शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2022

कहां हे रावन, कोन हे रावन, घर-घर हे रावन

दसहरा तिहार विजय, खुशी अउ आनंद के तिहार हे, बुराई मं अच्छाई के विजय के तिहार हे। आज के दिन गांव ले लेके देस, परदेस तक मं घर-घर मं मनाय जाथे। बुराई के परतीक रावन के पुतला ल आगी के हवाले करे जाथे। देखते देखत ओ रावन जर के राख हो जथे। 

पहिली तो कहूं-कहूं रावन के पुतला बनावय, हमला सुरता आवत हे, जब नानकिन लइका रेहेन तब तीर-तखार कोनो गांव मं अइसन पुतला नइ बनावत रिहिन  हे, जइसन आज देखे ले मिलथे। अब तो गांव-गांव, गली-गली, शहर-शहर मं दू कोरी (बीस) ल कोन काहय पांच-पांच कोरी ऊंच के रावन के पुतला बनाय ले धर ले हें। कतको जघा मं तो पक्की सीमेंट के घला रावन के पुतला बनवा डारे हे। लगथे सब आज राम के कम, रावन के भक्त जादा जनम ले लेहे। एकर परमान हर गांव, हर गली अउ हर शहर मं देखे जा सकत हे। पुलिस थाना मं अइसन रावन भक्त अउ सूर्पनखा देखे जा सकत हे, बड़े-बड़े होटल, क्लब अउ माल मन में घला सूर्पनखा अउ रावन के औलाद मन गुलछर्रा उड़ावत हे। अब राम के नहीं, सचमुच मं ये दुनिया भर मं रावन के राज चलत हे। 

जउन जतके झूठ-लबारी, गलत काम, अनीति, अत्याचार, कुकरम, बेइमानी, भ्रष्टाचार करत हे ओकर मन के चांदी हे, रोज इहां दुरपति मन के चीरहरन, शीलहरन का-का नइ होवत हे। हत्या, लूट, आतंक के कारोबारी सब जघा बगरे हे। सतवादी गहूं मं कीरा असन रमजावत हे, मरत हे, सड़त-गलत हे। गांधी बबा के 'रघुपति राघव राजा राम के भजन के कोनो सुनइया नइहे। सब दारू, गांजा , भांग , हफीम अउ चरस पीके डिस्को डांस करके छोकरी मन असन जेती देखबे तेती रावन जिंदाबाद के नारा लगत हे। झूठ के बोलइया, सकलकर्मी मन दरबार के खिलाड़ी बन बइठे हे। 'अंधेर नगरी चउपट राजा कस खेल चलत हे। 

रावन कोनो अउ दूसर नोहय, मनखे के अंदर जउन बुराई, पांच विकार काम, क्रोध, लोभ, मोह अउ अहंकार हे, उही हर रावन हे। एमन पहिली जेल मं रिहिन हे, याने एला संयम, नियम के हथकड़ी पहिरा के धांधे  रिहिन हे। अब इही कैदी मन बरोबर जेल के दीवार ला फांद के बाहिर निकलगे हे अउ भारी उत्पात मचावत हे, देस ला कोन काहय, संसार भर मं। हद करत हे रावन, धरउन नइ देवत हे, पकड़ावत नइहे। बड़े-बड़े रावन रोज पैदा होवत हे। कोनेा देस अइसे हे जिहां रावन के पैदावार नइ होवत हे। आज के तारीख मं ओमन ला आतंकवादी कहिथे। ओ तो अमरीका हे जउन ओसामा बिन लादेन, जवाहरी जइसन दुरदांत रावन मन ला ठिकाना लगइस हे। पाकिसान, अफगानिस्तान, ईरान, इराक, इजराइल अउ भारत जइसन देस मं घला नकली भेस मं रावन जनम ले ले हे। ओमन ला जानना, अउ पहिचानना कठिन हे। जानत, मानत सब हे फेर कोनो बोल नइ सकत हे, काबर 'समरथ को नहीं दोस गोसाई जब गोसाइयां हर रावन होगे हे तब गोसइन, परिवार, लइका अउ गांव के का हाल ल लेबे। 

धन हे ये दुरगा मइया के जउन अइसन राक्षस, रावन मन ल संहार करे खातिर जनम लेथे। इही पाके तो ओला महिसासुर मरदिनी कहिथे। आज अष्टमी हे, कल नवमी हो जही। परन दिन दसहरा। अब ओ मइया कोनो-कोन, कतेक महिसासुर, राक्षस अउ रावन के संघार करथे तउन पता चल जही। इही रावन के खातमा होय के सुरता मं खुशी के रूप मं देशभर मं दशहरा  तिहार मनाय जथे। 

अलग-अलग परदेस मं, गांव मं, शहर मं कई रूप मं ये तिहार ल मनाय जथे। हमर छत्तीसगढ़ मं बस्तर अइसे जघा हे जिहां नवरात शुरू होय के दिन ले दशहरा उत्सव मनाय बर धर लेथे। विश्व परसिध बस्तर दशहरा के एक अलग-अपन विधान हे, नियम हे। जानकारी मिले हे तेकर अनुसार नवरात के पहिली दिन ले लकड़ी के बनाय रथ ल छै दिन तक परिकरमा कराय जाथे। ये परम्परा चार सौ गियारह साल पहिली शुरू करे गे रिहिसे तउन आज तक चलत आवत हे। राजा बीरसिंह देव एला शुरू करवाय रिहिसे। ए रथ ला फूल रथ के हे जाथे। रथ मं आठ पहिया होथे, एला विजय रथ घला कहिथे, हर साल1एला बनाय ले परथे। 

वइसने बस्तर दशहरा के शुरूआत उहां के राजा पुरुषोत्तम देव के शासनकाल मं होइस हे। बताथे- महाराजा पुरुषोत्तम भगवान जगन्नाथ के भक्त रिहिसे। ओहर सोलह पहिया वाले रथ मं चार पहिया अलग जुड़वाइस तेला गोंचा रथ कहिथे, अइसन बारह पहिया वाला रथ ला दशहरा रथ के नांव दे गिस तउन ला दो सौ साल तक खींचे गिस। ए रथ मन के अलग इतिहास हे जउन दशहरा उत्सव के बखत खींचे जात रिहिसे। चार पहिया वाला फूल रथ अउ आठ पहिला वाला ला विजय रथ के नाव दे गिस। इही रथ मन जेमा देवी अउ राजा विराजमान रहिते, दो सौ साल ले खींचे जाय के परमान हे अउ आज ले चलत आवत हे। विश्व परसिध ये बस्तर दशहरा ल देखे खातिर अपन देश ल कोन काहय, विदेश के मन घला हर साल देखे ला आथे। बाकी जघा तो बनाय रावन के पुतला ला आगी के हवाले कर दे जाथे। राम-लछिमन बनाके रावन मैदान मं ले जाथे, ओमन परतीक स्वरूप बान चलाथे अउ रावन धरासायी हो जथे। इकरे सुरता मं राम लीला घला जघा-जघा करथे। दूसर दिन फेर रावन सड़क मं जाथे अउ शुरू हो जथे ओकर घमा-चौकड़ी, उत्पात अउ आतंक। जब तक अंतस मं घर जमाये बइठे बुराई (रावन) नइ मरिही, रावन जीयत रइही। अउ ओकर सेनापति, सिपाही मन के आतंक बने रइही।

-परमानंद वर्मा

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