मंगलवार, 13 मार्च 2012

सिर-आंखों पर रहते हैं गुडइयर



आधुनिक जीवन में रबर का आविष्कार उन चीजों में शामिल है, जिसने सही मायने में दुनिया की शक्ल बदल दी। धनी परिवार में पैदा होने के बावजूद आविष्कारक चार्ल्‍स गुडइयर को रबर का आविष्कार करने के लिए संघर्षों से गुजरना पड़ा, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी...
रबर के प्रति चार्ल्‍स गुडइयर की दीवानगी इस कदर थी कि वे जूते से लेकर कपड़े और टोपी भी रबर की पहनते थे। गुडइयर की रबर के प्रति दीवानगी को लेकर एक बात बड़ी मशहूर थी कि अगर कोई आदमी मिले, जिसकी टोपी, जूते-मोजे और जैकेट वगैरह सभी चीजें रबर की हों और यहां तक कि पर्स भी रबर का हो और जेब में एक भी रुपया न हो, तो समझ जाएं कि वह गुडइयर ही होगा। गुडइयर के पिता प्रसिद्ध व्यवसायी थे, लेकिन गुडइयर का ध्यान पैसा कमाने में नहीं, बल्कि नए-नए आविष्कार करने और उसके रोमांच का मजा उठाने में रहता था। उन दिनों रबर के जूते तो पहने जाते थे, लेकिन गर्मी में अत्यधिक बदबू आने के कारण उन्हें काफी नापसंद किया जाता था। गुडइयर ने जलरोधक रबर बनाने का निश्चय किया और घर की रसोई को अपनी प्रयोगशाला बना लिया। जब उनकी पत्नी रात का खाना बनाकर चली जाती थीं, तो उन्हीं बर्तनों में गुडइयर का प्रयोग चलता था, लेकिन रबर की बदबू से परेशान हो रहे पड़ोसियों ने उन्हें अपनी प्रयोगशाला दूर बनाने के लिए बाध्य करना शुरू कर दिया। नतीजतन, उनकी प्रयोगशाला घर से दूर हो गई और गुडइयर रोज मीलों पैदल जाकर रबर के साथ अपना दिमाग खपाते रहते। इस तरह उन्होंने अच्छी गुणवत्ता का रबर तो बना लिया था, लेकिन उसकी बदबू से मुक्ति नहीं मिली थी। गुडइयर पूरी तरह से आकर्षक रंगों वाला तापरोधी रबर बनाना चाहते थे, जिस पर बाहरी चीजों का असर न पड़े। एक बार रबर को रंगते हुए उस पर धब्बा पड़ गया, तो उन्होंने ढेर सारा सल्फेट अम्ल डालकर उस धब्बे को उड़ाना चाहा। लेकिन धब्बे की जगह पूरे रबर का ही रंग उड़ गया। गुडइयर गुस्से से तमतमा उठे और रबर को उठाकर दूर फेंक दिया। थोड़ी देर बाद जब उनकी नजर फेंके गए रबर पर पड़ी, तो देखा कि जिस हिस्से पर सल्फेट अम्ल डाला गया था, वह काफी सख्त हो गया था। गुडइयर की खुशी का ठिकाना नहीं रहा क्योंकि वह रबर पहले से कहीं ज्यादा शुद्ध, तापरोधी और सुरक्षित रूप में इस्तेमाल हो सकता था। गुडइयर यह खबर अपने परिवार वालों को देना चाहते थे, लेकिन किसी ने भी उसमें दिलचस्पी नहीं ली। पत्नी और बच्चे उनकी धुन से तंग आ चुके थे और गुडइयर पर कर्जे का बोझ भी काफी बढ़ चुका था। कर्ज के कारण उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा, लेकिन बिना हार माने वे अपने प्रयोग में लगे रहे। १९४४ के दौरान उन्होंने रबर का आधुनिक रूप खोज निकाला, जिसे वल्कनाइजेशन नाम दिया गया। रबर के इस रूप ने गुडइयर को अपार ख्याति दी। पैसा कमाने की चाहत न होने के कारण आर्थिक तंगी हमेशा बनी रही। लेकिन जब तक वे जीवित रहे, रबर पर प्रयोग निरंतर करते रहे। 

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