सोमवार, 20 जनवरी 2025

सुनो भाई उधो:कोंदा छत्तीसगढ़

जिस प्रकार बिना मुंह के व्यक्ति को गूंगा, मूक कहा जाता है। शरीर के सारे अवयव होते हुए भी पशुवत हो जाता है, उसी तरह कोई राज्य बिना भाषा के मूकवत जानवर की तरह ही होता है। बोलने से उसकी पहिचान जाति, धर्म, वैभव, संस्कृति, योग्यता व्यक्तित्व सब कुछ पता चलता है। छत्तीसगढ़ का जन्म तो हो गया है लेकिन यह गूंगे संतान की तरह है। भाषा के लिए बड़े-बड़े डॉक्टरों के पास एम्स में इलाज के लिए दाखिल किया गया है। कम से कम इनका मुंह तो खुले। इसी संदर्भ में पढ़िये यह छत्तीसगढ़ी आलेख...। 

बात सुजानिक असन सब बड़े-बड़े बोलथे। सांगा म नइ समाही। फेर जब ओ केहे के बात पूरा करे के बारी आथे तहां ले दांत ल निपोर देथे, एती-ओती झांके ले धर लेथे। लपरहा मन अइसने होथे। उपास न खाधाष के फरहार बर लबर-लबर कहिथे तउन अइसने मन होथे। 

बाते-बाते मं, थूक मं बरा नइ चूरे। ओकर बर पछीना ओगारे बर परथे। जांगर टोरे ले परथे। तब कहूं कोनो काम जाके सिध परथे। जइसे छत्तीसगढ़ राज हासिल करे के खातिर का-का उदिम नइ करिन। सिद्धो मं माल-पुआ अइसने नइ मिलगे छत्तीसगढ़िया मन ला? सब जुर मिल के आंदोलन करिन। सीधा अंगुरी मं घी नइ निकलय। जब थक-हारगे तब अपन आंदोलन ला थोकिन अइसे बल देवत गिन जेमा दिल्ली सरकार के आंखी उघरिस, तब कहूं जाके अटल सरकार हा आंखी-कान रमजत नवा छत्तीसगढ़ राज के घोसना करिस। 

सियान मन कहिथे, सिद्धो मं लइका नइ होवय, बारा कुआं मं बांस डारबे तब कहूं जाके घर मं किलकारी गूंजथे। हमर पुरखा अउ सियान मन ओ उदिम करिन तब आज ओकरे मन के पुन्न-परताप अउ आशिरवाद के परिणाम हे के, हमन  छत्तीसगढ़ राज मं खुशी-खुशी जीयत हन अउ सांस लेवत हन। 

छत्तीसगढ़ राज तो बनगे, मिलगे, सिरिफ राजभर मिले हे। राज ला कोन पोगरा लिन, कोन राज करत हे, कोन मलई खात हे, कुरसी टोरत हे? ओकर मन बर तो 'सोने मा सुहागा कस दिन आगे, चांदी ही चांदी हे। आम अउ मूल छत्तीसगढ़िया ला का मिलिस, ठेंगवा? जउन जिनिस मन मिलना रिहिस तउन तो सपना होगे हे, नोहर होगे। 

कोनो भी राज के पहिचान होथे, ओकर भासा। सरकार हा भुलवारे खातिर राजभाषा  आयोग तो बड़ चालाकी से बना दिस जइसे रोवत लइका मन ला चुप कराय खातिर बतासा धरा देथे। ओला पाके लइका मन चुप होके खेले-कूदे, नाचे-गाये ले धर लेथे। राजनीतिक खिलाड़ी मन जानथे, शतरंज के गोंटी, वजीर, ऊंट, हाथी, अउ पियादा ला कइसे अउ कब कोन मउका मं चले जाथे, खेले जाथे। राज ला देके भुलवार देहें, अब छत्तीसगढ़ी भासा ला दरजा दे के बारी आय हे तब कनमटक नइ देवत हें। काबर आंखी-कान लोरमाय हे। जब मराठी, गुजराती, पंजाबी, कन्नड़, उड़ीसा, तेलुगू भासा मन महारानी असन राज करत हे तब छत्तीसगढ़ी ला काबर सीता असन काबर वनवास देके जंगल-जंगल राम-लखन संग भटकावत हे। 

कुरसी टोरइया मन रायजादा बनके राज करत हे, तब अपन छत्तीसगढ़ी भासा महतारी हा काबर लंका मं रावन सही अशोक वाटिका मं धारोधार आंसू रोवत हे। कोन अइसे बेटा हे जउन अपन महतारी ला रोवत, कलपत देख सकहीं? ओ मन बेर्रा (वर्णसंकर) होही जउन अइसन हालत मं महतारी ला देखत होही। बड़े-बड़े समारोह मं कॉलेज, विश्वविद्यालय मं छत्तीसगढ़ी मं बोल के रोटी टोरइया, मिठलबरा असन बोलइया, भासन करइया, बोलइया, लिखइया, पढ़इया शहर ले लेके गांव-गांव, गली-गली मिल जाही। अइसे पढ़ही-लिखही भीम, अरजुन सही महायोद्धा अउ बली उहिच मन हे अउ भासा बर लड़े खातिर महाभारत छेड़ दिही फेर केहेंव नहीं शुरू मं के बात के बड़े सुजाकिन असन गला फाड़-फाड़ के बोलही, सांगा मं नइ समाही, गोला, बम, बारुद फेल खा जही फेर मउका मं दांत ला निपोर देथे। 

'पर भरोसा तीन परोसा, खवइया मन हमरे आगू मं उपजे, पले, बाढ़े हे अउ हमी मन ला बड़ गियानिक बरोबर उपदेश झाड़थे, जना-मन हमन कांही नइ जानन, भोकवा, अढ़हा अउ अंगूठा छाप हन। बोली, भासा, कला, संस्कृति परब, तीज-तिहार के दुरगति हे, मान हे, सम्मान होवत हमरे अपने राज मं तउन ये सब अंधरा मन ला नइ दिखय। बड़े-बड़े उपाधि, पद, पदवी, अउ मान के मुकुट पहिन के किंजरे भर ले नइ होवय। असली बेटा हौ छत्तीसगढ़ के तो राज पाये खातिर जइसे सब जुरमिल के आंदोलन करेव वइसने अपना भाषा खातिर घला चलव, उठव। सेती-मेती मं नइ देवय सरकार हा। भले ओहर काहत हे छत्तीसगढ़ राज हम बनाय हन, अब संवारबो घला फेर हमला अब पहिली छत्तीसगढ़ी भासा चाही, ओला देवौ।

-परमानंद वर्मा

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