मंगलवार, 1 जुलाई 2014

भटके मानसून पर कुछ शब्द चित्र

गर्मी जाने का नाम नहीं ले रही है और मानसून रास्ता भटक गया है, हमेशा की तरह। ग वर्षा ऋतु के रास्ते में ग्रीष्म ऋतु अवरोधक बनी हुई है। बारिश की राह तकते-तकते आंखें भी थकने लगी हैं। पूरा देश अच्छे दिनों की प्रतीक्षा कर रहा है, पर पेट्रोल-डीजल, प्याज उसे आने ही नहीं दे रहे हैं। ऐसे में शब्द चित्र बनते हैं कुछ इस तरह...
दो डॉक्टर खाली बैठे हैं, एक डॉक्टर दूसरे से कहता है:-

देखो, खाली बैठे-बैठे मारने के लिए मक्खियां तक नहीं हैं, बारिश आए तो हमारी मंदी दूर हो जाए।


मौसम विभाग के एक सीनियर अधिकारी को एक मामूली से चपरासी ने सलाह दी..,
सर, इससे तो अच्छा है, विभाग में एक-दो ज्योतिष की भर्ती कर लो, कम से कम उनके गॉसिप सच्चे हो जाएं।

एक बड़े मॉल में मैनेजर की केबिन में असिस्टेंट हाथ में लम्बा कागज लेकर रिपोर्ट दे रहा है, सर ‘समर डिस्काउंट’ में जितना ‘सेल’ हुआ, उससे कई गुना तो एसी का बिल आ गया है?
एक एयरकंडीशंड डाइनिंग हॉल-कम-रेस्टारेंट के बाहर एक बोर्ड लगा है..
दोपहर 2 से 5 बजे तक एसी बंद रहेगा। केवल छाछ पीने आने वाले ग्राहक इस पर विशेष ध्यान दें। बाय अॅार्डर
मौसम विभाग के एक अधिकारी गुस्से से अपने मातहत से पूछ रहे हैं:- हमने 15 दिन पहले ऑफिस में भीगी हुई छतरियों को रखने के लिए स्टैंड का ऑर्डर दिया था, वह अभी तक कैसे नहीं बन पाया?
असिस्टेंट- सर, उसे मालूम होगा कि आखिर बारिश कब हो रही है।

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