सोमवार, 17 अक्तूबर 2022

मंगनी मं नइ मिलय मया..!

प्रेम किसी से किया नहीं हो जाता है। यह वरदान है परमात्मा का, आशीर्वाद है, कृपा है। यह खूबसूरत  तौहफा व फूल हर किसी के सौभाग्य में नहीं लिखा होता। किसी-किसी को मिलता है। कोई-कोई तो जिंदगी भर तरसते और तड़पते रह जाते हैं प्यार को पाने के लिए। प्रेम भी अलग-अलग  तरह का होता है। किसी को संगीत, नृत्य, साहित्य, धन-वैभव, स्त्री, संपत्ति से प्यार होता है तो वहीं किसान को अपनी लहलहाते हुए फसल, मां को अपनी संतान,से होता है। पति-पत्नी, प्रेमी-प्रेमिका का भी आपस में प्यार होता है। मीराबाई का प्यार तो जगजाहिर है। इसके खातिर उसने अपना सब कुछ त्याग दिया l राजमहल, वैभव, सुख - सम्पदा को छोड़ प्रेम को वरण कर लिया l  कुछ इसी तरह के प्रेम प्रसंगों का ताना - बाना  बुना  गया है l इसी  पर आधारित है यह छत्तीसगढ़ी आलेख- 

'मंगनी मं नइ मिलय मया

परेम अमरित हे, सरग हे, सुख हे। ओ हे तब संसार हे, ओकर बिगन नरक हे समशान हे। मनखे ले, ले के पशु-पक्षी अउ जतका जीव-जन्तु हे, परेम ले ही उपजथे। शमा ला देखते साठ पतंगा अइसे  बइहा जथे, परेम मं ओकर पागल हो जथे के अपन जान तक  ल होम देथे, झपा जथे. जल मर के राख हो जथे, एला कहिथे परेम। 

अइसने पशु परेम मं आसक्त एक झन संगवारी के चार-पांच ठन गाय अउ भइस ल एक घौं ट्रक हा रौंद के मार डरिस। ओ पशु मन के शोक मं ओ संगवारी बीमार परगे, खटिया धर लिस, अउ एक दिन संसार ले चल बसिस। 

बेरला तहसील मं खर्रा नांव के गांव हे। उहां फूफा राहय, उहां एक घां जाना होइस। तब का देखथौं- ओहर जतका मवेशी रिहिसे तेकर संग गोठियावय, बात करय, अउ पूछय- कइसे राम जी हो, सब बने-बने हौ न? ओकर सेवा-जतन करय, पयरा-भूसा देवय, कोटना मं धोवन सिरा जाय राहय तब फुफू ऊपर खिसियावत काहय- रामजी मन पियास मर जाही, कोटना मं हउंला-दू-हउंला पानी डार दे करौ भाई। तुंहर दरी नइ सुधरय, तब मोला बता दे करौ। दू-तीन कांवर पानी तरिया ले लाके डार दे करिहौं। अउ कोनो मवेशी बीमार पर जाय तब डॉक्टर बला के ले आनय। ओहा काहय- ये रामजी हा कइसे आंखी-कान ला लोरमा दे हे डॉक्टर साहब, बने दवा-पानी देख के दे दे भई। अतेक परेम फूफा के मवेशी मन बर रीहिस हे। 

अइसने एक दिन का देखथौं, हमर पहाटिया घर दुधारू गाय अकस्मात मरगे। ओ परिवार बर मं रोना-धोना अइसे मच गे, जना-मना कोनो सदस्य के इंतकाल होगे। ओ दिन ओकर सोग मं चूल्हा नइ बरिस। लांघन-भूखन सुतगे सब। उदुप ले पहाटिया कइसे नइ आवत हे कइके पता लगाय खातिर जा परेंव, तब जउन बात सुनेव तेला जानके सोचेंव- एला कहिथे परेम। 

राजनांदगांव शहर के बात हे। एक झन रतिहा ओकर घर मं नाग देवता निकलगे। परिवार के सबो झन सकपगाके, डर्रागे, का हो गे भगवान। पठेरा मं जा के ओहर बइठगे राहय। ककरो अक्कल काम नइ करत राहय। आखिर मं ओला लाठी पीट-पीट के मार डरिन। नागिन खोज-खोज के परेशान होगे के आखिर ओकर नाग देवता कहां गय। घुरवा तीर मार के फेंक दे राहय। तेकर ऊपर नागिन के नजर परगे। मारे गुस्सा के ओहर बिफरगे। अपन गोसइया नागदेव के मौत के बदला लेके ठानिस। एक दिन उही घर मं पहुंचगे जिहां के मन ओला मारके घुरवा मं फेंक दे रिहिन हे। फेर का हे, ओ परिवार के दू-तीन सदस्य ल ठिकाना लगा दिस। बिहनिया ओ घर मं रोवा-राई मचगे। अड़ोसी-परोसी जाके देखथे तब अकबका जथे, सुकुरदुम हो जथे। कहिथे- अइसे कइसे होगे? सब किहिन, जानगे- जा नागिन हा बदला ले लिस। पिंयार तो पियार होथे। कोनो ला ककरो पिंयार मं भांजी नइ मारना चाही। 

एला तो सब जानत अउ समझथौ, भंवरा फूल के कतेक आशिक अउ दीवाना होथे। अइसे मनखे मन घला होथे, फेर एमन मतलबी अउ सुवारथी होथे। मतलब सध जथे तहां ले तिरिया जथे, पहिचाने ले नइ धरय। तैं कोन, मैं कोने केहे ले धर लेथे। फेर भंवरा मन अइसन नइ होवय। सच्चा आशिक अउ पिंयार होथे फूल बर ओकर मन मं। 

कमल के फूल तरिया मं खिले रहिथे, जइसे बेरा चढ़थे कहां-कहां ले पहुंच जथे आशिक आवारा मन सही भंवरा मन। ओकर रूप, रंग आउ पराग के सुगन्ध मं मोहा जथे। सब ले जादा नशा फूल के सौरभ मं होथे। ओकर चुम्बन लेवत-लेवत, रसपान करत अपन सब होश ल गंवा बइठथे। चुम्बन के नशा होथे वइसने, जउन एकर जानकार होहू तउन ला समझत मं कोनो दुविधा नइ होही। गांजा कली के नशा एकर आघू मं फेल हे। 

हां तब होथे का, बइहाय भंवरा ल अतको चेत-सुरता नइ राहय के चलव अब संझा के बेरा होवत हे  चले जाय घर। छोड़े के नांव नइ लेवय, जइसे सुहागरात के दिन जोड़ी-जांवर ला होथे। नशा तो नशा हे, चाहे कई सनो नशा होवय, फूलो हा ओला नइ कहितिस जा ना अब अपन घर। समे ककरो बर रुकै नहीं। कमल के पंखुड़ी मन संझा होते साठ भंवरा ला अपन चपेट मं ले लेथे। धंधा जथे ओकर घेरा मं अउ फडफ़ड़ा के अपन परान तियाग देथे।

परमानंद वर्मा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें