऊंचई देवत हे। मुकाम मं पहुंचे हे। आसा करिन अउ अइसन कोनो गीत के सुग्घर रचयिता तो आही... बधाई...।

परमानंद वर्मा

गुरुवार, 5 जनवरी 2023

ऐतिहासिक_रायपुर

 

रायपुर का नाम सतयुग में कनकपुर, त्रेता में हाटकपुर और द्वापर में कंचनपुर था। इसकी जानकारी नागपुर के भोसले राजा रघुजी तृतीय के शासनकाल के दस्तावेजों से मिलती है।

1. सतयुग में रायपुर का नाम कनकपुर और द्वापर में कंचनपुर था। जनश्रुति के अनुसार यह क्षेत्र बहुत ही समृद्ध था। इसे सोने के समान माना जाता था। भगवान राम इसी क्षेत्र से होकर वनवास गए थे।

2. त्रेतायुग में खारून नदी के किनारे स्थित हटकेश्वर महादेव के नाम पर रायपुर का नामकरण हाटकपुर हुआ था। सन् 1837 में तत्कालीन राजा रघुजी तृतीय भोसले ने रायपुर के नाम को लेकर सर्वे करवाया था। इसमें नामकरण की यह जानकारी सामने आई थी। बूढ़ातालाब के राजघाट में सम्वत् 1458 का शिलालेख मिला था। इसमें राजा ब्रह्मदेव राय व रायपुर के नाम का जिक्र है। इतिहासकार इसे भी नामकरण का आधार मानते हैं।

3. कलचुरी काल की राजधानी रतनपुर को लेकर कहावत प्रचलित है, राय-रतन दूनो भाई। इसके अनुसार रायपुर और रतनपुर दो भाइयों की राजधानी थी। दोनों के पास 18-18 गढ़ (राज्य) थे। रायपुर से पहले खल्लारी में राजमहल था।

4. चौदहवीं शताब्दी में रायपुर राज्य की राजधानी खल्लारी थी। बाद में खारून तट पर रायपुरा और फिर बूढ़ातालाब, महाराजबंद, महामाया मंदिर परिसर के मध्य ब्रह्मपुरी में स्थापित हुई। यहां एक किला था, जिसके पास की खाई आज भी है। यहां अब पानी जमा रहता है। राजा ब्रह्मदेव राय ने शहर विकसित किया था। इस वजह से यह रायपुर के नाम से जाना जाता है। किला सफीलईसी पत्थर से बना था। कुल बड़े-छोटे 16 दरवाजे थे। छत्तीसगढ़ में अंग्रेजों का राज स्थापित होने के बाद किले के पत्थर का उपयोग कलेक्ट्रेट भवन बनाने में हुआ। शहर में महामाया देवी मंदिर, श्री रामचंद्र स्वामी का मंदिर (दूधाधारी मंदिर), खारून किनारे हटकेश्वर महादेव मंदिर के पास किला बना था।

5. रायपुर का संग्रहालय (अष्टकोणीय भवन) 1875 में बना था। यह मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ का पहला और देश का आठवां सबसे प्राचीन संग्रहालय है। बाद में इस संग्रहालय को महंत घासीदास संग्रहालय में शिफ्ट कर दिया गया। 

128 साल पहले टाउन हॉल बनाने में ऐतिहासिक किले के पत्थरों का उपयोग हुआ है।

रायपुर को विकसित करने वाले राजा ब्रह्मदेव राय के नाम पर नामकरण

युग के साथ बदला नाम

साभार:- डॉ. रमेंद्र नाथ मिश्र, वरिष्ठ इतिहासकार