शुक्रवार, 25 मई 2012

इक दिन बिक जाएगा माटी के मोल जग में रह जाएंगे प्यारे तेरे बोल

’महान शायर और गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी का अपनी ¨जिंदगी  और शायरी के बारे में नजरिया कुछ ऐसा था ‘’‘’इक दिन बिक जाएगा माटी के मोल जग मे रह जाएंगे घ्यारे तेरे बोल ‘’‘’ मुशायरों और महफिलों मे मिली शोहरत तथा कामयाबी ने एक यूनानी हकीम असरारूल हसन खान को फिल्म जगत का एक अजीम शायर और गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी बना दिया जिन्होंने चार दशक से भी ज्यादा लंबे सिने कैरियर मे करीब 300 फिल्मों के लिए लगभग 4000 गीतों की रचना कर श्रोताओं को परम आनंद प्रदान किया। मजरूह सुल्तानपुरी का जन्म उत्तरप्रदेश के सुल्तानपुर शहर मे एक अक्तूबर 1919 में हुआ था। उनके पिता सब इस्पैक्टर थे और वह मजरूह सुल्तानपुरी को ऊंची से ऊंची तालीम देना चाहते थे। मजरूह सुल्तानपुरी ने लखनऊ के तकमील उल तीब कॉलेज से यूनानी पद्धति की मेडिकल की परीक्षा उत्तीर्ण की और बाद मे वह हकीम के रूप में काम करने लगे।
 बचपन से ही मजरूह सुल्तानपुरी को शेरो‘’शायरी करने का काफी शौक था और वह अक्सर सुल्तानपुर मे हो रहे मुशायरों में हिस्सा लिया करते थे जिनसे उन्हें काफी शोहरत मिली। उन्होंने अपनी मेडिकल की प्रैक्टिस बीच में ही छोड़ दी और अपना ध्यान शेरो-शायरी की ओर लगाना शुरू कर दिया । इसी दौरान उनकी मुलाकात मशहूर शायर जिगर मुरादाबादी से हुई। वर्ष 1945 मे सब्बो सिद्दिकी इंस्टीट्यूट द्वारा संचालित एक मुशायरे में हिस्सा लेने मजरूह सुल्तानपुरी मुंबई आ गए। मुशायरे के कार्यक्रम मे उनकी शायरी सुन मशहूर निर्माता ए‘’आर‘’कारदार काफी प्रभावित हुए और उन्होंने मजरूह सुल्तानपुरी से अपनी फिल्म के लिए गीत लिखने की पेशकश की। मजरूह सुल्तानपुरी ने कारदार साहब की इस पेशकश को ठुकरा दिया, क्योंकि फिल्मों के लिए गीत लिखना वह अच्छी बात नही समझते थे। जिगर मुरादाबादी ने मजरूह सुल्तानपुरी को तब सलाह दी कि फिल्मों के लिए गीत लिखना कोई बुरी बात नही है। गीत लिखने से मिलने वाली धन राशि में से कुछ पैसे वह अपने परिवार के खर्च के लिए भेज सकते है । जिगर मुरादाबादी की सलाह पर मजरूह सुल्तानपुरी फिल्म मे गीत लिखने के लिए राजी हो गए । संगीतकार नौशाद ने मजरूह सुल्तानपुरी को एक धुन सुनाई और उनसे उस धुन पर एक गीत लिखने को कहा । मजरूह सुल्तानपुरी ने उस धुन पर ‘’‘’ जब उनके गेसू बिखराए ‘’बादल आए झूम के ‘’‘’ गीत की रचना की। मजरूह के गीत लिखने के अंदाज से नौशाद काफी प्रभावित हुय और उन्होंने अपनी नई फिल्म ‘’‘’शाहजहां ‘’‘’ के लिए गीत लिखने की पेशकश की। अपनी वामपंथी विचारधारा के कारण मजरूह सुल्तानपुरी को कई कठिनाइयों का सामना करना पडा। उन्हें जेल भी जाना पड़ा। मजरूह सुल्तानपुरी को सरकार ने सलाह दी कि अगर वह माफी मांग लेते हैं, तो उन्हें जेल से आजाद कर दिया जाएगा, लेकिन वह इस बात के लिए राजी नही हुए और उन्हें दो वर्ष के लिए जेल भेज दिया गया।
 जेल मे रहने के कारण मजरूह सुल्तानपुरी के परिवार की माली हालत काफी खराब हो गई। राजकपूर ने उनकी सहायता करनी चाही, लेकिन मजरूह सुल्तानपुरी ने उनकी सहायता लेने से मना कर दिया। इसके बाद राजकपूर ने उनसे एक गीत लिखने की पेशकश की। मजरूह ने ‘’‘’इक दिन बिक जाएगा माटी के मोल ‘’‘’गीत की रचना की जिसके एवज मे राजकपूर ने उन्हें एक हजार रूपए दिए । लगभग दो वर्ष तक जेल में रहने के बाद मजरूह ने एक बार फिर से नए जोशो खरोश के साथ काम करना शुरू कर दिया। वर्ष 1953 मे प्रदíशत फिल्म फुटपाथ और आरपार मे अपने गीतों की
कामयाबी के बाद मजरूह सुल्तानपुरी फिल्म इंडस्ट्री मे पुन: अपनी खोई हुई पहचान बनाने मे सफल हो गए।  मजरूह के महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए वर्ष 1993 मे उन्हें फिल्म जगत के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाजा गया। इसके अलावा वर्ष 1964 मे प्रदíशत फिल्म‘’‘’दोस्ती ‘’‘’ में अपने रचित गीत ‘चाहूंगा मै तुझे सांझ सवेरे’ के लिए भ्वह सर्वŸोष्ठ गीतकार के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किएगए । मजरूह ने चार दशक से भी ज्यादा लंबे सिने कैरियर में लगभग 300 फिल्मों के लिए लगभग 4000 गीतों की रचना की। अपने गीतों से श्रोताओं को भावविभोर करने वाले यह महान शायर और गीतकार 24 मई 2000 को इस दुनिया को अलविदा कह गए। मजरूह के गीतों की लंबी फेहरिस्त मे से कुछ हैं:-
तू कहे अगर जीवन भर मै गीत सुनाता जाऊँ ‘अंदाज’ बाबूजी धीरे चलना‘’आरपार‘’जाने कहां मेरा जिगर गया जी‘’मिस्टर एंड मिसेज 55 माना जनाब ने पुकारा नहंी ‘’छोड़ दो आंचल जमाना क्या कहेगा ‘’पेइंग गेस्ट ‘’है अपना दिल तो आवारा ‘’सोलहवां साल‘’दीवाना मस्ताना हुआ दिल’ बंबई का बाबू ‘’बार बार देखो हजार बार देखो‘चाईना टाउन‘ ’ना तुम हमे जानो ना हम तुम्हें जाने ‘बात एक रात की’ चाहूंगा मै तुझे शाम सवेर’ दोस्ती‘’ख्वाब हो तुम या कोई हकीकत‘’तीन देवियां‘’ इन्हीं लोगों ने ले लिना दुपट्टा मेरा ‘’पाकीजा‘’ पिया तू अब तो आजा ‘’कारवां ‘मीत ना मिला रे मन का ‘’अभिमान‘’ हमें तुमसे प्यार कितना ये हम नहीं जानते कुदरत आदि।
मजरूह आज हमारे बीच नहीं हैं, पर ऐसा कोई दिन नहीं जाता, जिस दिन रेडियो पर उनके गीत न बजते हों। ये गीत हमें हमेशा उनकी याद दिलाते रहते हैं। उन्होंने सच ही कहा है कि इंसान भले ही माटी के मोल बिक जाए, पर उसके बोल हमेशा जिंदा रहते हैं। मजरूह के बोल आज भी हमारे आसपास जिंदा हैं। जब कभी हम निराशा के अंधेरे में डूबे हों, तो उनके कई गीत हमें प्रेरणा देते रहेंगे।
प्रेम कुमार

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें