मंगलवार, 27 जुलाई 2021

शिक्षक, अध्यापक और गुरु में क्या अंतर है

ज शिक्षक दिवस के शुभ अवसर पर सभी शिक्षकों को बधाइयाँ मिल रही हैं। लेकिन एक सत्य ये भी है की हमारा समाज शिक्षक शब्द का अर्थ भी भूलता जा रहा है| हम अध्यापक और शिक्षक को एक ही समझने लगे हैं। एक अध्यापक शिक्षक हो सकता है, लेकिन ये जरूरी नहीं कि हर अध्यापक शिक्षक हो। इस बात को समझने के लिए आपको शिक्षक, अध्यापक और गुरु जैसे शब्दों का शाब्दिक अर्थ पता होना जरूरी है| हिंदी एक अनूठी भाषा है। हम कुछ शब्दों को पर्यायवाची समझते हैं, जबकि असलियत ये है की हिंदी के हर शब्द का अर्थ अलग है। कुछ शब्द एक जैसे प्रतीत होते हैंख् पर उनके असली अर्थ में कुछ बारीक फर्क जरूर होता है। शिक्षक और अध्यापक भी दो ऐसे ही शब्द हैं। जो लोग गुरु को शिक्षक समझने की भूल करते हैं, उन्हें तो अपनी शब्दावली को विकसित करने की जरूरत है।

शिक्षक: शिक्षक से हम शिक्षा प्राप्त करते हैं। शिक्षक वह व्यक्ति है, जो हमें जीवन में उपयोग में आने वाली चीज़ें सिखाता है। इसमें व्यावहारिक ज्ञान से लेकर हमारे त्योहारों और रीति-रिवाजों तक का ज्ञान शामिल होता है। इसलिए किसी भी व्यक्ति का सबसे पहला शिक्षक उसके माता-पिता, सगे-संबंधी होते हैं। शिक्षक हमें शिक्षा देने के बदले किसी आर्थिक लाभ की अपेक्षा नहीं रखते, बल्कि सम्मान की अपेक्षा रखते हैं।

अध्यापक : अध्यापक वह होता है जो हमें अध्ययन करायए। इसका अर्थ यह है की अध्यापक हमें किताबी ज्ञान देता है| इस तरह का ज्ञान हमें कागज़ी प्रमाणपत्र अर्थात डिग्री लेने में मदद करते हैं। अध्यापक किसी ऐसे संसथान का अंग होते हैं जो हमें कागज़ी ज्ञान देने के बदले अध्यापक को वेतन प्रदान करता है। कुछ अध्यापक हमें शिक्षक की भूमिका निभाते हुए भी मिलते हैं, जो उन्हें बाकी अध्यापकों से अलग और बेहतर बनरता है|

गुरु : गुरु वह होता है जो हमें सबसे उच्च कोटि का ज्ञान दे। उच्च कोटि के ज्ञान का अर्थ आध्यात्मिक ज्ञान। ये ज्ञान हमें एक साधारण मनुष्य से कुछ अधिक बना देता है। ये वह ज्ञान है जो हमें किसी शिक्षक या अध्यापक से प्राप्त नहीं हो सकता। एक अध्यापक या शिक्षक हमें अपने जन्म या धन से मिल सकते हैं, किन्तु एक गुरु को आपका ढूँढना ब्बाँर अर्जित करना पड़ता। किसी गुरु का शिष्य बनने के लिए आपका अपनी पात्रता सिद्ध करनी पड़ती है। एक शिक्षक या अध्यापक जब आपको शिक्षा देता है हो उसके पीछे उसका कुछ स्वार्थ निहित होता है, लेकिन एक गुरु का ज्ञान निस्वार्थ होता है।

इन तीन के अलावा शुद्ध हिंदी में कुछ अन्य भी मिलते जुलते शब्द हैं, जो अक्सर प्रयोग में लाए जाते हैं, लेकिन किसी को उनका सही अर्थ नहीं पता।

आचार्य: आचार्य वह व्यक्ति होता है जो अपने द्वारा अर्जित ज्ञान को अपने आचरण / व्यवहार का अंग बना लेता है और फिर उस ज्ञान को अपने शिष्यों को देता है। आचार्य एक ऐसी स्तिथि है जो अध्यापक से कुछ अधिक है और गुरु से कुछ कम।

प्राचार्य : प्राचार्य आचार्य से श्रेष्ठ होता है। प्राचार्य ये सुनिश्चित करता है कि जिसको वह ज्ञान दे रहा है वो भी उस ज्ञान को अपने व्यवहार का अंग बना रहा है।

आज के दौर में जहाँ किताबी ज्ञान का बोल-बाला है, वहीं माता-पिता यह भूलते जा रहे हैं कि आपके बच्चे को विद्यालय में अध्यापक अवश्य मिल जाएंगे, किन्तु शिक्षक नहीं। आज के दौर में बच्चों को सर्वाधिक आवश्यकता एक अच्छे शिक्षक की होती है, जो बहुत कम माता-पिता या अध्यापक बन पाते हैं। एक अच्छे शिक्षक के अभाव में बच्चे पढ़ तो जरूर लेते हैं, किन्तु वो व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाते जो उन्हें एक उच्च कोटि का ज्ञानवान मनुष्य बनाए।

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