गुरुवार, 1 सितंबर 2022

जिहां गुड़ तिहां चांटी

मीठा केवल गुड़ और शक्कर ही नहीं होता, मीठेपन का गुण व्यक्ति, पशु और पक्षियों में भी होता है। सादा-सरल, उच्च विचार, रहन-सहन, भोलापन, निष्कपटता, छलहीन आचरण और व्यवहार मनुष्य के व्यक्तित्व में वह निखार ला देता है जिससे प्रभावित हुए बिना कोई नहीं रह सकता। अनायास उसकी ओर आकर्षित हो खींचे चले आते हैं। छत्तीसगढ़ की माटी इन्हीं खनिज सम्पदाओं से लबालब भरा हुआ है। सुख, शांति, प्रेम और सद्भाव रूपी खजानों को यहां के वासी दोनों हाथों से दानवीर, कर्ण और प्रवीरचंद भंजदेव की तरह लुटाते हैं। दानवीर मोरध्वज को यहां की माटी ने जन्म दिया था इसे सब जानते हैं। सब कुछ मिलता है यहां, किसी चीज की कमी नहीं, अभाव नहीं जिसके लिए दूसरों का मुंह ताकना पड़े। इसी संदर्भ में यहां प्रस्तुत है छत्तीसगढ़ी आलेख- 'जिहां गुड़ तिहां चांटी '|

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छत्तीसगढ़ मं जउन मन आगे, बसगे, रहिके खपत हें, पचत हे, तउन सबो झन केहे लगे हें- मैं छत्तीसगढिय़ां हौं। झोरफा के झोरफा, दर-दर ले बरतिया मन असन, बतरकिरी मन असन झपाय परत हें। अइसन काबर होवत हे? सब छत्तीसगढिय़ा मॉडल के कमाल हे ते कोनो अउ दूसर कारन हे? कारन ला जाने अउ समझे ले परही, बिन जाने, बिन समझे कोन अपन मुंह ला ओखली में दिही!

हां..., कारन हे भई, जबरदस्त कारन हे। अउ ओ कारन हे सुख अउ शांति। इहां कोनो परकार के कल-कल नइहे, झगरा-लड़ई नइहे, अशांति नइहे, जइसन आन जघा मं हें। दूसर परदेश मं जा तो ले- रात-दिन झगरा लड़ई, मारपीट, चोरी, डकैती, बदमासी अउ दुनियाभर के अतियाचार। उहां सुतंत्र कोनो रेहे नइ सकय। चले फिरे, घुमे-टहले नइ सकय। चीज-बस, घर-दुआर, पूंजी-पसरा, बहू-बेटी के ककरो ठिकाना नहीं, के कब का हो जही? दू दिन, चार दिन बर घर छोड़ के कहूं बाहिर नइजा सकस, तलासत रहिथे के घर मालिक मन हे के नहीं। जइसे ओकर मन के कान मं बात पहुंचथे के फलाना घर के मालिक कहूं बाहिर गेहे, बर-बिहाव, मरनी-हरनी, घूमे-फिरे ले तब जान ले दूसर दिन ओकर मन के घर मं चोरी-डकैती, सेंधमारी, नहिते कोनो बहू-बेटी के इज्जत ऊपर आंच आ जाय रहिथे। 

जिहां गुड़ रहिथे तिहां चांटी के रेला लग जथे। कोन जनी ओकर मन के नाक मं का अइसे सक्ति रहिथे कोनो मोहनी दे बरोबर बरपेली खींचे चले आथे। हां, सचमुच मं मनमोहनी हे छत्तीसगढ़। एकर दूसर नांव मणिपुर, मेघालय, हिमाचल, कश्मीर, उत्तराखंड जइसे मनमोहनी परदेस रख देना चाही। छत्तीसगढ़ के जनप्रतिनिधि मन ला एकर ऊपर विचार करना चाही, प्रबुद्ध वर्ग मन ला घला सोचना चाही। करे जा सकत हे, हो सकत हे, बस थोकन कोशिश करे भर के जरूरत हे। जब शहर मन के नाम बदले जा सकत हे तब परदेस के नांव बदलब मं कोनो परकार के अड़चन नइ आना चाही, हो सकत हे ये अपन-अपन विचार हे भई, कोनो ला बरपेली करे के या फेर जोजियाय के जरूरत नइहे। 

हां तब बात गुड़ अउ चांटी के शुरू होय रिहिसे। जउन गुरहा चीला खाये हें तउन मन ओकर सुवाद ला जान सकत हे। छत्तीसगढिय़ा मन तो खवई-पियई म बाजे हे। गजब मिठास अउ गुरतुर भरे हे छत्तीसगढ़ मं। सब जिनिस के मिठास हे। इहां का जिनिस नइहे, सब कुछ हे, सब भरपूर हे। खनिज सम्पदा, पेड़-पौधा, नदिया-नरवा, पहाड़, जंगल, बड़े-बड़े सरोवर ये सब तो इहंचेे हे। एकर छोड़े जउन बड़े जनिक सम्पदा धन, मणि, मानिक,हीरा -पन्ना सोना-चांदी, जवाहरात यहू कुछु नइहे इकरो ले जउन बड़े सम्पदा हे ओ हे धरम, तिहार, परब, उत्सव, खुसी, आनंद अउ परेम जउन इहां के माटी मं कन-कन मं जन-जन के मन मं बसे ओ अद्भुत हे। भगवान रामचंद्र ला जउन अपन कोख ले जनम दे हे तइसन महतारी के ये जन्मभूमि हे। अइसन जघा तब कइसन पावन अउ सुंदर नइ हो सकत हे। सप्तरिसी मन के तपोभूमि हे इही छत्तीसगढ़। साक्षात प्रयागराज हे राजिम, जिहां राजीव लोचन भगवान विराजे हे। ये धरती, ये छत्तीसगढ़, इहां के माटी चंदन बरोबर हे, मस्तक मं लगाय के लइक हे। 

अइसन जघा ला कोटि-कोटि परनाम हे। महानदी, सोंढूर अउ पइरी नदी के पानी छत्तीसगढ़ के पांव पखारत कल-कल करत बहत हे। सुख, शांति, परेम, आनंद अउ धरमभूमि हे छत्तीसगढ़। सर्वधर्म, समभाव, सद्भाव के त्रिवेणी मं असनान करे खातिर ओ सब इहां खींचे चले आवत हे। इही जादू हे, मनमोहनी हे, गुड़ के चासनी हे। जइसे चासनी मं अचान चकरित माखी के पांख धोखा मं फंसगे तब फेर ओहर फंसगे, निकल नइ सकय, बांच नइ सकय। वइसने छत्तीसगढ़ महतारी के मया हा उही मनमोहनी हे,ओकर गोदी मं बइठे, दूनों बांह मं पोटार लिस तब फिर ये दुलार, मया अउ ममता मं सब बंध जथे। छोड़ाय नइ छूटय। धन हे छत्तीसगढ़ महतारी अउ धन हे तोर मया। तोन मन मं ककरो बर भेदभाव नइहे। तोर हिरदय सब बर वइसने खुले हे जइसे संत तुकड़ो जी भजन गावय- ''सबके लिए खुला है मंदिर ये हमारा"। छत्तीसगढ़ कोनो परदेस नहीं मंदिर हे, तीरथधाम हे, पायलागी करथौं अइसन भुइयां ला... |

-परमानंद वर्मा

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