रविवार, 6 अगस्त 2023

कोनो ल चांटी चाबत हे तब मैं का करौं?

कुछ लोगों की आदत होती है, चुपचाप नहीं बैठ सकते। हर क्षेत्र में इस तरह के लोग होते हैं। आड़े-तिरछे काम, बात, व्यवहार, आचरण करते रहते हैं जो पीड़ादायक होते हैं, असहनीय और अशोभनीय होते हैं। समाज, परिवार और देश की संस्कृति, सभ्यता, भाषा, बोली और धर्म के विरुद्ध होते हैं। इसी संदर्भ में प्रस्तुत है यह छत्तीसगढ़ी आलेख-। 

आजकल बइठे-ठाले लोगन मन ल बरपेली चांटी चाबत हे, तब बिछियावत ओकर झार ले सुसुवात हे, कोनो-कोनो ल कांटा गड़त हे तब ओमन करलावत हे, कोनो ल बात के तीर लगत हे, तब जहर खाये कस मरत हे, छटपटावत हें, का करन कइसे करन? सब अपन-अपन ले अपने आप मरत हे। अपने खुद के बुने जाला मं जइसे मकड़ी फंस जथे अउ उबरे के कोनो चारा या जुगाड़ नइ दीखय तहां ले फंस के मर जथे, तइसने कस आज हाल मनखे मन के होवत जात हे। कोनो थिरथार, चुपचाप रेहे नइ सकत हे। एक-दूसर ल कोचकत रहिथें, हुदरत रहिथे। सहत ले सहिथे अउ जहां मुड़ी ले ऊपर पानी चढ़े ले धरथे, अकबकाय असन लगथे तहां ले उबरे बर, परान बचाय बर तो हाथ-गोड़ मारे ले परथे। आज समाज के वइसने कस हालत होगे हे। इही सब बात ल गुनत उधो गुड़ी चवरा  कोती जात रहिथे, तब बीच रस्दा मं माधो के मुख्तियार मिलगे। ओहर पूचथे- या उधो, कहां जाथस जी?

राम... राम... ददा, राम... राम..., अरे माधो करा जाथौं रे भई, थोकन काम हे। सियनहा अकन राहय मुख्तियार तउन ला राम रमउआ करे के बाद उधो, ओला बताथे। 

- कइसे कुछु काम हे गा, मुख्तियार उधो ल पूछथे ? 

- का, कामेच रइही, तब कोनो ककरो दुआरी मं जाही गा, अइसे बिन काम के नइ जा सकय? उधो

मुख्तियार ल अइसन लगिथे के उधो ओकर सवाल जउन करिस तेला रिस मानगे। ओहर कहिथे- अइसे बात नइहे उधो, तोर तो ओहर संगवारी हे, मितान हे गा अउ तैं तो ओकर भक्त घला हस। तैं तो कभू आ-जा सकथस। तोर बर तो सदा ओकर दरवाजा खुले हे। 

उधो कहिथे- जब सबो बात ल तैं जानत हस तब तिखारे के का जरूरत?

मुख्तियार चेथी ल खजुवावत अउ बात मं ओला अइसे लगथे के अरझगेंव, तब कोरमावत उधो ल कहिथे- अइसे बात नइहे, बात दरअसल ये हे के तोर चेहरा मं थोकन चिंता के लकीर देखत हौं तब पूछ परेंव।

अरे इही तो बात हे, इकरे समाधान करे खातिर तो माधो करा जात हौं। मुख्तियार ल उधो  ह जउन सोचत-विचारत आवत रिहिसे रस्दा भर तउन बात ल ओकर करा उछर (उगल) दिस। 

मुख्तियार कहिथे- ले चल, महूं जाथौं ओकरे करा। 

दूनो गोठियावत-बतावत माधो के दरबार मं हाजिर हो जथे। देखते साठ माधो ओला पूछथे- अरे उधो, तैं कहां  गे रेहे अतेक दिन ले, तोर अता-पता नइ चलत रिहिसे। 

अब तोला का बतावौं माधो, मैं तोरे असन ठेलहा तो नइहौं। मैं देश-दुनिया, ये गांव ले ओ गांव, ये शहर  ले ओ शहर, ये मंदिर ले ओ मसजिद, ये गियानी, ओ धियानी। सब जघा घूमत-फिरत रहिथौं। 

माधो पूछथे- तब सब जघा के हाल-चाल बने-बने हे न?

का बने-बने ल कहिथस माधो, मणिपुर बरत हे, जरत हे, पूरा सतियानास होगे हे परदेस हा, कानून बेवस्था सब छर्री-दर्री होगे हे, परदेश अउ केन्द्र सरकार दांत ल निपोर दे हे, पुलिस अउ सेना घला हथियार डार दे हे, कुकी अउ मैतेयी दू समुदाय के झगरा अतेक बाड़गे हे के कौरव-पांडव के लड़ई बरोबर महाभारत मचे हे। 

उधो के बात ल सुनके माधो के माथा चकरागे, का अतेक गदर मात गेहे मणिपुर मं? तब केन्द्र अउ राज्य सरकार का करत हे, योगी महराज जइसे बुलडोजर नइ चला देतिस? सब के होश ठिकाना आ जतिस?

उधो कहिथे- काला का कहिबे माधो- ओमन तो बने घर के घर के उझरइया हे, बने सरकार के तोड़फोड़ करके, गुना-भाग करके अपने पारटी के सरकार बनाय मं लगे हे। दूसर ल खात-पीयत नइ देख सकय तउन का अइसन समस्या ल देखही ?

अउ हां एक ठन बात हे मितान, बइठे-ठाले ए मन ल घलो कइसे चांटी चाबत रहिथे? उधो के बात ल सुनके माधो पूछथे- कइसे का बात होगे तेमा ?

अब तोला का बात ल बतावौं माधो- ओ दिन आसरम मं परवचन सुने ले जा परेंव। उहां दुवारी मं पोस्टर लगे हे तेमा लिखे हे के आसरम जउन परवचन सुने बर आवत हौ, तउन मन कपड़ा बने ढंग के पहिर के आय करौ। इशारा सीधा बेटी, बहू अउ गोसइन जवान बेटा मन ऊपर जादा रिहिसे। 

मोर कहना ये हे माधो के इही पहिनावा-ओढ़ावा के बात ल लेके कई घौं महिला मन हंगामा कर चुके हे, देश के कतको विद्यालय अउ स्कूल मं पढ़इया बेटी मन घला सड़क मं उतरगे हे। एक समुदाय विशेष मन तो धर्म के मुद्दा बनाके बवाल घला खड़ा कर दिन हे, अइसन गंभीर मुद्दा ऊपर हाथ नइ डारना चाही, नइते नागराज मन फुफकारबे करही, डसबे करही। 

देख उधो, तैं बतावत हस तउन सबो बात सही हे, माधो कहिथे- ये सब समस्या के समाधान शांति हे। बिन पानी छिड़के आगी बुतावय नहीं। ये देश के समस्या विकराल होगे हे। सब सुवारथी, लोभी, दंभी अउ अहंकारी होगे हे। पद प्रतिष्ठा अउ सत्ता कईसे मिलय इकरे सेती सब छटपटावत हे। कोनो ल चांटी चाबत हे, कोनो ल सांप डसत हे तब कोनो ल बात के तीर मारके अइसे घायल करत हे के ओहर पानी नइ मांग सकत हे। 

उधो पूछथे- तब अइसे मं कइसे होही माधो, का करे ले परही?

माधो कहिथे- कुछु करे ले नइ परय, बस चुपचाप देखते राह, आघू... आघू होवत हे का?

परमानंद वर्मा


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें