शनिवार, 20 सितंबर 2025

धान नहीं ड्रग के कटोरा बनगे छत्तीसगढ़

 सुनो भाई उधो

-परमानंद वर्मा

अनदेखना मन के आंखी फूटय पट-पट ले, मर जाय, खप जाए, नांव बुता जाय ओकर मन के, जउन छत्तीसगढ़ ला देख नइ सकत हें। जेन बाहिर, आन परदेश ले आथे तउन मन देखते साठ कहिथे- अहा छत्तीसगढ़ कतेक सुंदर बने हे चुक-चुक ले पुतरी बरोबर, काजर आजे सोलह बछर के मुचमुचावत परी, बामी मछरी सही बिछलत, रेंगत दीखते, इही पाके सब जिहां पाबे तिहां गोठियावत रहिथे- भइया 'छत्तीसगढिय़ा सबले बढिय़ा। 

'काहत लागय धान के कटोरा छत्तीसगढ़ तउन अब ओ धान तो एक कोती होगे, नंदागे, अब ओ 'ड्रग के कटोरा होगे हे। कोन गांव, कोन शहर, गली-गली मं 'ड्रग के फसल अइसे लहलहावत हे, जइसे कभू खेत मं सावन-भादो के महीना मं दिखथे नजर भर जथे, अइसे लगथे जइसे देखते राह, पोटार ले, दूनो बांह मं कबिया के जइसे कोनो परेमिका ला ओकर परेमी पोटारथे।

छत्तीसगढ़ मं 'ड्रग क्वीन के चारो मुड़ा शोर उड़त हे। उड़ही कइसे नहीं, छत्तीसगढ़ के भुइंया अइसन वइसन नइहे। इहां के माटी सोना, हीरा, पन्ना के छोड़े का खनिज नइ उगलत हे। तेमा अभी नवा फसल आय हे 'ड्रग, अभी ये कारोबार ल क्वीन मन संभाले हे। इहां राजा, महराज, नवाब, जमींदार, मालगुजार जइसन बड़े-बड़े परतापी मन राज करे हे, माता कौशल्या के जन्मभूमि हे, राजा, रानी, राजकुमारी काहय ओ मन ला आज समे के संगे-संग ओकर मन के नांव बदलगे, अब नवा नांव धराय हे 'क्वीन। 

छत्तीसगढ़ मं षोड़सी, बीस, पच्चीस साल के हंसमुख चंचल नयना अउ गुलबदन के 'क्वीन जेने कोती पाबे तेने कोती देख ले। का गांव, का शहर, का महानगर, गली-गली मं अइसे दीख जही, मिल जही, जइसे पुष्प वाटिका, अशोक वाटिका मं किसम-किसम के फूल दीख जथे। काबर ककरो मन नइ मोहाही, आंखी पटपटाही, अइसन बड़े फजर खिले गुलाब, अउ ताजा कमल के गदराय फूल के रूप, रंग ला देखके?

जइसे छत्तीसगढ़ धान वइसने इहां के 'ड्रग अउ क्वीन। देश-विदेश मं शोर हे, आवत हे, जात हे। छत्तीसगढिय़ा मन भोकवा, धर ले रिहिन हे धान भर ला, अउ दूसर बर गतर नइ चलत रिहिस हे। जानही तब ना करहीं। एके ठन डौकी के पाछू जीवन गुजार देवय। आज देख जमाना कतेक बदलगे हे। एके ठन साग-सब्जी ला कतेक दिन ले खाबे, असकटा नइ जाबे। सुवाद बदले खातिर नवा-नवा साग बदले ले परथे अउ देख फेर ओकर मजा। अइसने कस धान के फसल लेवत-लेवत उबकाई आय ले धरिस तब नवा फसल 'ड्रग के लेना शुरू होइस। ये फसल पहिली मॉल, होटल, रिसॉर्ट, क्लब, फार्म हाउस, अउ गांव, शहर, महानगर मं लेना शुरू करिन। 

नवा फसल ला पहिली नमूना के बतौर गुपचुप ढंग ले लेना शुरू होइस। महंगा बीज हे तब एकर  लागत घला वइसने महंगा होवत गीस। फेर जब फसल दनदना के होइस तब भाव घला वइसने तगड़ा मिलना शुरू होइस। अब तो धान के फसल लेबर किसान भुलावत हे, अउ बड़े-बड़े उद्योगपति, नेता, मंतरी, नौकरशाह, राजा, महाराजा, नवाब, जमींदार, मालगुजार मन तक एला लेना शुरू कर दे हे। बताथे- एकर सुवाद गजबेच सुंदर हे। 

फेर बताथे- ये फसल ले खातिर लाइसेंस नइ ले हें तेकर सेती पुलिस अइसन धंधा करइया मन के पाछू परगे हे। अब पुलिस ला तो जानत हौं, सुंघियावत रहिथे- कहां कोन गलत करत हे? ये 'ड्रग के धंधा तो कबके चलत हे कतको लखपति अउ करोड़पति बनगे हे। का पुलिस नइ जानत होही के ये माल कहां ले आवत हे, अउ कोन-कोन, कहां-कहां करत हे? एक झन छोकरी सपड़ मं आगे, तभे का ओकर आंखी खुलिस होही? अइसे तो हो नइ सकय? पुलिस ओ छोकरी के नांव 'क्वीन धर दे हे। ओहर सब झन के नांव बकर देहे। जेमा बड़े-बड़े राजनेता, उद्योगपति, नौकरशाह, विश्वविद्यालय, कॉलेज के शिक्षक, विद्यार्थी मन हे। का पुलिस हा ओकर मन के नांव उजागर कर सकत हे? काबर नइ करत हे, करना चाही, का के डर हे? सबके इज्जत के सवाल हे, है ना? नांव टिपा हे तेकर मन के तो नींद हराम होगे हे। शराब, सुंदरी, सट्टा-जुआ के फेर मं जउन परही तेकर मन के तो अइसने गति होथे।

जाती बिराती

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माते रहिबे माते रहिबे माते रहिबे गा,

तंय हर माते रिहिबे गा अलबेला मोर 

गांजा कली ला पीके माते रहिबे।

हा हा माते रहिहो रे अलबेली मोर,

गांजा कली ला पीके माते रहिहो।।


आमा ला टोरे खाहुंच कहिके रे,खाहुंच कहिके ,

मोला दग़ा दिये जोड़ी आहुंच कहिके रे , आहुंच कहिके।।

-परमानंद वर्मा

सोमवार, 20 जनवरी 2025

सुनो भाई उधो:कोंदा छत्तीसगढ़

जिस प्रकार बिना मुंह के व्यक्ति को गूंगा, मूक कहा जाता है। शरीर के सारे अवयव होते हुए भी पशुवत हो जाता है, उसी तरह कोई राज्य बिना भाषा के मूकवत जानवर की तरह ही होता है। बोलने से उसकी पहिचान जाति, धर्म, वैभव, संस्कृति, योग्यता व्यक्तित्व सब कुछ पता चलता है। छत्तीसगढ़ का जन्म तो हो गया है लेकिन यह गूंगे संतान की तरह है। भाषा के लिए बड़े-बड़े डॉक्टरों के पास एम्स में इलाज के लिए दाखिल किया गया है। कम से कम इनका मुंह तो खुले। इसी संदर्भ में पढ़िये यह छत्तीसगढ़ी आलेख...। 

बात सुजानिक असन सब बड़े-बड़े बोलथे। सांगा म नइ समाही। फेर जब ओ केहे के बात पूरा करे के बारी आथे तहां ले दांत ल निपोर देथे, एती-ओती झांके ले धर लेथे। लपरहा मन अइसने होथे। उपास न खाधाष के फरहार बर लबर-लबर कहिथे तउन अइसने मन होथे। 

बाते-बाते मं, थूक मं बरा नइ चूरे। ओकर बर पछीना ओगारे बर परथे। जांगर टोरे ले परथे। तब कहूं कोनो काम जाके सिध परथे। जइसे छत्तीसगढ़ राज हासिल करे के खातिर का-का उदिम नइ करिन। सिद्धो मं माल-पुआ अइसने नइ मिलगे छत्तीसगढ़िया मन ला? सब जुर मिल के आंदोलन करिन। सीधा अंगुरी मं घी नइ निकलय। जब थक-हारगे तब अपन आंदोलन ला थोकिन अइसे बल देवत गिन जेमा दिल्ली सरकार के आंखी उघरिस, तब कहूं जाके अटल सरकार हा आंखी-कान रमजत नवा छत्तीसगढ़ राज के घोसना करिस। 

सियान मन कहिथे, सिद्धो मं लइका नइ होवय, बारा कुआं मं बांस डारबे तब कहूं जाके घर मं किलकारी गूंजथे। हमर पुरखा अउ सियान मन ओ उदिम करिन तब आज ओकरे मन के पुन्न-परताप अउ आशिरवाद के परिणाम हे के, हमन  छत्तीसगढ़ राज मं खुशी-खुशी जीयत हन अउ सांस लेवत हन। 

छत्तीसगढ़ राज तो बनगे, मिलगे, सिरिफ राजभर मिले हे। राज ला कोन पोगरा लिन, कोन राज करत हे, कोन मलई खात हे, कुरसी टोरत हे? ओकर मन बर तो 'सोने मा सुहागा कस दिन आगे, चांदी ही चांदी हे। आम अउ मूल छत्तीसगढ़िया ला का मिलिस, ठेंगवा? जउन जिनिस मन मिलना रिहिस तउन तो सपना होगे हे, नोहर होगे। 

कोनो भी राज के पहिचान होथे, ओकर भासा। सरकार हा भुलवारे खातिर राजभाषा  आयोग तो बड़ चालाकी से बना दिस जइसे रोवत लइका मन ला चुप कराय खातिर बतासा धरा देथे। ओला पाके लइका मन चुप होके खेले-कूदे, नाचे-गाये ले धर लेथे। राजनीतिक खिलाड़ी मन जानथे, शतरंज के गोंटी, वजीर, ऊंट, हाथी, अउ पियादा ला कइसे अउ कब कोन मउका मं चले जाथे, खेले जाथे। राज ला देके भुलवार देहें, अब छत्तीसगढ़ी भासा ला दरजा दे के बारी आय हे तब कनमटक नइ देवत हें। काबर आंखी-कान लोरमाय हे। जब मराठी, गुजराती, पंजाबी, कन्नड़, उड़ीसा, तेलुगू भासा मन महारानी असन राज करत हे तब छत्तीसगढ़ी ला काबर सीता असन काबर वनवास देके जंगल-जंगल राम-लखन संग भटकावत हे। 

कुरसी टोरइया मन रायजादा बनके राज करत हे, तब अपन छत्तीसगढ़ी भासा महतारी हा काबर लंका मं रावन सही अशोक वाटिका मं धारोधार आंसू रोवत हे। कोन अइसे बेटा हे जउन अपन महतारी ला रोवत, कलपत देख सकहीं? ओ मन बेर्रा (वर्णसंकर) होही जउन अइसन हालत मं महतारी ला देखत होही। बड़े-बड़े समारोह मं कॉलेज, विश्वविद्यालय मं छत्तीसगढ़ी मं बोल के रोटी टोरइया, मिठलबरा असन बोलइया, भासन करइया, बोलइया, लिखइया, पढ़इया शहर ले लेके गांव-गांव, गली-गली मिल जाही। अइसे पढ़ही-लिखही भीम, अरजुन सही महायोद्धा अउ बली उहिच मन हे अउ भासा बर लड़े खातिर महाभारत छेड़ दिही फेर केहेंव नहीं शुरू मं के बात के बड़े सुजाकिन असन गला फाड़-फाड़ के बोलही, सांगा मं नइ समाही, गोला, बम, बारुद फेल खा जही फेर मउका मं दांत ला निपोर देथे। 

'पर भरोसा तीन परोसा, खवइया मन हमरे आगू मं उपजे, पले, बाढ़े हे अउ हमी मन ला बड़ गियानिक बरोबर उपदेश झाड़थे, जना-मन हमन कांही नइ जानन, भोकवा, अढ़हा अउ अंगूठा छाप हन। बोली, भासा, कला, संस्कृति परब, तीज-तिहार के दुरगति हे, मान हे, सम्मान होवत हमरे अपने राज मं तउन ये सब अंधरा मन ला नइ दिखय। बड़े-बड़े उपाधि, पद, पदवी, अउ मान के मुकुट पहिन के किंजरे भर ले नइ होवय। असली बेटा हौ छत्तीसगढ़ के तो राज पाये खातिर जइसे सब जुरमिल के आंदोलन करेव वइसने अपना भाषा खातिर घला चलव, उठव। सेती-मेती मं नइ देवय सरकार हा। भले ओहर काहत हे छत्तीसगढ़ राज हम बनाय हन, अब संवारबो घला फेर हमला अब पहिली छत्तीसगढ़ी भासा चाही, ओला देवौ।

-परमानंद वर्मा

महाकुंभ का वैज्ञानिक कारण

आज जानते हैं महाकुंभ के बारे में जो की  12 वर्षों के पश्चात दो ग्रहों एवं एक उपग्रह की त्रिकोणीय उपस्थिति के कारण बनता है। खासकर प्रयागराज में जहां के मुख्य केंद्र बिंदु के ऊपर बृहस्पति, सूर्य और चंद्रमा के उपस्थिति में जो किरणें प्रयागराज त्रिवेणी के संगम में स्नान करने के दौरान पड़ता है उस कारण से हमारे शरीर को कितना पावरफुल बना देता है। इस वर्ष 2025 में तीनों ग्रह एवं उपग्रह लगभग 42 दिन तक इस स्थिति में रहेंगें। इस त्रिकोणीय स्थिति में शरीर को प्राप्त ऊर्जा सभी मरे हुए डेड सेल्स को सक्रिय कर देता है एवं बड़े-बड़े शरीर में मौजूद रोगों को नष्ट कर देता है, साथ ही आपके मन को प्रफुल्लित कर 100% सारी कोशिकाओं एवं ब्लॉक नसों को सक्रिय कर देता है।

     पृथ्वी नेगेटिव चार्ज है एवं नदी का पानी करंट का कंडक्टर है, जब हमारा शरीर आधा नदी में रहता है हमारा पैर पृथ्वी के ऊपर रखा रहता है और आधा शरीर एवं सिर जो धूप में रहता है, वह सूर्य की किरणें एवं बृहस्पति ग्रह के चुंबकीय ऊर्जा से पॉजिटिव एनर्जी प्राप्त कर सीधे शरीर में प्रवेश करता है एवं यही ऊर्जा अत्यधिक मात्रा में शरीर ग्रहण कर पूर्णरूपेण सक्रिय हो जाता है। इससे हमारे शरीर के सभी रोग दूर हो जाते हैं एवं हमारा शरीर प्रफुल्लित होता है। इस कारण से हमारा दिमाग भी बहुत तेज हो जाता है। स्वास्थ्य से संबंधित शरीर को ऊर्जा मिलने के कारण शरीर की उम्र भी बढ़ जाती है

मकर संक्रांति और महाकुंभ का गहरा महत्व -

महाकुंभ और इसमें निहित वैज्ञानिक आधारों को हम देखें तो हम पाते हैं कि यह अति प्राचीन एवं वृहद त्योहार भी खगोलीय संरेखण पर आधारित है. जैसा हम जानते हैं कि आज की अंतरराष्ट्रीय खगोल वैज्ञानिक संघ की ग्रहीय परिभाषा के अनुसार आज हमारे सौर मंडल में आठ ग्रह हैं. जिनका सूर्य से दूरी के क्रम में नाम निम्नानुसार है. आठ ग्रह बुद्ध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, अरुण और वरुण हैं. उनमें से सबसे बड़ा ग्रह है बृहस्पति, जिसे गुरु भी कहा जाता है. प्राचीन कालीन सभ्यताओं ने भी पांच ग्रहों को अपनी साधारण आंखों से ही पहचान लिया था. जिनमें से बृहस्पति भी एक था. आज के समय में भी अगर आप भी थोड़ा अधिक प्रयास करेंगे तो अलग अलग रात्रि के दौरान दिखाई देने वाले इन पांचों ग्रहों को विभिन्न समय पर आप भी पहचान सकते हैं. गुरुवार जोकि शुक्र ग्रह के बाद सबसे ज्यादा चमकीला पिंड है, यह मुख्य रूप से लगभग 75 प्रतिशत हाइड्रोजन और 24 प्रतिशत हीलियम और अन्य से बना हुआ है.

1610 में हुई थी 4 बड़े चंद्रमाओं की खोज : दूरबीन से देखने पर इस पर बाहरी वातावरण में दृश्य पट्टियां भी दिखाई देती हैं और एक लाल धब्बा भी है, जिसे ग्रेट रेड स्पॉट कहा जाता है, जिसे गैलीलियो ने 17वीं सदी में अपनी दूरबीन से देखा था जबकि हमारे भारत में ऋषि के रूप में मौजूद वैज्ञानिक इसको हजारों वर्ष पहले ही जान चुके थे. सर्व प्रथम 1610 में गैलीलियो गैलिली ने इसके चार बड़े चंद्रमाओं को देखा. जिनके नाम हैं गैनिमेड, यूरोपा, आयो, कैलिस्टो. अगर हम बृहस्पति ग्रह की तुलना अपनी पृथ्वी से करें तो हम पाते हैं कि इसमें लगभग 1331 पृथ्वी समा सकती हैं, और इसका चुंबकीय क्षेत्र पृथ्वी की तुलना में 14 गुना ज्यादा शक्तिशाली है. यह सूर्य से लगभग 77 करोड़ 80 लाख किलोमीटर दूरहै और सूर्य का एक चक्कर लगाने में 11.86 वर्ष का समय लगता है जोकि लगभग 12 वर्ष के बराबर होता है, इसे हमारे पूर्वज पहले ही जान चुके थे. बृहस्पति का अक्षीय झुकाव केवल 3.13 डिग्री है. जिस कारण इस पर कोई मौसम परिवर्तन नहीं होता है. यह बहुत तेज़ गति से घूर्णन करता है. अपने अक्ष पर 09 घंटा 56 मिनट्स में एक बार घूमता है, इसका मतलब होता है कि इसका दिन लगभग 10 घंटे का ही होता है.

 इसे आधुनिक खगोल विज्ञान में वैक्यूम क्लीनर भी कहा जाता है, जोकि पृथ्वी पर आने वाले धूमकेतुओं से भी बचाता है. बृहस्पति ग्रह जिसे गुरु भी कहा जाता है का हमारे देश में एक विशेष स्थान है क्योंकि भारत में कुम्भ मेला आयोजित होता है. कुम्भ का शाब्दिक अर्थ होता है कलश. और कलश का मतलब होता है घड़ा, सुराही या पानी रखने वाला बर्तन. और मेला का मतलब होता है कि जहां पर मिलन होता है. इस मेला के दौरान शिक्षा, प्रवचन, सामूहिक सभाएं, मनोरंजन और यह सामुदायिक वाणिज्यिक उत्सव भी हैं, बड़ी बात यह है कि यह त्यौहार दुनिया की सबसे बड़ी सभा माना जाता है. इस उत्सव को यूनेस्को की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में शामिल किया गया है. खगोलीय गणनाओं के हिसाब से यह मेला मकर संक्रांति के दिन प्रारंभ होता है और जब एक खास खगोलीय संयोजन घटित होता है तभी यह मेला घटित होता है.


अगली बार 2157 में लगेगा महाकुंभ मेला : खगोलविद ने बताया कि महाकुंभ तब आयोजित होता है जब सूर्य मकर राशि में, चंद्रमा मेष राशि में और बृहस्पति कुंभ राशि में होता है. इस बार वर्ष 2025 में प्रयागराज में पूर्ण कुम्भ मेला आयोजित किया जा रहा है. महाकुम्भ मेला प्रयागराज में प्रत्येक 144 वर्ष अर्थात 12 पूर्ण कुम्भ मेलों के बाद आयोजित होता है.

महाकुम्भ मेला अगली बार 2157 में लगेगा, जब गुरु कुम्भ राशि में, सूर्य मेष राशि में और चन्द्रमा धनु राशि में होता है तब कुम्भ मेला हरिद्वार में लगता है. जब गुरु वृषभ राशि में सूर्य, चन्द्रमा मकर राशि में होते हैं तब प्रयागराज में कुम्भ मेला आयोजित होता है.

जब गुरु सिंह राशि में सूर्य, चन्द्रमा कर्क राशि में होते हैं तो नासिक में कुम्भ मेला आयोजित होता है।

जब गुरु सिंह राशि में सूर्य, चन्द्रमा मेष राशि में होते हैं तो कुम्भ मेला उज्जैन में आयोजित होता है. जब गुरु सिंह राशि में होते हैं। तब त्र्यंबकेश्वर नासिक और उज्जैन में आयोजित होता है, जिसे सिंहस्थ कुंभ मेला भी कहा जाता है.

निष्कर्ष के तौर पर कह सकते हैं कि दोनों घटनाएं, मकर संक्रांति और महाकुंभ, महत्वपूर्ण खगोलीय गतिविधियों के साथ संरेखित होती हैं जो मौसमी परिवर्तनों, मानव शरीर विज्ञान और पर्यावरण को प्रभावित करती हैं, जोकि हमारे पूर्वजों के विशिष्ट प्राचीन ज्ञान को भी दर्शाते हैं जो खगोलीय ज्ञान को स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देने वाली प्रथाओं के साथ एकीकृत भी करता है.