मंगलवार, 22 अप्रैल 2014

असली जीना

बहुत दिनों बाद चार दोस्‍त मिले। वे सभी अपने-अपने कैरियर में बहुत अच्‍ छा कर रहे थे और खूब पैसे कमा रहे थे। जब पस में मिलते-जुलते काफी वक्‍त बीत गया, तो उन्‍होंने घर जाकर मिलने का निश्‍चिय किया। पिता ने सभी का स्‍वागत किया और बारी-बारी से उनके काम के बारे में पूछने लगे। धीरे-धीरे बात लाइफ में बढ़ती स्‍ट्रेस और काम के प्रेशर पर आ गई। इस मुद्दे पर सभी एक मत थे कि भले वे अब आर्थिक रूप से बहुत मजबूत हों, पर उनकी लाइफ में अब वो मजा नहीं रह गया, जो पहले हुआ करता था। बड़े ध्‍यान से उनकी बातें सुन रहे पिता अचानक उठे और थोड़ी  देर बाद किचन से लौटे व बोले- आप सब किचन में जाकर अपने-अपने लिए कप्‍स लेते आइये।” चारों दोस्‍त तेजी से अंदर गए, वहाँ कई तरह के कप रखे हुए थे, सभी अपने लिए   अच्‍ छे से अच्‍ छा कप उठाने में लग गए, किसी ने क्रिस्‍टल का शानदार कप उठाया, तो किसी ने पोर्सिलेन का कप सेलेक्‍ट किया, तो किसी ने शीशे का कप उठाया। जब सभी के हाथों में कॉफी आ गई, तो पिता बोले, ” अगर आपने ध्‍यान दिया हो, तो जो कप दिखने में अच्‍ छे और महंगे थे आपने उन्‍हीं को ही चुना और साधारण दिखने वाले कप्‍स की तरफ ध्‍यान नहीं दिया। जहाँ एक तरफ अपने लिए सबसे अच्‍ छे की चाह रखना एक नॉर्मल बात है, वहीं दूसरी तरफ ये हमारी लाइफ में प्राब्‍लम्‍स
और स्‍ट्रेस लेकर आता है।
ब च्‍चो, ये तो पक्‍का है कि कप चाय की क्‍वालिटी में कोई बदलाव नहीं लाता। ये तो बस एक जरिया है, जिसके माध्‍यम से आप कॉफी पीते हैं। असल में जो आपको चाहिए था, वो बस कॉफी थी, कप नहीं, पर फिर भी आप सब सबसे अ च्‍छे कप के पीछे ही गए और अपना लेने के बाद दूसरों  के कप निहारने लगे। अब इस बात को ध्‍यान से सुनिए, ये लाइफ कॉफ़ी की तरह है;
हमारी नौकरी, पैसा, पोजीशन, कप की तरह है। ये बस लाइफ जीने के साधन हैं, खुद लाइफ नहीं! और हमारे पास कौन सा कप है, ये न हमारी लाइफ को डिफाइन करता है और ना ही उसे चें ज करता है। कॉफी की चिंता करें, कप की नहीं। दुनिया के सबसे खुशहाल लोग वो नहीं होते, जिनके पास सबकुछ सबसे बढि़या होता है, वे तो जो होता है, बस उसका सबसे अच्‍ छे से यूज़ करते हैं।
सादगी से जियो। सबसे प्रेम करो। सबकी केयर करो। यही असली जीना है। 
संकलन-मोहनलाल पवार, भोपाल

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